सिन्धु सभ्यता के मोहनजोदड़ो स्थल का इतिहास

History of Mohenjodaro of Indus Civilization

सिन्धु सभ्यता के मोहनजोदड़ो स्थल का इतिहास (History of Mohenjodaro of Indus Civilization) : मोहनजोदड़ो वर्तमान पाकिस्तान के सिन्ध प्रान्त के लरकाना जिले में सिन्धु नदी के तट पर स्थित है | सिन्धी भाषा में मोहनजोदड़ो का अर्थ ‘मृतकों का टीला’ होता है | इसे ‘सिन्ध का बाग’ और ‘नखलिस्तान’ भी कहा जाता है |

मोहनजोदड़ो के पश्चिमी भाग में स्थित दुर्ग टीले को ‘स्तूप टीला’ भी कहा जाता है, क्योंकि यहाँ पर एक कुषाणकालीन बौद्ध स्तूप स्थित था |

मोहनजोदड़ो की खोज 1922 ई. में सर जॉन मार्शल के निर्देशन में राखालदास बनर्जी ने की थी | मोहनजोदड़ो हड़प्पाकालीन नगरो में से सबसे बड़ा, सबसे सम्पन्न और महत्वपूर्ण नगर माना जाता है |

मोहनजोदड़ो से मिले मानव कंकालों के अध्ययन के पश्चात् यह माना गया है कि मोहनजोदड़ो में मिश्रित प्रजाति थी | ये प्रजाति भूमध्यसागरीय, प्रोटो-आस्ट्रेलाइड, अल्पाइन एवं मंगोलियन थी | ऐसा माना जाता है कि मोहनजोदड़ो के अधिकतर निवासी भूमध्यसागरीय प्रजाति के थें |

विद्वानों का मानना है कि मोहनजोदड़ो की जनसंख्या लगभग 35,000 थी | यहाँ की नगर-निर्माण योजना, प्राप्त वस्तुएं (मुहरे, मृदभाण्ड, मुर्तियां आदि) और अन्य कलाकृतियाँ सभी अत्यंत विकसित सभ्यता की सूचक हैं |

हड़प्पा-सभ्यता की नगर-निर्माण योजना, मुहर, गृह-निर्माण आदि के बारे में अधिकांश महत्वपूर्ण जानकारीयाँ मोहनजोदड़ो से ही प्राप्त होती है | यहाँ पर भी हड़प्पा नगर की तरह पूर्वी टीला (निचला नगर) और पश्चिमी टीला (ऊचाँ दुर्ग) पाए गये है | दुर्ग चारो ओर से सुरक्षा-प्राचीर से घिरा था |

इसके आलावा यहाँ के उत्खनन से मिले साक्ष्य से संकेत मिलते है कि इसका निचला नगर भी चारो ओर से एक दीवार से घेरा गया था |

मोहनजोदड़ो का सबसे महत्वपूर्ण सार्वजनिक स्थल विशाल स्नानागार है | इसका जलाशय दुर्ग के टीले में है | स्नानागार का फर्श पकी ईटों का बना है | ऐसा माना जाता है कि इस विशाल स्नानागार का उपयोग धर्मानुष्ठान सम्बन्धी स्नान के लिए किया जाता होगा | इस विशाल स्नानागार को देखकर सम्भवना प्रकट की जाती है कि जल का धार्मिक महत्व हड़प्पा सभ्यता की देन है |

मोहनजोदड़ो की सबसे बड़ी इमारत अन्नागार है | इसकी लम्बाई 45.72 मीटर और चौड़ाई 22.86 मीटर है | इस इमारत की पहचान अन्नागार के रूप में व्हीलर ने की थी |

मोहनजोदड़ो के दुर्ग के दक्षिण में लगभग 27.43 मीटर वर्गाकार एक सभा-भवन का अवशेष मिला है | इसमे ईटो के 20 स्तम्भों के अवशेष प्राप्त हुए है | ये स्तम्भ चार कतारों में है तथा प्रत्येक कतार में पांच स्तम्भ है | फर्श ईटो का बना है, जो कई गलियारों में बंटा था तथा यहाँ बैठने की भी व्यवस्था थी |

मार्शल ने इस प्रकार के निर्माण की तुलना बौद्ध गुफा मन्दिरों से की है | जबकि व्हीलर ने इसकी तुलना फारसी ‘दरबार-ए-आम’ जैसे भवन से की है |

मोहनजोदड़ो के विशाल स्नानागार के उत्तर-पूर्व में एक अन्य विशाल भवन के अवशेष मिले है | इसमे एक खुला आंगन, तीन बरामदे और कई कमरे थे | मैके महोदय के अनुसार इस भवन में  पुरोहित जैसे विशिष्ट व्यक्ति रहते होंगे |

मोहनजोदड़ो से कांसे की बनी दो-पहियों वाली खिलौना-गाड़िया मिली है | यहाँ से कुछ मिट्टी की बनी खिलौना-गाड़ियाँ मिली है |

मोहनजोदड़ो से एक चाँदी के बर्तन में कपड़े के अवशेष प्राप्त हुए है | यही से सूती कपड़ा और धागा मिला है जिसमे लपेटे हुए तांबे के उपकरण रखे हुए थे |

यहाँ से एक तांबे का बना बालपिन का ऊपरी भाग मिला है, जिसपर एक हिरन का कान को काटते हुए एक कुत्ते ही आकृति है |

मोहनजोदड़ो से प्राप्त एक मुहर पर नाव का चित्र अंकित है | यहाँ से पत्थर से निर्मित घनाकार पांसे प्राप्त हुए है | मिट्टी के भी पांसे मिले है |

यहाँ की अंतिम अवस्था में असुरक्षा और अशान्ति के कुछ लक्षण प्रकट होते है, जो कुछ बाहरी आक्रमण की ओर इशारा करते है | यहाँ पर कुछ कंकाल अस्त-व्यस्त दशा में पड़े हुए पाए गये है | कुछ कंकालों पर धारदार-हथियारों के घाव के निशान है | व्हीलर के अनुसार ये आर्यों के बर्बर आक्रमण के शिकार हुए हड़प्पा-सभ्यता के निवासी है |

मोहनजोदड़ो से हड़प्पा की भांति कब्रिस्तान के साक्ष्य नही मिले है |

सिन्धु नदी की बाढ़ मोहनजोदड़ो के विनाश का प्रधान कारण थी | मोहनजोदड़ो में अब तक भवनों के नौ स्तर प्राप्त हो चुके है | सम्भवतः सिन्धु नदी से आने वाली सामयिक बाढ़ो से भूमि की सतह ऊची हो जाती थी और पुराने भवन, जो नीचे दब जाते थे, के ठीक ऊपर नये भवन थोड़े परिवर्तन के साथ बना लिए जाते होंगे | अगर हम मोहनजोदड़ो के अंतिम चरण को छोड़ दे तो नगर के अनेक बार उजड़ने और बसने पर भी नगर-विन्यास में कोई विशेष परिवर्तन नही हुआ है |

मोहनजोदड़ो से सेलखड़ी की बनी 19 से.मी. की एक खण्डित मानव-मूर्ति मिली है जिसका केवल सिर से वक्षस्थल तक का ही भाग बचा है |

मोहनजोदड़ो से एक ताम्बे से बना हंसिया का फाल प्राप्त हुआ है | मोहनजोदड़ो से बड़ी संख्या में छेनियाँ प्राप्त हुई है जिनका प्रयोग मुख्यतः लकड़ी और पत्थर की वस्तुओं को बनाने में किया जाता था | मोहनजोदड़ो से एक तांबे का बाणाग्र (बाण की नोंक, Arrowhead) मिला है |

मोहनजोदड़ो की जल निकास प्रणाली बहुत ही उत्तम थी | लगभग समस्त नगरों के हर छोटे अथवा बड़े मकान में प्रागंण और स्नानागार होते थे |

मोहनजोदड़ो से प्राप्त कांस्य-नर्तकी की मूर्ति धातु की बनी मूर्तियों का सर्वोत्कृष्ट उदाहरण है | गले में पड़े हार और बाएं भुजा पर चूड़ियों के अलावा यह नर्तकी पूर्ण रूप से नग्न है | यहाँ से फियांस की बनी गिलहरी भी मिली है |

मोहनजोदड़ो नगर में घर में प्रवेश बगल की गलियों से होता था न कि सामने सड़क से | घरों में दरवाजे दीवार के बीच की जगह किनारे बनाये जाते थे |

मोहनजोदड़ो में गोल स्तम्भों का पूर्णतया आभाव मिलता है |

मोहनजोदड़ो से शिलाजीत का भी साक्ष्य मिला है | पाठकों को बता दे कि शिलाजीत एक गाढ़ा लसलसेदार पदार्थ है जो अधिकांशतः हिमालय पर्वत पर पाया जाता है | आयुर्वेद में इसकी अत्यधिक प्रशंसा की गयी है |

मोहनजोदड़ो से मिली एक मुहर में मानव-बलि जैसा दृश्य दिखता है | इस मुहर में एक पुरुष अपने हाथ में हंसिया जैसा कोई हथियार लिए है और एक बिखरे बाल वाली स्त्री हाथ ऊपर उठाए नीचे बैठी है | यह दृश्य देखने से ऐसा लगता है कि पुरुष, स्त्री की बलि देने वाला है |

यहाँ से एक (पशुपति की) मुहर प्राप्त हुई है | इस मुहर में एक तीन मुंह वाले योगी को ध्यान-मुद्रा में पद्मासन लगाए एक आसन पर बैठे हुए दर्शाया गया है |

मार्टिमर व्हीलर मानते है कि मोहनजोदड़ो के अंतिम चरण में जो पुरुषों, स्त्रियों व बच्चों के कंकाल अस्त-व्यस्त दशा में प्राप्त हुए है, वे लोग आर्यों के आक्रमण का शिकार हुए थे |

के.यु.आर. कनेडी ने मोहनजोदड़ो से मिले कंकालो का गहन अध्ययन करके बताया कि इनमे से मात्र एक ही व्यक्ति की मृत्यु चोट के कारण हुई बाकि लोगो की मृत्यु किसी महामारी के कारण हुई थी |

एच.टी.लेमब्रिक का मानना है कि सिन्धु नदी के मार्ग में परिवर्तन के कारण मोहनजोदड़ो का विनाश हुआ था |

मोहनजोदड़ो के उत्खनन से भी स्पष्ट हुआ है कि यहाँ कई बार बाढ़ ने अपना प्रकोप दिखाया था |

मोहनजोदड़ो स्थल के अन्य तथ्य निम्नलिखित है –

  1. मोहनजोदड़ो एवं कालीबंगन के निचला नगर के भी सुरक्षा-प्राचीर से घिरे होने के साक्ष्य मिले है |
  2. मोहनजोदड़ो की मुख्य सड़क 10 मीटर चौड़ी और 400 मीटर लम्बी थी |
  3. यहाँ के लगभग सभी घरों में कुएँ, स्नानागार और नालियाँ पाई गयी है |
  4. यहाँ का सबसे महत्वपूर्ण सार्वजनिक स्थल इसके दुर्ग टीले पर स्थित विशाल स्नानागार है |
  5. यहाँ की सबसे बड़ी इमारत अनाज रखने का कोठार अथवा अन्नागार है |
  6. यहाँ से बुने हुए सूती कपड़े का एक टुकड़ा प्राप्त हुआ है |
  7. मोहनजोदड़ो और बनावली से हल के मिट्टी के मॉडल प्राप्त हुए है |
  8. यहाँ से एक धागे से लिपटा मछली पकड़ने का कांटा मिला है |
  9. मोहनजोदड़ो से सेलखड़ी की बनी 19 से.मी. की एक खण्डित मानव-मूर्ति (पुरोहित-मूर्ति) प्राप्त हुई है, जिसका केवल सिर से वक्षस्थल तक का ही भाग बचा है |
  10. हड़प्पाकालीन धातु की बनी मूर्तियों में सर्वाधिक कलात्मक और महत्वपूर्ण मोहनजोदड़ो से प्राप्त नर्तकी की कांस्य-मूर्ति है |
  11. मोहनजोदड़ो से कांसे से निर्मित एक क्रोध से तिरछे देखते हुए भैसे की आकृति उल्लेखनीय है | मोहनजोदड़ो से ही कांसे की बनी मेढ़े की तथा तांबे की बनी कुत्ते की आकृतियाँ मिली है |
  12. यहाँ से मिटटी के बने पानी पर तैरती हुई नाँव के मॉडल प्राप्त हुए है |
  13. मोहनजोदड़ो से मिली सेलखड़ी की खण्डित पुजारी की मूर्ति में उसे ध्यानावस्था में आधे नेत्र बन्द किये हुए दर्शाया गया है |
  14. यहाँ से प्राप्त एक मुहर में एक नग्न देवता को पीपल के पेड़ की दो शाखाओं के मध्य में खड़ा हुआ दिखाया गया है |
  15. मोहनजोदड़ो से हड्डी की बनी सुइयाँ मिली है |

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  2. हड़प्पा सभ्यता का कालक्रम
  3. हड़प्पा सभ्यता का नामकरण
  4. हड़प्पा सभ्यता में कृषि व पशुपालन
  5. सिन्धु सभ्यता की नगर योजना प्रणाली
  6. सिन्धु सभ्यता का धार्मिक जीवन
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