बुद्ध की कहानी 19 : चुन्द को दोष-मुक्ति

बुद्ध की कहानी 19 : चुन्द को दोष-मुक्ति | भगवान् बुद्ध के हृदय में हमेशा करुणा भरी रहती थी, उन्हें अपने अंतिम समय में भी बेहद पीड़ा में भी चुन्द, जिसके घर भोजन करके वे बीमार हुए थे, की चिंता थी कि उनके महापरिनिर्वाण के बाद लोग चुन्द को कोई दोष न दें |

इसलिए अम्बवन में चौपेती संघाटी पर लेटे उन्होंने आयुष्मान्‌ आनन्द से कहते अपने इस अंतिम भोजन को उतना ही श्रेष्ठ बतलाया, जितना कि सुजाता के खीर को, जिसे खाकर वह बुद्ध हुये थें |

भगवान् बुद्ध आनंद से कहते है – “आनंद, शायद कोई चुन्द कर्मारपुत्र को क्षुब्ध करे और कहे – “आवुस चुन्द ! अलाभ है तुझे, तूने दुर्लाभ कमाया, जो कि तथागत तेरे पिंडपात को भोजन कर परिनिर्वाण को प्राप्त हुये |’ आनंद ! चुन्द कर्मार-पुत्र की इस चिन्ता को दूर करना (और कहना) – ‘आवुस ! लाभ है तुझे, तूने सुलाभ कमाया, जो कि तथागत तेरे पिंडपात को भोजन कर परिनिर्वांण को प्राप्त हुये |’ आवुस चुन्द ! मैने यह भगवान्‌ के मुख से सुना, मुख से ग्रहण किया – ‘वह दो पिंडपात समान फल वाले हैं, दूसरे पिंडपातो से बहुत ही महाफल-प्रद हैं | कौन से दो ? (1) जिस पिंडपात (भिक्षा) को भोजन तथागत अनुत्तर सम्यक्-सबोधि (बुद्धत्व) को प्राप्त हुए, (2) और जिस पिंडपात को भोजन कर तथागत अन्-उपादिशेष निर्वाणधातु (दुःख-कारण-रहित निर्वाण) को प्राप्त हुये |…….आनंद ! चुन्द कर्मारपुत्र की चिंता को इस प्रकार दूर करना |”

चुन्द भी यह सोचकर अत्‍यन्‍त दुःखी था कि उसके यहाँ भोजन के बाद भगवान् का महापरिनिर्वाण हो गया, लेकिन आनंद ने भगवान् द्वारा कही गयी बात बताई और उसे यह कहते हुए शांत किया कि भगवान् को महापरिनिर्वाण से पहले अंतिम बार भोजन कराकर उसने बहुत पुण्‍य कमाया है |

इस प्रकार करुणामय भगवान् ने चुन्द की मानसिक पीड़ा को खत्म किया और भगवान् के उपर्युक्त कथन के कारण भविष्य में भी चुन्द को किसी ने दोष नही दिया |