सांख्य दर्शन का सत्कार्यवाद

sankhya darshan ka satkaryavada in hindi

सांख्य दर्शन का सत्कार्यवाद (sankhya darshan ka satkaryavada in hindi) Theory of Causation of Sankhya Philosophy in Hindi | सांख्य दर्शन में कार्य-कारण सिद्धांत (theory of causatoin) को सत्यकार्यवाद कहा जाता है | सत्कार्यवाद सांख्य दर्शन की आधारशिला है | क्योकि सांख्य के अनुसार यह सम्पूर्ण सृष्टि अस्तित्व में आने से पूर्व प्रकृति में अव्यक्त रूप से विद्यमान थी |

प्रत्येक कार्य-कारण सिद्धांत के सामने एक प्रश्न आता है – क्या कार्य, अपनी उत्पत्ति के पूर्व भी, अपने कारण में विद्यमान रहता है अथवा नही ? जो यह मानते है उन्हें सत्कार्यवादी और जो यह नही मानते उन्हें असत्कार्यवादी कहा जाता है |

सत्कार्यवाद के अनुसार कार्य अपनी उत्पत्ति के पूर्व भी अपने कारण में विद्यमान रहता है |

ये भी देखें – सांख्य दर्शन का परिचय | सांख्य दर्शन में विकासवाद का सिद्धांत

सत्कार्यवाद शब्द सत(existence)+कार्य (effect)+वाद(theory) से बना है | अत: सत्कार्यवाद उस सिद्धांत का नाम हुआ जो उत्पत्ति के पूर्व कारण में कार्य की सत्ता स्वीकार करता है |

सांख्य दर्शन का सत्कार्यवाद न्याय-वैशेषिक दर्शन के कारण-सिद्धांत का विरोध करता है | न्याय-वैशेषिक दर्शन का कारण-सिद्धांत असत्कार्यवाद है, जिसके अनुसार कार्य, अपनी उत्पत्ति के पूर्व, ‘असत्’ है अर्थात् अपने कारण में विद्यमान नही है | कार्य की सत्ता उसकी उत्पत्ति से ही आरम्भ होती है, इस मान्यता के कारण असत्कार्यवाद को ‘आरम्भवाद’ भी कहते है |

सत्कार्यवाद के रूप

सत्कार्यवाद के दो रूप है – परिणामवाद और विवर्तवाद |

परिणामवाद

परिणामवाद के अनुसार कार्य कारण का वास्तविक रूपान्तर है | जैसे दही दूध का वास्तविक रुपान्तरण है | इसके अनुसार जब कारण से कार्य का निर्माण होता है तो कार्य में कारण का वास्तविक रुपान्तरण हो जाता है | कार्य कारण का बदला हुआ रूप होता है | जैसे जब मिट्टी से घड़े का निर्माण होता है तब मिट्टी का घड़े में पूर्ण परिवर्तन होता है | परिणामवादियों के अनुसार कार्य कारण का परिणाम होता है |

सांख्य दर्शन, योग दर्शन, और रामानुज का विशिष्टाद्वैतवाद परिणामवाद के समर्थक है |

सांख्य दर्शन सम्पूर्ण विश्व को प्रकृति का परिणाम मानता है इसलिए सांख्य के मत को प्रकृति परिणामवाद कहा जाता है जबकि रामानुज सम्पूर्ण विश्व को ब्रह्म का परिणाम मानते है इसलिए उनके मत को ब्रह्म परिणामवाद कहा जाता है |

विवर्तवाद

विवर्तवाद के अनुसार कार्य कारण का वास्तविक रूपान्तर नही है | कारण अपने कार्य में केवल परिणत होता दिखाई देता है | इस रुपान्तरण का हमे केवल आभास मिलता है | वास्तव में कारण अपने कार्य में परिणत अथवा रुपान्तरित नही होता | कार्य कारण का आभासमात्र है, विवर्तमात्र है | जैसे रस्सी में सांप का रूपान्तर नही होता परन्तु भ्रमवश रात में हमे रस्सी साँप के रूप में दिखाई देती है |

शंकराचार्य का अद्वेतवाद विवर्तवाद का समर्थक है | शंकराचार्य के अनुसार विश्व का कारण ब्रह्म है | परन्तु ब्रह्म का रुपान्तरण विश्व के रूप में नही होता है | ब्रह्म सत्य है किन्तु विश्व असत्य है | शंकराचार्य ने विश्व को ब्रह्म का विवर्त माना है | शंकराचार्य के इस मत को ब्रह्म विवर्तवाद कहा जाता है |

इसी प्रकार महायान बौद्द दर्शन का माध्यमिक सम्प्रदाय शून्यता-विवर्तवाद का और योगाचार सम्प्रदाय विज्ञान-विवर्तवाद का समर्थन करता है |

सत्कार्यवाद की महत्ता

1. सांख्य सत्कार्यवाद के बल पर ही प्रकृति की सत्ता को स्थापित करता है | प्रकृति की सत्ता सिद्ध करने हेतु सांख्य अपने सभी तर्कों में सत्कार्यवाद का प्रयोग करता है |

2. सत्कार्यवाद के आभाव में विकासवाद के सिद्धांत को समझना अत्यधिक कठिन है | 

ये भी देखें – दर्शनशास्त्र विषय के सभी लेख | इतिहास विषय के सभी लेख | शिक्षाशास्त्र के सभी लेख | अर्थशास्त्र के सभी लेख | समाजशास्त्र के सभी लेख