Origin and Develpoment of Psychology in Hindi

Origin and Develpoment of Psychology in Hindi

शिक्षाशास्त्र केटेगरी के अंतर्गत आज हम विद्यादूत में मनोविज्ञान का उद्भव और विकास (Manovigyan Ka Udbhav Aur Vikas) अर्थात् Origin and Develpoment of Psychology in Hindi PDF टॉपिक पर महत्वपूर्ण लेख प्रस्तुत कर रहे है | मनोविज्ञान (साइकोलॉजी) एक विकसित होता हुआ विज्ञान है | प्रारम्भ में मनोविज्ञान दर्शनशास्त्र (Philosophy) का एक अंग था और मनोविज्ञान का अध्ययन दर्शनशास्त्र के अंतर्गत किया जाता था | अनेक दार्शनिकों ने अपने मौलिक चिन्तन और मनोवैज्ञानिक विचारों से मनोविज्ञान के ज्ञान को समृद्ध किया था |

प्रयोगात्मक मनोविज्ञान के शुभारम्भ का श्रेय विलहेम वुण्ट को जाता है | वर्ष 1879 में विलहेम मेक्सीमिलियन वुण्ट ने जर्मनी की लिपजिंग यूनिवर्सिटी (Laipzing University) में मनोविज्ञान की पहली प्रयोगशाला स्थापित करके प्रयोगात्मक मनोविज्ञान का श्रीगणेश किया था | विलहेम वुण्ट प्रयोगात्मक विधि का पहला प्रयोग चेतना (Consciousness) के विश्लेषण में किया था | इसीलिए विलहेम वुण्ट ने मनोविज्ञान (Psychology) को चेतना का विज्ञान (Science of Consciousness) कहा |

मनोविज्ञान (साइकोलॉजी) को दर्शनशास्त्र विषय से अलग कर एक स्वतंत्र विषय में प्रस्तुत करने का श्रेय प्रसिद्ध अमेरिकी मनोवैज्ञानिक विलियम जेम्स को जाता है | वर्ष 1890 में विलियम जेम्स ने ‘दि प्रिंसिपल्स ऑफ़ साइकोलॉजी’ पुस्तक प्रकाशित करके मनोविज्ञान को दर्शनशास्त्र से पृथक करके एक स्वतंत्र विषय का रूप प्रदान किया |

समय के साथ मनोविज्ञान के स्वरुप में भी परिवर्तन होता गया और कुछ वर्ष पूर्व ही मनोविज्ञान एक स्वतंत्र, विकसित और वैज्ञानिक विषय के रूप में हमारे सामने आया है |

विद्यादूत में मनोविज्ञान से सम्बन्धित निम्न लेख भी देखें –

  1. मनोविज्ञान का अर्थ, परिभाषाएं और विशेषताएं

मनोविज्ञान का उद्भव (Origin of Psychology)

मनोविज्ञान की उत्पत्ति या उद्भव (Manovigyan Ki Utpatti or Udbhav) – मनोविज्ञान विषय का उद्भव दर्शनशास्त्र विषय से हुआ है | विभिन्न प्राचीन दार्शनिकों के विचारों में हमें मनोविज्ञान के उद्भव के संकेत प्राप्त होते है | सोलहवीं शताब्दी में यूनानी दार्शनिकों ने मनोविज्ञान को आत्मा का अध्ययन करने वाला विज्ञान माना और मनोविज्ञान का अध्ययन दर्शनशास्त्र के एक अंग के रूप में निर्विवाद होता रहा | यूनानी दार्शनिकों ने मनोविज्ञान के शाब्दिक अर्थ के अनुसार मनोविज्ञान का प्रमुख कार्य आत्मा के विषय में विचार करना माना था |

विख्यात यूनानी दार्शनिक प्लेटो, जिन्होंने मन और विचार को एक माना था, और उनके शिष्य अरस्तू, जिन्होंने शरीर और मन को एक माना है, के दार्शनिक व्याख्यानों में हमें मनोवैज्ञानिक तत्त्व दिखाई देते है | अरस्तू का मानना था कि हम शरीर और मन को अलग अलग नही कर सकते है | अरस्तू ने मनोविज्ञान को विज्ञान के अंतर्गत माना और मनोविज्ञान को आत्मा के विज्ञान के रूप में परिभाषित किया था |

मनोविज्ञान के अध्ययन में विस्तार के साथ इसकी परिभाषा और स्वरुप के विषय में विद्वानों में विवाद उत्पन्न हुआ | मनोविज्ञान की ‘आत्मा के विज्ञान’ के रूप में परिभाषा पर आपत्ति उठाई गयी और दार्शनिक इस बात का उत्तर न स्पष्ट कर सके कि आत्मा क्या है ? आत्मा का क्या स्वरुप है ? आत्मा के घटक कौन कौन है ? और अंततः मनोविज्ञान की ‘आत्मा के विज्ञान’ के रूप में अर्थ और परिभाषा को त्याग दिया गया |

शिक्षाशास्त्री जेम्स एस. रॉस लिखते है कि “मनोविज्ञान का शाब्दिक अर्थ है आत्मा का विज्ञान, लेकिन यह परिभाषा बिलकुल अस्पष्ट है क्योकि इस प्रश्न का संतोषजनक उत्तर नही दिया जा सका कि आत्मा क्या है ?”

मनोविज्ञान का विकास (Develpoment of Psychology)

यूनानी दार्शनिक अरस्तू के समय तक मनोविज्ञान दर्शनशास्त्र का ही एक अंग बना रहा | लेकिन समय के साथ धीरे-धीरे मनोविज्ञान दर्शनशास्त्र से पृथक होता गया | रेबर्न लिखते है कि “आधुनिक युग में एक परिवर्तन हुआ है, मनोवैज्ञानिकों ने धीरे-धीरे अपने विज्ञान को दर्शनशास्त्र से अलग कर लिया है |”

सत्रहवीं शताब्दी में जब मनोविज्ञान को आत्मा का विज्ञान मानने में आपत्ति उत्पन्न हुई तब दार्शनिकों ने मनोविज्ञान को ‘मन के अध्ययन का विज्ञान’ (Science of Mind’s Study) माना | इस समय मनोविज्ञान की विषयवस्तु का केंद्र-बिंदु मन (Mind) रहा | वर्ष 1870 तक मन के विज्ञान (Science of Mind) के रूप में मनोविज्ञान की यह परिभाषा मान्य रही |

जॉन लॉक ने माना था कि बालक का मन जन्म के समय एक कोरी पट्टी की तरह होता है, जिसपर अनुभवों पर आधारित कुछ भी लिखा जा सकता है | जॉन लॉक ने यह भी स्पष्ट किया था कि बालक किस तरह से सीखता है |

जॉन लॉक ने साहचर्य सिद्धांत (Principle of Association) का प्रतिपादन करके सीखने की प्रक्रिया को स्पष्ट किया था |

लेकिन विवाद खत्म नही हुआ और मन के सम्बन्ध में भी वही विवाद उठा कि मन का स्वरुप क्या है ? मन में कैसी क्रिया-प्रतिक्रिया चलती है ? इनका उत्तर भी स्पष्ट नही किया जा सका | आत्मा की तरह ही मन की प्रकृति और स्वरुप को निश्चित करना कठिन था क्योकि इसका कोई भौतिक अस्तित्व नही है |

आधुनिक मनोविज्ञान में मन (Mind) की जगह मानसिक प्रक्रियाओं (Mental Processes) अथवा वृत्तियों (Modes) को महत्व दिया गया है | बी.एन. झा लिखते है कि “मस्तिष्क (मन) के स्वरुप के अनिश्चित रह जाने की वजह से मनोविज्ञान ने मस्तिष्क के विज्ञान के रूप में किसी प्रकार की उन्नति नही की |’

उन्नीसवीं शताब्दी में विलहेम वुण्ट, विलियम जेम्स, जेम्स सली आदि विद्वानों ने मनोविज्ञान को चेतना का विज्ञान (Science of Consciousness) माना | उनके अनुसार मनोविज्ञान के द्वारा मानव की चेतन क्रियाओं का अध्ययन किया जाता है |

विलहेम वुण्ट ने अपनी प्रयोगात्मक विधि का पहला प्रयोग चेतना के विश्लेषण में किया और मनोविज्ञान को चेतना के विज्ञान के रूप में परिभाषित किया था |

प्रसिद्ध अमेरिकी मनोवैज्ञानिक विलियम जेम्स ने मनोविज्ञान को परिभाषित करते हुए कहा कि “मनोविज्ञान की सर्वोत्तम परिभाषा यह हो सकती है कि यह चेतना की विभिन्न अवस्थाओं का वर्णन एवं व्याख्या करता है |”

लेकिन मनोविज्ञान की चेतना के विज्ञान के रूप में परिभाषा पर भी विद्वान एक मत न हो सके | विद्वानों के अनुसार चेतना अनुभव का विषय है | चेतना साकार व स्थूल वस्तु नही है | इसलिए चेतना का प्रत्यक्षीकरण भी नही हो सकता है |

बीसवीं शताब्दी के प्रारम्भ में व्यवहारवादी मनोवैज्ञानिक जॉन बी. वाटसन ने मनोविज्ञान को ‘व्यवहार का विज्ञान’ कहा | वाटसन ने मनोविज्ञान में व्यवहारवाद (Behaviourism) को जन्म दिया | इन्होने मनोविज्ञान को व्यवहार का सकारात्मक विज्ञान (Positive Science of Behaviour) कहा |

सामान्य भाषा में व्यवहार किसी उत्तेजना के परिणामस्वरूप अनुक्रिया होती है | जेम्स ड्रेवर लिखते है कि मानव अथवा पशुओं के जीवन में उपस्थित होने वाली परिस्थितियों के प्रति उनकी प्रतिक्रियाओं का सम्पूर्ण रूप ही व्यवहार है |

वाटसन बताते है कि व्यवहार एक क्रिया है जिसे वस्तुगत रूप से देखा जा सकता है | चूँकि सभी प्राणी व्यवहार करते है इसलिए मनोविज्ञान में मानव के साथ-साथ पशुओं के व्यवहार का भी अध्ययन किया जा सकता है |

मनोविज्ञान में व्यवहारवाद के बारे में आर.एस. वुडवर्थ लिखते है कि “मनोविज्ञान ने सबसे पहले अपनी आत्मा का त्याग किया, तत्पश्चात इसने अपने मन का त्याग किया, उसके बाद इसने चेतना का त्याग किया | अब यह व्यवहार को अपनाये हुए है |”

वर्ष 1950 के बाद विद्वानों ने मनोविज्ञान में व्यवहारवाद की आलोचना करना शुरू कर दिया था | इन विद्वानों का मानना था कि व्यवहारवाद में मानव के स्वरुप को समझने का विशेष प्रयास नही किया है बल्कि केवल इसकी यांत्रिक व्याख्या की गयी है |

सिगमण्ड फ्रायड, कार्ल युंग और अल्फ्रेड एडलर ने मनोविज्ञान में मनोविश्लेषणवाद को जन्म दिया | मनोविज्ञान का यह सम्प्रदाय विशेष रूप से अज्ञात मन की चेष्टाओं का अध्ययन करता है | फ्रायड, युंग और एडलर ने अचेतन मन की व्याख्या भिन्न-भिन्न प्रकार से की है | मनोविश्लेषणवाद सम्प्रदाय के प्रथम मनोवैज्ञानिक सिगमण्ड फ्रायड थें | फ्रायड ने मन के तीन स्तरों का वर्णन किया है – चेतन (Conscious), अवचेतन (Sub conscious) और अचेतन (Unconscious) | फ्रायड के अनुसार मानव व्यवहार अचेतन मन से बहुत अधिक नियंत्रित होता है |

कुछ विद्वानों ने मनोविज्ञान के मनोविश्लेषणवाद की आलोचना की | उनके अनुसार मनोविश्लेषण असामान्य व्यक्तियों के व्यवहारों का अध्ययन करता है न कि सामान्य व्यक्तियों के व्यवहारों का |

इसके बाद कार्ल रोजर तथा अब्राहम मैसलो ने मानवतावादी मनोविज्ञान (Humanistic Psychology) को जन्म दिया |

इस प्रकार हम देखते है कि मनोविज्ञान का विकास प्रारम्भ में बहुत ही धीमी गति से हुआ था | सोलहवीं शताब्दी से मनोविज्ञान के विकास में तेज गति आई | मनोविज्ञान की विभिन्न शाखाओं की उत्पत्ति के बाद इसके क्षेत्र में व्यापक वृद्धि हुई | वर्तमान काल में मनोविज्ञान एक पूर्ण, स्वतंत्र और वैज्ञानिक विषय का रूप ले चुका है |

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