Aadarshwad Ke Mool Siddhant : आदर्शवाद के मूल सिद्धांत

Aadarshwad Ke Mool Siddhant

आदर्शवाद के मूल सिद्धांत (Aadarshwad Ke Mool Siddhant/Basic Principles of Idealism) : विद्यादूत के इस लेख में हम आदर्शवाद के मूल सिद्धांत (Aadarshwad Ke Pramukh Siddhant) पर चर्चा करेंगें | इस लेख के अंत में आदर्शवाद से सम्बन्धित अन्य महत्वपूर्ण लेख भी दिए गये है, आप उन्हें भी जरुर देखें | सबसे पहले हम जानेंगे कि आदर्शवाद क्या है ? आदर्शवाद दर्शन की वह विचारधारा है जो विचार, मन और आत्मा को ही यथार्थ मानता है | यह वस्तु की अपेक्षा विचारों, भावों एवं आदर्शों को अधिक महत्व देता है | यह मानता है कि आध्यात्मिक व मानसिक सत्ता ही सर्वोच्च सत्ता है |

आदर्शवाद के अनुसार आध्यात्मिक जगत् सत्य है जबकि भौतिक जगत् नाशवान होने के कारण असत्य है | आदर्शवाद मानता है कि यह ब्रह्माण्ड ईश्वर द्वारा निर्मित है | यह ईश्वर को अंतिम सत्य एवं आत्मा को ईश्वर का अंश मानता है | आदर्शवाद के अनुसार मानव जीवन का अंतिम उद्देश्य ईश्वर प्राप्ति या आत्मानुभूति है |

ये भी देखें – आदर्शवाद पर सभी लेख

आदर्शवाद मानव के आध्यात्मिक विकास को अधिक महत्व देता है, जो सांसारिक या भौतिक उपलब्धियों पर नही होता बल्कि आध्यात्मिकता पर आधारित होता है | यद्यपि प्रकृतिवाद भी मानव के ऐसे ही विकास में विश्वास रखता है परन्तु आदर्शवाद का विकास व प्रकृतिवाद का विकास समान नही बल्कि भिन्न है | आदर्शवादी विकास मन और आध्यात्म से सम्बन्धित है, जबकि प्रकृतिवादी विकास जड़ (matter) से सम्बन्धित है |

आदर्शवाद के मूल सिद्धांत (Aadarshwad Ke Mool Siddhant)

अब हम आदर्शवाद के मूल सिद्धांत (Aadarshwad Ke Pramukh Siddhant) पर चर्चा करेंगें | आदर्शवाद के मूल सिद्धांत (Aadarshwad Ke Mool Siddhant/Basic Principles of Idealism) इस प्रकार है –

1. ईश्वर इस सम्पूर्ण जगत् का निर्माणकर्ता है |

2. आध्यात्मिक जगत् श्रेष्ठ है

3. आध्यात्मिक मूल्य शाश्वत और सर्वव्यापी है

4. मानव ब्रह्माण्ड की सर्वश्रेष्ठ रचना है

5. आत्मा का अस्तित्व है और वह अमर है

6. उच्च नैतिक आचरण आवश्यक है

7. अनेकता में एकता है

8. वस्तु की अपेक्षा विचार श्रेष्ठ है

9. राज्य एक सर्वोच्च सत्ता है

आदर्शवाद के मूल सिद्धांत (Aadarshwad Ke Mool Siddhant)

अब हम विस्तार से आदर्शवाद के मूल सिद्धांत (Aadarshwad Ke Mool Siddhant) पर चर्चा करेंगें |

1. ईश्वर इस सम्पूर्ण जगत् का निर्माणकर्ता है

आदर्शवादियों के अनुसार इस सम्पूर्ण जगत् की कोई नियामक सत्ता अवश्य है जो अनादि तथा अनन्त है | प्लेटो के अनुसार यह सत्ता ईश्वर है जो जगत् का स्रष्टा (Creator), नियन्ता (Controller) और शासक (Ruler) है |

ईश्वर पूर्णरूप से सत्य है और प्रत्येक दृष्टिकोण से सर्वोत्तम है | वह स्वतन्त्र और स्वप्रतिष्ठित है | वह मनुष्यों की दैवीय ढंग से देख-रेख करता है | वह सब प्रकार से पूर्ण है | उसमे किसी प्रकार का विकार या परिवर्तन सम्भव नही है | उसमे सभी सद्गुण विद्यमान है साथ ही उसमे ईर्ष्या व अन्याय का पूर्णतः आभाव है |

2. आध्यात्मिक जगत् श्रेष्ठ है

सम्पूर्ण जगत् दो भागों में विभाजित है – आध्यात्मिक जगत् और वस्तु जगत् (भौतिक जगत्) | आदर्शवादियों के अनुसार वस्तु जगत् की अपेक्षा आध्यात्मिक जगत् श्रेष्ठ है | उनके अनुसार वास्तव में आध्यात्मिक जगत् ही सत्य है और वस्तु जगत् मिथ्या-मात्र है |

जीवन का लक्ष्य इस सत्यरूपी आध्यात्मिक जगत् को समझना है | आदर्शवादी मानते है कि आध्यात्मिक जगत् विचारजन्य है और विचारों को नष्ट नही किया जा सकता | वस्तु जगत्, जोकि नश्वर है, आध्यात्मिक जगत् की अभिव्यक्ति मात्र है |

इस प्रकार आध्यात्मिक जगत् वस्तु जगत् की अपेक्षा अधिक श्रेष्ठ, सत्य और यथार्थ है | एच.एच. हॉर्न के अनुसार “आदर्शवादी की मान्यता है कि जगत् का क्रम नित्य व आध्यात्मिक सत्यता के देश एवं काल में प्रकटीकरण के कारण चलता है |”[“Idealism hold that the order of the world is due to the manifestation in space and time of an internal and spiritual reality.” – Herman H. Horne]

3. आध्यात्मिक मूल्य शाश्वत और सर्वव्यापी है

आदर्शवाद आध्यात्मिक मूल्यों को संसार में सर्वोच्च स्थान देता है और इन्हे शाश्वत और सर्वव्यापी मानता है | आध्यात्मिक मूल्य है – सत्यं, शिवं, सुन्दरम् | ये मूल्य शाश्वत व अमर है |

आदर्शवादियों के अनुसार मानव जीवन का लक्ष्य आध्यात्मिक मूल्यों को प्राप्त करना है | आध्यात्मिक मूल्य ही मानव के अन्तिम लक्ष्य की पूर्ति में सहायक है |

जेम्स एस. रॉस के अनुसार “सत्यं, शिवं और सुन्दरम् (goodness, truth and beauty) निरपेक्ष गुण हैं, जिनमे से प्रत्येक अपनी आवश्यकता के कारण उपस्थित हैं और वह अपने आप में पूर्णतः वांछनीय है |”[“Goodness, truth and beauty are seen to be absolutes, each existing in its own right and entirely desirable in itself.” James S. Ross]

4. मानव ब्रह्माण्ड की सर्वश्रेष्ठ रचना है

आदर्शवाद जड़ (जिसमे जीवन न हो, निर्जीव) प्रकृति की अपेक्षा चेतन (जिसमे चेतना हो, सजीव) मानव को अधिक महत्वपूर्ण और ब्रह्माण्ड की सर्वश्रेष्ठ रचना मानता है क्योकि मानव में विचार, अनुभव व रचना करने की पूर्ण क्षमता होती है |

जेम्स एस. रॉस के अनुसार, “मानव व्यक्तित्व सर्वोच्च मूल्य का है और ईश्वर के उत्कृष्ट कार्य का निर्माता है |” [“Human personality is of supreme value and constitutes the noblest work of God.” – James S. Ross] |

मानव में आध्यात्मिक गुण भी होते है | इस ब्रह्माण्ड में एकमात्र मानव ही मनुष्य ऐसा प्राणी है जो अपने आध्यात्मिक उत्थान व सांस्कृतिक विकास के लिए प्रयास करता है | मानव के पास सर्वश्रेष्ठ बौद्धिक शक्ति है | मानव अपनी शक्तियों से अन्य प्राणियों को नियंत्रित करता है |

इस आध्यात्मिक जगत् में विचार ही प्रमुख है और इन विचारों को एकमात्र मनुष्य ही पूर्णरूप से प्रकट करने की क्षमता रखता है, इसलिए वह श्रेष्ठ है | 

रस्क के शब्दों में “इस आध्यात्मिक और सांस्कृतिक वातावरण का निर्माण स्वयं मनुष्य ने किया है अर्थात् सम्पूर्ण नैतिक और आध्यात्मिक वातावरण सम्पूर्ण मनुष्यों की रचनात्मक क्रियाओं का ही परिणाम है |”

5. आत्मा का अस्तित्व है और वह अमर है

प्लेटो के अनुसार आत्मा का अस्तित्व है और वह अमर भी है | प्लेटो लिखते है कि “आत्मा सभी चीजों, जो पैदा होती है, से ज्येष्ठ है | यह अमर है और हमारे सभी शरीरों पर शासन करती है |”[The soul is the eldest of all things which are borns and is immortal and rules our all bodies.” – Plato] |

उन्होंने आत्मा के दो रूप माने है – विश्वात्मा (World Soul) और जीवात्मा (Human Soul) | विश्वात्मा निराकार, अविनाशी और सर्वव्यापी है | यह ऐन्द्रिक जगत् और प्रत्यय जगत् (विचार जगत्) के बीच मध्यस्थ का कार्य करती है |

यद्यपि यह प्रत्ययों (विचारों) की भांति अदैहिक और सदैव एक ही स्वरुप की है किन्तु फिर भी समस्त जगत् में व्याप्त है और अपनी सहज गति द्वारा जगत् का संचालन करती है |

विश्व और व्यक्तियों में जो भी ज्ञान व बौद्धिकता है उसका मूल कारण यही विश्वात्मा है | जीवात्मा जीवन शक्ति है | यह जीवधारियों के जीवन का वह अंश है जिसका मृत्यु के बाद भी विनाश नही होता | इससे मुक्ति तभी प्राप्त हो सकती है जब व्यक्ति विशुद्ध ज्ञान द्वारा स्वयं को देवत्व में लीन कर ले |

6. उच्च नैतिक आचरण आवश्यक है

सभी आदर्शवादी विचारक मानव के लिए उच्च नैतिक आचरण को आवश्यक मानते थे | सुकरात की शिक्षा मुख्यतः नैतिक थी | उनके अनुसार नैतिक जीवन ही सर्वोच्च जीवन है | हरबर्ट – “उत्तम नैतिक चरित्र का विकास करना शिक्षा है | [“Education is development of good moral charecter.” – Herbart]   

7. अनेकता में एकता है

आदर्शवादीं अनेकता (विभिन्नता) में एकता की विचारधारा में विश्वास करता है | उनका मानना है कि जगत् की समस्त वस्तुओं में विभिन्नता होते हुए भी एकता मौजूद है | एक सर्वशक्तिमान, केन्द्रीय शक्ति (ईश्वर) जगत् की सभी वस्तुओं को अटूट एकता के सूत्र में बांधे हुए है |

इसी केन्द्रीय शक्ति के माध्यम से सभी विभिन्न वस्तुएँ अपना कार्यों का सम्पादन करती है | फ्रॉबेल स्पष्ट रूप से लिखते है कि, “सभी वस्तुएँ दैवीय एकता, ईश्वर से आयी हैं और उनकी उत्पत्ति अकेले देवीय एकता, ईश्वर से है |

ईश्वर सभी वस्तुओं का एकमात्र स्त्रोत है | सभी वस्तुओं में जीवन और अस्तित्व दैवीय शक्ति, ईश्वर के कारण है | [“All things have come from the divine unity, from God, and have their origin in the divine unity, in God alone. God is the sole source of all things. In all things there lives and reigns the divine unity, God.” – Froebel]        

8. वस्तु की अपेक्षा विचार श्रेष्ठ है

विचार (प्रत्यय) प्लेटो के दर्शन का केन्द्र-बिन्दु है | उनके अनुसार विचार (प्रत्यय) समस्त जगत् का आधार है | जगत् की सभी वस्तुओं की उत्पत्ति इसी से होती है | आदर्शवादी मानते है कि विचार सत्य व वास्तविक है |

विचारों में जगत् के समस्त तत्व निहित है | विचारों के ही माध्यम से आत्मा व मन का ज्ञान प्राप्त किया जा सकता है | वस्तु नश्वर है, जो वस्तु आज है वह भविष्य में नष्ट हो जाएगी परन्तु उस वस्तु का विचार सदैव मन में विद्यमान रहेगा | इसप्रकार वस्तु की अपेक्षा विचार श्रेष्ठ, सत्य और अपरिवर्तनशील है |    

9. राज्य एक सर्वोच्च सत्ता है

प्रायः सभी आदर्शवादी राज्य को व्यक्ति से महत्वपूर्ण मानकर उच्च स्थान देते है | प्लेटो, फिश्टे, हीगल आदि आदर्शवादी विचारकों ने राज्य को सर्वोच्च सत्ता माना है | प्लेटो अपने सिद्धान्तों के माध्यम से तत्कालीन राज्य व समाज के भ्रष्ट वातावरण के स्थान पर एक आदर्श राज्य की स्थापना करना चाहते थे |

आदर्श राज्य से ही श्रेष्ठ नागरिकों का निर्माण सम्भव है और श्रेष्ठ नागरिकों से ही श्रेष्ठ समाज बनता है | आदर्श समाज, आदर्श शिक्षा की व्यवस्था करता है | आदर्श शिक्षा, आदर्श राज्य के निर्माण में आवश्यक है | अतः राज्य की सर्वोच्चता आवश्यक है |

नोट : विद्यादूत (विद्यादूत वेबसाइट) के सभी लेखों का सर्वाधिकार सुरक्षित है | किसी भी रूप में कॉपीराइट के उल्लंघन का प्रयास न करें |

अगर यह लेख आपको पसंद आया है तो हमारे एक्सपर्ट को प्रोत्साहित करने के लिए इसे अपने फ्रेंड्स में शेयर जरुर करें साथ ही हमारे YouTube Channel को सब्सक्राइब जरुर करें | आप हमे पर Facebook भी फॉलो कर सकते है | हम आपके अच्छे भविष्य की कामना करते है |

आदर्शवाद से सम्बन्धित अन्य लेख –

1 आदर्शवाद क्या है (What is Idealism)

2. आदर्शवाद का अर्थ और परिभाषाएं (Aadarshwad Ka Arth Aur Paribhashayen)

3. आदर्शवाद के रूप (Aadarshwad Ke Roop)

4. आदर्शवाद और शिक्षा (Aadarshwad Aur Shiksha)

5. आदर्शवाद और शिक्षा के उद्देश्य (Aadarshwad Aur Shiksha Ke Uddeshya)

6. आदर्शवाद और पाठ्यचर्या (Aadarshwad Aur Pathyacharya)

7. आदर्शवाद और शिक्षण विधियाँ (Aadarshwad Aur Shikshan Vidhiyan)