हड़प्पा सभ्यता का नामकरण

Nomenclature of Harappan Civilization

हड़प्पा सभ्यता का नामकरण (Nomenclature of Harappan Civilization) : भारतीय उपमहाद्वीप में प्रथम सभ्यता उत्तर-पश्चिम क्षेत्र में विकसित हुई | यह भारत की प्रथम ज्ञात सभ्यता है | इस सभ्यता को सिन्धु सभ्यता, सिन्धु घाटी की सभ्यता, हड़प्पा सभ्यता और सिन्धु-सरस्वती सभ्यता के नाम से जाना जाता है | वास्तव में चारो शब्दों का एक ही अर्थ है | इनमे से प्रत्येक शब्द की एक विशेष पृष्ठभूमि है |

आरम्भ में इस सभ्यता के अवशेष सिन्धु घाटी में ही मिले थे, तब यह माना गया था कि यह नई सभ्यता अनिवार्यता सिन्धु घाटी तक ही सीमित थी | इसलिए इस सभ्यता को सिन्धु घाटी सभ्यता कहा जाता है | सर जॉन मार्शल पहले पुरातत्वविद् थे जिन्होंने इस सभ्यता के लिए सिन्धु सभ्यता नाम का प्रयोग किया था |

लेकिन बाद के वर्षों में हुई खोजों से जब यह बात उजागर हुई कि यह सभ्यता स्वयं सिन्धु घाटी की सीमाओं के पार दूर-दूर तक विस्तृत थी | तब इस सभ्यता के सही-सही भौगोलिक विस्तार को व्यक्त करने हेतु ‘सिन्धु घाटी सभ्यता’ शब्दावली अपर्याप्त सिद्ध हुई |

इस सभ्यता के पुरावशेष सर्वप्रथम 1921 ई. पाकिस्तान के पश्चिम पंजाब प्रान्त में अवस्थित हड़प्पा में पाए गए थे; अतः इसे हड़प्पा सभ्यता भी कहा जाता है क्योकि किसी सभ्यता का नामकरण उस पुरास्थल के आधार पर भी किया जा सकता है, जहाँ से उसकी खोज होती है |

कुछ विद्वानों के अनुसार हड़प्पा सभ्यता का मुख्य क्षेत्र सिन्धु घाटी नही, बल्कि सिन्धु और गंगा के बीच में स्थित सरस्वती एवं उसकी सहायक नदियों का क्षेत्र था | अतः उनके अनुसार इसे सिन्धु-सरस्वती सभ्यता कहना ज्यादा उचित है |

प्रथम बार नगरों के उदय के कारण इस सभ्यता को प्रथम नगरीकरण भी कहा जाता है | सर्वप्रथम कांसे के प्रयोग के कारण इसे कांस्य-सभ्यता भी कहा जाता है |

अब तक हड़प्पा सभ्यता की 1400 बस्तियों की खोज की जा चुकी है, जोकि एक अत्यंत विस्तृत भौगोलिक क्षेत्र में फैली हुई है | पूर्व में आलमगीरपुर (मेरठ, उ.प्र.) तक, पश्चिम में हड़प्पा सभ्यता की सीमा सुतकागेंडोर (बलूचिस्तान) तक, उत्तर में मांडा (अखनूर, जम्मू-कश्मीर) और दक्षिण में दैमाबाद (अहमदनगर, महाराष्ट्र) तक फैली है | ये बस्तियां अधिकांश नदियों के किनारे स्थित थी |

हड़प्पा सभ्यता के प्राप्त स्थल विभिन्न अवस्थाओं के है | कुछ स्थल इस संस्कृति की आरम्भिक-अवस्था के है, कुछ परिपक्व-अवस्था के है तो कुछ उत्तर-अवस्था है |

लेकिन परिपक्व-अवस्था वाले स्थल सीमित संख्या में प्राप्त हुए है, और इन स्थलों में कुछ स्थलों को ही नगर की संज्ञा प्रदान की गयी है | जोकि इस प्रकार है – हड़प्पा, मोहनजोदड़ो, चन्हुदड़ो, लोथल, कालीबंगा, बनावली, राखीगढ़ी, धौलावीरा |

हड़प्पा स्थल पंजाब में और सिंध में मोहनजोदड़ो स्थल था, ये दोनों स्थल परस्पर 483 किलोमीटर दूर थे तथा सिन्धु नदी द्वारा जुड़े हुए थें | सिंध में मोहनजोदड़ो से 130 किलोमीटर के लगभग दक्षिण में चन्हुदड़ो स्थल था | लोथल गुजरात में खम्भात की खाड़ी में था | कालीबंगा (काले रंग की चूड़ियाँ) स्थल उत्तरी राजस्थान में था जबकि बनावली स्थल हरियाणा के हिसार जिले में अवस्थित था | धोलावीरा स्थल गुजरात के कच्छ क्षेत्र में था | राखीगढ़ी स्थल हरियाणा में घग्गर नदी के तट पर अवस्थित था |

हड़प्पा, मोहनजोदड़ो, लोथल, कालीबंगा, धौलावीरा, सुरकोतदा आदि स्थलों पर की गयी व्यापक खुदाईयों से हमें इस सभ्यता के कई महत्वपूर्ण पहलुओं जैसे इसकी नगर-योजना, धर्म, समाज, अर्थव्यवस्था, प्रौद्योगिकी इत्यादी के बारे में विस्तृत जानकारी प्राप्त होती है |

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