बौद्धकालीन शिक्षा की विशेषताएं (Characteristics of Buddhist Education in Hindi) : विद्यादूत (vidyadoot) के इस लेख में हम बौद्धकालीन शिक्षा की विशेषताएं (Characteristics of Buddhist Education) टॉपिक पर चर्चा करेंगें | इसके पूर्व विद्यादूत में बौद्ध कालीन शिक्षा-व्यवस्था से सम्बन्धित कुछ प्रमुख लेख प्रस्तुत किये जा चुके है, जिन्हें आप यहाँ पर क्लिक करके देख सकते है | बौद्ध धर्म ने भारत की शिक्षा के स्वरुप निर्धारण में अहम योगदान दिया है | बौद्धकालीन शिक्षा का मुख्य उद्देश्य निर्वाण की प्राप्ति व धर्म का प्रसार करना था |
बौद्ध मठों व विहारों में बिना किसी भेदभाव के सभी जाति-धर्म के शिक्षार्थियों को लोकभाषा में प्रजातंत्र के सिद्धातों पर आधारित शिक्षा प्रदान की जाती थी |
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बौद्ध शिक्षा का अर्थ (Meaning of Buddhist Education in Hindi)
बौद्धकालीन शिक्षा की विशेषताएं (Characteristics of Buddhist Education) समझने से पहले हम जानेंगें कि बौद्ध शिक्षा का क्या अर्थ है ?
बौद्ध धर्म का विकास बौद्ध मठों और विहारों में हुआ | ये मठ न केवल बौद्ध धर्म बल्कि शिक्षा व ज्ञान के भी प्रमुख केंद्र थें | इन बौद्ध मठों व विहारों की पद्दति ही बौद्ध शिक्षा पद्धति मानी जाती है |
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बौद्ध शिक्षा प्रणाली के अंतर्गत शिक्षा तात्पर्य बौद्ध मठों व विहारों में प्रदान की जाने वाली शिक्षा से ही लिया जाता था | ए. एस. अल्तेकर के अनुसार “बौद्ध शिक्षा पूर्णतः मठों से सम्बन्धित थी और उन लोगों के लिए थी, जो संघ में प्रवेश करते थें, या प्रवेश के लिए इरादा रखते थें |” बौद्ध शिक्षा का सारांश ‘चार आर्य-सत्य’ में निहित है |
बौद्ध धर्म लौकिक और पारमार्थिक दोनों ही जीवन को सत्य मानता है | बौद्ध धर्म शिक्षा को एक ऐसी महत्वपूर्ण प्रक्रिया मानता है, जो मानव को लौकिक व पारमार्थिक दोनों जीवन के योग्य बनाती है | पारमार्थिक जीवन से बौद्धों का तात्पर्य निर्वाण से है |
[आपको बता दे कि जिस सत्ता को अन्य भारतीय दर्शनों ने मोक्ष कहा है, उसी सत्ता को बौद्ध दर्शन ने निर्वाण कहा है | अर्थात् निर्वाण व मोक्ष समानार्थक हैं |]
गौतम बुद्ध ने दुःख-निरोध को निर्वाण कहा है | बौद्ध धर्म ने निर्वाण को जीवन का चरम लक्ष्य माना है, जिसकी प्राप्ति इसी जीवन में भी सम्भव है | बौद्ध धर्म के अनुसार वास्तविक शिक्षा वह है जो मानव को निर्वाण की प्राप्ति करायें |
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अब हम बौद्धकालीन शिक्षा की विशेषताएं (Characteristics of Buddhist Education in Hindi) पर चर्चा करेंगें –
बौद्धकालीन शिक्षा की विशेषताएं (Characteristics of Buddhist Education)
बौद्धकालीन शिक्षा की विशेषताएं (Characteristics of Buddhist Education) इस प्रकार है –
- निर्वाण की प्राप्ति
- शिक्षण संस्थानों का प्रजातंत्रीय संगठन
- जनसामान्य की शिक्षा की व्यवस्था
- उत्कृष्ट उच्च शिक्षा की व्यवस्था
- लोकभाषाओं को प्रोत्साहन
- सामान्य शिक्षा की व्यवस्था
- व्यवस्थित शिक्षा संस्थानों का जन्म
- व्यावसायिक शिक्षा की व्यवस्था
- धार्मिक और नैतिक शिक्षा की व्यवस्था
- पब्बज्जा संस्कार
- उपसम्पदा संस्कार
- स्त्री-शिक्षा की व्यवस्था
- शूद्रों की शिक्षा की व्यवस्था
- निर्वाण की प्राप्ति
बौद्ध काल की शिक्षा की विशेषताएं : Bauddha Kalin Shiksha Ki Visheshtayan
अब हम बौद्ध कालीन शिक्षा की विशेषताओं (Bauddha Kalin Shiksha Ki Visheshtayan) पर विस्तार से चर्चा करेंगें |
निर्वाण की प्राप्ति
बौद्ध कालीन शिक्षा की सर्वप्रमुख विशेषता थी – मानव के सभी दुःखों का अंत करके निर्वाण का मार्ग दिखाना | महात्मा बुद्ध ने दुःख-निरोध को निर्वाण कहा है | बौद्ध धर्म में निर्वाण को जीवन का चरम लक्ष्य माना है | [पाठकों को बता दें कि अन्य भारतीय दर्शनों ने जिस सत्ता को मोक्ष माना है, उसी को बौद्ध दर्शन ने निर्वाण कहा है |]
बौद्ध कालीन शिक्षा का मुख्य उद्देश्य मानव को निर्वाण की प्राप्ति में मार्गदर्शन देना | निर्वाण की प्राप्ति इसी जीवन में भी सम्भव है | एक मानव अपने जीवन में भी अपने दुःखों का अंत कर सकता है |
बौद्ध दर्शन के अनुसार निर्वाण का तात्पर्य जीवन का अंत नही है, बल्कि यह जीवन की एक ऐसी अवस्था है, जो इसी जीवन में प्राप्त हो सकती है |
बौद्ध दर्शन के अनुसार निर्वाण की प्राप्ति से मानव को निम्न तीन लाभ प्राप्त होते है –
- निर्वाण की प्राप्ति का सर्वप्रमुख लाभ यह है कि यह मानव के सभी दुःखों का अंत कर देता है |
- निर्वाण की प्राप्ति का दूसरा लाभ यह है कि इससे पुनर्जन्म की सम्भावना खत्म हो जाती है |
- निर्वाण की प्राप्ति का तीसरा लाभ यह है कि निर्वाण-प्राप्त मानव का शेष जीवन शांति से व्यतीत होता है |
शिक्षण संस्थानों का प्रजातंत्रीय संगठन
बुद्ध युगीन शिक्षा की एक महत्वपूर्ण विशेषता शिक्षण संस्थानों का प्रजातंत्रीय संगठन था | बौद्ध शिक्षा संस्थानों में प्रशासन प्रजातंत्रीय आधार पर होता था | बौद्ध शिक्षा संस्थानों को राजकीय संरक्षण प्राप्त था, परन्तु इन शिक्षण संस्थानों के प्रबंधन में बाहरी हस्तक्षेप नही होता था |
बौद्ध शिक्षण संस्थानों में कई प्रशासनिक अधिकारी होते थें, जिनमे धर्मकोश (कुलपति), कर्मदान (व्यवस्थापक) और पीठस्थविर (आचार्य) प्रमुख पदाधिकारी थें |
जनसामान्य की शिक्षा की व्यवस्था
वैदिक काल में शिक्षा जनसामान्य को आसानी से उपलब्ध नही थी | इसके विपरीत बौद्ध कालीन शिक्षा के द्वार जनसाधारण के लिए खुले हुए थें | बौद्ध कालीन शिक्षा जाति-धर्म के आधार पर किसी व्यक्ति के साथ भेदभाव नही करती थी |
बौद्ध काल में शिक्षा को मानव का एक महत्वपूर्ण अंग माना गया था | इसलिए बौद्ध शिक्षा संस्थानों में सभी जातियों को समान रूप से शिक्षा दी जाती थी |
उत्कृष्ट उच्च शिक्षा की व्यवस्था
बौद्ध कालीन शिक्षा उत्कृष्ट थी | बौद्ध मठों और विहारों में उच्च-कोटि की शिक्षा प्रदान की जाती थी, जिससे दूरस्थ देशों से ही शिक्षार्थी शिक्षा ग्रहण करने आते थें | शिक्षा संस्थानों के शिक्षक अपनी विद्धता व पवित्र जीवन के लिए जाने जाते थें |
बौद्ध कालीन शिक्षा ने अपनी उत्कृष्टता के कारण अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त की थी | बौद्ध शिक्षा संस्थानों ने अपनी उच्च शिक्षा की दक्षता से भारत के अंतर्राष्ट्रीय ख्याति में वृद्धि की थी, जिससे चीन, कोरिया, तिब्बत, जावा आदि देशों से शिक्षार्थी को आकर्षित किया था |
लोकभाषाओं को महत्व
बौद्ध कालीन शिक्षा ने लोकभाषाओं को प्रोत्साहित किया था | जहाँ वैदिक कालीन शिक्षा ने संस्कृत भाषा को महत्व दिया वही बौद्ध धर्म ने अपनी शिक्षा का माध्यम लोकभाषाओं को बनाया |
बौद्ध मठों व विहारों में शिक्षार्थियों को पालि भाषा में शिक्षा प्रदान की जाती थी | बौद्ध शिक्षा संस्थानों में संस्कृत के स्थान पर लोकभाषाओं को शिक्षा का माध्यम बनाने से लोकभाषाओं को अत्यधिक प्रोत्साहन मिला |
सामान्य शिक्षा की व्यवस्था
बौद्ध कालीन शिक्षा-व्यवस्था के अंतर्गत सामान्य शिक्षा को महत्व दिया गया | बौद्ध मठों व विहारों में धार्मिक शिक्षा के साथ-साथ सामान्य शिक्षा भी प्रदान की जाती थी | इससे बौद्ध कालीन शिक्षा का अधिकतम प्रचार-प्रसार हुआ |
वैदिक कालीन गुरुकुल की भांति बौद्ध मठों और विहारों में शिक्षा प्राप्त करने के लिए शिक्षार्थियों को अपना गृह-त्याग करने की आवश्यकता नही होती थी | शिक्षार्थी अपने माता-पिता के साथ अपने घरों में रहकर भी बौद्ध मठों से शिक्षा ले सकते थें |
व्यवस्थित शिक्षा संस्थानों का जन्म
बौद्ध कालीन शिक्षा की एक मुख्य विशेषता यह थी कि इसने प्राचीन भारत में व्यवस्थित शिक्षा संस्थानों को जन्म दिया | वैदिक कालीन गुरुकुलों में दी जनि वाली शिक्षा में व्यवस्थित और संगठित शिक्षा व्यवस्था का अभाव मिलता है |
बौद्ध कालीन शिक्षा-व्यवस्था के अंतर्गत अनेक मठों व विहारों का निर्माण हुआ | इन शिक्षा-संस्थानों ने शिक्षा-व्यवस्था को एक सुव्यवस्थित और सुसंगठित स्वरुप प्रदान किया |
कुछ बौद्ध मठों व विहारों ने अपनी उत्कृष्ट उच्च शिक्षा-व्यवस्था के फलस्वरूप विश्वविद्यालय का रूप लिया | कुछ बौद्ध-विश्वविद्यालयों ने अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त की, जिनमे विदेशों से शिक्षार्थी विद्या प्राप्त करने आते थें |
इन बौद्ध-विश्वविद्यालयों में शिक्षकों और शिक्षार्थियों के लिए विशाल आवासों और बड़े-बड़े पुस्तकालयों की व्यवस्था थी | यहाँ शिक्षा के अलावा शिक्षार्थियों को अन्य सुविधाएं जैसे भोजन, वस्त्र एवं दवाईयां आदि भी उपलब्ध थीं | ए. एस. अल्तेकर के अनुसार, “संगठित शिक्षा-संस्थानों का जन्म निश्चित तौर पर बौद्ध धर्म के प्रभाव के फलस्वरूप हो सका |”
व्यावसायिक शिक्षा की व्यवस्था
बौद्ध कालीन शिक्षा-व्यवस्था की एक महत्वपूर्ण थी – व्यावसायिक शिक्षा की व्यवस्था | महात्मा बुद्ध ने लोगों को सांसारिक दुखों से मुक्ति के लिए सांसारिक जीवन से विमुख होने का उपदेश नही दिया |
उन्होंने खुद ज्ञान (बोधि) की प्राप्ति के बाद लोककल्याण की भावना से प्रेरित होकर लोगों के बीच रहकर ही उन्हें उपदेश दिए | इसीलिए बौद्ध धर्म ने धार्मिक शिक्षा के साथ-साथ व्यावसायिक शिक्षा की भी व्यवस्था की थी |
बौद्ध-कालीन शिक्षा के अंतर्गत 18 सिप्पाओं या शिल्पों की शिक्षा का उल्लेख मिलता है | महावग्गा के अनुसार बौद्ध भिक्षुओं को सिलाई, बुनाई, कताई का प्रशिक्षण दिया जाता था |
तक्षशिला में शिक्षार्थियों को हस्ति-ज्ञान, धनुर्विद्या, औषध-विज्ञान, आयुर्वेद, कृषि, व्यापार, सैनिक विद्या आदि विषयों की शिक्षा जीविकोपार्जन के लिए दिए जाने का उल्लेख मिलता है |
बौद्ध शिक्षा के अंतर्गत चित्रकला, मूर्तिकला, भवन निर्माण-कला आदि का भी प्रशिक्षण भिक्षुओं को प्रदान किया जाता था | बौद्ध काल के चैत्य, विहार, स्तूप, विश्वविद्यालय आदि उस काल की भवन-निर्माण कला के साक्षात् प्रतीक है |
धार्मिक, नैतिक और चारित्रिक शिक्षा की व्यवस्था
बौद्ध शिक्षा एक प्रमुख उद्देश्य बौद्ध धर्म का प्रचार-प्रसार करना था | बौद्ध भिक्षु-भिक्षुणियां उच्च शिक्षा प्राप्त करके देश-विदेश में बौद्ध-धर्म का प्रचार-प्रसार करते थें | बौद्ध धर्म दया, करुणा व आत्म-संयम को सर्वाधिक महत्व देता है | बौद्ध शिक्षा द्वारा इन गुणों के विकास पर अत्यधिक जोर दिया जाता था |
बौद्ध युगीन शिक्षा कठोर नियमो के पालन द्वारा नैतिक व चारित्रिक विकास पर अत्यंत जोर देती थी | सदाचार, नैतिकता, अहिंसा, संयम आदि का पालन करना प्रत्येक भिक्षु का अनिवार्य कर्तव्य होता था | बौद्ध शिक्षा शिक्षार्थियों को सात्विक जीवन और शुद्ध चरित्र को अपनाने पर बल देती थी |
पब्बज्जा संस्कार (पबज्जा संस्कार)
पब्बज्जा संस्कार क्या होता है ? जब बालक विद्या प्राप्त करने के लिए संघ या मठ में प्रवेश करता था, तव बालक का पब्बज्जा संस्कार (Pabbajja Ceremony) होता था | पबज्जा का अर्थ बाहर जाना होता है | पब्बज्जा (पबज्जा) संस्कार का तात्पर्य था कि बालक ने अपने माता-पिता, परिवार से अलग होकर बौद्ध मठ में विद्यार्जन के लिए प्रवेश के लिया है |
पबज्जा संस्कार के बाद बालक भिक्षु (Monk), नवशिष्य (Novice) या सामनेर कहलाता था | महावग्गा (Mahavagga) में पबज्जा संस्कार का उल्लेख विस्तार से मिलता है | पब्बज्जा संस्कार के समय बालक को 10 आदेश दिए जाते थें जिनका पालन करना अनिवार्य होता था |
ये 10 आदेश इस प्रकार थें –
- अहिंसा का पालन करना,
- चोरी न करना,
- अशुद्धता से दूर रहना,
- सदा सत्य बोलना,
- नशीले पदार्थों का सेवन न करना,
- वर्जित समय पर भोजन न करना,
- नृत्य-संगीत, तमाशों से दूर रहना,
- श्रृंगार की वस्तुओं से दूर रहना,
- ऊँचे बिस्तर पर न सोना,
- सोना अथवा चांदी का दान न ग्रहण करना |
पबज्जा संस्कार का अधिकार शूद्रों सहित समाज के सभी वर्गो को प्राप्त था | प्रारम्भिक शिक्षा की शिक्षण-विधि प्रायः मौखिक थी और शिक्षा का माध्यम पालि भाषा थी |
उपसम्पदा संस्कार
उपसम्पदा संस्कार क्या होता है ? जब भिक्षु प्रारम्भिक शिक्षा को समाप्त करके उच्च शिक्षा में प्रवेश करता था तब उसका उपसम्पदा संस्कार होता था अर्थात् उच्च शिक्षा में प्रवेश लेने वाले शिक्षार्थियों का उपसम्पदा संस्कार होता था |
उपसम्पदा संस्कार के लिए जाति का कोई प्रतिबन्ध नही था, लेकिन चांडाल, ऋणी, अशक्त या राज्य-कर्मचारी के प्रवेश पर प्रतिबन्ध था |
प्रारम्भिक शिक्षा के पूरा होने पर शिक्षार्थियों की उच्च शिक्षा आरम्भ होती थी | उच्च शिक्षा प्रारम्भ करने की आयु समान्यतः 12 वर्ष थी, लेकिन ए. एस. अल्तेकर ने उपसम्पदा संस्कार के लिए न्यूनतम आयु 20 वर्ष का उल्लेख किया है | उच्च शिक्षा के अध्ययन की अवधि 12 वर्ष होती थी |
उच्च शिक्षा का माध्यम पालि भाषा थी, लेकिन संस्कृत भाषा का भी प्रयोग होता था | साथ ही देश की अन्य प्रचलित भाषाओँ द्वारा भी शिक्षा प्रदान की जाती थी |
उपसम्पदा संस्कार के बाद भिक्षु संघ में रहने का अधिकारी हो जाता था | उसे संघ के 8 नियमों का पालन करना अनिवार्य होता था |
यें 8 नियम इस प्रकार थें –
- भिक्षा मांगकर भोजन करना,
- स्त्री से शारीरिक सम्बन्ध न बनाना,
- वृक्ष के नीचे वास करना,
- चोरी न करना,
- साधारण वस्त्र धारण करना,
- अहिंसा का पालन करना,
- गो-मूत्र का औषधि के रूप में सेवन करना,
- अलौकिक शक्तियों का दावा न करना |
स्त्री-शिक्षा की व्यवस्था
प्रारम्भ में महात्मा बुद्ध बौद्ध संघ में स्त्रियों के प्रवेश के पक्ष में नही थें, लेकिन अपनी विमाता महाप्रजापति गौतमी के आग्रह पर उन्होंने स्त्रियों को बौद्ध संघ में शामिल होने की अनुमति प्रदान कर दी थी |
प्रथम भिक्षुणी-संघ की स्थापना वैशाली में हुई | बौद्ध संघों में स्त्रियों के लिए उच्च-कोटि की शिक्षा-व्यवस्था की गयी थी | मठों व विहारों में शिक्षा ग्रहण करने वाली स्त्रियाँ भिक्षुणी कहलाती थी |
ब्रह्मचर्य और बौद्ध संघों के नियमों का कठोरता से पालन करके कई कई स्त्रियों ने उच्च शिक्षा प्राप्त की थी | बौद्ध-संघों से शिक्षा प्राप्त कर कई उच्च-कोटि की विदुषी स्त्रियों ने देश-विदेश में धार्मिक-दार्शनिक क्षेत्रों में महत्वपूर्ण योगदान दिया |
शूद्रों की शिक्षा की व्यवस्था
महात्मा बुद्ध ने कभी भी ऊंच-नीच, जाति-धर्म, छुआछूत आदि के आधार पर मानवों से भेदभाव नही किया | उन्होंने प्रत्येक जाति-वर्ण के लोगों के शिक्षा-अर्जन लिए बौद्ध मठों व विहारों के द्वार खोल दिए थें |
बौद्ध शिक्षा मानव के धर्म की अपेक्षा मानव के कर्म को महत्व देती थी | बौद्ध कालीन शिक्षा ने शूद्रों को भी शिक्षा का अधिकार दिया | बौद्ध मठों-विहारों में बिना किसी भेदभाव के शूद्रों को शिक्षा अर्जन का अवसर प्राप्त हुआ |
बौद्धकालीन शिक्षा की विशेषताएं : Characteristics of Buddhist Education in Hindi
संक्षेप में बौद्ध काल की शिक्षा की मुख्य विशेषताएं (Bauddha Kal Ki Mukhya Visheshtayen) निम्नलिखित है –
1. बौद्ध शिक्षा प्रजातंत्र के सिद्धान्तों पर आधारित थी |
2. बौद्ध शिक्षा का माध्यम लोकभाषा थी |
3. बौद्ध शिक्षा ने पालि भाषा को अत्यंत समृद्ध किया |
4. बौद्ध शिक्षा ने पालि व संस्कृत भाषाओं को मिलाकर एक नई भाषा ‘मिश्रित संस्कृत’ (हाइब्रिड संस्कृत) को जन्म दिया था |
5. बौद्ध शिक्षा अहिंसा पर अत्यधिक जोर देती थी |
6. बौद्ध शिक्षा लोककल्याण की भावना से प्रेरित थी |
7. बौद्ध शिक्षा बिना किसी भेदभाव के सभी को समान रूप से दी जाती थी |
8. बौद्ध शिक्षा का मुख्य उद्देश्य सभी को निर्वाण की प्राप्ति कराकर जन्ममरण के चक्र से मुक्ति दिलाना था |
9. बौद्ध शिक्षा का लक्ष्य व्यक्ति के जीवन से दुःखों का अन्त करना था |
10. बौद्ध शिक्षा में चरित्र और नैतिकता को अत्यधिक महत्व दिया गया था |
11. बौद्ध शिक्षा ने साहित्य व संस्कृति के संरक्षण व प्रसार में अत्यधिक योगदान दिया |
12. बौद्ध शिक्षा ने व्यावसायिक शिक्षा को महत्व दिया |
13. बौद्ध शिक्षा ने अंधविश्वास के स्थान पर तर्क को महत्व देकर बौद्धिक विकास को बढ़ावा दिया |
14. बौद्ध शिक्षा ने नालन्दा, विक्रमशिला और बलभी जैसे महान शिक्षा केन्द्र स्थापित किये |
15. बौद्ध शिक्षा का सारांश ‘चार आर्य-सत्य’ में निहित है |
विद्यादूत की इन केटेगरी को भी देखें –
यह लेख यूजीसी नेट शिक्षाशास्त्र, बीएड, एम.ए. शिक्षाशास्त्र, बीए शिक्षाशास्त्र, डी.एल.एड/बीटीसी (D.El.Ed.) के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है |
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सम्बन्धित प्रश्न –
प्रश्न – बौद्ध कालीन शिक्षा का अर्थ स्पष्ट करते हुए इसकी प्रमुख विशेषताओं का वर्णन करें |
प्रश्न – पबज्जा संस्कार और उपसम्पदा संस्कार का वर्णन करें |
प्रश्न – बौद्ध कालीन शिक्षा के प्रमुख संस्कारों का वर्णन करें |
प्रश्न – बौद्ध कालीन शिक्षा की प्रमुख विशेषताओं का वर्णन करें |