हड़प्पा सभ्यता में कृषि और पशुपालन

Harappa Sabhyta Mein Krushi Aur Pashupalan

हड़प्पा सभ्यता में कृषि और पशुपालन (Harappa Sabhyta Mein Krushi Aur Pashupalan) : हड़प्पा सभ्यता (हड़प्पा संस्कृति या सिन्धु सभ्यता) में हमे कृषि और पशुपालन की पर्याप्त व महत्वपूर्ण जानकारी प्राप्त होती है | हड़प्पा सभ्यता के लोगों ने कृषि पर अत्यधिक ध्यान दिया |

मोहनजोदड़ो, हड़प्पा और कालीबंगन में मिले अन्नागारों (कोठारों) से यह स्पष्ट होता है कि अनाज इतनी अधिक मात्रा में उगाया जाता था कि उनसे हड़प्पावासियों (सिन्धुवासियों) की तत्कालिक आवश्यकता की पूर्ति हो जाने के बाद भी उन्हें जमा किया जा सके |

हड़प्पा सभ्यता में कृषि

सिन्धु घाटी की सभ्यता (Indus Valley Civilization) अर्थात् हड़प्पा सभ्यता में सम्भवतः किसानों से राजस्व के रूप में अनाज वसूला जाता था और उन्हें कोठारों में किसी भावी आपात स्थिति से निपटने हेतु सुरक्षित किया जाता था |

सुविधा की दृष्टि से खेती आमतौर पर नदियों के पास की जाती थी |सिन्धु और उसकी सहायक नदियों से हर वर्ष आने वाली बाढ़ के कारण यहाँ की भूमि अत्यंत उपजाऊ बन गयी थी |

हड़प्पा सभ्यता के निवासी बाढ़ का पानी खत्म होने पर नवम्बर के माह में बीज बोते थें और अगली बाढ़ आने के पूर्व अप्रैल में फसल काट लेते थें |

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सर्वप्रथम कपास उत्पादन का श्रेय

विश्व से सबसे पहले कपास पैदा करने का श्रेय हड़प्पावासियों (सिन्धु घाटी के निवासियों) को ही है | चूँकि सर्वप्रथम सिन्धु सभ्यता के लोगो ने ही कपास का उत्पादन शुरू किया था, इसीलिए यूनान के लोग कपास को ‘सिन्डन’ (Sindon) कहने लगे, जो सिन्धु का ही यूनानी रूपान्तर है |

उल्लेखनीय है कि कपास का पूरे विश्व में प्राचीनतम साक्ष्य (हड़प्पाकाल से लगभग दो हजार वर्ष पहले) मेहरगढ़ पुरास्थल से प्राप्त हुआ है |

कालीबंगन से एक उस्तरा सूती कपड़े में लिपटा हुआ मिला है | मोहनजोदड़ो से बुने हुए सूती कपड़े का एक टुकड़ा प्राप्त हुआ है | इसके आलावा सिन्धु घाटी की सभ्यता में कई वस्तुओ पर कपड़े की छाप मिली है |

विभिन्न फसलों का उत्पादन

हड़प्पावासी विभिन्न प्रकार की फसलें उगते थें | वें गेहूँ, जौ, चावल, ज्वार, बाजरा, मटर, राई, सरसों, तिल, खजूर, कपास आदि पैदा करते थे |

इनका मुख्य खाद्यान्न गेहूँ और जौ थे | ये आम, केले, अनार, अंजीर, खरबूजा, नीबू, आदि के साथ कई जंगली  खाते थे |हड़प्पा सभ्यता में भारत की एक प्रमुख फसल गन्ने की खेती का साक्ष्य अभी तक नही मिला है |

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लेकिन कुछ विद्वान इसकी खेती की सम्भावना से इंकार नही करते है | सम्भव है कि वे अपने खाने को मीठा करने के लिए शहद का इस्तेमाल करते हो |

हल से खेती का साक्ष्य

सिन्धु सभ्यता में फसल काटने के लिए सम्भवतः पत्थर या तांबे के हँसियो का उपयोग होता था | यहाँ से कोई फावड़ा या फाल नही मिला है |

कालीबंगन की पूर्व-हड़प्पा अवस्था में हल से खेती किये जाने के साक्ष्य मिले है | ये हल सम्भवतः लकड़ी के बने हुए होते थे जिसके निचले सिरे पर लकड़ी या तांबे की फाल लगी होती थी |

कालीबंगन में हल से बने निशानों से पता चलता है कि एक साथ दो फसलें (सम्भवतः चना और सरसोँ) उगाई जाती थी | आधुनिक समय में भी कही-कही किसान अपने खेतों में एक साथ दो फसलें उगाते है |

सिन्धु घाटी की सभ्यता में मोहनजोदड़ो और बनावली से हल के मिट्टी के मॉडल प्राप्त हुए है | सम्भवतः जब अनाज का उत्पादन अधिक होने लगा तब बहुत से लोग अपनी आवश्यकताओं के लिए अनाज उत्पादन पर निर्भर नही रहे और उन्होंने विभिन्न व्यवसाय अपनाकर अपनी इच्छानुसार विभिन्न शिल्पों में दक्षता प्राप्त की | ऐसा करके उन्होंने नये कौशल विकसित किये |

हड़प्पा सभ्यता में पशुपालन

हड़प्पावासी कृषि के साथ-साथ पशुपालन भी करते थे | खुदाईयों से प्राप्त जानवरों (पशुओं) की हड्डियों, मृदभाण्डों पर चित्रण, मुहरों पर अंकित आकृतियों, मृण्मूर्तियों आदि से पता चलता है कि यहाँ के निवासी गाय-बैल, बकरा-बकरी, भैंस-भैसा, भेड़, गधे, ऊँट, सूअर, कुत्ते, बिल्ली, हांथी, मोर, बतख और मुर्गा पालते थे |

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सिन्धु घाटी की सभ्यता के लोगों को कूबड़ वाला सांड (बैल) विशेष प्रिय था | ये लोग गैंडे, बाघ, आदि से भी परिचित थे | आभूषण युक्त हाथी की आकृतियाँ कुछ मुहरों पर मिलती है, जो हाथियों के पालतू बनाये जाने का साक्ष्य है |

पालतू कुत्तों का साक्ष्य

सिन्धु घाटी की सभ्यता में (Indus Valley Civilization) में पालतू कुत्ते का भी साक्ष्य मिला है | हड़प्पा स्थल से एक मूर्ति मिली है जिसमे एक कुत्ता अपने मुंह में खरगोश दबाये है |

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जहाँ तक कुत्तो का प्रश्न है, पाठकों को बताना चाहता हूँ कि “मानव द्वारा सर्वप्रथम पालतू बनाये जाने वाला जानवर कुत्ता ही है | कुत्ता स्तनधारियों की कैनिस (Canis) जाति का पशु है | माना जाता है कि पहले भेड़िये फिर सियार से कुत्तो की जातियाँ निकलीं | हड़प्पा-काल के बाद वैदिक-काल में भी कुत्तों का उल्लेख मिलता है | ऋग्वेद में कुत्ते को मानव का साथी (मित्र) कहा गया है | ऋग्वेद में वर्णन है कि इंद्र ने बृहस्पति की खोई हुई गायों को खोजने के लिये अपनी ‘सरमा’ नामक कुतिया को भेजा था | महाभारत के अनुसार युधिष्ठिर के साथ एक कुत्ता भी स्वर्ग तक गया था | इस प्रकार प्राचीनकाल से लेकर वर्तमान-काल तक कुत्ता मानव का सबसे प्रिय पशु बना हुआ है |”

मुर्गा पालन

कुत्ते के आलावा पक्षियों में मुर्गा एक प्राचीन पालतू पक्षी है | मुर्गे के विषय में ए.एल.बाशम लिखते है कि “सम्भवतः विश्व को प्रागैतिहासिक भारत के उपहारों में सर्वाधिक प्रशंसित पालतू मुर्गा है | पक्षी-विद्या-विशेषज्ञ इस बात से सहमत है कि भिन्न-भिन्न जाति के पालतू पक्षी भारतीय वन्य मुर्गे की संतान है | हड़प्पाई लोग पालतू मुर्गे से परिचित थे, लेकिन इस पालतू मुर्गे के अवशेष बहुत कम मात्रा में है और इनका मुद्रांकन भी नही मिलता है |”

जंगली जानवरों का शिकार

इसके आलावा सिन्धु घाटी की सभ्यता में अनेक जंगली जानवरों की हड्डियाँ मिली है जैसे जंगली सूअर, हिरन, सांभर आदि | इनका सम्भवतः खाने तथा खाल के लिए शिकार किया जाता था | सुअर की हड्डियाँ बहुतायत से प्राप्त हुई है, जो जंगली और पालतू दोनों प्रकार के सुअरों की है |

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पक्षी व जलीय जीवों का शिकार

इनके आलावा पक्षियों, मछलियों और कछुओं का भी खाने के लिए शिकार किया जाता था | खुदाइयों में मछलियों और कछुओं की हड्डियाँ प्राप्त हुई है | तांबे के बने मछली पकड़ने के कांटे भी मिले है | मोहनजोदड़ो से एक धागे से लिपटा मछली पकड़ने का कांटा मिला है | हड़प्पा से गधे की हड्डियाँ प्राप्त हुई है |

ऊंटों व घोड़ों का पालन

सिन्धु घाटी की सभ्यता से प्राप्त मुहरों पर अनेक जानवरों के चित्र अंकित किये हुए मिले है | ऊँटो की हड्डियाँ भी बड़ी संख्या में प्राप्त हुई है लेकिन किसी भी मुहर पर ऊँट का चित्र अंकित हुआ नही मिला है |

इसी प्रकार घोड़े का कोई स्पष्ट चित्र किसी मुहर पर बना हुआ अभी तक नही मिला है, जबकि घोड़े की हड्डियाँ लोथल, सुरकोतड़ा और कालीबंगन से प्राप्त हुई है |लोथल से घोड़े की मिट्टी से बनी आकृति भी प्राप्त हुई है |

बलूचिस्तान के रानाघुंडई स्थल से घोड़े की मिली हड्डियाँ हड़प्पा-काल से कही पहले के काल की है | इतना स्पष्ट है कि हड़प्पा-सभ्यता में घोड़े के प्रयोग का सामान्य प्रचलन नही था |

इस प्रकार यह स्पष्ट होता है कि हड़प्पाई समाज अपने जीवन-निर्वाह हेतु अनेक प्रकार की फसलों, पालतू और जंगली जानवरों पर निर्भर था |

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