बौद्ध धर्म में अव्याकतानि या अव्याकृत प्रश्नानि

Indeterminaable Questions in Hindi

बौद्ध धर्म में अव्याकतानि या अव्याकृत प्रश्नानि (Indeterminaable Questions) : जिस समय बुद्ध का पर्दापण हुआ, उस समय जनसाधरण और विद्वज्जन सभी तत्त्वशास्त्र संबंधी प्रश्नों में उलझे रहते थें |1 प्रत्येक मानव आत्मा, परमात्मा, जगत् जैसे गूढ़ विषयों के चिंतन में लीन रहता था | प्रत्येक विचारक के अपने पृथक मत थें | विद्वानों में इन विषयों पर विवाद, तर्क-वितर्क होते रहते थें | अनावश्यक दार्शनिक तर्क-वितर्क का फल यह हुआ कि लोगों में वास्तविक जीवन निष्प्राण हो रहा था | उस समय एक ऐसे मार्गदर्शक की आवश्यकता थी जो लोगों को जीवन संबंधी वास्तविक समस्याओं को सुलझाने में सहायता प्रदान कर सकें | बुद्ध इस आवश्यकता की पूर्ति करने में पूर्णतया सफल हुए |

बुद्ध एक महान समाज सुधारक थे | उन्होंने अपना पूरा ध्यान जनसाधारण के दुःखों को दूर करने में लगाया | इसीलिए उन्होंने स्वयं को व्यर्थ के दार्शनिक वाद-विवादों से दूर रखा | जब कोई उनसे आत्मा, परमात्मा, पुनर्जन्म, जगत् आदि से सम्बन्धित प्रश्न करता था तो वे केवल मौन हो जाते थे | पालि साहित्य में ऐसे दस प्रश्नों का वर्णन मिलता है जिनका समाधान महात्मा बुद्ध ने व्यर्थ समझा और वे मौन हो जाते थे | पालि साहित्य में इन प्रश्नों को ‘अव्याकतानि’ या ‘अव्याकृत प्रश्नानि’ (Indeterminaable Questions) कहा गया है |

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ऐसे 10 दार्शनिक प्रश्न, जिनके सम्बन्ध में बुद्ध मौन हो जाते थें, इस प्रकार है –

  1. क्या यह संसार शाश्वत (eternal) है ?
  2. अथवा यह संसार अशाश्वत (non-eternal) है ?
  3. अथवा यह संसार ससीम (finite) है ?
  4. अथवा यह संसार असीम (infinite) है ?
  5. क्या आत्मा व शरीर एक है ?
  6. क्या आत्मा व शरीर भिन्न है ?
  7. क्या मृत्यु के पश्चात् तथागत का पुर्नजन्म होता है ?
  8. क्या मृत्यु के पश्चात् तथागत का पुनर्जन्म नही होता है ?
  9. क्या तथागत का पुर्नजन्म होना और न होना दोनों ही सत्य है ?
  10. क्या तथागत का पुर्नजन्म होना और न होना दोनों ही असत्य है ?

ऊपर दिए गये प्रश्न जब गौतम बुद्ध से पूछा जाता तो वें मौन हो जाते थें | इन 10 प्रश्नों (अव्याकृत प्रश्नानि) में से पहले 4 प्रश्न संसार से सम्बन्धित हैं, उसके बाद के 2 प्रश्नों का सम्बन्ध आत्मा से हैं और अंतिम 4 प्रश्न तथागत2 से सम्बन्धित हैं |

उपरोक्त तत्त्वशास्त्रीय प्रश्नों के विषय में बुद्ध के मौन धारण करने पर लोगों ने कई अर्थ लगाये गयें, जिनमे कुछ इस प्रकार है –

1. कुछ लोगों ने बुद्ध को रहस्यवादी माना और कहा कि उनका रहस्यवाद ही तत्त्वशास्त्रीय प्रश्नों के विषय में उन्हें मौन रहने को प्रेरित करता था |

2. कुछ ने बुद्ध को संशयवादी माना है | उनके अनुसार बुद्ध आत्मा, परमात्मा, जगत् इत्यादि के अस्तित्व में संदेह करते थें | अतः वें सदैव इनसे संबंधित प्रश्न पूछे जाने पर मौन धारण कर लेते थें |

3. कुछ के अनुसार बुद्ध प्रत्यक्षवादी होने के कारण आत्मा, ईश्वर, स्वर्ग, पुनर्जन्म, विश्व, इत्यादि अदृश्य सत्ताओं में विश्वास नही रखते है, इसीलिए वें इन विषय में प्रश्न पूछे जाने पर मौन हो जाते थें |

4. कुछ ऐसे भी लोग है जो बुद्ध को इन तत्त्वशास्त्रीय प्रश्नों के विषय में अनभिज्ञ मानते है | उनके अनुसार बुद्ध को इन विषयों का ज्ञान नही था, इसीलिए वें इनसे सम्बन्धित प्रश्न पूछे जाने पर मौन हो जाते थें |

बुद्ध के मौनभाव के उपर्युक्त समस्त अर्थ सर्वथा असत्य व दोषपूर्ण है | सम्भवतः वे इसलिए मौन हो जाते होंगे कि प्रथम, इन प्रश्नों से सम्बन्धित उनका उत्तर केवल उनके जैसा निर्वाण-प्राप्त व्यक्ति ही समझ सकता था न की कोई साधारण व्यक्ति | द्वितीय इन प्रश्नों के उत्तर से किसी को कोई लाभ नही होगा अर्थात् इनका सम्बन्ध जन-कल्याण से नही था |3

बुद्ध की शिक्षाएं सैद्धांतिक से ज्यादा व्यावहारिक है | उनकी शिक्षाओं का सर्वप्रमुख उद्देश्य मानव को दुःखों से मुक्ति दिलाना था, न कि उन्हें दार्शनिक तत्वों (आत्मा, ईश्वर, जगत्, मरणोत्तर जीवन) के विषयों में उलझाना | बुद्ध को तत्वशास्त्रविरोधी (anti-metaphysical) भी कहा जाता है, क्योकि वें तत्वशास्त्रीय समस्याओं से तटस्थ (indifferent) रहा करते थें |

वास्तव में बुद्ध ने सैद्धांतिक चिन्तन पर जोर न देकर व्यावहारिक चिन्तन को ही मूल्यवान माना है |4 यह कहना गलत न होगा कि बुद्ध दार्शनिक कम और समाज सुधारक ज्यादा थें | उन्होंने लोगों को केवल उसका उपदेश दिया, जो उनके मतानुसार जीवन की मुख्य बात, दुःख, से बचने हेतु आवश्यक है | दुःखों से छुटकारा उनकी एकमात्र चिंता थी तथा तत्त्वमीमांसा की समस्याओं को सुलझाने का न उनका मन था और न ही उन्हें इसका समय मिला |5 बुद्ध का उपदेश है कि “मैंने केवल यह सिखाया है तथा यही मैं अब भी सिखाता हूँ कि दुःख है और दुःख के नाश का उपाय भी है |”6

यही कारण है कि जब भी कभी बुद्ध से कोई दार्शनिक प्रश्न पूछा जाता तो वें मौन हो जाते थें |

संदर्भ व टिप्पणी

1. ब्रह्मजालसुत्त और सामञ्ञफलसुत्त

2. बौद्ध दर्शन में तथागत निर्वाण को अंगीकार करने वाले महापुरुष को कहा जाता है |

3. बुद्ध कहते है कि “भिक्षुओं ! जो कोई यह कहे कि मैं तबतक तथागत के पास ब्रह्मचर्यवास नही करूँगा जब तक तथागत लोक व आत्मा सम्बन्धी अव्याक्त प्रश्नों का उत्तर न दे दें, तो भिक्षुओं, वह ब्रह्मचर्यवास किये बिना ही मर जायेगा | जैसे कोई व्यक्ति विष से युक्त बाण से आहत हो गया हो और जब उसके मित्र वैद्य को लाये, तब वह व्यक्ति कहे – मैं तब तक इस बाण को नही निकालने दूँगा जब तक मुझे यह पता नही लग जाये कि किस पुरुष ने मुझे बेंधा है, वह किस जाति का है ? उसका नाम और गोत्र क्या है ? कहाँ रहता है ? आदि, तो भिक्षुओं, ये बातें तो अज्ञात ही रह जावेंगी और वह व्यक्ति मर जायेगा | भिक्षुओं ! जो इस तरह की दृष्टियाँ रखता है, मेरी आत्मा है, मेरी आत्मा नही है, मेरी आत्मा नित्य है, ध्रुव है, शाश्वत है, इत्यादि, तो भिक्षुओं ! इसी को दृष्टियों का जंगल, दृष्टियों का जाल, दृष्टियों का बंधन कहते है | इनमें बंधा मानव दुःख से मुक्त नही हो सकता | (मज्झिम-निकाय)

4. बुद्ध कहते है – भिक्षुओं ! कुछ श्रवण एवं ब्राह्मण शाश्वतवाद को मानते है, कुछ उच्छेदवाद को मानते है, कुछ अंशतः दोनों को मानते हैं | भिक्षुओं ! दृष्टियों के जाल में एवं बुद्धि की कोटियों में फँसने की वजह से ये लोग इन मतों को मानते हैं | भिक्षुओं ! तथागत इन सबको जानते है तथा इनसे भी अधिक जानते है | परन्तु तथागत सभी कुछ जानते हुए भी, जानने का अभिमान नही करते | इन बुद्धि-कोटियों में न फँसने की वजह से तथागत निर्वाण का साक्षात्कार करते है | (दीघनिकाय, ब्रह्मजालसुत्त)

5. एक बार जब भगवान बुद्ध एक शिशपा-वृक्ष के नीचे बैठे हुए थे, तब उन्होंने उसकी कुछ पत्तियां अपने हाथ में ली और अपने पास बैठे हुए अपने शिष्यों से पूछा कि शिशपा के समस्त पत्ते वही हैं अथवा वृक्ष पर कुछ और भी हैं ? जब शिष्यों ने उत्तर दिया निस्सन्देह और भी हैं, तब भगवान बुद्ध ने कहा, “इतनी ही असन्दिग्ध यह बात भी है कि जितना मैंने तुम्हें बताया है उससे भी अधिक मुझे ज्ञात है ।” उन्होंने आगे कहा कि “शिष्यो, मैंने तुम्हें वह क्यों नहीं बताया ? क्योंकि उससे तुम्हें कोई लाभ नहीं होगा, वह अर्हत्व की प्रगति में सहायक नहीं होगा, क्योंकि उससे पार्थिव बातों से विमुख होने में मदद नहीं मिलेगी, समस्त इच्छाओं को वश में करने में, अनित्य के उपशमन में, शान्ति को प्राप्त करने में, ज्ञान की प्राप्ति में, प्रकाश की प्राप्ति में, निर्वाण-लाभ में मदद नहीं मिलेगी, अतः वह सब मैंने तुम्हें नहीं बताया ।”

6. Mrs. Rhys Davids – Buddhism.