Idealism in Education PDF in Hindi : आदर्शवाद का अर्थ, रूप, सिद्धांत, उद्देश्य, पाठ्यक्रम, शिक्षण-विधियाँ

Idealism in Education PDF in Hindi
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आदर्शवाद का अर्थ, रूप, सिद्धांत, उद्देश्य, पाठ्यक्रम, शिक्षण-विधियाँ आदि (Idealism in Education PDF in Hindi) : आदर्शवाद दार्शनिक जगत में प्राचीनतम विचारधारा मानी जाती है | वास्तव में मानव-सभ्यता की उत्पत्ति व विकास के समय से ही आदर्शवादी विचारधारा किसी न किसी रूप में विद्यावान रही है | ऐतिहासिक दृष्टि से पाश्चात्य देशों में आदर्शवाद ((Aadarshwad/Idealism) का विकास यूनानी दार्शनिक सुकरात और प्लेटो से माना जाता है | आदर्शवाद का उद्देश्य जीवन हेतु निश्चित आदर्शों और मूल्यों का निर्धारण कर मानव को उनके अनुकरण के लिए निर्देशित करना है |

आदर्शवादी विचारधारा भौतिक जगत की अपेक्षा विचारों को श्रेष्ठ मानती है | वास्तव में आदर्शवाद पाश्चात्य दर्शन की वह विचारधारा है जो वस्तु की अपेक्षा विचारों, भावों व आदर्शों को अधिक महत्व देता है और जो मानता है कि मानव जीवन का अंतिम उद्देश्य आत्मानुभूति अथवा ईश्वर की प्राप्ति है | (Idealism in Education PDF in Hindi)

पिछले कुछ लेखों में हमनें आदर्शवाद (Idealism) टॉपिक पर विस्तार से चर्चा की है, जिसे आप “आदर्शवाद के सभी लेख” में देख सकते है |

इस लेख में हम आदर्शवाद (Essay on Idealism in Hindi) के सभी पक्षों जैसे आदर्शवाद का अर्थ और परिभाषायें, आदर्शवाद की विशेषाएं, आदर्शवाद के रूप, आदर्शवाद के मूल सिद्धांत, आदर्शवाद और शिक्षा का अर्थ, आदर्शवाद और शिक्षा के उद्देश्य, आदर्शवाद और पाठ्यक्रम, आदर्शवाद और शिक्षण विधियाँ, आदर्शवाद और अनुशासन, आदर्शवाद और विद्यालय, आदर्शवाद और शिक्षक,आदर्शवाद और शिक्षार्थी, आदर्शवाद के गुण, आदर्शवाद के दोष, आधुनिक शिक्षा पर आदर्शवाद का प्रभाव तथा आदर्शवाद और प्रकृतिवाद का तुलनात्मक अध्ययन पर चर्चा करेंगें | (Aadarshwad In Hindi/Idealism in Education PDF in Hindi)

आदर्शवाद, जिसे विचारवाद और प्रत्ययवाद भी कहा जाता है, के विषय में मुख्य रूप से निम्न चार बातों को जानना अतिआवश्यक है –

  1. आदर्शवाद इस ब्रह्माण्ड को ईश्वर द्वारा निर्मित मानता है |
  2. आदर्शवाद ईश्वर को अंतिम सत्य व आत्मा को ईश्वर का अंश मानता है |
  3. आदर्शवाद वस्तु जगत की अपेक्षा आध्यात्मिक जगत को श्रेष्ठ मानता है |
  4. आदर्शवाद मानता है कि मानव जीवन का अंतिम उद्देश्य आत्मानुभूति है |

आदर्शवाद की प्रमुख विशेषताओं को पढ़ने के लिए इस लेख को पढ़ें – आदर्शवाद और उसकी विशेषताएं |(Aadarshwad In Hindi/Idealism in Education PDF in Hindi)

आदर्शवाद का अर्थ (Meaning of Idealism)

आपको ध्यान रखना है कि यद्यपि दर्शन में आदर्शवाद ‘आदर्शों’ की व्याख्या करता है लेकिन आदर्शवाद का मुख्य विषय “विचार” है न कि ‘आदर्श’ | आदर्शवाद की उत्पत्ति विचारवादी सिद्धांत से हुई है | आदर्शवाद को अंग्रेजी भाषा में आइडियलिज्म (Idealism) कहते है, जिसकी उत्पत्ति आइडिया (विचार) शब्द से हुई है और इसका मूल शब्द आइडियाइज्म (Idealism) है, जोकि यूनानी दार्शनिक प्लेटो के विचारवादी सिद्धांत द्वारा प्रतिपादित है |

इसीलिए आदर्शवाद को विचारवाद या प्रत्ययवाद भी कहा जाता है | वर्तमान में विचारवाद या प्रत्ययवाद की अपेक्षा आदर्शवाद (Idealism) शब्द ज्यादा प्रचलित है | (Aadarshwad In Hindi/Idealism in Education PDF in Hindi)

आदर्शवाद “मन की प्रकृति को वास्तविक मानता है |” पैट्रिक महोदय लिखते है कि जिस तरह भौतिकवाद, विश्व का आधार “पदार्थ” को मानता है उसी प्रकार आदर्शवाद विश्व का आधार “मन” को मानता है |

आदर्शवाद को अंग्रेजी में ‘आइडियलिज्म’ (Idealism) कहा जाता है जोकि दो शब्दों ‘आइडिया’ (Idea) और ‘इज्म’ (Ism) से मिलकर बना है | यहाँ आइडिया शब्द का अर्थ है ‘विचार’ और इज्म शब्द का अर्थ है ‘वाद’ | इसप्रकार आइडियलिज्म (आइडिया-इज्म) शब्द का अर्थ हुआ “विचारवाद” |

आइडिया (Idea) शब्द में उच्चारण की सुविधा के लिए एल (L) अक्षर के जोड़ देने से ‘आइडियलिज्म’ (Idealism) शब्द बना, जिसका अर्थ है “आदर्शवाद” | इसप्रकार विचारवाद (Ideaism) ने आदर्शवाद (Idealism) का रूप ले लिया |

आदर्शवाद के अर्थ और परिभाषा को विस्तार से पढ़ने के लिए इस लेख को देखें – आदर्शवाद का अर्थ व परिभाषा |(Aadarshwad In Hindi/Idealism in Education PDF in Hindi)

आदर्शवाद के रूप (Form of Idealism)

आदर्शवाद पाश्चात्य दर्शन की एक प्राचीन विचारधारा है | अनेक दार्शनिक ने इसके विकास में योगदान दिया | समय के साथ आदर्शवाद के विभिन्न रूप अस्तित्व में आये |

आदर्शवाद के विभिन्न रूप इस प्रकार है –

  1. प्लेटो का नैतिक आदर्शवाद (Moralistic Idealism)
  2. जार्ज बर्कले का आत्मनिष्ट आदर्शवाद (Subjective Idealism)
  3. कान्ट का बुद्धिवादी आदर्शवादी (Intellectual Idealism)
  4. हेगेल का निरपेक्ष आदर्शवाद (Absolute Idealism)
  5. लाइबनित्ज का बहुतत्ववादी आदर्शवाद (Pluralistic Idealism)

प्लेटो का नैतिक आदर्शवाद (Moralistic Idealism)

नैतिक आदर्शवाद का प्रतिपादन प्लेटो (Plato) ने किया था | प्लेटो के दर्शन का केंद्र-बिंदु विचार था | प्लेटो ने विचारो को मूल तत्व माना और विचारों की नैतिक व्यवस्था को स्वीकारा |

प्लेटो का मानना है कि विचारों में एक ईश्वरीय व नैतिक व्यवस्था होती है, जिसकी मदद से ईश्वर इस सम्पूर्ण संसार को निर्मित करता है | विचारों की नैतिक व्यवस्था में विश्वास करने की वजह से प्लेटो की आदर्शवादी विचारधारा ‘नैतिक आदर्शवाद’ कहलाई |  

जॉर्ज बर्कले का आत्मनिष्ठ आदर्शवाद (Subjective Idealism)

जार्ज बर्कले (George Berkeley) ने आत्मनिष्ठ आदर्शवाद का प्रतिपादन किया | बर्कले के अनुसार वस्तु के अस्तित्व का ज्ञान मात्र मन (आत्मा) के कारण होता है, वस्तु का खुद में कोई अस्तित्व नही होता | बर्कले का मानना है कि विश्व एक मानसिक जगत है जहाँ पर विचारों का स्थान सर्वोच्च है | जॉर्ज बर्कले की यह विचारधारा आत्मनिष्ठ आदर्शवाद कहलाई |

कान्ट का बुद्धिवादी आदर्शवाद (Intellectual Idealism)

इमान्युएल कान्ट (Immanuel Kant) ने बुद्धिवादी आदर्शवाद का प्रतिपादन किया | कान्ट की प्रसिद्ध उक्ति है – “बुद्धि प्रकृति को नियमित करती है |” बुद्धि प्रकृति को नियमित करके इसे हमारे ज्ञान का विषय बनती है | हमारे व्यावहारिक ज्ञान में बुद्धि के कारण ही सार्वभौम निश्चय और अनिवार्यता आती है | कान्ट की इस आदर्शवादी विचारधारा को बुद्धिवादी आदर्शवाद कहा जाता है | 

हेगेल का निरपेक्ष आदर्शवाद (Absolute Idealism)

जॉर्ज विल्हेल्म फ्रेडरिक हेगेल (George Wilhelm Friedrich Hegel) ने निरपेक्ष आदर्शवाद का प्रतिपादन किया था | हेगेल का मानना था कि जीवात्मा और प्रकृति दोनों का मूल स्रोत परमतत्व है और एकमात्र परमतत्व निरपेक्ष या पूर्ण विचार है | सम्पूर्ण संसार इसी का परिणाम है | हेगेल की यह आदर्शवादी विचारधारा निरपेक्ष आदर्शवाद कहलाती है |

लाइबनित्ज का बहुतत्ववादी आदर्शवाद (Pluralistic Idealism)

गॉटफ्रिड विल्हेल्म लाइबनित्ज (Gottfried Wilhelm Leibnitz) ने बहुतत्ववादी आदर्शवाद का प्रतिपादन किया था | लाइबनित्ज ने संसार के प्रत्येक पदार्थ में एक स्वतंत्र आध्यात्मिक तत्व ‘चिदणु’ (Monad) की सत्ता को स्वीकार किया |

चिद्णु (मोनाड) चेतन, अनादि, अनन्त, नित्य, असंख्य व स्वयं में पूर्ण है | परम चिदणु (ईश्वर) चिदणुओं का स्रष्टा है | अनेक चिदणु की सत्ता स्वीकार करने के कारण लाइबनित्ज की आदर्शवादी विचारधारा बहुतत्ववादी आदर्शवाद कहलाई |

तत्वों के आधार पर आदर्शवाद के रूप

प्रकारप्रवर्तकतत्व
नैतिक आदर्शवादप्लेटोविचार
आत्मनिष्ट आदर्शवाद      बर्कलेमन अथवा आत्मा
बुद्धिवादी आदर्शवादीकान्टबुद्धि
निरपेक्ष आदर्शवादहेगेलपरमतत्व (जीवात्मा व प्रकृति दोनों)
बहुतत्ववादी आदर्शवादलाइबनित्जचिदणु (मोनाड)

आदर्शवाद के रूप को विस्तार से पढ़ने के लिए इस लेख को देखें – आदर्शवाद के रूप | (Aadarshwad In Hindi/Idealism in Education PDF in Hindi)

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आदर्शवाद के मूल सिद्धांत (Basic Principles of Idealism)

आदर्शवाद के मूल सिद्धांत इस प्रकार है –

  1. यह ब्रह्माण्ड ईश्वर ईश्वर द्वारा निर्मित है |
  2. वस्तु की अपेक्षा विचार, भाव, आदर्श अधिक महत्वपूर्ण है |
  3. आध्यात्मिक जगत भौतिक जगत की अपेक्षा श्रेष्ठ है |
  4. आत्मा एक आध्यात्मिक तत्व है और परमात्मा सर्वश्रेष्ठ आत्मा है |
  5. मानव ब्रह्माण्ड की सर्वश्रेष्ठ रचना है |
  6. मानव का विकास उसकी भौतिक और आध्यात्मिक शक्तियों पर निर्भर करता है |
  7. मानव जीवन का अंतिम उद्देश्य आत्मानुभूति या ईश्वर प्राप्ति है |
  8. आध्यात्मिक मूल्यों की प्राप्ति हेतु नैतिक आचरण आवश्यक है |

आदर्शवाद के मूल सिद्धांतों को को विस्तार से पढ़ने के लिए इस लेख को देखें – आदर्शवाद के मूल सिद्धांत |(Aadarshwad In Hindi/Idealism in Education PDF in Hindi)

आदर्शवाद के अनुसार शिक्षा का अर्थ (Idealism and Education)

आदर्शवाद ने शिक्षा को सर्वाधिक प्रभावित किया है | आदर्शवाद को शिक्षा के क्षेत्र में प्रमुखता देने वाले विद्वानों में सर्वप्रथम प्लेटो, कॉमेनियस, पेस्टालॉजी, फ्रोबेल और हरबार्ट के नाम विशेष रूप से उल्लेखनीय माने गये है |

आदर्शवादियों के अनुसार मानव में सद्गुणों का विकास करने वाली शिक्षा ही वास्तविक शिक्षा है | उनका मानना है कि शिक्षा एक “चेतना या बौद्धिक प्रक्रिया” है, जोकि शिक्षार्थी में सद्गुणों का विकास करके उसे एक प्राकृतिक प्राणी से आध्यात्मिक प्राणी में परिवर्तित करती है |

आदर्शवाद के अनुसार “शिक्षा एक चेतनापूर्ण और बौद्धिक प्रक्रिया है, जिसमे शिक्षक के द्वारा शिक्षार्थी को आत्मानुभूति करायी जाती है |” जर्मन शिक्षाशास्त्री हरबार्ट लिखते है कि “शिक्षा वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा सद्गुणों की प्राप्ति होती है |”

आदर्शवाद के अनुसार शिक्षा के अर्थ को विस्तार से पढ़ने के लिए इस लेख को देखें – आदर्शवाद और शिक्षा |

शिक्षा का अर्थ और परिभाषा को विस्तार से जानने के लिए इस लेख को देखें – शिक्षा का अर्थ व परिभाषा |(Aadarshwad In Hindi/Idealism in Education PDF in Hindi)

आदर्शवाद के अनुसार शिक्षा के उद्देश्य (Idealism and Aims of Education)

आदर्शवादी शिक्षाशास्त्रियों ने शिक्षा के उद्देश्यों और लक्ष्यों के निर्धारण पर विशेष ध्यान दिया | शिक्षाशात्री जेम्स एस. रॉस लिखते है कि “आदर्शवाद ने विधियों की अपेक्षा शिक्षा के उद्देश्यों और लक्ष्यों के लिए अधिक योगदान दिया है |”

आदर्शवाद के अनुसार मानव जीवन का अंतिम उद्देश्य आत्मा-परमात्मा के चरम स्वरुप का ज्ञान प्राप्त करना है | इसी को ईश्वर की प्राप्ति, आत्मानुभूति, परम आनन्द की प्राप्ति कहा गया है | आदर्शवादियों के अनुसार आत्मा-परमात्मा के चरम स्वरुप का ज्ञान प्राप्त करने के लिए मानव को चार चरणों पर सफलता प्राप्त करनी होगी |

ये चार चरण इस प्रकार है –

  1. प्राकृतिक ‘स्व’
  2. सामाजिक ‘स्व’
  3. मानसिक ‘स्व’
  4. आध्यात्मिक ‘स्व’

पहले चरण में मानव को स्वयं के प्राकृतिक ‘स्व’ का विकास करना होता है | जिसके अंतर्गत मानव का शारीरिक विकास आता है | दूसरे चरण में मानव को स्वयं के सामाजिक ‘स्व’ का विकास करना होता है | जिसके अंतर्गत मानव का सामाजिक, सांस्कृतिक, चारित्रिक, नैतिक और नागरिकता का विकास आता है |

तीसरे चरण में मानव को स्वयं के मानसिक ‘स्व’ का विकास करना होता है | जिसके अंतर्गत मानसिक, बौद्धिक और विवेक शक्ति का विकास आता है | और अंत में चौथे चरण में मानव को स्वयं के आध्यात्मिक ‘स्व’ का विकास करना होता है | जिसके अंतर्गत आध्यात्मिक चेतना का विकास आता है |

आदर्शवाद के अनुसार शिक्षा के उद्देश्य को विस्तार से जानने के लिए इस लेख को देखें – आदर्शवाद और शिक्षा के उद्देश्य |

अगर आप शिक्षा के उद्देश्यों को जानना चाहते है तो इस लेख को पढ़ें – शिक्षा के उद्देश्य |(Aadarshwad In Hindi/Idealism in Education PDF in Hindi)

आदर्शवाद के अनुसार शिक्षा की पाठ्यचर्या (Idealism and Curriculum)

प्रत्येक शिक्षा व्यवस्था में पाठ्यचर्या को एक विशेष स्थान दिया जाता है क्योकि पाठ्यचर्या ही यह तय करती है कि शिक्षार्थी को कितना और क्या पढ़ना है | किसी भी पाठ्यचर्या का निर्धारण शिक्षा के उद्देश्यों को ध्यान में रखकर ही किया जाता है |

शिक्षा के उद्देश्यों की भांति आदर्शवादियों ने शिक्षा की पाठ्यचर्या (पाठ्यक्रम) पर भी विशेष ध्यान दिया है, क्योकि शिक्षा के उद्देश्यों की प्राप्ति तभी सम्भव होगी जब पाठ्यचर्या भी उसी के अनुरूप हो |

आदर्शवादी शिक्षा की पाठ्यचर्या पर आदर्शवादी शिक्षा के उद्देश्यों व सिद्धांतों का गहरा प्रभाव परिलक्षित होता है | चूँकि आदर्शवाद शिक्षा का अंतिम उद्देश्य आत्मानुभूति को मानता है, अतः आदर्शवादी मानते है कि शिक्षा-व्यवस्था के अन्तर्गत पाठ्यचर्या में शिक्षार्थी व उसकी क्रियाओं की तुलना में मानव के विचारों, आदर्शों, शाश्वत-मूल्यों, नैतिकता और आध्यात्मिकता को अधिक महत्व देना चाहिए |

पाठ्यचर्या में मानव क्रियाओं को आधार मानकर विभिन्न आदर्शवादी दार्शनिकों ने अपने-अपने विचार प्रस्तुत किये है, जो निम्न प्रकार से है –

प्लेटों के अनुसार आदर्शवादी शिक्षा की पाठ्यचर्या –

यूनानी दार्शनिक प्लेटो ने शिक्षा का चरम लक्ष्य ईश्वर की प्राप्ति को माना | इसके लिए सत्यं, शिवं और सुन्दरं की प्राप्ति आवश्यक होती है | इन आध्यात्मिक मूल्यों की प्राप्ति में बौद्धिक, कलात्मक और नैतिक क्रियाएं करनी होती है, जिन्हें पाठ्यचर्या में स्थान देना आवश्यक है |

प्लेटो ने आदर्शवादी शिक्षा की पाठ्यचर्या निम्न प्रकार से प्रस्तावित की है –

  1. बौद्धिक क्रियाएं (Intellectual Activities) : प्लेटों के अनुसार इसमे भाषा, साहित्य, इतिहास, भूगोल, विज्ञान, गणित आदि विषयों का समावेश होना चाहिए |
  2. नैतिक क्रियाएं (Moral Activities) : प्लेटो के अनुसार इसमे धर्म, अध्यात्म एवं नीतिशास्त्र को शामिल करना चाहिए |
  3. सौन्दर्यात्मक क्रियाएं (Aesthetic Activities) : प्लेटों के अनुसार इसमें कला और कविता को स्थान देना चाहिए |

मानव की क्रियाएँ (Activities of Human)

बौद्धिक (Intellectual)सौन्दर्यात्मक (Aesthetics)नैतिक (Moral)
भाषाकलाधर्मशास्त्र
साहित्यकवितानीतिशास्त्र
इतिहाससंगीतआध्यात्मशास्त्र
भूगोल
गणित
विज्ञान

फ्रोबेल के अनुसार आदर्शवादी शिक्षा की पाठ्यचर्या –

फ्रोबेल ने आदर्शवादी शिक्षा की पाठ्यचर्या में निम्न विषयों को शामिल करने का सुझाव दिया था –

  1. धर्म और धार्मिक शिक्षण (Religion and Religious Instruction)
  2. भाषा (Language)
  3. प्राकृतिक विज्ञान और गणित (Natural Science and Mathematics)
  4. कला और कला की वस्तुएं (Art and Objects of Art)

रॉस के अनुसार आदर्शवादी शिक्षा की पाठ्यचर्या

रॉस (James, S. Ross) के अनुसार आदर्शवादी शिक्षा की पाठ्यचर्या में निम्न दो प्रकार की क्रियाओं को शामिल करना चाहिए –

  1. शारीरिक क्रियाएं (Physical Activities)
  2. आध्यात्मिक क्रियाएं (Spiritual Activities)

उपर्युक्त दोनों क्रियाओं के अनुरूप कुछ उपयोगी विषय है, जिन्हें आदर्शवादी पाठ्यचर्या में शामिल करना चाहिए , जैसे –

शारीरिक क्रियाएं (Physical Activities) : इनमे व्यायाम, स्वास्थ्य विज्ञान, खेलकूद, शारीरिक कुशलताओं को शामिल करना चाहिए |

आध्यात्मिक क्रियाएं (Spiritual Activities) : रॉस (James, S. Ross) के अनुसार इनके अंतर्गत निम्न चार क्रियाओं को शामिल करना चाहिए –

  1. बौद्धिक क्रियाएं (Intellectual Activities) : इनमे साहित्य, भाषा , इतिहास, भूगोल, विज्ञान और गणित को शामिल करना चाहिए |
  2. नैतिक क्रियाएं (Moral Activities) : इनमे नीतिशास्त्र विषय को शामिल करना चाहिए |
  3. सौन्दर्यात्मक क्रियाएं (Aesthetics Activities) : इनमे संगीत, कला, नृत्य विषयों को दामिल करना चाहिए |
  4. धार्मिक व आध्यात्मिक क्रियाएं (Religious and Spiritual Activities) : इनमे धर्मशास्त्र और नीतिशास्त्र विषयों को शामिल करना चाहिए |

हरबार्ट के अनुसार आदर्शवादी शिक्षा की पाठ्यचर्या

जर्मन शिक्षाशास्त्री हरबार्ट मानव की आध्यात्मिक उन्नति हेतु नैतिक व चारित्रिक विकास पर विशेष जोर देते थें | हरबार्ट के अनुसार आदर्शवादी शिक्षा की पाठ्यचर्या में भाषा, साहित्य, कला, इतिहास और संगीत को मुख्य स्थान दिया जाना चाहिए जबकि भूगोल, विज्ञान और गणित को गौण स्थान दिया जाना चाहिए |

मानव की क्रियाएँ (Activities of Human)

प्राथमिक (Primary)गौण (Secondary)
भाषागणित
साहित्यविज्ञान
कलाभूगोल
इतिहास
संगीत

आदर्शवादी शिक्षा की पाठ्यचर्या को विस्तार से पढ़ने के लिए इस लेख को देखें – आदर्शवाद और पाठ्यचर्या |(Aadarshwad In Hindi/Idealism in Education PDF in Hindi)

आदर्शवाद और शिक्षण विधियाँ (Idealism and Methods of Teaching)

शिक्षण- विधि के सम्बन्ध में आदर्शवादियों ने किसी एक विशेष विधि का समर्थन नही किया बल्कि उनका मत है कि लक्ष्य की प्राप्ति के लिए एक शिक्षक आवश्यकतानुसार जिस विधि को उचित और उपयोगी समझे, अपना सकता है | शिक्षाशास्त्री बटलर (Butler) लिखते है कि, “आदर्शवादी अपने को किसी एक विधि का भक्त न मानकर शिक्षण विधियों का निर्माणकर्ता और निर्धारक मानते है |”

यही कारण है कि विभिन्न आदर्शवादियों ने विभिन्न शिक्षण विधियों का प्रयोग किया | कुछ आदर्शवादियों की शिक्षण विधियाँ निम्न प्रकार से है –

सुकरात की शिक्षण विधि : यूनानी दार्शनिक सुकरात ने शिक्षा देने के लिए प्रश्नोत्तर, वाद-विवाद और व्याख्यान विधि को अपनाया | वें इन विधियों के द्वारा नवयुवकों को शिक्षित किया करते थें |

सुकरात किसी स्थान पर लोगों को एकत्र करके उनसे कुछ प्रश्न पूछते, लोग उन प्रश्नों पर विचार-विमर्श करते और उत्तर देते, तब सुकरात उन प्रश्नों के सन्दर्भ में अपना विचार रखते |

प्लेटो की शिक्षण विधि : सुकरात के शिष्य प्लेटो ने शिक्षण की संवाद विधि को अपनाया | प्लेटो के संवाद विश्व प्रसिद्ध है | प्लेटो ने अपनी ज्यादातर रचनाओं को भी संवादों के रूप में ही लिखा है |

अरस्तु की शिक्षण विधि : प्लेटो के शिष्य अरस्तु ने शिक्षण के लिए आगमन व निगमन विधियों को अपनाया | अरस्तु पहले उदाहरण प्रस्तुत कर सामान्यीकरण करते और फिर इस प्रकार प्राप्त सिद्धांत का प्रयोग करते |

आदर्शवादियों की मुख्य शिक्षण विधियाँ

आदर्शवादी दार्शनिक शिक्षण विधियाँ
सुकरात (Socrates)प्रश्न विधि (Questioning Method)
प्लेटो (Plato)सम्वाद विधि (Dialectic Method)
अरस्तु (Aristotle)आगमनात्मक और निगमनात्मक विधि (Inductive and Deductive Method)
हीगल (Hegal)तर्क विधि (Logical Method)
हरबार्ट (Herbert)अनुदेशन विधि (Instruction Method)
फ्रोबेल (Froebel)खेल विधि (Play-way Method)
पेस्टालॉजी (Pestalozzi)इंद्रिय-शिक्षा और क्रियाएं (Training and Activities of Senses)
डेकार्टे (Descrates)सरल से जटिल की ओर (From Simple to Complex)

आदर्शवाद और अनुशासन (Idealism and Discipline)

आदर्शवादियों ने अनुशासन को बहुत महत्वपूर्ण माना है | थॉमस और लैंग (Thomas and Lang) लिखते है कि, “प्रकृतिवादियों का नारा स्वतंत्रता है, जबकि आदर्शवादियों का नारा अनुशासन है |” आदर्शवादी बालक को स्वतंत्रता देने के साथ साथ प्रभावात्मक अनुशासन (Impressionistic Discipline) में रखने पर जोर देते है | आदर्शवादी इस पक्ष में नही है कि बालक पर बाह्य नियन्त्रण और शारीरिक दण्ड दिया जाये |

यद्यपि आदर्शवाद के प्रतिपादक प्लेटो बालको को अनैतिक आचरण से बचाने के लिए उन पर कठोर नियंत्रण एवं दण्ड का विधान स्वीकार करते है |

लेकिन वह ये भी मानते है कि वास्तविक अनुशासन आंतरिक होता है, जिससे मानव अपने अंतःकरण से प्रेरणा लेता है और उसके अनुकूल आचरण करता है | इसलिए बालक को ऐसा वातावरण प्रदान किया जाये जिससे वें स्वतः नैतिक आचरण की ओर बढ़े |

आधुनिक आदर्शवादी फ्रोबेल (Froebel) लिखते है कि, “बालक की रूचि का ज्ञान प्राप्त करके और प्यार व सहानुभूतिपूर्ण व्यवहार करके उस पर नियन्त्रण रखना चाहिए |

आदर्शवादी विचारक हॉर्न भी आंतरिक अनुशासन को महत्वपूर्ण मानते है | हॉर्न (Horne) लिखते है कि, “अनुशासन का आरम्भ बाह्य रूप से होता है लेकिन यह उत्तम होगा यदि इसका अंत आदत निर्माण व आत्म-नियंत्रण द्वारा आंतरिक हो |”

इसप्रकार आदर्शवादियों का मानना है कि बालक का विकास उचित और भलीभांति तभी हो सकता है, जब वह स्वयं अनुशासित रहकर ज्ञान अर्जन करता है | इससे बालक आत्मानुभूति ( Self Realization) भी कर सकता है |

आदर्शवाद और विद्यालय (Idealism and School)

आदर्शवादी विद्यालय को ऐसा स्थान मानते है, जहाँ बालक आत्म-अनुशासन में रहकर उच्च आदर्शों का ज्ञान की प्राप्ति करते है और स्वयं के व्यक्तित्व का विकास करते है | विद्यालय एक ऐसा स्थान है, जिसके आदर्श वातावरण में रहकर बालक साहित्यिक ज्ञान के साथ-साथ व्यावहारिक ज्ञान की प्राप्ति करते है |

फ्रोबेल (Froebel) लिखते है कि, “इस प्रकार विद्यालय समाज के लघु रूप हो जाते है | शिक्षा जीवन की स्थिति हो जाती है, तैयारी के रूप में नही बल्कि एक सार-तत्व के रूप में |”

आदर्शवादी मानते है कि विद्यालय ऐसे स्थान पर बनाये जाने चाहिए जहाँ बालक उच्च सामाजिक आदर्शों और आध्यात्मिक मूल्यों को प्राप्त कर सकें |

आदर्शवाद और शिक्षक (Idealism and Teacher)

आदर्शवादियों ने शिक्षा की प्रक्रिया में शिक्षक को सबसे शीर्ष और गौरवपूर्ण स्थान दिया है | शिक्षक के द्वारा ही शिक्षार्थी को उचित मार्गदर्शन प्राप्त होता है | यद्यपि शिक्षक के अभाव में शिक्षा की प्रक्रिया रूक नही सकती लेकिन शिक्षा के उद्देश्यों की प्राप्ति करना शिक्षक की सहायता के बिना सम्भव नही है | शिक्षक ही शिक्षार्थी को उसकी छिपी हुई आन्तरिक शक्तियों का ज्ञान कराता है |

आदर्शवादी शिक्षा का मुख्य उद्देश्य बालक का आध्यात्मिक विकास करना है | बिना शिक्षक के इस लक्ष्य की प्राप्ति सम्भव नही है | आदर्शवादी शिक्षक अपने आदर्शमय जीवन से ऐसा वातावरण का निर्माण करता है, जिसमे रहकर शिक्षार्थी का आध्यात्मिक विकास सुगमतापूर्वक होता है |

जे. एस. रॉस आदर्शवादी शिक्षक की प्रशंसा करते हुए लिखते है कि “एक प्रकृतिवादी मात्र काँटों को देखकर ही संतुष्ट हो सकता है लेकिन आदर्शवादी सुंदर गुलाब का फूल देखना चाहता है | अतः शिक्षक अपने प्रयत्नों से शिक्षार्थी को, जो अपनी प्रकृति के नियमों के अनुसार विकसित होता है, उस उच्चता तक पहुँचने में मदद करता है, जहाँ तक वह स्वयं नही पहुँच सकता |”

आदर्शवादी मानते है कि शिक्षार्थी को पशुत्व से मनुष्यत्व और मनुष्यत्व से देवत्व की ओर ले जाने में शिक्षक एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है | आदर्शवादी मानते है कि एक शिक्षक में अपने विषय की विशेषज्ञता के साथ साथ बहुमुखी व्यक्तित्व की भी आवश्यकता होती है साथ ही उसमे शिक्षार्थी की मनोदशा को समझने की क्षमता भी होनी चाहिए | प्लेटो मानते है कि दार्शनिक, ज्ञान के भंडार, सच्चरित्र व अंतर्दृष्टि प्राप्त व्यक्ति ही शिक्षक बनने का अधिकार रखते है |

आदर्शवादी इस बात पर जोर देते है कि यद्यपि शिक्षार्थी को भौतिक विषय का ज्ञान कोई भी व्यक्ति करा सकता है लेकिन उनके चरित्र निर्माण व आध्यात्मिक विकास के लिए योग्य, चरित्रवान और आध्यात्मिक शिक्षक की आवश्यकता होती है |

फ्रोबेल आदर्शवादी शिक्षक का महत्व बताते हुए कहते है कि विद्यालय रुपी बगीचे में शिक्षक रुपी माली शिक्षार्थी रुपी पौधों के विकास में सहयोग देते है |

इस प्रकार एक आदर्शवादी शिक्षक एक कुशल पथ-प्रदर्शक के रूप में कर्तव्य का पालन करते हुए शिक्षार्थी में आध्यात्मिक चेतना का विकास करके आत्मानुभूति का ज्ञान कराता है |

आदर्शवाद और शिक्षार्थी (idealism and Student)

आदर्शवादी शिक्षा की प्रक्रिया में प्रकृतिवादियों की भांति शिक्षार्थी को सर्वोच्च स्थान नही देते है | बल्कि वें आदर्शों, विचारों और प्रत्ययों को शिक्षा का केंद्र मानते है | आदर्शवादी शिक्षार्थी की तुलना में शिक्षक को ज्यादा महत्वपूर्ण मानते है |

आदर्शवादियों का मानना है कि शिक्षार्थी एक पौधे के समान होते है जिन्हें मनचाहा आकार दिया जा सकता है | शिक्षक का कर्तव्य शिक्षार्थी को उच्च आदर्शों की प्राप्ति के लिए सूझबूझ उत्पन्न कराना है |

आदर्शवादी मानते है कि शिक्षार्थी में पूर्ण विकसित मानव के सभी गुण विद्यमान होते है | इसलिए शिक्षकों द्वारा शिक्षार्थियों में उच्च आदर्शों व विचारों को ग्रहण करने की योग्यता का भलीभांति विकास करना चाहिए और साथ ही उन्हें अनुकूल परिस्थितियाँ प्रदान करनी चाहिए, जिससे वें निश्चित रूप से अपना विकास कर सके |

आरंभ में सभी आदर्शवादी मानते थें कि सभी शिक्षार्थी समान होते है और पूर्णता की अनुभूति करने योग्य होते है | इसलिए वें प्रारम्भ से ही शिक्षार्थियों को पूर्णता की अनुभूति कराने पर जोर देते थें |

लेकिन आधुनिक आदर्शवादी शिक्षार्थियों में व्यक्तिगत-विभिन्नता को स्वीकार करते है | उनका मानना है कि प्रत्येक शिक्षार्थी में शारीरिक व मानसिक भिन्नता पायी जाती है |

जर्मनी के आदर्शवादी शिक्षाशास्त्री पेस्टालॉजी प्रथम व्यक्ति थें जिन्होंने बच्चों की मनोवैज्ञानिक भिन्नता के आधार पर उनकी शिक्षा की व्यवस्था करने पर जोर दिया था | आगे चलकर उनके शिष्यों हरबर्ट व फ्रोबेल ने उनकें विचारों को मूर्त रूप प्रदान किया |

आदर्शवाद का मूल्यांकन (Evaluation of Idealism)

आदर्शवाद के उपर्युक्त विभिन्न पक्षों को बताने के बाद आदर्शवाद का समालोचनात्मक मूल्यांकन आवश्यक है जिससे इसके गुण-दोषों का पता लगाया जा सके | आदर्शवाद के गुण और दोष (सीमाएं) निम्न प्रकार से है –

आदर्शवाद के गुण (Merits of Idealism)

  1. आदर्शवाद ने शिक्षा के उद्देशों के निर्धारण में विशेष भूमिका निभाई है |
  2. आदर्शवाद शिक्षक और शिक्षार्थी में नैतिक और चारित्रिक विकास पर जोर दिया है |
  3. आदर्शवाद ने शिक्षा में अनेक उपयोगी शिक्षण-विधियों का विकास किया है |
  4. आदर्शवाद अनुशासन के लिए आंतरिक अनुशासन और आत्मनियंत्रण पर विशेष जोर देता है |
  5. आदर्शवाद शिक्षक को शिक्षण-प्रक्रिया में शीर्ष स्थान देता है क्योकि वह बालकों को पशुत्व से मनुष्यत्व और मनुष्यत्व से देवत्व की ओर ले जाता है |

आदर्शवाद के दोष (Demerits of Idealism)

  1. आदर्शवाद ने शिक्षा प्रक्रिया में शिक्षार्थी को गौण स्थान दिया है | जबकि शिक्षा का प्रत्यक्ष सम्बन्ध शिक्षार्थी से होता है |
  2. आदर्शवाद पाठ्यचर्या में आध्यात्म को सर्वप्रमुख स्थान देते है और विज्ञान व तकनीकी विषयों की उपेक्षा करते है, जोकि आधुनिक विज्ञान युग के लिए उचित नही है |
  3. आदर्शवाद अमूर्त उद्देश्यों को महत्व देता है, जिनका सम्बन्ध वर्तमान से न होकर भविष्य से है |
  4. आदर्शवाद बालक की जीविकोपार्जन से सम्बन्धित समस्या के विषय में कोई समाधान प्रस्तुत नही करता है |

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