Bauddha Dharma Ka Shiksha Mein Yogdan : बौद्ध धर्म का आधुनिक शिक्षा में योगदान

Bauddha Dharma Ka Shiksha Mein Yogdan

Bauddha Dharma Ka Shiksha Mein Yogdan : बौद्ध धर्म का आधुनिक शिक्षा में योगदान (Contribution of Buddhism in Education in Hindi) या आधुनिक भारतीय शिक्षा को बौद्ध कालीन शिक्षा की देन (Contribution of Buddha Period Education to Modern indian Education) टॉपिक पर चर्चा करने से पहले हम महात्मा बुद्ध और बौद्ध धर्म के बारे में संक्षेप में जानेंगें | बौद्ध धर्म के संस्थापक गौतम बुद्ध थें | बुद्ध का बचपन का नाम सिद्धार्थ था | सिद्धार्थ का जन्म कपिलवस्तु के निकट लुम्बिनी वन में शाक्यगणाधिप सूर्यवंशी क्षत्रिय शुद्धोदन की पत्नी महामाया देवी के गर्भ से हुआ था | सिद्धार्थ का जन्म के कुछ दिनों पश्चात ही इनकी माँ की मृत्यु हो गयी थी | इसलिए इनकी मौसी (जो इनकी विमाता भी थी) महाप्रजापति गौतमी ने इनका पालन-पोषण किया था | सिद्धार्थ का विवाह राजकुमारी यशोधरा से हुआ, जिनसे इन्हें राहुल नामक पुत्र प्राप्त हुआ |

विभिन्न प्रकार के सुख-सुविधा प्राप्त होने के बावजूद सिद्धार्थ का मन सांसारिक बन्धनों में नही बंधा | वृद्ध, रोगी, मृत व्यक्ति और संन्यासी – यें चार दृश्य देखकर सिद्धार्थ को वैराग्य हुआ और 29 वर्ष की युवावस्था में राज्य-परिवार के वैभव व समृद्धि को त्यागकर संन्यासी बन गये |

6 वर्षों की कठोर तपस्या व साधना के पश्चात लगभग 35 वर्ष की आयु में गया के निकट बोधिवृक्ष के नीचे सिद्धार्थ को बोधि (पूर्णज्ञान) प्राप्त हुआ और वें बुद्ध कहलायें | इसी बोधि के आधार पर बौद्ध धर्म और बौद्ध दर्शन की स्थापना हुई |

नोट : बौद्ध शिक्षा, धर्म और दर्शन पर लेख यहाँ देखें

विद्यादूत की इन स्पेशल केटेगरी को भी देखें –

UGC NET SPECIALPGT/TGT SPECIAL
UPHESC SPECIALUPTET/CTET SPECIAL
RO/ARO SPECIALUPSC SPECIAL
UPSSSC SPECIALSOLVED PAPERS
MCQMODEL PAPERS

बोधि (पूर्णज्ञान) की प्राप्ति के बाद बुद्ध वाराणसी के निकट ‘ऋषि-पत्तन मृगदाव’ (सारनाथ) गये और वहां 5 भिक्षुओं को अपना शिष्य बनाकर अपना पहला उपदेश दिया, जिसे ‘धर्मचक्रप्रवर्तन’ कहा गया | यही से बौद्ध धर्म का आरम्भ हुआ |

विद्यादूत में बौद्ध धर्म और दर्शन से सम्बन्धित कुछ लेख इसके पूर्व भी प्रस्तुत किये जा चुके है, जिन्हें आप नीचे देख सकते हैं –

बौद्ध धर्म का आधुनिक शिक्षा में योगदान : Bauddha Dharma Ka Aadhunik Shiksha Mein Yogdan

आधुनिक भारतीय शिक्षा में बौद्ध शिक्षा का योगदान

आधुनिक भारतीय शिक्षा को बौद्ध कालीन शिक्षा की देन (Contribution of Buddha Period Education to Modern indian Education) : बौद्ध धर्म ने हमारी शिक्षा के स्वरुप निर्धारण में अत्यधिक योगदान दिया है | बौद्ध धर्म लौकिक और पारमार्थिक दोनों सत्यों को सत्य मानता है | बौद्ध धर्म के अनुसार शिक्षा एक ऐसी विशिष्ट प्रक्रिया है जो मानव को लौकिक और पारमार्थिक दोनों जीवन के योग्य बनाती है |

बौद्ध धर्म के प्रचार-प्रसार के लिए बौद्ध मठों व बिहारों की स्थापना की गयी थी | यही मठ और विहार बौद्ध शिक्षा के केंद्र-बिंदु थें | यहाँ बालकों को आधुनिक शिक्षा की भांति शिक्षा का समान अधिकार प्राप्त था |

बौद्ध कालीन शिक्षा व्यवस्था ने भारत की शिक्षा के स्वरुप निर्धारण में उल्लेखनीय योगदान दिया है | हमारे देश में वैयक्तिक प्रशासन के स्थान पर संस्था प्रशासन की शुरुआत बौद्ध शिक्षा-व्यवस्था ने ही की | यही से भारत में विद्यालयी शिक्षा का आंरभ हुआ |

विश्व में विश्वविद्यालय जैसे उच्च शिक्षा संस्थान की स्थापना का श्रेय भी बौद्ध शिक्षा को जाता है | वर्तमान में हम जिस लोकतांत्रिक शिक्षा की व्यवस्था करना चाहते है उसकी स्थापना बौद्ध धर्म ने अपनी शिक्षा-व्यवस्था में कर दी थी |

भारत में व्यावसायिक शिक्षा, स्त्री शिक्षा, जनसाधारण व शूद्रों की शिक्षा की नींव भी बौद्ध शिक्षा ने ही रखी थी |

भारत में विद्यालयी व विश्वविद्यालयी शिक्षा-व्यवस्था, शैक्षिक प्रशासन, शैक्षिक संगठन, समूह शिक्षण का श्रीगणेश कर बौद्ध धर्म ने वर्तमान शिक्षा की नींव रख दी थी |

बौद्ध कालीन उच्च शिक्षा केन्दों (नालंदा आदि) में अंतर्राष्ट्रीय शिक्षा की समुचित व्यवस्था की गयी थी | आधुनिक भारतीय शिक्षा में अन्तर्राष्ट्रीय शिक्षा की व्यवस्था बौद्ध कालीन शिक्षा की ही देन है |

बौद्ध धर्म का शिक्षा में योगदान (बौद्ध दर्शन का शिक्षा में योगदान) निम्नलिखित है –

बौद्ध धर्म का शिक्षा में योगदान (बौद्ध दर्शन का शिक्षा में योगदान) : Bauddha Dharma Ka Shiksha Mein Yogdan

आधुनिक भारतीय शिक्षा में बौद्ध शिक्षा का योगदान

आधुनिक भारतीय शिक्षा को बौद्ध युगीन शिक्षा की देन (Contribution of Buddha Period Education to Modern indian Education) इस प्रकार है –

  1. जनसाधारण की शिक्षा की व्यवस्था
  2. सामान्य शिक्षा की व्यवस्था
  3. लोकभाषाओं को प्रोत्साहन
  4. शिक्षा संस्थाओं में प्रजातन्त्रीय प्रशासन
  5. नैतिक मूल्यों को अत्यधिक महत्व
  6. सभी को शिक्षा का समान अधिकार
  7. शिक्षा में ब्राह्मणों के एकाधिकार का अन्त
  8. स्त्री शिक्षा की व्यवस्था
  9. शूद्रों की शिक्षा व्यवस्था
  10. व्यावसायिक शिक्षा का विकास
  11. व्यवस्थित शिक्षा संस्थानों का उदय

Bauddha Dharma Ka Shiksha Mein Yogdan : बौद्ध धर्म का शिक्षा में योगदान : बौद्ध शिक्षा की विशेषाएं या गुण

अब हम बौद्ध धर्म का शिक्षा में योगदान (बौद्ध दर्शन की शिक्षा को देन/बौद्ध शिक्षा की विशेषाएं या गुण/) पर विस्तार से चर्चा करेंगें –

जनसाधारण की शिक्षा की व्यवस्था

बौद्ध धर्म के पूर्व वैदिक काल में जनसाधारण की शिक्षा की उपेक्षा की गयी थी | बौद्ध काल में शिक्षा को मानव का एक अनिवार्य अंग माना गया | बौद्धकालीन शिक्षा जनसाधारण को आसानी से उपलब्ध थी |

बौद्धकालीन शिक्षा के द्वार न केवल उच्च वर्ग बल्कि निम्न वर्ग के लोगों के लिए भी खुले थें | बौद्ध काल की शिक्षा समाज के सभी जाति व वर्ग के लोगों (चांडाल के अतिरिक्त) के लिए समान रूप से सुलभ थी | इसप्रकार जनसाधारण के लिए शिक्षा व्यवस्था की शुरुआत बौद्ध धर्म की ही देन है |

सामान्य शिक्षा की व्यवस्था

प्राचीन भारत में सामान्य शिक्षा की व्यवस्था करने का श्रेय बौद्ध धर्म को ही जाता है | बौद्ध मठ और संघ बौद्ध शिक्षा के केंद्र थें | यहाँ धार्मिक शिक्षा के साथ-साथ सामान्य शिक्षा भी दी जाती थी |

वैदिककालीन गुरुकुल की भांति शिक्षा के लिए यहाँ गृह-त्याग की आवश्यकता नही थी | शिक्षार्थी अपने घर-परिवार में रहकर भी बौद्ध मठों में शिक्षा प्राप्त कर सकते थें | इस सामान्य शिक्षा व्यवस्था से बौद्धकालीन शिक्षा का अत्यधिक प्रसार-प्रचार हुआ |

लोकभाषाओं को प्रोत्साहन

वैदिक काल में गुरुकुल में शिक्षा संस्कृत भाषा द्वारा प्राप्त होती थी और लोकभाषाओँ की उपेक्षा की जाती थी | लेकिन बौद्ध कालीन शिक्षा व्यवस्था में लोकभाषाओँ को प्रोत्साहित किया गया | बौद्ध काल में जनसाधारण की शिक्षा का माध्यम पाली भाषा थी |

बौद्ध मठों व विहारों, जोकि शिक्षा के मुख्य केंद्र थें, में भिक्षुओं को लोक भाषा (पाली भाषा) में शिक्षा प्राप्त होती थी | बौद्ध शिक्षा-व्यवस्था के अंतर्गत मठों व विहारों में संस्कृत के स्थान पर लोकभाषाओँ को शिक्षा का माध्यम बनाने से देश की लोकभाषाओं को महत्व व प्रोत्साहन मिला और उनका विकास हुआ |

शिक्षा संस्थाओं में प्रजातन्त्रीय प्रशासन

बौद्ध कालीन शिक्षा व्यवस्था का प्रशासन प्रजातन्त्रीय आधार पर होता था | प्रजातन्त्रीय प्रशासन की व्यवस्था उत्तम थी | बौद्ध शिक्षा केन्द्रों में कई प्रशासनिक अधिकारी कार्य करते थें, जिनमे धर्मकोश (कुलपति), पीठस्थविर (आचार्य) और कर्मदान (व्यवस्थापक) प्रमुख थें |

बौद्ध शिक्षा संस्थानों में प्रशासनिक अधिकारियों की नियुक्ति योग्यता के आधार पर होती थी, न कि जाति-विशेष के आधार पर | बौद्ध शिक्षा व्यवस्था में प्रजातंत्रीय प्रशासन ने आधुनिक शिक्षा को मार्गदर्शन दिया |

नैतिक मूल्यों को अत्यधिक महत्व

बौद्ध काल की शिक्षा व्यवस्था में नैतिक मूल्यों को अत्यधिक महत्व दिया गया | शिक्षा के लिए बौद्ध मठों में नैतिक मूल्यों का जीवन में पालन करना अनिवार्य होता था | बौद्ध मठों व विहारों में शिक्षक और शिक्षार्थी दोनों ही मर्यादित व आदर्श जीवन व्यतीत करते थें |

शिक्षकों और शिक्षार्थियों को नैतिक व चारित्रिक विकास के लिए कठोर नियमों का पालन करना अनिवार्य होता था |

सभी को शिक्षा का समान अधिकार

सभी बालकों को शिक्षा का समान अधिकार देना बौद्ध कालीन शिक्षा का आधुनिक भारतीय शिक्षा को एक महत्वपूर्ण देन है | बौद्ध धर्म ने सभी जाति-धर्म के शिक्षार्थियों को बिना किसी भेदभाव के शिक्षा प्राप्त करने का समान अधिकार दिया था |

आधुनिक भारतीय शिक्षा के अंतर्गत शैक्षिक अवसरों की समानता और धर्मनिरपेक्ष शिक्षा का विचार बौद्ध कालीन शिक्षा की ही देन है |

वर्तमान में देश के सभी शिक्षा-संस्थानों में सभी जाति-धर्म के बालकों को एक-समान शिक्षा की व्यवस्था प्रदान करने की नींव बौद्ध शिक्षा-व्यवस्था ने ही रखी थी |

शिक्षा में ब्राह्मणों के एकाधिकार का अन्त

बौद्ध शिक्षा की एक सबसे बड़ी विशेषता यह थी कि इसने शिक्षा-व्यवस्था को ब्राह्मणों के एकाधिपत्य से निकाल कर मठों व विहारों के माध्यम से जनसाधारण तक पहुंचाई | मठों और विहारों में उत्कृष्ट शिक्षा व्यवस्था ने गुरुकुलों का शिक्षा में वर्चस्व को तोड़ा |

जिस प्रकार गुरुकुलों में गुरुओं का विशेष नियंत्रक होता था, उसी प्रकार बौद्ध मठों व विहारों में बौद्ध संघों का विशेष नियंत्रक रहता था |

जहाँ गुरुकुलों में जाति-व्यवस्था का वर्चस्य था, वही मठों व विहारों में जन्म के आधार पर मनुष्य-मनुष्य में किसी भी तरह का भेदभाव नही किया जाता था | बौद्ध शिक्षा हर जाति के व्यक्ति के लिए आसानी से उपलब्ध थी |

बौद्ध शिक्षा-व्यवस्था में जाति के वर्चस्व को तोड़कर बौद्ध धर्म ने भारत में धर्मनिरपेक्ष शिक्षा की नींव रखी |

स्त्री शिक्षा की व्यवस्था

महात्मा बुद्ध ने अपनी विमाता महाप्रजापति गौतमी के कहने पर स्त्रियों को भी संघ में शामिल होने की अनुमति दे दी थी | पहला भिक्षुणी-संघ वैशाली में स्थापित किया गया था | यह एक अत्यन्त क्रांतिकारी घटना थी क्योकि उस समय ब्राह्मण धर्म में स्त्रियों शिक्षा की उपेक्षा की गयी थी |

बौद्ध संघ ने भिक्षुओं की ही भांति भिक्षुणियों की भी शिक्षा की उचित व्यवस्था की थी | स्त्री-शिक्षा से समाज में बदलाव आया | स्त्रियों की उचित शिक्षा व्यवस्था हो जाने के परिणामस्वरुप समाज में कई उच्चकोटि की विदुषी स्त्रियाँ उत्पन्न हुई, जिन्होंने देश-विदेश में धार्मिक और दार्शनिक क्षेत्रों में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया |

सम्राट अशोक की पुत्री संघमित्रा ने श्रीलंका में जाकर बौद्ध धर्म का प्रचार-प्रसार किया | बौद्ध कालीन शिक्षा व्यवस्था ने स्त्रियों के सर्वांगीण विकास में अत्यधिक योगदान दिया | 

आधुनिक काल में शिक्षा-व्यवस्था के अंतर्गत स्त्री-शिक्षा का आदर्श बौद्ध शिक्षा की ही देन है |

शूद्रों की शिक्षा व्यवस्था

बौद्ध धर्म जातिविहीन समाज की वकालत करता है | बौद्ध शिक्षा के अंतर्गत जन्म के आधार पर मानव के साथ भेदभाव का विरोध किया गया था | बौद्ध मठों और विहारों के द्वार शिक्षा के सभी जातियों के लिए खुले हुए थें |

बौद्ध शिक्षा ऊँच-नीच, छुआछूत, जाति-धर्म, स्त्री-पुरुष आदि के आधार पर भेदभाव का निषेध करती थी | बौद्ध धर्म जन्म की अपेक्षा कर्म को महत्व देने की शिक्षा देता है |

बौद्ध शिक्षा ने ही शिक्षा-व्यवस्था के अंतर्गत शूद्रों की शिक्षा व्यवस्था का बीज बोया था |

व्यावसायिक शिक्षा का विकास

बौद्ध कालीन शिक्षा संस्थानों में धार्मिक शिक्षा के साथ-साथ व्यावसायिक शिक्षा भी प्रदान की जाती थी | बौद्ध धर्म मानव को सांसारिक दुःखों से मुक्ति प्राप्त करने के लिए संसार से विमुख होने का आदेश नही देता |

बौद्ध धर्म ने लौकिक जीवन की लौकिक समस्याओं के समाधान के लिए व्यावसायिक शिक्षा का प्रबंध किया | बौद्ध शिक्षा के अंतर्गत मठों, विहारों और बौद्ध विश्वविद्यालयों में व्यावसायिक शिक्षा की उत्तम व्यवस्था की गयी थी |

बौद्ध धर्म की शिक्षा व्यवस्था ने व्यावसायिक शिक्षा का विकास कर आधुनिक शिक्षा को मार्गदर्शन दिया |

व्यवस्थित शिक्षा संस्थानों का उदय

बौद्ध काल के पूर्व व्यवस्थित व संगठित शिक्षा व्यवस्था का अभाव था | बौद्धकालीन शिक्षा व्यवस्था के लिए अनेक मठों और विहारों की स्थापना की गयी | इन शिक्षा संस्थानों में से कुछ ने विश्वविद्यालय का स्तर प्राप्त किया, जिसमे नालंदा और विक्रमशिला प्रमुख है |

इनमे सभा भवनों व अध्यापन कक्षों के चारो तरफ शिक्षकों और शिक्षार्थियों के आवास की भी व्यवस्था थी | व्यवस्थित व संगठित शिक्षा संस्थानों का विकास निश्चित रूप से बौद्ध शिक्षा के कारण ही हो सका |

इस प्रकार उपरोक्त तथ्यों के आधार पर हम कह सकते है कि आधुनिक भारतीय शिक्षा को बौद्ध कालीन शिक्षा की महान देन है | आधुनिक भारतीय शिक्षा में बौद्ध शिक्षा का योगदान (Bauddha Dharma Ka Aadhunik Shiksha Mein Yogdan)

ये भी देखें – विद्यादूत होमपेज | शिक्षाशास्त्र के सभी लेख | दर्शनशास्त्र के सभी लेख | इतिहास के सभी लेख | अर्थशास्त्र के सभी लेख | समाजशास्त्र के सभी लेख

नोट : विद्यादूत वेबसाइट के सभी लेखों का सर्वाधिकार विद्यादूत के पास सुरक्षित है | किसी भी रूप में कॉपीराइट उल्लंघन का प्रयास न करें |

सम्बन्धित प्रश्न –

प्रश्न – आधुनिक भारतीय शिक्षा और बौद्ध कालीन शिक्षा में क्या समानताएं थी, स्पष्ट करें |

प्रश्न – आधुनिक भारतीय शिक्षा में बौद्ध शिक्षा का योगदान का वर्णन करें |

प्रश्न – बौद्ध काल की शिक्षा का आधुनिक भारतीय शिक्षा में योगदान पर चर्चा करें |

प्रश्न- आधुनिक भारतीय शिक्षा को बौद्ध शिक्षा की देन पर प्रकाश डालें |

प्रश्न – बौद्ध शिक्षा की प्रमुख विशेषताओं का वर्णन कीजिये |

प्रश्न – बौद्ध काल में शिक्षा के उद्देश्यों और आदर्शों का वर्णन कीजिये |

प्रश्न – बौद्धकालीन शिक्षा की प्रमुख विशेषताओं की विवेचना कीजिये |

प्रश्न – बौद्ध धर्म के शैक्षिक विचारों का वर्णन कीजिए |

प्रश्न – बौद्ध धर्म के शिक्षा में योगदान की विवेचना कीजिये |

प्रश्न – बौद्ध शिक्षा की उन विशेषताओं का उल्लेख करें, जिन्हें आधुनिक शिक्षा में ग्रहण किया जा सकता है |

प्रश्न – प्राचीन भारत में बौद्ध शिक्षा की मुख्य विशेषताओं का वर्णन करें और आधुनिक शिक्षा को बौद्ध शिक्षा प्रणाली की मुख्य देनों का उल्लेख करें |