रजिया सुल्तान का पतन

Rajiya Sultan Ka Patan

रजिया सुल्तान का पतन (Razia Sultan Ka Patan) Fall of Razia Sultan in Hindi : विद्यादूत में मध्यकालीन इतिहास के अंतर्गत पिछले लेख में हमने रजिया का सम्पूर्ण इतिहास पर चर्चा की थी | इस लेख में हम उसके आगे रजिया सुल्तान के पतन पर चर्चा करेंगें | रजिया के जिन कार्यों से सुल्तान के पद की प्रतिष्ठा बढ़ी, वही कार्य उसके पतन में सहायक बने |

एक राजवंशीय तुर्क महिला द्वारा बेपर्दा होकर परंपरागत सामाजिक मानदंडों को नकारते हुए शासन करना, रूढ़िवादी मुस्लिम तबके, विशेष रूप से उस काल के धर्मान्ध मुल्लओं, को पसंद आया | उनकी दृष्टि से यह एक गंभीर अपराध था |

इसके साथ ही अहंकारी तुर्की सरदार एक महिला के आगे झुकने को अपनी प्रतिष्ठा के प्रतिकूल समझते थे | वे रजिया द्वारा दरबार में उनके प्रभाव को कम कर देने से भी अत्यधिक असंतुष्ट थें |

बात उस समय और बढ़ गई जब रजिया ने अपने विश्वासपात्र जमालुद्दीन याकूत, जोकि एक गैर तुर्क अबीसीनियाई दस था, को अमीर-ए-आखुर (शाही अस्तबल का अध्यक्ष) पद पर नियुक्त कर दिया |

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अमीर-ए-आखुर राज्य का एक महत्वपूर्ण था तथा अभी तक इस पद पर सिर्फ तुर्कों का ही एकाधिकार था | रजिया ने ऐसा सम्भवतः राज्य में तुर्कों का एकाधिकार तोड़ने के लिए किया था |

रुढ़िवादी मुल्लाओं और तुर्की सरदारों ने उस पर नारी सुलभशील का त्याग करने और याकूत पर जरूरत से ज्यादा मेहरबान होने का आरोप लगाया |

इन सब कारणों से रजिया के विरुद्ध षड्यंत्र आरंभ हो गया | अनेक दरबारी और प्रांतीय सूबेदार, जो रजिया की निरंकुशता के विरोधी थें, इस षड्यंत्र में शामिल हो गए | वे सिर्फ रजिया को अपदस्थ ही नहीं करना चाहते थे बल्कि सुल्तान की शक्ति को स्थायी रूप से सीमित भी करना चाहते थे, जिससे भावी सुल्तान पर उनका प्रभाव दृढ़ बना रहे हैं |

षड्यंत्रकारियों का प्रमुख नेता इख्तयारुद्दीन एतगीन था, जो पहले बदायूं का सूबेदार था, तथा उस समय रजिया की कृपा से “अमीर-ए-हाजिब” के पद पर नियुक्त था | अमीर-ए-हाजिब का सुल्तान से निकटता का संबंध होता था |

अतः एतगीन की स्थिति बहुत अनुकूल थी | एतगीन का मित्र मलिक अल्तुनिया, जो भटिण्डा का सूबेदार था, तथा कबीर खां ऐयाज, जो लाहौर का सूबेदार था, अन्य प्रमुख षड्यंत्रकारी थें |

षड्यंत्रकारी यह अच्छी तरह से जानते थे कि राजधानी में रजिया का अहित करना असंभव है | रजिया को दिल्ली की जनता ने सिंहासन पर बैठाया था, अतः वह अपनी प्रजा में अत्यधिक लोकप्रिय थी, साथ ही शाही सैनिक भी अपने सुल्तान के प्रति पूर्णतया निष्ठावान और वफादार थे |

इसके अलावा षड्यंत्रकारियों के समक्ष दो उदाहरण थे जिसमें रजिया ने षड्यंत्रकारियों का दमन किया था, पहला, नूरतुर्क नामक व्यक्ति ने दिल्ली में बसे करमती और इस्लाम विरोधी लोगों को अपनी ओर मिलाकर षड्यंत्र द्वारा शक्ति प्राप्त करनी चाही लेकिन विद्रोह का दमन कर उसे और उसके समर्थकों को मौत के घाट उतार दिया गया |

दूसरा, ग्वालियर के सूबेदार जियाउद्दीन जुनैदी पर विद्रोह की तैयारी करने का संदेह था | 1238 में उसे दिल्ली बुलाया गया | विद्रोही होने की शंका-मात्र से ही गुप्त रूप से उसकी हत्या कर दी गयी तथा दिल्ली आने के बाद उसका कुछ अता-पता ना मिला |

इन सब कारणों से षड्यंत्रकारियों के लिए आवश्यक था कि रजिया को राजधानी से बाहर लाकर समाप्त किया जाए | योजना के अनुसार 1240 के आरंभ में लाहौर के सूबेदार कबीर खां ने विद्रोह का झंडा खड़ा किया |

उसने रजिया पर याकूत, जिसे तुर्क घृणा की नजर से देखते थे, से प्रेम करने का आरोप लगाया | विद्रोह की सूचना मिलते ही तुरंत रजिया ने सेना सहित लाहौर को प्रस्थान किया |

कबीर खां रजिया के सामने टिक ना सका और पराजित होकर पश्चिम की ओर भाग गया | लेकिन चेनाव नदी पर मंगोलों की उपस्थिति के कारण उसे वही रुकना पड़ा |

जब शाही सेना पास आ पहुंची तब उसने बिना किसी शर्त के आत्मसमर्पण कर दिया | कबीर खां के क्षमा-याचना करने पर रजिया ने उसे स्वतंत्र कर दिया |

लेकिन उससे लाहौर का प्रांत ले लिया तथा इसके बदले उसे मुल्तान की सूबेदारी जा रही सौंपी गई | रजिया विजयी होकर राजधानी लौट आई | उधर गजनी के भगोड़े सरदार सैफुद्दीन द्वारा मुल्तान पर आक्रमण करने से कबीर खां वहां से भाग निकला |

इस प्रकार कबीर खां पूर्णतया अपदस्थ हो गया | यद्यपि रजिया ने बड़ी कुशलता के साथ तेजी से कबीर खां के विद्रोह को दबा दिया | लेकिन उसकी राजधानी वापसी के कुछ दिनों बाद ही सशक्त व वास्तविक विद्रोह भटिण्डा के सूबेदार अल्तूनिया ने किया |

इस बार भी रजिया ने तत्परता दिखाई तथा रमजान के महीने की गर्मी और थकान की परवाह न करते हुए बिना समय गवाएं तत्काल भटिण्डा की ओर प्रस्थान किया |

लेकिन षड्यंत्रकारी भी इस बार अपनी सफलता के प्रति वचनबद्ध थें | रजिया के भटिण्डा पहुंचने पर उसके खेमे में विद्रोह भड़क उठा | विद्रोही तुर्की सरदारों ने जमालुद्दीन याकूत को मौत के घाट उतार दिया | विद्रोही सरदार अल्तुनिया से मिल गए तथा रजिया कैद कर ली गयी |

रजिया को अल्तूनिया के संरक्षण में देकर विद्रोही सरदारों ने राजधानी की ओर प्रस्थान किया | रजिया की कैद की सूचना मिलते ही दिल्ली में मौजूद षड्यंत्रकारियों ने अपनी पूर्व योजना के अनुसार इल्तुतमिश के तीसरे पुत्र बहराम शाह को सिंहासन पर बैठा दिया |

एतगीन को नवगठित “नायब-ए-ममलिकात” (राज्य का नायब) नामक एक महत्वपूर्ण और शक्तिशाली पद प्राप्त हुआ | लेकिन जल्दी ही नया सुल्तान एतगीन के अनावश्यक हस्तक्षेप से असंतुष्ट हो गया तथा उसकी हत्या कर दी |

एतगीन की हत्या से उसका मित्र अल्तुनिया नये सुल्तान से भयभीत हो गया | बुद्धिमान रजिया ने अवसर का लाभ उठाते हुए अल्तुनिया से विवाह कर लिया (अगस्त 1240) |

अब रजिया और अल्तुनिया दोनों का लक्ष्य एक ही था | राजपूतों, खोखरों और जाटों को सम्मिलित कर एक सेना तैयार करके दोनों ने राजधानी की ओर प्रस्थान किया |

लेकिन दिल्ली की शक्तिशाली शाही सेना के समक्ष किराये की सेना टिक न सकी | पराजित होकर रजिया और अल्तुनिया भटिंडा भाग गये | रास्ते में कैथल के पास हतोत्साहित उनकी सेना ने उनका साथ छोड़ दिया |

अक्टूबर 1240 में जब वें कैथल में एक पेड़ के नीचे आराम कर रहे थें तब कुछ हिन्दू डाकुओं ने उनको पकड़कर मार डाला |

इस प्रकार दिल्ली सल्तनत की पहली और अंतिम महिला सुल्तान घृणित व दुर्भाग्यपूर्ण रूप से मौत की नींद सुला दी गयी | उसने साढ़े तीन वर्ष का अल्प शासन किया |

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