कुतुबुद्दीन ऐबक का सिंहासनारोहण (24 जून 1206) (Qutbuddin Aibak Ka Sinhasanarohan) : दिल्ली सल्तनत – कुतुबुद्दीन ऐबक का इतिहास-भाग दो | यह लेख इतिहास विशेषज्ञ डॉ. के. के. भारती द्वारा लिखा गया है | 15 मार्च 1206 को सिन्धु नदी के तट पर दमयक (जिला झेलम) में खोकरो (खोखरो) के एक दल ने मुहम्मद गौरी की हत्या कर दी थी |
मुहम्मद गौरी की अचानक हत्या और उत्तराधिकारी प्रक्रिया का सही उल्लेख न होने के कारण गौर साम्राज्य पर कब्जा जमाने के लिए मु. गौरी के तीन प्रमुख गुलाम अधिकारियों – ताजुद्दीन याल्दौज, नसीरुद्दीन कुबाचा और कुतुबुद्दीन ऐबक के बीच सर्वोच्चता के लिए संघर्ष शुरू हो गया | इस समय इन तीनों की स्थिति एक समान थी |
याल्दौज के पास अफगानिस्तान और सिन्ध के बीच में स्थित करमन (Karman) तथा संकूरन (Sankuran) के क्षेत्र थें, कुबाचा के पास उच (Uch) का क्षेत्र था, जबकि कुतुबुद्दीन ऐबक के पास भारतीय क्षेत्र थें |
याल्दौज ने गजनी के सिंहासन पर अधिकार कर लिया और भारत को भी अपने आधिपत्य में लाने के मंसूबे बनाने लगा | कुबाचा ने सारे सिन्ध पर अधिकार कर लिया और स्वतंत्र होने की इच्छा रखने लगा |
कुबाचा (सिंध), बख्तियार खिलजी (बंगाल) आदि मुस्लिम पदाधिकारियों ने कुतुबुद्दीन ऐबक का भारतीय प्रदेशों पर आधिपत्य स्वीकार कर लिया |
मुहम्मद गौरी की मृत्यु के बाद लाहौर के अमीरों ने कुतुबुद्दीन ऐबक को दिल्ली से बुलाया और राज्य की बागडोर संभालने की प्रार्थना की |
परिस्थितियों को समझते हुए कुतुबुद्दीन ऐबक ने अपनी राजधानी लाहौर स्थानांतरित कर दी | ऐसा ऐबक ने सम्भवतः इसलिए किया क्योकि दिल्ली की तुलना में लाहौर खतरे में था |
बिना किसी जल्दबाजी के औपचारिक रूप से ऐबक का राज्याभिषेक मुहम्मद गौरी की मृत्यु के तीन महीने बाद 24 जून 1206 को हुआ |
लेकिन अपने स्वामी (मु. गौरी) से औपचारिक ‘दास्य मुक्ति’ (Manumission) न मिल पाने के कारण कुतुबुद्दीन ऐबक ने सुल्तान की उपाधि धारण नही की (क्योकि इस्लामी प्रथा के अनुसार क़ानूनी रूप से कोई दास, सुल्तान नही बन सकता था) |
कुतुबुद्दीन ऐबक ने न ही अपने नाम के सिक्के ढलवाये और न ही अपने नाम का खुतबा पढ़वाया | सिंहासनारोहण के समय उसने ‘मलिक’ (Malik) और ‘सिपहसालार’ (Sipahsalar) की उपाधियाँ धारण की, जो उसके स्वामी (मु. गौरी) से उसे प्राप्त हुई थी |
बाद में वर्ष 1208 में ऐबक को मु. गौरी के भतीजे और उत्तराधिकारी गियासुद्दीन महमूद से ‘दास-मुक्ति’ का पत्र तथा ‘सुल्तान’ की उपाधि प्राप्त हुई |
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