हड़प्पा सभ्यता के प्रमुख स्थल एवं विशेषताएं

Hadappa Sabhyata Ke Pramukh Sthal Evan Visheshataen

हड़प्पा सभ्यता के प्रमुख स्थल एवं विशेषताएं (Hadappa Sabhyata Ke Pramukh Sthal Evan Visheshataen) : सिन्धु या हड़प्पा सभ्यता भारत, पाकिस्तान एवं अफगानिस्तान तीनो देशो में विस्तृत थी | हड़प्पा सभ्यता का पूरा क्षेत्र एक त्रिभुज के आकार का है | परिपक्व हड़प्पा सभ्यता का केंद्र-स्थल पंजाब एवं सिंध में, विशेषकर सिन्धु घाटी में पड़ता है | यही से इस सभ्यता का विस्तार पूर्व एवं दक्षिण भागों की ओर हुआ |

हड़प्पा सभ्यता की सीमा पूर्व दिशा में आलमगीरपुर (मेरठ, उ.प्र.) तक, पश्चिम दिशा में सुतकागेंडोर (बलूचिस्तान) तक, उत्तर दिशा में मांडा (अखनूर, जम्मू-कश्मीर) तक और दक्षिण दिशा में दाइमाबाद (अहमदनगर, महाराष्ट्र) तक फैली है |

हड़प्पा सभ्यता के प्रमुख स्थल निम्नलिखित है –

  1. हड़प्पा
  2. मोहनजोदड़ो
  3. कालीबंगन
  4. लोथल
  5. रोपड़
  6. राखीगढ़ी
  7. बनावली
  8. मित्ताथल
  9. कुणाल
  10. मुण्डीगाक
  11. सोर्तगाई
  12. सुत्कागेनडोर
  13. सोत्काकोह
  14. बालाकोट
  15. डाबरकोट
  16. अलीमुराद
  17. कोटदीजी
  18. चन्हुदड़ो
  19. आलमगीरपुर
  20. रंगपुर
  21. धौलावीरा
  22. लोथल
  23. मालवण
  24. रोजदि
  25. सुरकोतड़ा

भारत की स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद रोपड़ पहला हड़प्पाई स्थल है जहाँ उत्खनन किया गया | इसकी खोज बी.बी.लाल ने की थी तथा इसका उत्खनन यज्ञ दत्त शर्मा ने कराया था |

रोपड़ पंजाब प्रान्त में सतलज नदी के तट पर स्थित है | वर्तमान में इसका नाम रूपनगर है | रोपड़ में संस्कृति के छह चरण मिले है जिसमे पहले चरण का ही सम्बन्ध हड़प्पा-सभ्यता से है | एकमात्र रोपड़ में ही एक मानव कब्र के नीचे पालतू कुत्ते को भी दफनाने का साक्ष्य मिला है |

हरियाणा प्रान्त में राखीगढ़ी, बनावली, मित्ताथल और कुणाल स्थित है | राखीगढ़ी हड़प्पा-सभ्यता का सबसे विस्तृत स्थल है | यह हरियाणा प्रान्त के जींद जिले में (प्राचीन लुप्त सरस्वती नदी के तट पर) स्थित है | बनावली हिसार जिले में प्राचीन सरस्वती नदी, जो अब लुप्त हो चुकी है, की घाटी में स्थित है | यहाँ से संस्कृति के तीन स्तर, पूर्व-हड़प्पा, विकसित हड़प्पा और उत्तर-हड़प्पा, प्रकाश में आये है | यहाँ के कई घरों में अग्निवेदिकाएँ मिली है | यहाँ पर मिट्टी का बना हल का मॉडल और बड़ी मात्रा में जौ के दाने मिले है | कुणाल भी हिसार जिले में स्थित है, जो पूर्व-हड़प्पाई स्थल है | कुणाल से दो चाँदी के मुकुट (Crown) प्राप्त हुए है |

अफगानिस्तान में मुण्डीगाक एवं सोर्तगाई स्थित है | मुण्डीगाक सम्भवतः व्यापारिक मार्ग पर स्थित था | यह एक घनी आबादी वाला नगर था | यहाँ मिटटी में बर्तनों की अनेक किस्मे मिली है | सोर्तगाई से बहुत बड़ी मात्रा में नीलम पाया गया है | पाकिस्तान के बलूचिस्तान प्रांत में सुत्कागेनडोर, सोत्काकोह, बालाकोट और डाबरकोट स्थित है | यहाँ पाठकों को यह बात जानना आवश्यक है कि सम्पूर्ण बलूचिस्तान प्रान्त के निवासी एक ही प्रकार के मिटटी के बर्तनों का इस्तेमाल करते थे | वे अपने मिटटी के बर्तनों पर पीपल और कूबड़ वाले बैल का अंकन करते थे | सुत्कागेनडोर, जिसकी खोज आरेल स्टाइन ने की थी तथा उत्खनन डेल्स ने करवाया था, बलूचिस्तान में दाश्त नदी के तट पर स्थित है | कुछ विद्वानों के अनुसार बलूच-मकरान समुद्र-तट के तत्कालीन समय में करीब होने के कारण सुत्कागेनडोर ने एक बंदरगाह (Dockyard) के रूप में हड़प्पा-सभ्यता और बेबीलोन के बीच होने वाले मुख्य व्यापार में एक महत्वपूर्ण भूमिका अदा की |

लेखक यहाँ पाठकों को ‘बेबीलोन’ की संक्षिप्त जानकारी देना अनावश्यक नही मानता | बेबीलोन, जो उस समय ‘बाबुल’ कहलाता था, मेसोपोटामिया (मेसोपोटामिया का यूनानी अर्थ है – “दो नदियों के बीच”) में बसा था | यह दजला (टिगरिस) और फरात (इयुफ़्रेटीस) नामक दो नदियाँ के मुहाने पर एक बड़ा व्यापारिक नगर था | हम्मूराबी यहाँ का सबसे प्रसिद्ध राजा था जिसने बेबीलोन पर 1792 ई.पू. से 1750 ई.पू. तक शासन किया था | वह स्वयं को देवता मानता था तथा उसने अपनी प्रज्ञा के लिए एक विश्व-प्रसिद्ध कानून-संहिता का निर्माण किया जो इतिहास में ‘हम्मूराबी विधि-संहिता’ के नाम से प्रसिद्ध है | हम्मूराबी की विधि-संहिता एक शिला पर अंकित है | बेबीलोन में ही महान विश्व-विजेता एलेक्जेंडर की मृत्यु हुई थी | एलेक्जेंडर या सिकन्दर की मृत्यु के बाद उसके सेनापति ने सेल्यूकस ने बेबीलोन पर अधिकार स्थापित किया था | बेबीलोन के झूलते बाग, जो ‘सेमीरामिस के बाग’ भी कहलाते है, विश्व के सात आश्चर्यों में से एक है ]

बलूचिस्तान में ही शादी-कौर नदी के तट पर सोत्काकोह, जिसकी खोज डेल्स ने की थी, और सोन-मियानी खाड़ी के पूर्व में विदर नदी के तट पर डाबरकोट, जिसकी खोज आरेल स्टाइन ने की थी, और विन्दार नदी के तट पर बालाकोट स्थित है |  बालाकोट में अत्यधिक मात्रा में सीप की बनी चूड़ियाँ आदि मिली है | सम्भवतः यहाँ पर एक समृद्ध सीप उद्योग था | बालाकोट में विशाल इमारतों के अवशेष प्राप्त हुए है |

सिन्ध प्रान्त में अलीमुराद, कोटदीजी, मोहनजोदड़ो और चन्हुदड़ो स्थित है | कोटदीजी के उत्खनन से हड़प्पा-सभ्यता के नीचे एक और संस्कृति के अवशेष प्राप्त हुए है, जिसे ‘कोटदीजी संस्कृति’ कहा जाता है | चन्हुदड़ो का उत्खनन मैके महोदय ने कराया था | यहाँ हड़प्पा-सभ्यता के साथ-साथ ‘झूकर-संस्कृति’ और ‘झांगर-संस्कृति’ के भी अवशेष मिले है | चन्हुदड़ो में मनका बनाने का कारखाना (Bead Factory) मिला है | चन्हुदड़ो से प्राप्त एक ईट पर कुत्ते और बिल्ली के पंजो के निशान मौजूद है | सम्भवतः जब ईंटे धूप में सुखाई जा रही होंगी तब किसी कुत्ते ने बिल्ली का पीछा किया होंगा और इस ईट पर पड़े उनके पैर के निशान आज इतिहास के पन्नों में दर्ज हो गये | पंजाब प्रान्त में हड़प्पा, रोपड़, बाड़ा और संघोल स्थित है |

उत्तर-प्रदेश के मेरठ प्रान्त में हिण्डन नदी (यमुना नदी की सहायक) के तट पर आलमगीरपुर स्थित है |

गुजरात में रंगपुर (भादर नदी के तट पर), धौलावीरा (कच्छ जिला), लोथल (अहमदाबाद में ), मालवण (सूरत जिले में ताप्ती नदी के तट पर स्थित था), रोजदि (भादर नदी के तट पर) और सुरकोतड़ा (कच्छ जिले में स्थित) स्थित है | धौलावीरा वर्तमान भारत में स्थित दो विशालतम हड़प्पाई स्थलों (दूसरा राखीगढ़ी) में से एक है | धौलावीरा के प्राचीन टीलों की खोज सर्वप्रथम जे.पी.जोशी द्वारा की गयी थी परन्तु इसका व्यापक उत्खनन आर.एस.बिष्ट ने कराया था | धौलावीरा के उत्खनन से एक लगभग 42 फीट लम्बा जलाशय प्राप्त हुआ है, जिसमे वर्षा का पानी एकत्र किया जाता था | सुरकोतड़ा के कब्रिस्तान से शवाधान की एक नई विधि ‘कलश-शवाधान’ (अस्थि-कलश) का साक्ष्य मिला है |

आमरी सिन्धु प्रान्त में स्थित एक आरम्भिक हड़प्पा-कालीन बस्ती थी | यहाँ के निवासी मिटटी के बर्तनों पर कूबड़ वाले बैल आदि की आकृति बनाते थे, जो परिपक्व हड़प्पा काल में अत्यधिक लोकप्रिय था | उल्लेखनीय है कि यहाँ के निवासीयों ने अपनी बस्तियों की किलेबंदी हड़प्पा सभ्यता के शुरू होने से पहले ही कर ली थी |

धौलावीरा

  • धौलावीरा गुजरात के कच्छ जिले के भचाऊ तालुक में स्थित है |
  • धौलावीरा की खोज जे.पी. जोशी ने की थी और आर.एस. विष्ट ने यहाँ व्यापक पैमाने पर उत्खनन कार्य किया था |
  • धौलावीरा तीन भागों – दुर्ग, मध्यम नगर और निचला नगर – में विभाजित था |
  • धौलावीरा का क्षेत्रफल 100 हेक्टेयर था | अतः यह भारत में स्थित दो विशालतम हड़प्पाई स्थलों में से एक है | (दूसरा हड़प्पाई स्थल राखीगढ़ी है जोकि हरियाणा में अवस्थित है |)
  • धौलावीरा में हड़प्पा लिपि के दस ऐसे अक्षर मिले है जो काफी बड़े है |
  • धौलावीरा से पालिशदार श्वेत पाषाण खण्ड (Polished Stone Blocks) बड़ी संख्या में प्राप्त हुए है |
  • धौलावीरा से 12.80 मीटर लम्बा एक तालाब खुदाई में मिला है, वर्षा का पानी एकत्र करने के लिए जलमार्ग बनाया गया था |
  • धौलावीरा से घोड़े की कलाकृतियों के अवशेष प्राप्त हुए है |

बनावली

  • बनावली हरियाणा के हिसार जिले में अवस्थित है |
  • बनावली का उत्खनन वर्ष 1973-74 में आर.एस. विष्ट ने करवाया था |
  • बनावली से प्राक् हड़प्पा, विकसित हड़प्पा और उत्तर हड़प्पा संस्कृति के साक्ष्य मिले है |
  • बनावली के प्राक् हड़प्पा स्तर से भी नगर नियोजन का साक्ष्य प्राप्त हुआ है |
  • बनावली में दुर्ग व निचला नगर अलग-अलग न होकर एक ही प्राचीर युक्त घेरे में निर्मित थें |
  • बनावली में दुर्ग की अलग से किलेबंदी की गयी थी |
  • बनावली के प्रायः सभी मकानों के सामने चबूतरे बने मिले है |
  • बनवाली से काफी मात्रा में अच्छे किस्म के जौ के दाने प्राप्त हुए है |
  • बनावली के एक घर से वाश-बेसिन (wash-basin) लगा हुआ प्राप्त हुआ है |
  • बनावली के कई घरों से अग्निवेदियाँ प्राप्त हुई है |
  • बनावली से पकी मिट्टी का बना हल (खिलौना) प्राप्त हुआ है |
  • बनवाली की सडकें नगर को तारांकित (star shaped) भागों में विभाजित करती है |
  • बनावली से मकानों पर मिट्टी के लेप के साक्ष्य मिले है |
  • यहाँ जल-निकास प्रणाली का अभाव दिखाई देता है |

चन्हुदड़ो

  • चन्हुदड़ो की खोज वर्ष 1934 में एन.जी. मजूमदार ने की थी |
  • यह मोहनजोदड़ो के लगभग 130 किलोमीटर दक्षिण-पूर्व में सिंधु नदी के किनारे अवस्थित है |
  • चन्हुदड़ो का उत्खनन वर्ष 1935 में मैके द्वारा करवाया गया था |
  • चन्हुदड़ो से झूकर और झांकर संस्कृति के साक्ष्य प्राप्त हुए है |
  • मैके ने यहाँ से मनके (bead) बनाने का कारखाना तथा भट्टी की खोज की |
  • चन्हुदड़ो से किलेबंदी के साक्ष्य नही मिले है |
  • चन्हुदड़ो से कुछ वक्राकार (curved) ईटें प्राप्त हुई है |
  • चन्हुदड़ो से तांबे की बनी दो गाड़ियों के मॉडल प्राप्त हुए है |
  • चन्हुदड़ो से खिलौना बनाने के कारखाने का साक्ष्य प्राप्त हुआ है |
  • चन्हुदड़ो से प्राप्त ईंट पर एक बिल्ली का पीछा करते हुए कुत्ते के पंजों के निशान मिले है |
  • चन्हुदड़ो से लिपिस्टिक के साक्ष्य मिले है |

कुछ अन्य महत्वपूर्ण स्थल

रोपड़ (Rupar) : हड़प्पा सभ्यता का रोपड़ स्थल पंजाब में सतलज नदी के तट पर अवस्थित है | यह भारत में ऐसा हड़प्पाई स्थल है जहाँ स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद सबसे पहले उत्खनन हुआ था | रोपड़ का आधुनिक नाम रूपनगर है | इसकी खोज वर्ष 1950 में बी.बी. लाल ने की और वर्ष 1953-55 के दौरान यज्ञ दत्त शर्मा ने इसकी खुदाई करवाई थी | रोपड़ में संस्कृति के छह चरण मिले है, जिसमे प्रथम चरण ही हड़प्पा कालीन है | रोपड़ में एक ऐसा कब्रिस्तान मिला है जिसमे मानव के साथ पालतू कुत्ता भी दफनाया गया था, ऐसा उदाहरण किसी भी हड़प्पाकालीन स्थल से नही प्राप्त हुआ है | यहाँ शवों को अण्डाकार गढ्ढों में दफनाया जाता था |

माण्डा (Manda) : माण्डा हड़प्पा सभ्यता का सबसे उत्तरी स्थल है | यह जम्मू से लगभग 28 किलोमीटर की दूरी पर चेनाब नदी के तट पर अवस्थित है | वर्ष 1982 में जे.पी. जोशी और मधुबाला ने यहाँ उत्खनन करवाया था | यहाँ से प्राक् हड़प्पा, विकसित हड़प्पा और उत्तरकालीन हड़प्पा संस्कृति के साक्ष्य मिले है |

सुरकोतदा (Surkotada) : सुरकोतड़ा गुजरात के कच्छ जिले में अवस्थित है | यह नगर दो दुर्गीकृत भागों – गढ़ी और आवास क्षेत्र – में विभाजित था | गढ़ी क्षेत्र में भवनों को ठोस मिट्टी के चबूतरें पर बनाया गया था और वें आवासीय क्षेत्र के भवनों से बड़े है | गढ़ी की सुरक्षा दीवार में दो प्रवेश थें – एक दक्षिण की तरफ और दूसरा पूरब की तरफ | दुर्गीकृत क्षेत्र के दक्षिण-पश्चिम में एक कब्रिस्तान प्राप्त हुआ है जहाँ शावाधन की एक नई विधि ‘कलश शवाधान’ का उदाहरण प्राप्त होता है | सुरकोतड़ा से पत्थर की चिनाई वाले भवनों क्र साक्ष्य भी मिले है | सुरकोतदा से घोड़े की कुछ हड्डियाँ प्राप्त हुई है |

सुत्कागेनडोर (Sutkagen Dor) : सुत्कागेनडोर हड़प्पा सभ्यता का सबसे पश्चिमी स्थल है | यह पाकिस्तान के मकरान में समुद्रतट से उत्तर में दाश्क नदी के पूर्वी किनारे पर अवस्थित है | सुत्कागेनडोर की खोज वर्ष 1927 में स्टाइन ने की थी | वर्ष 1962 में जार्ज डेल्स ने इस स्थल का सर्वेक्षण किया और उन्हें यहाँ पर बंदरगाह, दुर्ग व निचले नगर की रूपरेखा प्राप्त हुई | इसका दुर्ग एक प्राकृतिक चट्टान के ऊपर व उसके आप-पास था | जार्ज डेल्स दुर्ग में हड़प्पा संस्कृति के तीन चरणों की पहचान की थी | डेल्स के अनुसार मूलतः समुद्र सुत्कागेनडोर के बहुत निकट था तथा इस स्थल ने एक बंदरगाह के रूप में हड़प्पा सभ्यता व बेबीलोन के बीच होने वाले व्यापार में अहम भूमिका निभाई होगी | वर्तमान में कुछ प्राकृतिक परिवर्तनों की वजह से यह स्थान समुद्र से बहुत दूर हो गया है | सुत्कागेनडोर से एक तांबे का बना बाणाग्र, तांबे के बने ब्लेड के टुकड़े, मिट्टी की चूड़ियाँ आदि प्राप्त हुए है |

सोत्काकोह (Sotka Koh) : शादी-कौर नदी की घाटी में सुत्कागेनडोर के पूर्व में सोत्काकोह स्थल अवस्थित है | इसकी खोज वर्ष 1962 में डेल्स ने की थी | अनुमानतः सोत्काकोह आकार-प्रकार में सुत्कागेनडोर की भांति था | ऐसा माना गया है कि सोत्काकोह बंदरगाह न होकर समुद्र तट व समुद्र से दूरवर्ती भू-भाग के बीच व्यापार का केंद्र रहा होगा |   

बालाकोट (Balakot) : बालाकोट बलूचिस्तान के दक्षिणी तटवर्ती पट्टी पर अवस्थित है, जो हड़प्पा काल में एक बंदरगाह के रूप में कार्य करता था | बालाकोट का उत्खनन डेल्स ने करवाया था | यहाँ से प्राक् हड़प्पा और विकसित हड़प्पा सभ्यता के साक्ष्य मिले है | बालाकोट का सबसे समृद्ध उद्योग सीप-उद्योग (Shell Industry) था | यहाँ से बड़ी संख्या में सीप की बनी चूडियाँ प्राप्त हुई है |

कोटदीजी (Kot Diji) : कोटदीजी पाकिस्तान के सिंध प्रांत में अवस्थित है | इसकी खुदाई पाकिस्तान पुरातत्त्व विभाग के निदेशक फजल अहमद खां द्वारा करवाई गयी थी | कोटदीजी से प्राक् हड़प्पा और हड़प्पा स्तर प्राप्त हुए है | यहाँ प्राक् हड़प्पा बस्ती में भी किलेबंदी के साक्ष्य प्राप्त हुए है | पुरातात्विक साक्ष्यों से माना जाता है कि कोटदीजी की प्राक् हड़प्पा बस्ती अग्निकांड से नष्ट हुई थी तथा फिर हड़प्पाई लोग इस स्थल पर आकर बस गये थें |

राखीगढ़ी (Rakhigarhi) : राखीगढ़ी हरियाणा में अवस्थित है | यह हड़प्पा सभ्यता का सबसे बड़ा और विस्तृत स्थल है | राखीगढ़ी की खोज सूरजभान ने की थी |

देसलपुर (Desalpar) : देसलपुर कच्छ क्षेत्र में अवस्थित है | यहाँ सेलखड़ी और तांबे की एक-एक मुहर मिली है |

रंगपुर (Rangpur) : रंगपुर गुजरात के कठियावाड़ प्रायद्वीप में भादर नदी के निकट अवस्थित है | इसकी खुदाई ए. रंगनाथ ने की थी | यहाँ पूर्व हड़प्पा कालीन संस्कृति के अवशेष प्राप्त हुए है | रंगपुर से धान की भूसी के ढेर मिले है |

रोजदी (Rojdi) : रोजदी गुजरात के सौराष्ट्र जिले में अवस्थित है | यहाँ प्राक् हड़प्पा, हड़प्पा और उत्तर हड़प्पा संस्कृति के स्तर मिले हैं | यहाँ से हाथी के अवशेष प्राप्त हुए है |

आलमगीरपुर (Alamgirpur) : आलमगीरपुर हड़प्पा सभ्यता का सर्वाधिक पूर्वी पुरास्थल है | यह उत्तर प्रदेश के मेरठ जिले में यमुना की सहायक हिण्डन नदी पर अवस्थित है | इसकी खोज वर्ष 1958 में यज्ञ दत्त शर्मा ने की थी | यह गंगा-यमुना दोआब में पहला स्थल था जहाँ से हड़प्पा कालीन प्रकाश में आये थें |