शिक्षा के कार्य (Shiksha Ke Karya/Functions of Education) : विद्यादूत के इस लेख में हम शिक्षा के कार्य (Shiksha Ke Karya) पर प्रकाश डालेंगें | इसके पूर्व विद्यादूत में शिक्षा से सम्बन्धित अनेक लेख प्रकाशित किये जा चुके है जिन्हें आप यहाँ (Education Category) पर क्लिक करके देख सकते है | आप शिक्षा के अन्य लेख यहाँ (शिक्षा के बारे में) से भी देख सकते है | आप इस लेख के अंत में दिए गये “शिक्षा से सम्बन्धित लेखों” को भी जरुर पढ़ें | शिक्षा व्यक्ति की आंतरिक शक्तियों को विकसित करने की प्रक्रिया है | जॉन लॉक लिखते है कि “पौधे कृषि द्वारा विकसित होते है और मानव शिक्षा द्वारा |” यद्यपि संकुचित अर्थ में शिक्षा का आदान-प्रदान शिक्षालय तक ही सीमित है परन्तु व्यापक अर्थ में शिक्षा जीवनपर्यन्त चने वाली एक उद्देश्यपूर्ण सामाजिक प्रक्रिया है | व्यापक अर्थ में शिक्षा के कार्य असीमित है |
शिक्षा के कार्यों को किसी सीमा में बांधा नही जा सकता है | यह मानव, समाज, राज्य, राष्ट्र आदि सभी का विकास करती है | बिना शिक्षा के मानव पशु के समान होता है | शिक्षा ही पशु-रुपी मानव को सभ्य-मानव बनती है | जॉन डीवी लिखते है कि “शिक्षा का कार्य असहाय प्राणी के विकास में सहायता पहुँचाना है जिससे वह सुखी, नैतिक और कुशल मानव बन सके |
शिक्षा के कार्य (shiksha ke karya) इस प्रकार है –
शिक्षा के कार्य (Shiksha Ke Karya/Functions of Education)
शिक्षा का सम्बन्ध मानव के भूत, वर्तमान और भविष्य से होता है | इसलिए शिक्षा के कार्यों में परिवर्तन होता रहता है | शिक्षा के कार्यों को हम मुख्य रूप से निम्न तीन भागों में विभाजित कर सकते है –
- शिक्षा के सामान्य कार्य (General functions)
- मानवीय जीवन में शिक्षा के कार्य (Functions in human life)
- राष्ट्रीय जीवन में शिक्षा के कार्य (Function in National life)
शिक्षा के कार्य (Shiksha Ke Karya)
सामान्य कार्य (General functions) | मानवीय जीवन में कार्य (Functions in human life) | राष्ट्रीय जीवन में कार्य (Function in National life) |
चरित्र का निर्माण | कुशल नागरिकों का निर्माण | राष्ट्रीय एकता का विकास |
सामाजिक भावना का विकास | मानव को सभ्य बनाने में सहायक | राष्ट्रीय व सामाजिक हित को महत्व |
नागरिकता का विकास | व्यावसायिक कुशलता का विकास | राष्ट्रीय अनुशासन का विकास |
व्यक्तित्व का विकास | आत्मनिर्भर बनाना | भावात्मक एकता का विकास |
मूल प्रवृत्तियों का सद्विकास | भौतिक सम्पन्नता की प्राप्ति | नेतृत्व का प्रशिक्षण |
जन्मजात शक्तियों का विकास | मानवीय आवश्यकताओं की पूर्ति | सभ्यता व संस्कृति की सुरक्षा |
प्रौढ़ जीवन की तैयारी में सहायक | वातावरण से समायोजन | कुशल श्रमिकों की पूर्ति |
सामाजिक सुधार में सहायक | व्यावहरिक ज्ञान का विकास | राष्ट्रीय संस्कृति को महत्व |
सामाजिक दक्षता का विकास | अनुभवों की प्राप्ति | राष्ट्रीयता की भावना का विकास |
आत्मनिर्भरता का विकास | आत्मविकास में वृद्धि | अंतर्राष्ट्रीय एकता का विकास |
शिक्षा के कार्य (Shiksha Ke Karya)
संक्षेप में शिक्षा के कार्य निम्नलिखित है –
(1) मानव की अन्तःशक्तियों का प्रगतिशील विकास करती है |
(2) नागरिकों को नागरिकता के अधिकारों व कर्तव्यों को निभाने के योग्य बनती है |
(3) सामाजिक व व्यावसायिक कुशलता की उन्नति तथा विशेषज्ञों का निर्माण करती है |
(4) मानव के चरित्र-निर्माण और नैतिकता का विकास करती है |
(5) संस्कृति व सभ्यता का संरक्षण, हस्तान्तरण और विकास करती है |
(6) आध्यात्मिक चेतना का विकास करती है |
(7) समाज के व्यक्तियों का समाजीकरण, सामाजिक नियन्त्रण और सामाजिक परिवर्तन करना |
(8) राष्ट्रीय-एकता, राष्ट्रीय-प्रेम, राष्ट्रीय-विकास व भावात्मक एकता के कार्य करती है |
(9) अन्तर्राष्ट्रीय सदभावना का विकास करती है |
(10) परिस्थिति से अनुकूलन करने के योग्य बनती है |
(11) भावी जीवन के लिए तैयार करती है |
(12) व्यक्तित्व का सर्वांगीण विकास करती है |
(13) स्वतन्त्र चिन्तन की क्षमता का विकास करती है |
(14) जीविकोपार्जन की क्षमता का विकास करती है |
(15) नेतृत्व की शक्ति प्रदान करती है |
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