सांख्य दर्शन में विकासवाद का सिद्धांत

sankhya darshan mein vikasvad ka siddhant

सांख्य दर्शन में विकासवाद का सिद्धांत (sankhya darshan mein vikasvad ka siddhant) Theory of Evolution in Samkhya Philosophy in Hindi | सांख्य निरीश्वरवादी होने के कारण सृष्टिवाद (creationism) को नही मनाता है | प्रकृति से विश्व का विकास मानने के कारण इसके विश्व-सम्बन्धी सिद्धांत को विकासवाद का सिद्धांत कहा जाता है |

सांख्य का विकासवाद सृष्टि के उदभव और विकास का सिद्धांत है | सांख्य के अनुसार यह संसार विकास का फल है, ईश्वर की सृष्टि नही है |

सांख्य के अनुसार प्रकृति और पुरुष दोनों के पारस्परिक सहयोग से विश्व-विकास का कार्य आरम्भ होता है |

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प्रकृति और पुरुष विरोधी गुण रखने पर भी आपस में सहयोग कैसे कर पाते है ? सांख्य ने इसे स्पष्ट करने हेतु एक उपमा का सहारा लिया है | जिस प्रकार एक अँधा और लंगड़ा व्यक्ति परस्पर सहयोग द्वारा आग लगे जंगल को पार कर लेते है, उसी प्रकार जड़ प्रकृति और निष्क्रिय पुरुष के सहयोग से विकासवाद का आरम्भ होता है |

सांख्य के विकासवाद में चौबीस सोपान है | विकासवाद का क्रम – (1) प्रकृति, (2) महत् या बुद्दि , (3) अहंकार, (4) मन, (5,6,7,8,9) पांच ज्ञानेन्द्रियाँ, (10,11,12,13,14) पांच कर्मेन्द्रिय, (15,16,17,18,19) पांच तन्मात्र, (20,21,22,23,24) पांच महाभूत |

विकासवाद के क्रम में सर्वप्रथम प्रकृति से महत् तत्व का आविर्भाव होता है | यह प्रकृति का प्रथम विकार है | महत् का अर्थ महान होता है | महत् को बुद्दि भी कहा जाता है | बुद्दि की सहायता से पुरुष अपने और प्रकृति के भेद को समझता है तथा अपने वास्तविक स्वरुप को पहचानता है |

प्रकृति का दूसरा विकार अहंकार है | अहंकार का कारण बुद्दि है | किसी वस्तु के सम्बन्ध में बुद्दि का ‘मै’ और ‘मेरा’ का भाव रखना अहंकार है | इसी के कारण ही पुरुष अपने को कर्ता, कामी (इच्छा करने वाला) तथा स्वामी (अधिकारी) मान लेता है | अहंकार के तीन कारण है – सात्विक, राजस और तामस | सात्विक अहंकार में सत्वगुण की, राजस अहंकार में रजोगुण की और तामस अहंकार के तमोगुण की प्रधानता रहती है |

सात्विक अहंकार से एकादश इंद्रियों की तथा तामस अहंकार से पांच तन्मात्राओं की उत्पत्ति होती है |

एकादश इंद्रियों में पांच कर्मेन्द्रियाँ (motor organs), पांच ज्ञानेन्द्रियाँ (sense organs) और मन आते है |

कर्मेन्द्रियाँ वह है जो मनुष्य को कर्म करने में समर्थ बनाती है | पांच कर्मेन्द्रियाँ शरीर के इन पांच अंगो में स्थित है – मुख, हाथ, पैर, मलद्वार और जननेंद्रिय | इनसे क्रमशः बोलना, पकड़ना या ग्रहण करना, चलना, मल त्यागना और संतान पैदा करना के कार्य सम्पादित होते है | ध्यान रहे कि मुख, हाथ, पैर आदि कर्मेन्द्रियाँ नही है, बल्कि उनमे निहित शक्ति ही कर्मेंद्रियां है जो कार्य सम्पादित करते है |

ज्ञानेन्द्रियाँ ज्ञान प्राप्त कराने वाली इन्द्रियाँ है | पांच ज्ञानेन्द्रियाँ ये है- आंख, कान, नाक, जीभ और त्वचा | इनसे क्रमशः रूप, शब्द, गंध, रस और स्पर्श विषयों का ज्ञान होता है | पुनः ध्यान रहे कि आँख, कान नाक आदि वास्तविक इन्द्रियाँ नही है, बल्कि इनमे से प्रत्येक में निहित शक्ति को ही वास्तविक इन्द्रिय कहना उचित है |

मन एक मुख्य इंद्रिय है | ज्ञानेन्द्रियों और कर्मेन्द्रियों से काम लेना इसी का काम है |

तामस अहंकार से पांच तन्मात्राओं का विकास होता है | इन्हे तन्मात्र इसलिए कहते है, क्योकि ये शब्द, स्पर्श, रूप, रस और गंध के सूक्ष्म तत्व है | पांच तन्मात्राएँ है – शब्द-तन्मात्र, स्पर्श-तन्मात्र, रूप-तन्मात्र, रस-तन्मात्र और गंध-तन्मात्र |

तन्मात्राओं का ज्ञान प्रत्यक्ष से सम्भव नही है, क्योकि ये अत्यंत सूक्ष्म है | इनका ज्ञान केवल अनुमान से सम्भव है | पांच तन्मात्राओं से पांच महाभूत उत्पन्न होते है | पांच तन्मात्र सूक्ष्म है जबकि पांच महाभूत स्थूल है |

तन्मात्र से महाभूत का विकास इस प्रकार होता है – शब्द तन्मात्र से आकाश महाभूत की उत्पत्ति होती है, जिसका गुण शब्द है | स्पर्श तन्मात्र + शब्द तन्मात्र से वायु की उत्पत्ति होती है , जिसका गुण शब्द और स्पर्श है | रूप तन्मात्र + स्पर्श तन्मात्र + शब्द तन्मात्र से आग की उत्पत्ति होती है, जिसके गुण रूप, स्पर्श और शब्द है | रस तन्मात्र + रूप तन्मात्र + स्पर्श तन्मात्र + शब्द तन्मात्र से जल की उत्पत्ति होती है, जिसके गुण स्वाद, रूप, स्पर्श और शब्द है | गंध तन्मात्र + रस तन्मात्र + रूप तन्मात्र + स्पर्श तन्मात्र + शब्द तन्मात्र से पृथ्वी की उत्पत्ति होती है, जिसके गुण गंध, स्वाद, रूप, स्पर्श और शब्द है |

इस प्रकार पांच महाभूत है – आकाश, वायु, अग्नि, जल और पृथ्वी | इनके विशेष गुण क्रमशः है – शब्द, स्पर्श, रूप, स्वाद और गंध |

इस प्रकार सांख्य के विकासवाद में 24 तत्व है | विकास का आरम्भ प्रकृति से होता है और इसका अंत पांच महाभूतो में होता है | इन चौबीस तत्वों में पुरुष जोड़ने पर 25 तत्व हो जाते है | ये 25 तत्व सांख्य दर्शन में अत्यधिक प्रसिद्ध है |

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