हड़प्पा सभ्यता के पतन के कारण

Hadappa Sabhyata Ke Patan Ke Karan

हड़प्पा सभ्यता या सिन्धु सभ्यता के पतन के कारण (Hadappa Sabhyata Ke Patan Ke Karan) : कांस्ययुगीन सिंधु या हड़प्पा सभ्यता के पतन (Reasons for the decline of Harappan civilization) का कारण बता पाना उतना की जटिल है जितना की इसके उदभव के कारण को बता पाना और हड़प्पा-लिपि को पढ़ पाना | इतना तो निश्चित ही है कि जो सभ्यता लगभग साढ़े बारह लाख वर्ग किलोमीटर विस्तृत क्षेत्र और तीन देशो (भारत, पाकिस्तान और अफगानिस्तान) के प्रदेशों में फैली हो, वो अकस्मात एक ही सामान्य कारण से लुप्त नही हो सकती | निश्चय ही इसके कई अलग-अलग कारण रहे होंगें यहाँ तक कि एक ही स्थल के विनाश के भी कई कारण होने से इंकार नही किया जा सकता है |

यद्यपि हड़प्पा/सिन्धुघाटी सभ्यता के पतन के लिए विभिन्न विद्वानों ने अपने अलग-अलग विचार प्रस्तुत किये है, जैसे जलवायु-परिवर्तन, बाढ़, महामारी, विदेशी-आक्रमण, आर्थिक-गिरावट आदि, लेकिन यह बात निश्चित है कि हड़प्पा सभ्यता अकस्मात लुप्त नही हुई थी |

पुरातात्विक साक्ष्य हमे स्पष्ट करते है कि हड़प्पा सभ्यता का पतन क्रमिक रूप से और धीमे-धीमे हुआ | यही कारण है कि हड़प्पा सभ्यता के पतन में 600 वर्षों (1900-1300 ईसा पूर्व तक) का समय लगा | लगभग 1900 ईसा पूर्व के पश्चात हड़प्पा सभ्यता की एकरुपता कमजोर हो गयी तथा प्रादेशिक रूपान्तर पैदा होने लगे, साथ ही एक प्रकार की ग्रामीकारण की प्रक्रिया शुरू हो गयी |

यद्यपि हड़प्पा सभ्यता का पतन 1300 ईसा पूर्व हो चुका था, फिर भी हड़प्पा सभ्यता में विकसित अनेक सांस्कृतिक विशेषताएं आज भी हमारे दैनिक सांस्कृतिक व भौतिक जीवन में देखी जा सकती है |

अब हम ‘हड़प्पा सभ्यता के पतन के कारण’ के लिए विभिन्न विद्वानों द्वारा व्यक्त किये विचारों पर बात करेंगे | हमे यह बात ध्यान रखनी चाहिए कि हड़प्पा सभ्यता एक बड़े क्षेत्र (12,99,600 वर्ग किमी) में फैली हुई थी, इसलिए सभी क्षेत्रों में इसके पतन के कारण एक समान नही हो सकते है |

हड़प्पा सभ्यता के पतन के कारण

हड़प्पा सभ्यता के पतन के कारण लेख में हम विद्वानों द्वारा व्यक्त किये गये निम्नलिखित कारणों पर विचार करेंगें –

  1. आर्यों का आक्रमण
  2. महामारी
  3. पर्यावरण का असंतुलन
  4. जलवायु परिवर्तन
  5. जनसंख्या की अनपेक्षित वृद्धि
  6. नदियों के मार्ग-परिवर्तन
  7. व्यापारिक गतिविधियों की कमी
  8. नदियों से आने वाली बाढ़

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हड़प्पा सभ्यता के पतन के कारण

अब हम विस्तार से हड़प्पा या सिन्धुघाटी सभ्यता के पतन के कारणों की विस्तार से चर्चा करेंगे |

आर्यों का आक्रमण

मार्टिमर व्हीलर ने इस सभ्यता के विनाश के लिए सीधे-तौर पर बर्बर आर्यों के आक्रमण को उत्तरदायी माना है, जो भारत में 1500 ई.पू. के आस-पास आये थे |

व्हीलर मानते है कि मोहनजोदड़ो के अंतिम चरण में जो पुरुषों, स्त्रियों और बच्चों के कंकाल अस्त-व्यस्त दशा में पड़े हुए पाए गये है, वे आर्यों के आक्रमण का शिकार हुए थे |

कुछ कंकालों पर मिले धारदार-हथियारों के घाव उनके मत का समर्थन करते हैं | वे अनुमान लगाते है कि इन कंकालों का नगर में इस प्रकार अस्त-व्यस्त पड़े रहना इस बात की ओर इशारा करता है कि इस जघन्य हत्याकांड के बाद नगर में बस्ती नही रही |

वे अपने मत के समर्थन में ऋग्वेद के कुछ मंत्रो का भी उल्लेख करते है जिसमे ‘पुर’, पुरन्दर, और ‘हरियूपिया’ शब्द शामिल है | इन मन्त्रों में आर्य अपने शक्तिशाली देवता इन्द्र से अनार्यों के ‘पुरो’ (दुर्गो) को नष्ट करने की प्रार्थना करते है | ऋग्वेद में इन्द्र को ‘पुरन्दर’ (दुर्गों को तोड़ने वाला) भी कहा गया है |

व्हीलर ऋग्वेद में उल्लेखित ‘हरियूपिया’ की पहचान हड़प्पा से करते है, जहाँ पर सम्भवतः आर्यों ने अनार्यों पर विजय प्राप्त की थी |

लेकिन व्हीलर के उपर्युक्त कथन को अधिकांश विद्वान पूर्णतया सत्य नही मानते है, क्योकि अगर यहाँ आर्यों ने सामूहिक नरसंहार किया होता तो सम्भव है कि खुदाई में युद्ध में प्रयुक्त होने वाली कुछ सामग्री जैसे धनुष-बाण, कवच, घोड़े, भाला, तलवार आदि के अवशेष अवश्य मिलने चाहिए थे | इसके आलावा सभी कंकालों को एक ही काल का मानने में भी संदेह व्यक्त किया जाता है | इसप्रकार व्हीलर का मत सर्वमान्य नही है |

महामारी

के.यु.आर. कनेडी ने इस सभ्यता के विनाश के लिए महामारी (मलेरिया) को उत्तरदायी माना है |

कनेडी ने मोहनजोदड़ो से प्राप्त कंकालो का गहन अध्ययन करके बताया कि इनमे से केवल एक ही व्यक्ति की मृत्यु चोट के कारण हुई बाकि की मृत्यु किसी महामारी के कारण हुई थी | मलेरिया जैसी महामारी ने बड़ी संख्या में हड़प्पा सभ्यता के निवासियों के जीवन का अंत कर दिया होगा, जिसके फलस्वरूप इस पूरी सभ्यता का पतन हो गया |

पर्यावरण का असंतुलन

जॉन मार्शल ने सिन्धु नदी के पुरास्थलों से प्राप्त साक्ष्य के आधार पर निष्कर्ष निकाला कि हड़प्पा-सभ्यता का विनाश पर्यावरण के असंतुलन के कारण हुआ है |

मार्शल अपना मत प्रकट करते है कि नगर निर्माण में ईंधन के लिए इमारती लकड़ी का इस्तेमाल, कृषि भूमि के विस्तार के लिए वनों की अंधाधुंध कटाई, और संसाधनों के दुरुपयोग आदि के कारण भूमि बंजर हो गयी |

परिणामस्वरूप अकाल, सूखे और बाढ़ की स्थितियाँ बार-बार सामने आने लगी और इन्ही परिस्थितियों में इस सभ्यता का विनाश हो गया |

जलवायु परिवर्तन

आरेल स्टीन और अमलानन्द घोष के अनुसार इस सभ्यता का विनाश जलवायु परिवर्तन के कारण हुआ | इनके मतानुसार सिंध, राजस्थान, पंजाब आदि में पहले बड़ी मात्र में वर्षा होती थी और इन क्षेत्रों में घने जंगल स्थित थें |

लेकिन यहाँ के लोगो ने नगर-निर्माण के लिए बड़े पैमाने पर वनों की कटाई की जिससे यहाँ की जलवायु में परिवर्तन आ गया, वर्षा कम हो गयी जिससे कृषि की पैदावार कम होने लगी और भुखमरी की स्थिति आ गयी, नदियाँ सूख गयी और इस सभ्यता का विनाश हो गया |

जनसंख्या की अनपेक्षित वृद्धि

कुछ विद्वान मानते है कि जनसंख्या की अनपेक्षित वृद्धि से इस सभ्यता के सामाजिक और आर्थिक स्तर में गिरावट आ गयी जिससे इस सभ्यता का पतन हो गया |

एच.टी. लैम्ब्रिक सुझाते है कि दूसरे स्थानों से लोगों के मोहनजोदड़ो आने से मोहनजोदड़ो की जनसंख्या में असंतुलन पैदा हो गया, जिससे उसकी आर्थिक दशा और शक्ति अत्यंत क्षीण हो गयी |

नदियों का मार्ग-परिवर्तन

कुछ विद्वानों के अनुसार नदियों के मार्ग-परिवर्तन ने इस सभ्यता का विनाश किया |

अधिकांश हड़प्पाई स्थल किसी न किसी नदी के किनारे ही बसे थे तथा हड़प्पाई व्यापार बहुत-कुछ जल-मार्ग पर ही निर्भर था, इसलिए नदियों के मार्ग-परिवर्तन ने निश्चित ही इन स्थलों के विनाश में अहम भूमिका निभाई होगी | इसके आलावा नदियों के मार्ग-परिवर्तन से पीने और सिचाई हेतु जल का आभाव हुआ होगा |

एच.टी.लेमब्रिक का मत है कि सिन्धु नदी के मार्ग में परिवर्तन के कारण मोहनजोदड़ो का विनाश हुआ |

जी.एफ. डेल्स ने अपने शोध में बताया कि घग्गर और उसकी सहायक नदियों का मार्ग-परिवर्तन कालीबंगन के विनाश का कारण बना |

माधवस्वरूप वत्स ने हड़प्पा नगर के विनाश के लिए रावी नदी के मार्ग-परिवर्तन को उत्तरदायी माना है | 

नदियों द्वारा इस प्रकार अपना मार्ग-परिवर्तन के कारण खेती और पीने के लिए पानी का आभाव उत्पन्न हो गया और जलीय व्यापार भी बंद हो गया और इसके परिणामस्वरूप हड़प्पा सभ्यता का पतन हो गया |

व्यापारिक गतिविधियों की कमी

कुछ विद्वानों के अनुसार व्यापारिक गतिविधियों की कमी ने इस सभ्यता का विनाश किया | जैसाकि हमे मालूम है कि इस सभ्यता की समृद्धि का एक प्रमुख कारण विदेशों से होने वाला व्यापार था |

लेकिन हड़प्पा सभ्यता और मेसोपोटामिया से प्राप्त साक्ष्य से इस बात का पता लगता है कि अंतिम चरण में इस सभ्यता के विदेशी व्यापार में अत्यधिक कमी आ गयी | जिससे अनुमान लगाया जा सकता है कि हड़प्पाई समाज के अंतिम चरण में कुशल नेतृत्व का पतन हो चुका था | इन सब कारणों से यह सभ्यता अपने पतन की और बढ़ने लगी |

नदियों से आने वाली बाढ़

कुछ विद्वान नदियों से आने वाली बाढ़ को हड़प्पा सभ्यता के पतन के लिए उत्तरदायी मानते है |

मैके महोदय मानते है कि चन्हुदड़ो के विनाश के लिए बाढ़ उत्तरदायी थी | मोहनजोदड़ो के उत्खनन से भी स्पष्ट हुआ है कि यहाँ कई बार बाढ़ ने अपना प्रकोप दिखाया था, इसीलिए पुनर्निर्माण के समय हर बार यहाँ की इमारतों का अपेक्षाकृत ऊंचे धरातल पर निर्माण किया जा रहा था |

एस.आर. राव का मानना है कि लोथल और भगतराव ने भी कम से कम दो भयानक बाढ़ो का सामना किया था |

यद्यपि इस सम्भवना से इंकार नही किया जा सकता है कि बाढ़ के कारण वे नगर नष्ट हो गये होंगें जो नदी-तट पर बसे होंगे लेकिन जो नगर नदी-तट पर स्थित नही थे उनका पतन कैसे हुआ ? इसलिए बाढ़ को इस सभ्यता के पतन के लिए पूर्णतया उत्तरदायी नही माना जा सकता |

निष्कर्ष

हड़प्पा सभ्यता का कुल क्षेत्रफल लगभग 1,299,600 वर्ग किलोमीटर था | पूरे विश्व में किसी भी समकालीन संस्कृति का क्षेत्र हड़प्पा संस्कृति के क्षेत्र से बड़ा नही था | अतः यह स्पष्ट रूप से कहा जा सकता है कि इतने विशाल क्षेत्र में फैली हुई सभ्यता के सभी प्रदेशों में इसके पतन के कारण एक समान होना सम्भव नही लगता है |

यह माना जा सकता है कि सारस्वत प्रदेश में हड़प्पा सभ्यता का पतन मुखतः नदी धाराओं के परिवर्तन या स्थानान्तरण के कारण हुआ होगा, परन्तु सिन्धु नदी के तटीय क्षेत्रों में बार-बार आने वाली बाढ़ो के कारण अधिकतर हड़प्पा सभ्यता का पतन हुआ |

आमतौर पर हड़प्पा सभ्यता के समस्त क्षेत्रों में वर्षा की कमी होती गयी, फलस्वरूप खेती पर इसका प्रतिकूल प्रभाव पड़ा | क्योकि खेती इस सभ्यता की प्रमुख आर्थिक संसाधन थी, इसलिए उनकी आर्थिक स्थिति खराब होने लगी | आर्थिक स्थिति में गिरावट आ जाने पर बाकी संस्थाओं जैसे व्यापार-वाणिज्य, प्रशासनिक व राजनीतिक ढांचा, नागरिक सुख-सुविधाएँ इत्यादी में शनैःशनैः गिरावट आती गयी |

उपरोक्त विचारों की समीक्षा करने के बाद हम कह सकते है कि हड़प्पा सभ्यता का पतन किसी एक आकस्मिक घटना अथवा परिस्थिति के परिणामस्वरूप नही हुआ था, बल्कि इसका पतन अनेक घटनाओं और परिस्थितियों के संयोग से धीरे-धीरे हुआ था |

हड़प्पा सभ्यता के पतन के क्या-क्या परिणाम हुए ? इस प्रश्न का स्पष्ट उत्तर हमे अभी तक नही प्राप्त हो पाया है | हमें अभी नही पता है कि क्या नगर के नष्ट हो जाने से वणिक व शिल्पी लोग गाँव की तरफ प्रस्थान कर गये और वहां हड़प्पा के तकनीकी कौशलों को फैलाया | हमे अभी तक सिन्धु, पंजाब व हरियाणा की नगरोत्तर काल की स्थिति के विषय में स्पष्ट जानकारी नही है | हम सिन्धु क्षेत्र के भीतर खेतिहरों की बस्तियां तो पाते है, परन्तु पूर्वकाल की संस्कृति के साथ उनका सम्बन्ध क्या था ? यह स्पष्ट नही होता है | अभी भी हमें स्पष्ट व पर्याप्य जानकारी की प्रतीक्षा है |

साभार – यह लेख इतिहास विशेषज्ञ डॉ. के. के. भारती द्वारा लिखा गया है |

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हड़प्पा सभ्यता के इन लेखों को भी देखें –

  1. हड़प्पा सभ्यता की उदभव, क्षेत्रफल और सीमाएं
  2. हड़प्पा सभ्यता का कालक्रम
  3. हड़प्पा सभ्यता का नामकरण
  4. हड़प्पा सभ्यता में कृषि व पशुपालन
  5. सिन्धु सभ्यता की नगर योजना प्रणाली
  6. सिन्धु सभ्यता का धार्मिक जीवन
  7. सिन्धु सभ्यता का आर्थिक जीवन