Aadarshwad Aur Pathyakram : आदर्शवाद और पाठ्यक्रम

Aadarshwad Aur Pathyakram
Aadarshwad Aur Pathyakram

आदर्शवाद और पाठ्यक्रम (Aadarshwad Aur Pathyakram/Idealism and Curriculum) : विद्यादूत के इस लेख में हम आदर्शवाद और पाठ्यक्रम (Aadarshwad Aur Pathyakram) पर चर्चा करेंगें | इस लेख के अंत में आदर्शवाद से सम्बन्धित अन्य महत्वपूर्ण लेख दिए गये है, आप उन्हें भी जरुर देखें | पिछले कुछ लेखों में हमनें आदर्शवाद (Idealism) टॉपिक पर विस्तार से चर्चा की है, जिसे आप “आदर्शवाद के सभी लेख” में देख सकते है | आदर्शवाद और पाठ्यक्रम (Aadarshwad Aur Pathyakram) को समझने से पहले हम जानेंगें कि पाठ्यचर्या या पाठ्यक्रम क्या होता है ?

पाठ्यचर्या शब्द दो शब्दों पाठ्य और चर्या से मिलकर बना है | पाठ्य का अर्थ होता है ‘पढ़ने योग्य’ अथवा ‘पढ़ाने योग्य’ और चर्या का अर्थ होता है ‘नियमपूर्वक अनुसरण’ | अतः पाठ्यचर्या का अर्थ हुआ ‘पढ़ने या पढ़ाने योग्य’ (सीखने या सिखाने योग्य) क्रियाओं अथवा विषयवस्तु का नियमपूर्वक अनुसरण |

पाठ्यचर्या को अंग्रेजी भाषा में करिकुलम (Curriculum) कहा जाता है | करिकुलम शब्द की व्युत्पत्ति लैटिन भाषा के कर्रेर (Currere) शब्द से हुई है, जिसका अर्थ होता है ‘दौड़ का मैदान’ | अतः शिक्षा की तुलना दौड़ से की गयी है, और पाठ्यचर्या को दौड़ के मैदान के समान माना गया है |

इस प्रकार कहा जा सकता है कि जिस तरह एक धावक दौड़ कर अपनी मंजिल पहुँचता है, उसी तरह एक शिक्षार्थी पाठ्यचर्या या पाठ्यक्रम के अनुसार अपनी मंजिल तक पहुंचता है | पाठ्यचर्या (पाठ्यक्रम) शिक्षक और शिक्षार्थी के बीच की एक कड़ी है, जो उन्हें आपस में जोड़ती है |

किसी भी शिक्षा व्यवस्था में पाठ्यक्रम (पाठ्यचर्या) का महत्वपूर्ण स्थान होता है | पाठ्यक्रम (पाठ्यचर्या) ही यह निश्चित करती है कि क्या और कितना पढ़ना है | पाठ्यक्रम (पाठ्यचर्या) का निर्धारण शिक्षा के उद्देश्यों को ध्यान में रखकर किया जाता है | आदर्शवादी शिक्षा के पाठ्यक्रम (पाठ्यचर्या) पर आदर्शवादी सिद्धान्त व आदर्शवादी शिक्षा के उद्देश्यों का गहरा प्रभाव देखने को मिलता है |

चूँकि आदर्शवादी शिक्षा का अन्तिम उद्देश्य आत्मानुभूति माना गया है इसलिए आदर्शवादी यह मानते है कि शिक्षा व्यवस्था के अन्तर्गत पाठ्यक्रम (पाठ्यचर्या) में बालक और उसकी क्रियाओं की तुलना में मानव के विचारों, आदर्शों, शाश्वत मूल्यों, नैतिकता व आध्यात्मिकता पर अधिक जोर दिया जाना चाहिए |

आदर्शवादी पाठ्यक्रम (पाठ्यचर्या) में भाषा, साहित्य, नीतिशास्त्र व धर्मशास्त्र को प्रमुख स्थान देते है तथा अन्य विषयों व क्रियाओं को गौण | पाठ्यक्रम (पाठ्यचर्या) पर सभी आदर्शवादी विद्वानों के विचारों में एकरूपता देखने को नही मिलती है |

आदर्शवाद और पाठ्यक्रम (Aadarshwad Aur Pathyakram)

आदर्शवादियों ने शिक्षा के पाठ्यक्रम को सबसे ज्यादा प्रभावित किया है | कुछ आदर्शवादी विद्वानों के पाठ्यक्रम (पाठ्यचर्या) सम्बन्धी विचार निम्नलिखित है –

पाठ्यक्रम (पाठ्यचर्या) सम्बन्धी प्लेटो के विचार

प्लेटो ने मानव जीवन का अन्तिम लक्ष्य आत्मानुभूति या ईश्वर की प्राप्ति को माना है | आत्मानुभूति की प्राप्ति के लिए सत्यं, शिवं व सुन्दरम् जैसे शाश्वत मूल्यों की प्राप्ति आवश्यक है |

ये शाश्वत मूल्य मानव की बौद्धिक, सौन्दर्यात्मक और नैतिक क्रियाओं के माध्यम से प्राप्त किये जा सकते है | प्लेटो के अनुसार आदर्शवादी पाठ्यचर्या में उन विषयों को रखा जाना चाहिए जो मानव को निम्न तीनों क्रियाओं में दक्षता प्रदान करे |

प्लेटो ने आदर्शवादी पाठ्यचर्या की रूपरेखा निम्नप्रकार से प्रस्तावित की है –

1. बौद्धिक क्रियाएँ (Intellectual Activities) – प्लेटो के अनुसार इनके अन्तर्गत पाठ्यचर्या में भाषा, साहित्य, इतिहास, भूगोल, गणित और विज्ञान विषयों का समावेश किया जाना चाहिए |

2. सौन्दर्यात्मक क्रियाएँ (Aesthetics Activities) – प्लेटो के अनुसार इनके अन्तर्गत पाठ्यचर्या में कला, कविता और संगीत विषयों का समावेश किया जाना चाहिए |

3. नैतिक क्रियाएँ (Moral Activities) – प्लेटो के अनुसार इनके अन्तर्गत पाठ्यचर्या में धर्मशास्त्र, नीतिशास्त्र व आध्यात्मशास्त्र विषयों का समावेश किया जाना चाहिए |

  मानव की क्रियाएँ (Activities of Human)

बौद्धिक
(Intellectual)
सौन्दर्यात्मक
(Aesthetics)
नैतिक
(Moral)
भाषाकलाधर्मशास्त्र
साहित्यकवितानीतिशास्त्र
इतिहाससंगीतआध्यात्मशास्त्र
भूगोल
गणित
विज्ञान

पाठ्यक्रम (पाठ्यचर्या) सम्बन्धी हरबर्ट के विचार

हरबर्ट मानव के आध्यात्मिक विकास को आदर्शवादी शिक्षा का उद्देश्य मानते थे | आध्यात्मिक विकास के लिए नैतिक व चारित्रिक शिक्षा आवश्यक है |

हरबर्ट के अनुसार “अच्छे नैतिक चरित्र का विकास ही शिक्षा है |” [Education is the development of good moral character. – Herbart] उनका मानना है कि आदर्शवादी पाठ्यचर्या में उन विषयों को रखा जाना चाहिए जो मानव को नैतिक व चारित्रिक दक्षता प्रदान करे |

अतः वे आदर्शवादी पाठ्यचर्या में भाषा, साहित्य, कला, इतिहास व संगीत को प्राथमिक (Primary) तथा गणित, विज्ञान व भूगोल को गौण (Secondary) स्थान देते है |

मानव की क्रियाएँ (Activities of Human)

प्राथमिक (Primary)गौण (Secondary)
भाषागणित
साहित्यविज्ञान
कलाभूगोल
इतिहास
संगीत

पाठ्यक्रम (पाठ्यचर्या) सम्बन्धी रॉस के विचार

जेम्स एस. रॉस ने मानव की क्रियायों का दो भागों में विभाजन किया है – शारीरिक क्रियाएँ (physical Activities) और आध्यात्मिक क्रियाएँ (Spiritual Activities) | रॉस के अनुसार आदर्शवादी पाठ्यचर्या में उन विषयों को रखा जाना चाहिए जो मानव को निम्न दो क्रियाओं में दक्षता प्रदान करे |

रॉस की आदर्शवादी पाठ्यचर्या की रूपरेखा निम्नप्रकार से है –

1. शारीरिक क्रियाएँ (Physical Activities) – रॉस के अनुसार इनके अन्तर्गत पाठ्यचर्या में स्वास्थ्य विज्ञान, शारीरिक कुशलताएँ, व्यायाम व खेलकूद विषयों का समावेश किया जाना चाहिए |

2. आध्यात्मिक क्रियाएँ (Spiritual Activities) रॉस के अनुसार इनके अन्तर्गत पाठ्यचर्या में निम्न चार क्रियायों को समावेश किया जाना चाहिए |

(अ). बौद्धिक क्रियाएँ (Intellectual Activities) – इनके अन्तर्गत साहित्य, भाषा, इतिहास, भूगोल, विज्ञान व गणित विषयों को शामिल किया जाना चाहिए |

(ब). नैतिक क्रियाएँ (Moral Activities) – इनमे नीतिशास्त्र विषय शामिल किया जाना चाहिए |

(स). सौन्दर्यात्मक क्रियाएँ (Aesthetics Activities) – इनमे कला, संगीत, नृत्य विषयों को शामिल किया जाना चाहिए |

(द). धार्मिक व आध्यात्मिक क्रियाएँ – (Religious and Spiritual Activities) – इनमे धर्मशास्त्र व नीतिशास्त्र विषयों को शामिल किया जाना चाहिए |     

पाठ्यक्रम (पाठ्यचर्या) सम्बन्धी पर्सी नन के विचार

पर्सी नन के अनुसार “शिक्षा बालक की वैयक्तिकता का पूर्ण विकास है, जिससे वह अपनी पूर्ण योग्यता के अनुसार मानव जीवन को मौलिक योगदान दे सके |” [“Education is the complete development of individuality of the child so that he can make an original contribution to human life according to his best capacity.” – Percy Nunn] | इसके लिए पर्सी नन का मानना है कि आदर्शवादी पाठ्यचर्या में उन विषयों को रखा जाना चाहिए जो मानव को निम्न दो प्रकार की क्रियाओं में दक्षता प्रदान करे |

पर्सी नन ने आदर्शवादी पाठ्यचर्या की रूपरेखा निम्नप्रकार से प्रस्तावित की है –

1. शारीरिक, सामाजिक, नैतिक व धार्मिक क्रियाएँ (Physical, Social, Moral and Religious Activities) – इनमे वे क्रियाएँ आती है जो मानव के व्यक्तिगत व सामाजिक जीवन को सुरक्षा प्रदान करती है | नन के अनुसार इनके अन्तर्गत पाठ्यचर्या में शरीर विज्ञान, समाजशास्त्र, नीतिशास्त्र, धर्मशास्त्र आदि विषयों का समावेश किया जाना चाहिए |

2. विशिष्ट रचनात्मक क्रियाएँ (Typical Creative Activities) – इनमे वे क्रियाएँ आती है जो सभ्यता व संस्कृति की रचना करती है |नन के अनुसार इनके अन्तर्गत पाठ्यचर्या में साहित्य, कला, संगीत, इतिहास, भूगोल, विज्ञान, गणित व हस्त-कला आदि विषयों का समावेश किया जाना चाहिए |

मानव की क्रियाएँ (Activities of Human)

शारीरिक, सामाजिक, नैतिक, धार्मिक क्रियाएं
(Physical, Social, Moral and Religious Activities)
विशिष्ट रचनात्मक क्रियाएँ
(Typical Creative Activities)
शरीर विज्ञानसाहित्य
समाजशास्त्रकला
नीतिशास्त्रसंगीत
धर्मशास्त्रइतिहास
 भूगोल
 विज्ञान
 गणित
 हस्तकला

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