रजिया सुल्तान का इतिहास

Razia Sultan History in Hindi

रजिया सुल्तान का इतिहास (Razia Sultan History in Hindi) : रजिया (1236-40) History of Razia Sultan in Hindi : इल्तुतमिश ने ग्वालियर अभियान (वर्ष 1231) पर जाते समय राजधानी का उत्तरदायित्व अपनी योग्य पुत्री रजिया को सौपा था | रजिया ने इस सुनहरे अवसर का लाभ उठाया तथा बड़ी कुशलता से राज-काज चलाया | इल्तुतमिश जब वापस आया तो परिणाम संतोषजनक पाया | इससे खुश होकर सुल्तान ने रजिया को अपनी उत्तराधिकारिणी नियुक्त करने की घोषणा का प्रारूप तैयार करने का आदेश दिया |

यद्यपि मुस्लिम राज्यों में यह कोई नई बात नही थी | प्राचीन मिस्र और ईरान में स्त्रियों ने रानी की हैसियत से शासन किया था तथा नाबालिक उत्तराधिकारियों की संरक्षिकाओ का दायित्व भी निभाया था | लेकिन वयस्क पुत्रों को नजरंदाज करके एक पुत्री को उत्तराधिकारी घोषित करना एक नया और साहसिक कदम था |

जैसी आशंका थी इल्तुतमिश के एस निर्णय पर आपत्ति की गयी | मिनहाज लिखता है कि “राज्य के कुछ सेवकों ने, जिनका सुल्तान से घनिष्ठ सम्बन्ध था, निवेदन किया कि जब सुल्तान के बड़े-बड़े योग्य पुत्र है तो एक स्त्री को मुस्लिम गद्दी देने में क्या बुद्धिमत्ता है और उससे क्या लाभ होगा | उन्होंने यह भी निवेदन किया कि उनकी चिंता दूर की जाये क्योकि जो प्रस्ताव किया जा रहा है वह अनुचित प्रतीत होता है |”

इस पर सुल्तान तर्क देता है कि उसके पुत्रों में सुल्तान के गुण नही है तथा वे तुर्की राज्य का शासन चलाने के योग्य नही है | वह दृढ़तापूर्वक कहता है कि उसकी मृत्यु के बाद सबको पता चल जायेगा कि शासन-संचालन हेतु रजिया की अपेक्षा और कोई अधिक योग्य नही है |

स्वाभाविक है कि सुल्तान के निर्णय को नकारने का साहस किसी में भी नही था | इस निर्णय के साथ ही रजिया का नाम चांदी के टंके पर लिखवाया गया | किन्तु संभवता अपनी मृत्यु के पूर्व इल्तुतमिश ने अपना निर्णय बदल दिया था तथा दिल्ली का सिंहासन रुकुनुद्दीन फिरोज को प्राप्त हुआ |

रजिया एक कूटनीतिज्ञ और दूरदर्शी महिला थी | तत्कालीन परिस्थितियों को देखते हुए उसने फिरोज के राज्यारोहण का कोई विरोध नही किया, लेकिन वह सही मौके की तलाश में लग गयी | जब फिरोज विद्रोहियों का दमन करने दिल्ली से बाहर गया तब रजिया को सिंहासन प्राप्त करने का सुनहरा अवसर मिल गया |

चूँकि फिरोज का व्यवहार सुल्तानों जैसा नही था | अतः वह अपनी प्रजा में ज्यादा लोकप्रिय नही था | इसीलिए रजिया ने सिंहासन पर अधिकार करने के लिए दिल्ली की जनता का विश्वास जितने तथा सहयोग प्राप्त करने का प्रयास किया |

वह शुक्रवार की नमाज के वक्त लाल वस्त्रों में जामा मस्जिद गई तथा अपने प्रभावपूर्ण भाषण से उपस्थित जन-समूह को अपने पक्ष में कर लिया | उसने राजगद्दी पर दावा प्रस्तुत करते हुए लोगो को याद दिलाया कि उसके पिता ने उसे अपना उत्तराधिकारी चुना था | साथ ही उसने वादा किया कि यदि वह कुशलतापूर्वक शासन संचालन में विफल हुई तो वह स्वतः ही सिंहासन त्याग देगी तथा मृत्युदण्ड का भी वरण करने को तैयार रहेगी |

रजिया अपने मकसद में सफल रही | उत्तेजित जनसमूह ने शाही महल पर आक्रमण कर दिया तथा राजमाता शाह तुर्कान को कैद कर लिया गया | दिल्ली की जनता में रजिया का प्रबल समर्थन देखकर सैन्य अधिकारी और अमीर भी रजिया के पक्ष में हो गये तथा उसे दिल्ली की सुल्तान घोषित कर दिया | जब तक फिरोज विद्रोह का समाचार सुनकर वापस दिल्ली लौटता तब तक रजिया का राज्यारोहण हो चुका था | फिरोज को बंदी बना लिया गया तथा कारावास में ही उसकी मृत्यु हो गयी |

रजिया का सिंहासनारोहण दिल्ली सल्तनत के इतिहास में महत्वपूर्ण स्थान रखता है | रजिया दिल्ली की पहली और अंतिम महिला सुल्तान थी तथा पहली बार दिल्ली की साधारण जनता ने राज्य के उत्तराधिकार के प्रश्न पर प्रत्यक्ष रूप से स्वयं निर्णय लिया |

रजिया सुल्तान की प्रारंभिक कठिनाइयां तथा उन पर विजय

रजिया के राज्यारोहण में मुख्य भूमिका जनता द्वारा निभाई जाने के कारण प्रांतीय सूबेदार असंतुष्ट हो गए | प्रांतीय सूबेदार स्वयं को सुल्तान के चयन में अत्यधिक महत्वपूर्ण इकाई मानते थे और इस कार्य में अपनी उपेक्षा किए जाने के कारण वे आरम्भ से ही रजिया के विरोधी हो गए |

इसके अलावा वजीर निजाम-उल-मुल्क जुनैदी भी राज्य के श्रेष्ठतम परामर्शदाता के रूप में अपनी उपेक्षा महसूस कर रहा था | विरोध का आरंभ वजीर जुनैदी से शुरू हुआ | उसने रजिया को सुल्तान मानने से इनकार कर दिया |

उधर मुल्तान, हांसी, लाहौर और बदायूं के विद्रोही सूबेदार, जो रजिया के राज्यारोहण में अपनी उपेक्षा से नाराज थें, दिल्ली की ओर बढ़ते आ रहे थे | वजीर जुनैदी भी उनसे जा मिला और इनकी संयुक्त सेनाओं ने दिल्ली के निकट डेरा डाला |

रजिया भी विद्रोहियों के दमन के लिए तैयार थी | उसने राजधानी से बाहर निकलकर यमुना नदी के किनारे अपना शिविर लगाया | लेकिन रजिया के पास इतनी सेना नहीं थी कि वह विद्रोहियों की सम्मिलित विशाल सेना के साथ खुला युद्ध कर सकें |

अतः छुटपुट लड़ाई के बाद उसने कूटनीति का सहारा लिया | विद्रोही सूबेदारों की आपसी ईर्ष्या और महत्वाकांक्षा का लाभ उठाकर उसने इनमें फूट डालने का सफल प्रयास किया | उसने बदायूं के सूबेदार मलिक इज्जुद्दीन मुहम्मद सालार और मुल्तान के सूबेदार मलिक इज्जुद्दीन कबीर खां ऐयाज को अपनी ओर मिला लिया |

उन्होंने वजीर जुनैदी और अन्य विद्रोही सूबेदारों को पकडवाने का वादा किया | रजिया ने इस गुप्त समझौते का समाचार दूसरे विद्रोहियों में फैला दिया, जिससे विद्रोहियों की एकता टूट गई तथा वे भाग खड़े हुए |

शाही सेना ने मलिक सालार और कबीर खां को छोड़कर शेष तीनों विद्रोहियों का पीछा किया | हांसी के सूबेदार मलिक सैफुद्दीन कोची और उसके भाई फखरुद्दीन को पकड़कर कारावास में डाल दिया गया, जहां उसकी हत्या कर दी गई |

लाहौर के सूबेदार मलिक अलाउद्दीन जानी को भी पकड़कर मौत के घाट उतार दिया गया | वजीर जुनैदी सिरमूर पहाड़ियों (Sirmur Hills) में भाग गया जहाँ उसकी मृत्यु हो गई | विद्रोही सूबेदारों के सम्मिलित गुट पर रजिया की इस विजय ने उसकी प्रतिष्ठा बढ़ा दी | उसकी स्थिति और अधिक सुदृढ़ हो गई |

रजिया की असंतुष्ट सूबेदारों पर यह विजय दिल्ली सल्तनत के इतिहास में एक महत्वपूर्ण स्थान रखती है | क्योकि इस विजय ने सुल्तान की नियुक्ति में प्रांतीय सूबेदारों द्वारा स्वयं को अत्यधिक महत्वपूर्ण इकाई मानने की परंपरा समाप्त कर दी |

इस विजय के पश्चात रजिया के मान-सम्मान, शक्ति और प्रतिष्ठा में अत्यधिक वृद्धि हो गयी | सभी प्रांतीय सूबेदार उससे इतना भयभीत हो गए कि उन्होंने रजिया का आधिपत्य स्वीकार करते हुए वार्षिक-कर भेजने का वायदा किया |

रजिया के शासन का सुदृढ़ीकरण

सिंहासन पर अपनी पकड़ मजबूत कर लेने के पश्चात् रजिया ने शासन के सुदृढ़ीकरण पर ध्यान दिया | अपने राज्य के उच्च पदों का पुनः वितरण किया | शासक की शक्ति को सुदृढ़ करने तथा भविष्य में षडयंत्रकारियों का दमन करने के लिए उसने अपने विश्वासपात्रों को उच्च पदों पर नियुक्त किया |

उसका उद्देश्य अपने विश्वासपात्रों और स्वामीभक्तों का एक ऐसे वर्ग को जन्म देना था जो शक्तिशाली तुर्की सरदारों के शासन पर अत्यधिक प्रभाव को क्षीण कर सकें | तुर्की सरदारों के शासन पर एकाधिकार को समाप्त करने के लिए उसने योग्य गैर-तुर्की को भी उच्च पदों पर नियुक्त करना आरंभ किया |

अनेक प्रांतीय सूबेदारों का स्थानांतरण करके तथा महत्वपूर्ण इक्ताओं पर नये अधिकारियों की नियुक्ति करके उसने इन पर अपनी पकड़ मजबूत बनाई |

रजिया ने राज्य के सबसे शक्तिशाली वजीर के पद पर अपने विश्वासपात्र ख्वाजा मुइज्जबुद्दीन को नियुक्त किया जो पहले नायब-वजीर के पद पर था | सेनाध्यक्ष का पद मलिक सैफुद्दीन ऐबक बहतू को देकर उसे कतलग खां की उपाधि से सम्मानित किया |

लेकिन शीघ्र ही उसकी मृत्यु के बाद यह पद मलिक कुतुबुद्दीन हसन गौरी को मिला | विद्रोही सूबेदारों को धोखा देने के लिए पुरस्कार के रुप में मलिक इज्जुद्दीन कबीर खां ऐयाज को लाहौर की सूबेदारी मिली |

मलिक-ए-कबीर इख्तयारुद्दीन एतगीन को ‘अमीर-ए-हाजिब’ का पद मिला तथा इख्तियारुद्दीन अल्तूनिया को भटिंडा का सूबेदार नियुक्त किया गया |

मिनहाज रजिया के इन कार्यों की प्रशंसा करते हुए कहता है – “देश शांति का उपभोग करने लगा और राज्य शक्ति प्रकाश में आ गई | लखनौती से देवल तक के सारे शाहजादों और सरदारों ने रजिया के प्रति अधीनता प्रकट की |”

रजिया ने एक सुव्यवस्थित शासन-व्यवस्था की स्थापना की | उसने ताज की शक्ति को निरंकुश बनाने का प्रयास किया | प्रशासन के साथ सीधा संपर्क स्थापित करने के लिए उसने महिला पोशाक तथा पर्दा त्याग कर पुरुषों के समान कुबा (कोट) तथा कुलाह (टोपी) धारण किया | वह खुले दरबार में शासनकार्य का संपादन करती थी |

वह सार्वजनिक रूप से हाथी की सवारी करती थी, जिससे उसकी प्रजा उसे प्रत्यक्ष रूप से देख सकें तथा उसकी लोकप्रियता बनी रहे | मिनहाज लिखता है – “जब वह हाथी पर सवार होती थी तो सब लोगों को स्पष्ट दिखाई दिया करती थी |”

रजिया स्वयं सैन्य संचालन करती तथा युद्ध में भाग लेती थी | उसने अपनी योग्यता, न्यायशीलता, कार्य-कुशलता तथा व्यक्तित्व से सभी को प्रभावित किया तथा अल्प समय में ही शासन का सुदृढ़ीकरण कर दिया था |

राजपूतों से संघर्ष

इल्तुतमिश की मृत्यु के बाद राजपूतों ने रणथम्भौर के दुर्ग पर पुनः अधिकार कर लिया था | रजिया ने राज्य के नये सेनाध्यक्ष मलिक कुतुबुद्दीन हसन गौरी पर दुर्ग की पुनर्विजय का दायित्व सौंपा |

हसन गौरी दुर्ग पर अधिकार करने में सफल रहा | उसके आदर्श पर रणथम्भौर के दुर्ग को पूर्णतया नष्ट कर दिया गया, जिससे राजपूत इस पर पुनः आधिपत्य स्थापित ना कर सकें |

मंगोलों का खतरा

सन् 1238 में उसने कूटनीति द्वारा मंगोलों के खतरे से सल्तनत को बचाया | ख्वारज्म के राज्यपाल मलिक हसन कार्लिग़ के प्रदेशों पर मंगोलों ने अधिकार कर लिया था |

मंगोलों के विरुद्ध उसने रजिया से सैनिक सहायता मांगने हेतु अपने पुत्र को दिल्ली भेजा | रजिया ने उसके प्रति सहानुभूति प्रकट की किंतु मंगोलों के विरुद्ध किसी भी प्रकार की सहायता देने से शिष्टापूर्वक इंकार कर दिया |

इस प्रकार अपने पिता की भांति ही तटस्थ रहकर रजिया ने दिल्ली सल्तनत को क्रूर मंगोलों के संभावित खतरे से बचाया |

ये भी देखें – रजिया सुल्तान का पतन