पाश्चात्य दर्शन और पाश्चात्य दार्शनिक Western Philosophy and Western Philosopher

Western Philosophy and Western Philosopher

पाश्चात्य दर्शन और पाश्चात्य दार्शनिक (पाश्चात्य विचारक) Western Philosophy and Western Philosopher : आज विद्यादूत में हम पश्चिमी दर्शन और पश्चिमी विचारक (पाश्चात्य दर्शन और पाश्चात्य दार्शनिक) विषय पर चर्चा करेंगें | प्राचीन दार्शनिक चिन्तन का श्रेय भारतीय, यूनानी और चीनी विद्वानों को दिया जाता है | चीनी चिन्तन विशुद्ध दार्शनिक चिन्तन नही माना जाता है | यहाँ दर्शन की अपेक्षा रहस्यवाद को ज्यादा महत्व दिया गया | भारतीय दर्शन स्वयं को पूर्णतया धर्म से अलग नही कर पाया | इसका धर्म से अलग स्वतन्त्र अस्तित्व कभी विकसित नही हो पाया |

एकमात्र यूनानी दर्शन ही ऐसा दर्शन है जहाँ दार्शनिक समस्याओं पर पूर्णतया स्वतन्त्र रूप से चिन्तन किया गया | इसी से पाश्चात्य दर्शन का उदय हुआ | अतः पाश्चात्य दर्शन का जन्म यूनान (ग्रीस) में हुआ था |

पाश्चात्य दर्शन और पाश्चात्य दार्शनिक Western Philosophy and Western Philosopher : पाश्चात्य दर्शन के सभी महत्वपूर्ण सिद्धान्तों का सूत्रपात यूनानी दर्शन (ग्रीक दर्शन) में ही हुआ था | यूनानी चिन्तन के फलस्वरूप ही दर्शन, विज्ञान और गणित पाश्चात्य देशों में पहुचा |

यूनानी दर्शन (ग्रीक दर्शन) ने ही सर्वप्रथम पाश्चात्य जगत् में विज्ञान की धारा को प्रवाहित किया था | थेलीज आदि यूनानी दार्शनिकों ने विश्व की वैज्ञानिक खोज आरम्भ की और धर्म को अधिक महत्व नही दिया |

विद्यादूत की इन स्पेशल केटेगरी को भी देखें –

UPSSSC SPECIALPGT/TGT SPECIAL
UGC NET SPECIALRO/ARO SPECIAL
UPSC SPECIALUPTET SPECIAL
UPHESC SPECIALSOLVED PAPERS
MCQALL ABOUT INDIA

यूनानी दर्शन ने यूरोप को धार्मिक अन्धविश्वासों से मुक्त करने में और ‘सत्यं शिवं सुन्दरम्’ को प्रतिष्ठित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई साथ ही मध्यकाल की धार्मिक दासता को समाप्त करके आधुनिक-काल को जन्म देने में भी इसका बड़ा योगदान था |

“जब तक शासक, दार्शनिक न हो और दार्शनिक, शासक न हो

तब तक आदर्श राज्य की स्थापना नही हो सकती है |

प्लेटो (Plato)

पाश्चात्य दार्शनिक (पाश्चात्य विचारक) Western Philosopher

पाश्चात्य दर्शन और पाश्चात्य दार्शनिक (पाश्चात्य विचारक) Western Philosophy and Western Philosopher के अंतर्गत अब हम कुछ प्रारम्भिक महत्वपूर्ण पाश्चात्य दार्शनिक (पाश्चात्य विचारक) पर चर्चा करेंगें | कुछ महत्वपूर्ण प्रारम्भिक पाश्चात्य दार्शनिकों का वर्णन निम्नलिखित है –

ये भी देखें – बौद्ध में प्रतीत्यसमुत्पाद क्या है ?

थेलीज (Thales)

पाश्चात्य दर्शन के जनक थेलीज (Thales)  थे | थेलीज प्रथम दार्शनिक थे, जिन्होंने सृष्टि की पौराणिक व्याख्या को नकार कर, विशुद्ध वैज्ञानिक व्याख्या प्रस्तुत करने का प्रयास किया | थेलीज एक महान दार्शनिक के साथ-साथ ज्योतिषी, गणितज्ञ और इंजीनियर भी थे |

पाश्चात्य दार्शनिक थेलीज के अनुसार जल से ही स्रष्टि की उत्पत्ति हुई है, जल के ऊपर ही यह स्थित है और जल में ही इसका प्रलय हो जाना है | विश्व का परम तत्व ‘जल’ है तथा जल से ही सभी वस्तुयें उत्पन्न हुई है | पृथ्वी एक समतल गोलाकार वस्तु (Flat Disc) है जो जल पर तैर रही है |

एनेक्जिमेन्डर (Anaximander)

थेलीज के शिष्य एनेक्जिमेन्डर (Anaximander) थे | एनेक्जिमेन्डर (Anaximander) प्रथम व्यक्ति थे जिन्होंने दर्शन पर पुस्तक लिखी | एनेक्जिमेन्डर की पुस्तक ‘प्रकृति पर’ (On Nature) यूरोपीय दर्शन की प्रथम रचना है |

एनेक्जिमेन्डर (Anaximander) ने ही प्रथम मानचित्र बनाया था | इन्होने, यूरोप में पहली बार, पृथ्वी को गोल और सूर्य को पृथ्वी से कई गुना बड़ा बताया था |

ये भी देखें –

पाइथागोरस (Pythagoras)

पाइथागोरस (Pythagoras) गणित के संस्थापक माने जाते है | इन्होने गणित में पाइथागोरस सिद्धान्त को जन्म दिया जो वर्तमान तक प्रचलित है | जिसप्रकार थेलीज ने विश्व की व्याख्या ‘जल’ के द्वारा की, उसीप्रकार पाइथागोरस ने विश्व की व्याख्या ‘संख्या’ के आधार पर की |

पाइथागोरस (Pythagoras) अनुसार विश्व का मूल या परम तत्व ‘संख्या’ (Number) है | इसी से संसार की सृष्टि हुई है | हम किसी ऐसे संसार की कल्पना भी नही कर सकते जहाँ संख्या न हो | पाइथागोरस ने ही सर्वप्रथम दर्शन को गणित के साथ जोड़ा था |

हेरेक्लाइटस (Heraclitus)

हेरेक्लाइटस (Heraclitus) ने ‘अग्नि’ को परम तत्व माना था | हेरेक्लाइटस का जन्म महात्मा बुद्ध के अन्तिम दिनों में हुआ था | महात्मा बुद्ध की तरह इनका जन्म भी राजकुल में हुआ था, और महात्मा बुद्ध की तरह इन्होने भी सबकुछ छोड़कर वैराग्य अपना लिया था |

बौद्धों की तरह हेरेक्लाइटस ने भी सब अनित्य और क्षणिक माना था | अपनी बात को समझाने के लिए ये नदी की जलधारा और दीपक की लौ का उदाहरण लेते है | उदाहरण- कोई भी व्यक्ति एक नदी के उसी जल में दो बार स्नान नही कर सकता है, क्योकि जिस जल में उसने प्रथम बार डुबकी लगाई थी वह आगे बह गया और दूसरी डुबकी दूसरी जल में ही लगेगी | इसीप्रकार दीपक की लौ हर क्षण बदलती रहती है | एक क्षणिक लौ के जाते ही उसका स्थान दूसरी क्षणिक लौ ले लेती है और यह क्रम दीपक के जलने तक निरन्तर चलता रहता है | जिसप्रकार नदी में हर क्षण जल बहता रहता है उसीप्रकार दीपक में हर क्षण नई लौ उठती रहती है |

आश्चर्य की बात है कि जो बौद्धों ने भी अपने क्षणिकवाद सिद्धान्त को समझाने के लिए जलधारा और दीपक की लौ का उदाहरण लिया था | हेरेक्लाइटस का विख्यात कथन है “मेरा दर्शन इने-गिने सुयोग्य व्यक्तियों के लिए ही है, क्योकि गधों को घास चाहिये, स्वर्ण नही |”

जेनोफेनीज (Xenophanes) और पार्मेनाइडीज (Parmenides)

जेनोफेनीज (Xenophanes) ईश्वर को निराकार, नित्य और अन्तर्यामी मानते थे और मानव-कल्पित सगुण ईश्वर को नकारते थे | इनके अनुसार “यदि बैलों, घोड़ों और शेरों के हाथ मनुष्य के समान होते और उन हाथों से वे चित्र बना सकते तो वे ईश्वर को क्रमशः बैल, घोड़े और शेर के रूप में चित्रित करते |”

पार्मेनाइडीज (Parmenides) को यूरोपीय विज्ञानवाद का संस्थापक कहा जाता है |

सुकरात (Socrates)

सुकरात (Socrates) की वाद-विवाद में अत्यंत रुचि थी | सुकरात (Socrates) के दर्शन की पद्धति ‘द्वन्द्वात्मक तर्क’ (Dialectical Reasoning) की है, जो प्रश्नोत्तर की पद्धति है |

इसके द्वारा अन्धविश्वासों का खण्डन किया जाता था | सुकरात (Socrates) प्रायः बाजार में या मित्र-मण्डलियों में दार्शनिक चर्चा करते रहते थे | उनकी शिक्षा मुख्यतः नैतिक थी |

सुकरात (Socrates) के अनुसार नैतिक जीवन ही सर्वोच्च जीवन है | उनके बारे में कहावत थी कि “सुकरात सब मनुष्यों में सर्वाधिक बुद्धिमान हैं |” वे लोगों को अज्ञान-मार्ग से हटकर ज्ञान-मार्ग की और ले जाना चाहते थे |

सुकरात (Socrates) पर अधार्मिक होने का और नवयुवकों को बहकाने का आरोप लगाकर उन्हें विषपान द्वारा मृत्युदण्ड दिया गया | सुकरात ने दर्शन को ‘विज्ञानों का विज्ञान’ कहा है |

प्लेटो (Plato)

प्लेटो (Plato) विश्व के एक महान और यूनान के सबसे महान दार्शनिक माने जाते है | प्लेटो (Plato) सुकरात के शिष्य थे | वह एक उच्चकुलीन सामन्त परिवार से थे |

प्लेटो (Plato) ने एथेन्स में ‘एकेडमी’ (Academy) या जिम्नेजियम् (Gymnasium) नामक संस्था की स्थापना की थी | प्लेटो की महान कृतियाँ ‘सम्वादों’ (Dialogues) के रूप में है |

प्लेटो (Plato) के अधिकांश सम्वादों में सुकरात ही मुख्य वक्ता है | उन्होंने सुकरात के माध्यम से ही अपने दार्शनिक सिद्धान्तों को व्यक्त किया है |

प्लेटो (Plato) की प्रमुख कृतियाँ है – एपॉलॉजी (Apology), क्राइटो (Crito), प्रोटेगोरस (Protagoras), जॉर्जियस (Gorgias), मेनो (Meno), फ़ीडो (Phaedo), सिम्पोजियम (Symposium), रिपब्लिक (Republic), फ़ीड्रस (Phaedrus), पार्मेनाइडीज़ (Parmenides), थीटीटस (Theaetetus), सोफ़िस्ट (Sophist), फ़िलेबस (Philebus), टाइमियस (Timaeus), लॉज़ (Laws) | प्लेटो को ‘वैज्ञानिक ज्ञान’ का प्रथम संस्थापक कहा जाता है |

प्लेटो प्रथम यूनानी दार्शनिक थें जिन्होंने अपने दार्शनिक विचारों को बेहद तर्कपूर्ण और व्यवस्थित तरीके से लोगों के समक्ष प्रस्तुत किया | उन्होंने स्पष्ट रूप से बताया कि विचारों में एक ईश्वरीय व नैतिक व्यवस्था होती है |

पाश्चात्य दर्शन में प्लेटो (Plato) की विचाधारा को आदर्शवाद का नाम दिया गया | प्लेटो के दर्शन में ऐसी बातें हैं – आत्म-विचार, आत्मा की अमरता का सिद्धान्त, परलोक में विश्वास, बन्धन व मोक्ष – जिनका सीधा सम्बन्ध भारतीय विचारों के साथ दिखाई पड़ता है |

इसलिए प्लेटो का दर्शन पाश्चात्य और भारतीय दोनों प्रकार के दार्शनिक चिन्तन के लिए महत्वपूर्ण है | प्लेटो के दर्शन में यूनानी (ग्रीक) दर्शन अपने चरमोत्कर्ष पर पहुँच गया था इसलिए प्लेटो (Plato) को ‘पूर्ण-ग्रीक’ की उपाधि से सम्मानित किया गया है | 

अरस्तू (Aristotle)

अरस्तू (Aristotle) प्लेटो के शिष्य थे | अरस्तू (Aristotle) ने एथेन्स में ‘लाइसियम’ (Lyceum) नामक शिक्षा-संस्था की स्थापना की थी | यह संस्था यूनानी (ग्रीक) देवता ‘लाइसियन अपोलो’ को सम्रपित की गयी थी इसीलिए इसे लाइसियम का नाम दिया गया था |

इनको यूनानी (ग्रीक) होने का अभिमान था और ये गैर-यूनानी को ‘बर्बर’ समझते थे | इनकी महान कृतियाँ है – तत्व-विज्ञान (Metaphysics), भौतिक-विज्ञान (Physics), नीतिशास्त्र (Ethics), तर्कशास्त्र (Logic) और सौन्दर्यशास्त्र (Aesthetics) | इन्हे ‘ज्ञानियों का सम्राट’ (Master of those who know) कहा गया है |

ये भी देखें – विद्यादूत होम पेज | दर्शनशास्त्र के सभी लेख | शिक्षाशास्त्र के सभी लेख | अर्थशास्त्र के सभी लेख | समाजशास्त्र के सभी लेख

नोट : विद्यादूत वेबसाइट के सभी लेखों का सर्वाधिकार विद्यादूत के पास सुरक्षित है |