बंगाल का विभाजन और स्वदेशी आंदोलन

बंगाल का विभाजन और स्वदेशी आंदोलन (Bengal ka Vibhajan aur Swadeshi Aandolan) Partition of Bengal and Swadeshi Movement in Hindi: अंग्रेजी सरकार की साम्राज्यवादी और ‘फूट डालो व राज करो’ की नीति का सबसे बड़ा प्रमाण बंग-भंग (बंगाल विभाजन) के रूप में हमें देखने को मिला था | लार्ड कर्जन द्वारा उठाया जाने वाला यह सर्वाधिक अलोकप्रिय व विवादित कदम था | बंग-भंग या बंगाल का विभाजन इतिहासकारों के मध्य बड़े विवाद का विषय रहा है |

तत्कालीन और बाद के राष्ट्रवादी इतिहासकारों का मानना है कि कर्जन ने बंग-भंग का कदम ‘बांटो व राज करो’ की नीति के तहत उठाया था वही इसके विपरीत कुछ इतिहासकारों का कहना था कि यह कार्य कर्जन ने प्रशासनिक सुविधा के मद्देनजर किया था |

भारत में वायसराय लॉर्ड कर्ज़न का कार्यकाल ब्रिटिश साम्राज्यवाद का एक उच्च बिन्दु था । कर्ज़न का मानना था कि भारत एक ऐसा देश है ‘जहाँ अंग्रेजों को सम्पूर्ण सत्ता पर स्थाई रूप से अपना एकाधिकार बनाकर रखना है तथा उन्हें हमेशा इसी उद्देश्य को ध्यान में रखना है |’ वास्तव में कर्जन का बंगाल विभाजन (बंग-भंग) भारत के राष्ट्रीय आंदोलन पर एक सुनियोजित हमला और प्रच्छन्न प्रहार था |

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बंगाल विभाजन का वास्तविक कारण

तत्कालीन बंगाल प्रेसीडेंसी ब्रिटिश भारत का सर्वाधिक जनसंख्या वाला प्रान्त था । उस समय बंगाल की आबादी 7 करोड़ 80 लाख थी जोकि ब्रिटिश भारत की कुल आबादी का लगभग एक चौथाई भाग था और तत्कालीन इंग्लैंड की जनसंख्या से लगभग दुगनी थी | बंगाल प्रान्त में पश्चिम व पूर्वी बंगाल (वर्तमान बांग्लादेश) के साथ-साथ बिहार व उड़ीसा भी सम्मिलित थे | असम 1874 में ही पृथक हो चुका था |

बंगाल विभाजन के पीछे तर्क यह दिया गया कि इतने बड़े प्रान्त का प्रशासन सुचारू रूप से चलाना कठिन कार्य है | वास्तव में तत्कालीन बंगाल प्रान्त का क्षेत्रफल व जनसंख्या बहुत अधिक थी और इतने बड़े राज्य का प्रशासन सुचारू रूप से चलाना कठिन कार्य था परन्तु कर्जन ने बंगाल विभाजन का निर्णय प्रशासनिक कारणों से नही बल्कि राजनीतिक कारणों से लिया था |

तत्कालीन बंगाल राष्ट्रीय चेतना का केंद्र बनता जा रहा था | अंग्रेजी सरकार इसी जुझारू राष्ट्रीय गतिविधियों पर प्रहार करने के मकसद से ही बंगाल विभाजन करना चाहती थी | यह बात लार्ड कर्जन के इस कथन से सिद्ध होती है कि “अंग्रेजी शासन का यह प्रयत्न कलकत्ता को सिंहासनाच्युत करना था, बंगाली आबादी का विभाजन करना था, एक ऐसे केंद्र को नष्ट करना था, जहाँ से बंगाल और सम्पूर्ण देश में कांग्रेस पार्टी का संचालन होता था, षड्यंत्र रचे जाते थें |”

बंगाल विभाजन के पीछे अंग्रेजी सरकार का उद्देश्य मूल बंगाल में बंगालियों की आबादी को कम करके उन्हें अल्पसंख्यक बनाना था | मूल बंगाल में 1 करोड़ 70 लाख बंगाली तथा 3 करोड़ 70 लाख उड़िया एवं हिंदी भाषीय व्यक्तियों को रखने की मंशा थी |

भारत सरकार के तत्कालीन गृहसचिव रिसले ने 6 दिसम्बर 1904 को एक आधिकारिक टिप्पणी में लिखा था कि “अविभाजित बंगाल अपने आप में एक बड़ी शक्ति है | बंगाल यदि विभाजित हो तो समस्त हिस्सों की दिशाएं अलग-अलग होंगी | कांग्रेस के नेताओं की यह आशंका सही है तथा उनकी यह आशंका हमारी योजना की सर्वाधिक महत्वपूर्ण चीज है | हमारा एक उद्देश्य हमारे शासन के विरोधियों को तोड़ना और इस प्रकार उन्हें कमजोर करना है |”

परन्तु बंगाल विभाजन (बंग-भंग) का उद्देश्य केवल बंगाल के लोगों को दो प्रशासनिक भागों में विभाजित करके उनके प्रभाव को कम करना नही था बल्कि अंग्रेजी सरकार के बंगाल विभाजन में एक अन्य विभाजन मौजूद था | यह धार्मिक आधार पर विभाजन था |

उन्नीसवीं सदी के अंत में अंग्रेजी सरकार ने भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन व कांग्रेस को क्षीण करने के मकसद से मुस्लिम साम्प्रदायिकता को भड़काने का कार्य आरम्भ कर दिया था |

अंग्रेजी सरकार ने मुसलमानों को अपने पक्ष में करने के लिए यह समझाना शुरू किया कि बंगाल-विभाजन (बंग-भंग) उनके हित में है | लार्ड कर्जन ढाका में बंग-भंग के समर्थन में मुसलमानों को सरकार के पक्ष में करने के लिए कहता है कि “बंगाल के विभाजन से ढाका बहुसंख्यक मुसलमान आबादी बाले नये प्रान्त की राजधानी बन जायेगा | जिससे पूर्वी बंगाल में मुस्लिम एकता के सूत्र में बंध जायेंगे | मुस्लिमों को उत्तम सुविधाएँ मिल सकेंगी साथ ही पूर्वी जिले कलकत्ता की राजशाही से भी मुक्त हो जायेंगें |”

इस प्रकार हम देखते है कि बंगाल का विभाजन का मुख्य उद्देश्य भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन को कमजोर करने हेतु उस पर एक सुनियोजित प्रहार करना था |

बंगाल विभाजन के निर्णय की घोषणा

बंगाल विभाजन की योजना 19 जुलाई 1905 को प्रस्तुत की गयी | लार्ड कर्जन ने एक आज्ञा जारी करके बंगाल प्रान्त को दो हिस्सों में विभाजित कर दिया |

प्रस्ताव के अनुसार पूर्वी बंगाल व असम को नया प्रान्त बनाया गया, जिसकी जनसंख्या तीन करोड़ दस लाख थी | इसकी पूरी जनसंख्या में एक करोड़ अस्सी लाख मुसलमान और एक करोड़ बीस लाख हिन्दू थें | इसमे चटगांव, ढाका व राजशाही के डिवीजन शामिल थें और इस नये प्रान्त का क्षेत्रफल एक लाख छह हजार पांच सौ चालीस वर्ग मील निर्धारित किया गया | नये प्रान्त की राजधानी ढाका बनाई गयी और इस प्रान्त में एक विधानसभा व बोर्ड ऑफ़ रेवेन्यू की व्यवस्था थी |

दूसरे हिस्से में पश्चिम बंगाल, बिहार व उड़ीसा थें, जिसकी आबादी पांच करोड़ चालीस लाख थी | इसमे एक करोड़ अस्सी लाख बंगाली और तीन करोड़ साठ लाख बिहारी व उड़िया थें | इस प्रान्त में चार करोड़ बीस लाख हिन्दू और नब्बे लाख मुसलमान थें | इसका क्षेत्रफल एक लाख इकतालीस हजार पांच सौ अस्सी वर्ग मील था |

भारत मंत्री ब्रॉडरिक ने बंग-भंग की इस योजना में थोडा संशोधन करके इसकी मंजूरी दे दी | 

इस प्रकार हम देखते है कि बंगाल का विभाजन इस प्रकार से किया गया था कि एक भाग में मुसलमान बहुसंख्यक थें तो दूसरे भाग में हिन्दू | सोच-समझ कर एक सम्प्रदाय को दूसरे सम्प्रदाय के विरुद्ध खड़ा करके की कोशिश की गयी और इस कारण सांप्रदायिक तनाव में निश्चित ही वृद्धि हुई ।

बंग-भंग के पश्चात् के वर्षों में पूर्वी बंगाल व असम की सरकारों ने हिंदुओं के विरुद्ध मुसलमानों को एकजुट करने की नीति का लगातार अनुसरण किया । यही वजह है की पूर्वी बंगाल के लेफ्टिनेंट गवर्नर सर बैमफायल्डे फुल्लर ने मुसलमानों को अपनी “चहेती पत्नी” कहा था |

16 अक्टूबर 1905 को लार्ड कर्जन ने बंगाल विभाजन की घोषणा की | इस प्रकार इस दिन आधिकारिक रूप से बंगाल विभाजन लागू हो गया |

स्वदेशी और बहिष्कार आंदोलन

बंग-भंग विरोधी आंदोलन के रूप में स्वदेशी और बहिष्कार आंदोलन का जन्म हुआ | वायसराय लार्ड कर्जन द्वारा बंगाल विभाजन की घोषणा के साथ ही बंग-भंग का विरोध शरू हो गया था |

भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस व बंगाल के राष्ट्रवादियों ने बंगाल-विभाजन का तुरंत कड़ा विरोध किया | बंगाल-विभाजन के निर्णय की घोषणा होते ही ढाका, फरीदपुर, दिनाजपुर, वीरभूमि, पाबना, टंगाइल, जैसोर, बारीसाल और अन्य कस्बों में बंग-भंग विरोध सभाएं आयोजित की गयी | यहाँ विदेशी वस्तुओं के बहिष्कार की प्रतिज्ञा ली गयी |

विरोध का स्वर पूरे बंगाल में देखने को मिला और समाज के विभिन्न वर्ग अपने प्रान्त के विभाजन के विरुद्ध स्वतःस्फूर्त तरीके से उठ खड़े हुए | कर्जन के निर्णय ने भिन्न-भिन्न विचारधाराओं वाले व्यक्तियों व राजनेताओं को एक मंच पर लाकर खड़ा कर दिया ।

राष्ट्रवादियों ने बंग-भंग को क्षेत्रीय व धार्मिक आधार पर विभाजित करने का प्रयास माना क्योकि विभाजन की योजना के अनुसार जहाँ पूर्वी हिस्से में मुसलमानों का बहुमत रखा गया था वही पश्चिमी हिस्से में हिन्दुओं का |

साथ ही विभाजन से बंगाली भाषा व संस्कृति को घातक झटका लग रहा था |   इससे राष्ट्रवादियों को यह स्पष्ट हो गया था कि अंग्रेजी सरकार बंगाल में राष्ट्रवाद को कमजोर और खत्म करना चाहती है |

विभाजन विरोधी आंदोलन की शुरुआत 7 अगस्त 1905 को हुई | इस दिन कलकत्ता के टाउनहाल में हुई बैठक में ऐतिहासिक ‘स्वदेशी और बहिष्कार आंदोलन’ की विधिवत घोषणा हुई | यहाँ बंग-भंग के खिलाफ हुए एक बहुत बड़े प्रदर्शन के बाद प्रतिनिधि स्वदेशी और बहिष्कार आंदोलन को फ़ैलाने हेतु पूरे प्रान्त में फ़ैल गये |

स्वदेशी और बहिष्कार आंदोलन में ‘स्वदेशी’ से तात्पर्य ‘भारतीय वस्तुओं का उपयोग’ और ‘बहिष्कार’ से तात्पर्य ‘ब्रिटिश वस्तुओं के बहिष्कार’ था |

बहिष्कार में विदेशी कपड़ों के साथ-साथ सरकारी स्कूलों, सरकारी नौकरियों, अदालतों, उपाधियों का बहिष्कार भी शामिल था | लोगो ने शपथ ली कि ब्रिटेन द्वारा उत्पादित कोई भी माल नही खरीदेंगे | यही स्वदेशी आंदोलन का शुभारम्भ था, जिसने कुछ ही वर्षों में देश का राजनीतिक परिदृश्य को पूर्णतया बदलकर रख दिया |

अनेक स्थानों पर विदेशी कपड़ों की होली जलाई गयी और लोगों से विदेशी माल पर आश्रित न रहने का आग्रह किया गया | औरतों ने विदेशी चूड़ियाँ पहनना और विदेशी बर्तन का प्रयोग बंद कर दिया, धोबियों ने भी विदेशी कपड़ों को धोने से मना कर दिया | परिणामस्वरूप स्वदेशी वस्त्रों की मांग बढ़ गयी और ब्रिटिश माल की बिक्री सहसा गिर गयी |

स्वदेशी व बहिष्कार आंदोलन बंगाल के सम्पूर्ण राष्ट्रीय नेतृत्व के प्रयासों की वजह से था न कि इस आंदोलन के किसी भाग के | शुरुआत में बंग-भंग विरोधी आंदोलन के प्रमुख नेता सुरेन्द्रनाथ बनर्जी व कृष्ण कुमार मित्र जैसे नरमपंथी नेता थें लेकिन बाद में इस आंदोलन का नेतृत्व गरमपंथी व क्रांतिकारी राष्ट्रवादियों ने आगे बढ़ाया |

यद्यपि स्वदेशी और बहिष्कार आंदोलन को लेकर कांग्रेस के नरमपंथी और गरमपंथी राष्ट्रवादियों में मतभेद भी उभरें | जहाँ नरमपंथी बहिष्कार को बंगाल तक ही सीमित रखना चाहते थें साथ ही उनका मानना था कि बहिष्कार को केवल विदेशी वस्तुओं तक सीमित रखा जाएँ |

जबकि गरमपंथी इस आंदोलन को बंगाल से बाहर सम्पूर्ण देश में फैलाना चाहते थें और उनका कहना था कि औपनिवेशिक सरकार के साथ किसी भी तरह में जुड़ने का बहिष्कार करना चाहिये |

राष्ट्रवादियों के आग्रह पर अनेक स्थाओं पर विदेशी कपड़ों की होली जलाई गयी और विदेशी कपड़ों को बेचने वाली दुकानों पर धरने दिए गये | सुरेन्द्रनाथ बनर्जी जैसे अनेक नरमपंथी नेताओं ने देश में घूम-घूम कर लोगों से मैनचेस्टर के कपड़े तथा लिवरपूल के नमक के बहिष्कार का आग्रह किया |

स्वदेशी और बहिष्कार आंदोलन ने बंगाल से बाहर निकलकर जल्द ही राष्ट्रीय रूप ले लिया | कई प्रांतों में स्वदेशी व स्वराज की गूंज गूंजने लगी | बम्बई, मद्रास और उत्तर भारत में स्वदेशी और बहिष्कार में समर्थन में आंदोलन चलाये गये | पंजाब में रावलपिंडी व अमृतसर जैसे स्थानों पर बंगाल की एकता के समर्थन में और विदेशी वस्तुओं के बहिष्कार के लिए कई सभाएं आयोजित की गयी |

बंग-भंग विरोधी आंदोलन की कमान जल्द ही अरविंद घोष, लोकमान्य तिलक और विपिनचंद्र पाल जैसे उग्र राष्ट्रवादी नेताओं के हाथों में आ गयी | तिलक ने इस आंदोलन का पूरे भारत में, खासकर बंबई व पुणे में प्रचार-प्रसार किया था | स्वदेशी आंदोलन को भारत के दूसरे हिस्सों तक पहुँचाने में तिलक की महत्वपूर्ण भूमिका रही थी | अजित सिंह व लाला लाजपतराय ने पंजाब और उत्तर प्रदेश के अन्य क्षेत्रों में इसे फैलाया | दिल्ली में सैयद हैदर रजा ने और मद्रास प्रेसीडेंसी में चिदंबरम पिल्लै ने स्वदेशी आंदोलन का नेतृत्व किया था |

बंगाल विभाजन विरोधी स्वदेशी और बहिष्कार आंदोलन की एक प्रमुख बात इसमे महिलाओं की सक्रिय भागीदारी थी | इस आंदोलन के दौरान शहरी मध्य वर्ग की महिलाएं, जो सदियों से घरों की चारदीवारी में कैद थी, ने जुलूसों एवं धरनों में बढ़चढ़ कर हिस्सा लिया | इसके पश्चात् से महिलाओं ने राष्ट्रवादी आंदोलन बराबर सक्रिय भूमिका निभाई |

स्वदेशी आंदोलन की लोकप्रियता बढ़ाने के लिए लोक परम्पराओं, पारंपरिक त्यौहारों, लोक गीतों, धार्मिक मेलों और नाट्य मंचों इत्यादि का भी सहारा लिया गया, जिससे इसका प्रसार देश के दूर-दराज इलाकों, गांवों, कस्बों में भी हुआ | बाल गंगाधर तिलक ने गणपति महोत्सव व शिवाजी जयंती के माध्यम से स्वदेशी आंदोलन का प्रचार किया |

पहली सितंबर को अंग्रेजी सरकार ने घोषणा की कि बंगाल विभाजन 16 अक्टूबर 1905 से प्रभावी हो जायेगा | लोगों में इसके खिलाफ जबरदस्त प्रतिक्रिया देखने को मिली | स्वदेशी आंदोलन ने और जोर पकड़ लिया और विरोध बैठके रोज होने लगी |

बंगाल विभाजन 16 अक्टूबर 1905 को लागू हुआ | राष्ट्रवादियों के आग्रह पर इस दिन को सम्पूर्ण बंगाल में शोक दिवस के रूप में मनाया गया | इस दिन लोगों ने उपवास रखा, घरों में चूल्हे नही जले | कलकत्ता में हड़ताल द्वारा विरोध प्रकट किया गया | सुबह तड़के ही जत्थे-के-जत्थे लोग नंगे पैर चलकर गंगा में स्नान करने पहुंचे |

इस अवसर हेतु गुरुदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर ने अपना प्रसीद्ध गीत ‘आमार सोनार बांग्ला’ की रचना की जिसे सड़कों पर जुलूस में शामिल लोग गाते थें | बाद में इसी लोकप्रिय गीत को बांग्लादेश ने वर्ष 1971 में अपनी मुक्ति के पश्चात् अपने राष्ट्रीय गीत के रूप में अपनाया था | कलकत्ता की सड़के वंदेमातरम् के उद्घोष से गूंज उठीं | इस गीत ने रातों-रात बंगाल के राष्ट्रीय गान का रूप ले लिया और बाद में वंदेमातरम् सम्पूर्ण राष्ट्रीय आंदोलन का राष्ट्रगान बन गया |

रवीन्द्रनाथ टैगोर के सुझाव पर विभाजन दिवस को लोगों ने एक-दूसरे के हाथों पर राखियाँ बांधकर राखी बंधन दिवस के रूप में मनाया |

स्वदेशी आंदोलन का एक अतिमहत्वपूर्ण पक्ष ‘आत्म-निर्भरता’ अथवा ‘आत्म-शक्ति’ पर दिया जाने वाला बल था | आत्मा-निर्भरता का तात्पर्य था राष्ट्र की गरिमा, सम्मान व आत्मविश्वास की घोषणा | आर्थिक क्षेत्र में इसका मतलब देशी उद्योगों और अन्य उद्यमों को बढ़ावा देना |

राष्ट्रवादी नेताओं का मानना था कि अंग्रेजी सरकार के विरुद्ध संघर्ष चलाने हेतु भारतीयों में आत्मनिर्भरता व स्वावलंबन की भावना भरना अतिआवश्यक है | वास्तव में आत्मनिर्भरता व स्वावलंबन का प्रश्न राष्ट्रीय स्वाभिमान, आत्मविश्वास और आदर के साथ जुड़ा था | अनेक कपड़ा मिलें, हैंडलूम के उद्यम, चर्म उद्योग साबुन व माचिस कारखाने, राष्ट्रीय बैंक एवं बीमा कंपनिया अस्तित्व में आई |

आचार्य पी.सी. राय द्वारा प्रसिद्ध बंगाल केमिकल स्वदेशी स्टोर्स की स्थापना की गयी | गुरुदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर के शांतिनिकेतन की तर्ज पर बंगाल नेशनल कॉलेज की स्थापना हुई | अल्प समय में ही सम्पूर्ण देश में कई राष्ट्रीय स्कूलों की स्थापना हो गयी | 

स्वदेशी आंदोलन में मुसलमानों की भूमिका

स्वदेशी आंदोलन में अनेक प्रमुख मुसलमान नागरिकों ने भी हिस्सा लिया | इनमे मुख्य रूप से लोकप्रिय आंदोलनकारी लियाकत हुसैन, प्रसिद्ध वकील अब्दुर्रसूल और व्यापारी गजनवी थें |

लेकिन इसके बावजूद मध्य व उच्च वर्गों के अनेकों दूसरे मुसलमानों ने खुद को स्वदेशी आंदोलन से दूर रखा | बहुसंख्यक मुसलमानों ने ढाका के नवाब सलीमुल्लाह के नेतृत्व में बंगाल-विभाजन का इस आधार पर समर्थन किया कि पूर्वी बंगाल में मुसलमानों का बहुमत होगा | अंग्रेजी सरकार ने ढाका के नवाब (जिसे सरकार ने चौदह लाख रूपये का एक ऋण दिया था) और अन्य मुसलमानों को यह सांप्रदायिक रवैया अपनाने के लिए प्रोत्साहित किया |

अंग्रेजी सरकार द्वारा मुसलमानों में सांप्रदायिकता का जहर घोलने में बंगाल की तत्कालीन सामाजिक-आर्थिक व्यवस्था ने भी साथ दिया | उस समय बंगाल के ज्यादातर भूस्वामी हिंदू थें और मुसलमान खेतिहर मजदूर थें | इसका फायदा अंग्रेजी सरकार ने उठाया और उन्होंने मुल्लाओं व मौलवियों का इस्तेमाल करके मुसलमानों में संप्रदायिकता का जहर घोला |

इसका परिणाम यह निकला कि जब स्वदेशी आंदोलन अपने चरमोत्कर्ष पर था तभी बंगाल में सांप्रदायिक दंगे भड़क उठे, जिससे आंदोलन को अत्यधिक नुकसान पंहुचा |

स्वदेशी आंदोलन की कमियां

सांप्रदायिकता के साथ-साथ स्वदेशी आंदोलन को खुद गलत तरीकों ने भी अत्यधिक क्षति पहुंचाई | एक तरफ जहाँ स्वदेशी आंदोलन के प्रचार-प्रसार में धार्मिक रीति-रिवाजों और धार्मिक संस्थाओं ने अहम भूमिका निभाई वही दूसरी तरफ यह आंदोलन के लिए नुकसानदेह भी सिद्ध हुआ | पारंपरिक रीतिरिवाजों, त्यौहारों व धार्मिक संस्थाओं ने स्वदेशी आंदोलन का स्वरुप धार्मिक कर दिया | जब सरकार सांप्रदायिकता को भड़का रही थी तब यह धार्मिक स्वरुप आंदोलन के लिए खतरनाक साबित हुआ और इसने आंदोलन के स्वरुप को विकृत कर दिया |

स्वदेशी आंदोलन की एक अन्य कमी थी इसके पास कोई प्रभावी संगठन न होना | यद्यपि यह आंदोलन कई गाँधीवादी तरीकों जैसे रचनात्मक कार्य, सामाजिक सुधार, अहिंसा पर जोर, जेल भरो आंदोलन आदि के द्वारा लोगों को अपनी ओर आकर्षित करने में सफ़ल रहा, लेकिन एक केंद्रीय संगठन के बिना यह आंदोलन इन गाँधीवादी तरीकों को कोई अनुशासित केंद्रीय दिशा देने में सफल न हो पाया |

कांग्रेस में उभरे आपसी विवाद ने भी स्वदेशी आंदोलन को अत्यधिक क्षति पहुंचाई | वर्ष 1907 में सूरत अधिवेशन में कांग्रेस के दो टुकड़े हो गये | कांग्रेस के नरमदल के नेता संगठन पर अपना अधिकार करने और उससे गरमपंथियों को निष्कासित करने में सफल रहें | कांग्रेस के विभाजन और नरम दल और गरम दल के आपसी विवाद ने स्वदेशी आंदोलन को बहुत क्षति पहुंचाई |

स्वदेशी आंदोलन को अंग्रेजी सरकार ने भी निर्ममतापूर्वक दबाया | आंदोलनकारियों को पुलिस ने बेरहमी से पीटा, सार्वजनिक सभाओं व प्रदर्शनों पर रोक लगाई, प्रेस की स्वतंत्रता पर प्रहार किया, आंदोलन का समर्थन करने वाले छात्रों को सरकारी विद्यालयों से निष्कासित करके उनके लिए सरकारी नौकरियों के द्वार बंद कर दिए गये | सरकार के इस दमनकारी रवैये ने स्वदेशी आंदोलन को क्षति पहुंचाई |

इन सब कारणों से 1908 के मध्य तक आते-आते स्वदेशी आंदोलन का जनाधार खत्म हो गया | स्वदेशी आंदोलन के खत्म होने के साथ भारत के स्वतंत्रता आंदोलन के एक युग का अंत हो गया | स्वदेशी आंदोलन अंग्रेजी शासन के विरुद्ध पहला सशक्त राष्ट्रीय आंदोलन था जिसने भावी राष्ट्रीय स्वतंत्रता आंदोलन की नींव रखी | गाँधी जी लिखते है कि “भारत का वास्तविक जागरण बंगाल-विभाजन के पश्चात् आरम्भ हुआ |” वास्तव में भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन के किसी भी अन्य चरण में हमें इतनी ज्यादा सांस्कृतिक जागृति दिखाई नही देती जितनी कि स्वदेशी आंदोलन के दौरान देखने को मिली थी |

बंगाल का विभाजन और स्वदेशी आंदोलन प्रश्नोत्तरी (FAQ)

प्रश्न. बंगाल विभाजन किसने और क्यों किया ?

उत्तर. बंगाल का विभाजन वर्ष 1905 में तत्कालीन वायसराय लार्ड कर्जन ने किया था | कर्जन ने प्रशासनिक असुविधा को बंगाल विभाजन का कारण बताया था, परन्तु वास्तविक कारण प्रशासनिक नही बल्कि राजनीतिक था |

प्रश्न. बंगाल विभाजन के क्या कारण थें ?

उत्तर. बंगाल विभाजन

प्रश्न. सर्वप्रथम किसने ब्रिटेन की वस्तुओं के बहिष्कार का सुझाव दिया था ?

उत्तर. कृष्ण कुमार मित्र ने सर्वप्रथम बंगाल में ब्रिटेन की वस्तुओं के बहिष्कार का सुझाव दिया था |

प्रश्न. लार्ड कर्जन ने बंगाल विभाजन क्यों किया ?

उत्तर. तत्कालीन बंगाल भारतीय राष्ट्रीय चेतना का केंद्र-बिंदु था | लार्ड कर्जन ने बंगाल में राजनीतिक चेतना को कुचलने के लिए बंगाल का विभाजन किया था |

प्रश्न. बंगाल विभाजन का मुख्य उद्देश्य क्या था ?

उत्तर. बंगाल विभाजन का मुख्य उद्देश्य बंगाली राष्ट्रवाद की वृद्धि को कमजोर करना था |

प्रश्न. बंगाल विभाजन रद्द किसने किया ?

उत्तर. वायसराय लार्ड हार्डिंग के शासनकाल में बंगाल विभाजन को रद्द करने की घोषणा हुई थी |

प्रश्न. बंगाल विभाजन रद्द कब हुआ ?

उत्तर. वर्ष 1911 में बंगाल विभाजन रद्द हुआ था |

प्रश्न. बंगाल विभाजन के समय बंगाल का गवर्नर जनरल कौन था ?

उत्तर. बंगाल विभाजन के समय बंगाल का गर्वनर जनरल (वायसराय) लार्ड कर्जन था |

प्रश्न. बंगाल विभाजन का प्रस्ताव ब्रिटिश संसद में कब रखा गया था ?

उत्तर. बंगाल विभाजन का प्रस्ताव ब्रिटिश संसद में 3 दिसंबर 1903 को रखा गया था |

प्रश्न. बंगाल का विभाजन 16 अक्टूबर 1905 को हुआ था | इस दिन बंगाल में ‘शोक दिवस’ मनाया गया था |