कुतुबुद्दीन ऐबक का प्रारम्भिक इतिहास

Early History of Qutubuddin Aibak

कुतुबुद्दीन ऐबक का प्रारम्भिक इतिहास (Early History of Qutubuddin Aibak) : कुतुबुद्दीन ऐबक का इतिहास-भाग एक | यह लेख इतिहास विशेषज्ञ डॉ. के के भारती द्वारा लिखा गया है | इस लेख में ‘भारत में मुस्लिम शासन की बुनियाद’ के अंतर्गत ‘प्रारम्भिक तुर्क वंश’ पर प्रकाश डाला गया है | कुतुबुद्दीन ऐबक मूलतः तुर्किस्तान का निवासी था | वह ऐबक नामक तुर्क जनजाति जनजाति का था | तुर्की भाषा में ऐबक का अर्थ “चंद्रमा का स्वामी” होता है | ऐबक जनजाति के लोग सामान्यतः सुंदर और आकर्षक होते थे, यद्यपि कुतुबुद्दीन ऐबक सुंदर ना था |

बचपन में ही ऐबक को बंदी बना लिया गया था | उसे निशापुर (फारस) में गुलाम के रूप में बेचने के लिए लाया गया | गजनी के दयालु काजी फखरुद्दीन अब्दुल अजीज कूफी ने उसे खरीद लिया | ऐबक में विद्यमान गुणों को पहचान कर काजी ने उसे अपने अन्य दासों की तुलना में अत्यधिक प्यार से पाला |

ऐबक ने अपने स्वामी के पुत्रों के ही समान इस्लाम धर्म के मूल सिद्धांतों का अध्ययन किया और सैनिक शिक्षा प्राप्त की | काजी की देखरेख में ऐबक सुरीली आवाज में कुरान का पाठ करना सीख गया था | इसीलिए ऐबक ‘कुरानख्वां’ (कुरान का पाठ करने वाला) के नाम से प्रसिद्ध हो गया |

काजी की मृत्यु के बाद उसके पुत्रों ने ऐबक को एक व्यापारी के हाथों में बेंच दिया, जो उसे गजनी ले गया | गजनी में ऐबक को मोहम्मद गौरी ने खरीद लिया |

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भारत में ऐबक के कार्यों के तीन चरण

भारत में ऐबक के जीवन की गतिविधियों को तीन भागों में विभाजित किया जा सकता है –

(1) वर्ष 1192 से 1206 तक ऐबक ने गौरी के प्रतिनिधि के रूप में उत्तरी भारत पर शासन किया |

(2) वर्ष 1206 से 1208 तक उसने एक स्वतंत्र तुर्की राज्य स्थापित करके मलिक और सिपहसालार की उपाधियों के साथ शासन किया तथा

(3) वर्ष 1208 से 1210 तक उसने सुल्तान की उपाधि धारण करके शासन किया |

इन तीनों ही कालों में ऐबक एक योग्य और कर्मठ शासक सिद्ध हुआ, जो उसकी सबसे बड़ी विशेषता थी | 

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मुहम्मद गौरी के संरक्षण में कुतुबुद्दीन ऐबक

कुतुबुद्दीन ऐबक में विद्यमान सैनिक गुणों तथा कुशाग्र बुद्धि के कारण मु. गौरी शीघ्र ही उसमे प्रभावित हुआ | मु. गौरी ने ऐबक को ‘अमीर-ए-आखुर’ (अश्वशालाध्यक्ष) के पद पर नियुक्त किया,जो उस समय एक महत्वपूर्ण पद था |

मुहम्मद गौरी के भारत के अभियानों के समय ऐबक ने अपने स्वामी की अत्यधिक सेवा की | तराइन के दूसरे युद्ध (1192 ई.) में विजय के पश्चात् मु. गौरी ने कुतुबुद्दीन ऐबक को अपने विजित भारतीय प्रदेशों का शासक नियुक्त किया तथा उनके विस्तार की भी इजाजत दे दी |

मुहम्मद गौरी के गजनी वापस जाने के पश्चात् ऐबक अपने राज्य के विस्तार में लग गया | उसने दिल्ली के निकट इंद्रप्रस्थ में अपना सैनिक मुख्यालय स्थापित किया | उसने पृथ्वीराज चौहान के पुत्र गोविन्द राज को हरिराय चौहान (पृथ्वीराज का भाई) के विरुद्ध अजमेर का सिंहासन प्राप्त करने में मदद की, परिणामस्वरूप गोविन्द राज ने तुर्कों का आधिपत्य स्वीकार कर लिया |

चंदावर के युद्ध (1194 ई.) में उसने बनारस और कन्नौज के गहड़वाल राजा जयचंद को पराजित करने तथा मारने में मुहम्मद गौरी की अत्यधिक सहायता की | हरिराय चौहान, जिसने अजमेर पर अधिकार कर लिया था, को हराकर ऐबक ने अजमेर में एक तुर्की सूबेदार नियुक्त किया |

वर्ष 1197 ई. में उसने गुजरात की राजधानी अन्हिलवाडा को लूटा | उसने बदायूँ को जीतकर अपने एक योग्य तुर्की दास इल्तुतमिश को इसका सूबेदार बनाया, जो बदायूँ का पहला मुस्लिम शासक था |

वर्ष 1192 ई. से 1203 तक कुतुबुद्दीन ऐबक ने हांसी, मीरथ (मेरठ), दिल्ली, रणथम्भौर, कोइल (अलीगढ़), अजमेर, बरन (बुलंदशहर), कन्नौज, कालिंजर, बयाना, ग्वालियर, बदायूँ, बुन्देलखण्ड (कालिंजर, महोबा, खजुराहो) पर अधिकार कर लिया था |

ऐबक के एक योग्य सेनानायक इख्तियारउद्दीन मुहम्मद बिन बख्तियार खिलजी द्वारा बिहार तथा पश्चिमी बंगाल का एक भाग जीतकर तुर्की साम्राज्य में मिला लिए गये | इसप्रकार सिंहासन पर बैठने से पूर्व ही ऐबक लगभग समस्त उत्तरी भारत का स्वामी बन गया था तथा वह लगभग एक स्वतंत्र शासक की भांति कार्य कर रहा था |