मार्ले मिन्टो सुधार या भारतीय परिषद अधिनियम 1909

Marley Minto Reforms in Hindi

मार्ले मिन्टो सुधार (Marley Minto Reforms in Hindi) या भारतीय परिषद अधिनियम 1909 (Indian Councils Act of 1909 in Hindi) : लार्ड कर्जन के बाद लार्ड मिन्टो भारत का नया वायसराय बना तथा इसके कुछ ही समय पश्चात लन्दन में जॉन मार्ले भारत विषयक सचिव नियुक्त हुआ | इस समय पूरे देश में राजनीतिक अशांति धीरे-धीरे बढ़ती जा रही थी | इस राजनीतिक अशान्ति और बढ़ते हुए उग्रवाद व आतंकवाद पर अवरोध लगाने के लिए मार्ले और मिन्टो ने विधान परिषदों में सुधार हेतु एक योजना तैयार करने का फैसला लिया |

वर्ष 1911 में ब्रिटिश संसद ने जिस संवैधानिक सुधार को पारित किया उसे औपचारिक रूप से भारतीय परिषद अधिनियम कहा गया और यह मार्ले मिन्टो सुधार के नाम से ज्यादा प्रसिद्ध हुआ | इस योजना के संकल्पन व निर्माण में गोपालकृष्ण गोखले के सलाह से भी लाभ लिया गया | मार्ले मिन्टो सुधार या भारतीय परिषद अधिनियम 1909 ने नरमपंथियों व गरमपंथियों दोनों को ही निराश किया |

मार्ले मिन्टो सुधार का लक्ष्य 1892 के अधिनयम के दोषों को दूर करना और भारत की राजनीति में बढ़ते हुए क्रांतिकारी राष्ट्रवाद से पैदा हुई परिस्थिति का सामना करना था |

मार्ले मिन्टो सुधार या भारतीय परिषद अधिनियम 1909 की मुख्य विशेषताएं निम्नलिखित थी –

1. 1892 के भारतीय परिषद अधिनियम ने जिस प्रभावी सिद्धान्त को कियान्वित किया था, उसका मार्ले-मिन्टो सुधार द्वारा और अधिक विस्तार किया | इसके फलस्वरूप वर्ष 1910 में अप्रत्यक्ष रूप से निर्वाचित 100 से अधिक सदस्यों का विधान परिषदों में प्रवेश हुआ |

2. भारतीय परिषद अधिनियम 1909 ने केन्द्रीय व प्रांतीय विधान परिषदों में गैर-सरकारी लोगों की सदस्यता में बढ़ोत्तरी की |

3. प्रांतीय विधान परिषदों में गैर-सरकारी सदस्य बहुमत में थें, परन्तु केन्द्र में सरकार द्वारा नामजद सदस्यों का बहुमत था |

4. इस अधिनियम ने वायसराय की कार्यकारिणी परिषद और प्रांतीय कार्यकारिणी परिषदों में एक भारतीय सदस्य की नियुक्ति का प्रावधान किया |

5. इस अधिनियम द्वारा विधान परिषदों की शक्तियों को भी विस्तृत किया गया । अब सदस्यों को प्रश्न पूछने का अधिकार मिल गया था, साथ ही वे बजट पर भी बहस कर सकते थे, परन्तु अभी भी वें उस पर वोट नहीं कर सकते थें । सदस्य विधायी प्रस्ताव प्रस्तुत कर सकते थे, परन्तु कानून नहीं बना सकते थें |

6. मार्ले-मिन्टो सुधार का मुख्य मकसद राष्ट्रवाद को कमजोर करना था | यह मुस्लिम साम्प्रदायिकता को भड़काकर राष्टवादी खेमे में फूट डालना था | इस अधिनियम द्वारा निर्वाचन क्षेत्रों का विभाजन जातीय और धार्मिक आधार पर किया | मुसलमानों के लिए सीटें सुरक्षित की गयी, जहाँ मुसलमान केवल मुसलमान उम्मीदवार को ही मत से सकते थें | वास्तव में इसका तात्पर्य यह था कि मुसलमान सम्प्रदाय को भारतीय राष्ट्र से पूर्णरूप से अलग वर्ग के रूप में स्वीकारा गया |

इस अधिनियम द्वारा जिस साम्प्रदायिक प्रतिनिधित्व की प्रथा को आरम्भ किया गया उसने देश के भावी सार्वजनिक जीवन को जहरीला बना दिया जिसका अंत भारत-विभाजन के रूप में देखा गया | यह ब्रिटिश सरकार की ‘फूट डालो और राज करो’ की नीति का सबसे सफल प्रयोग था | खुद मार्ले ने अपने एक पत्र द्वारा मिन्टो को अवगत कराया था कि “याद रखना कि पृथक निर्वाचन क्षेत्र बनाकर हम ऐसे घातक विष के बीज को बो रहे है जिनकी फसल बहुत कड़वी होगी |”

भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने 1909 के अपने लाहौर अधिवेशन में मार्ले-मिन्टो सुधार द्वारा मुसलमानों के लिए पृथक निर्वाचक मण्डल की व्यवस्था करने का भरपूर विरोध किया गया |

निष्कर्ष के रूप में हम कह सकते है कि मार्ले मिन्टो सुधार या भारतीय परिषद अधिनियम 1909 न तो उदारवादियों को संतुष्ट कर पाया और न ही उग्रवाद या आतंकवाद को काबू में कर पाया, लेकिन इसने भारत में साम्प्रदायिकता में वृद्धि अवश्य कर दी |