विदेशी यात्रियों के विवरण | Videshi Yatriyon Ka Vivaran

Videshi Yatriyon Ka Vivaran

प्राचीन भारत के इतिहास के अंतर्गत इस लेख में हम “विदेशी यात्रियों के विवरण” (Videshi Yatriyon Ka Vivaran) पर जानकारी प्राप्त करेंगें | विद्यादूत में इसके पूर्व हमने प्राचीन भारत अध्याय के अंतर्गत “प्राचीन भारत के साहित्यिक स्रोत” और “बौद्ध साहित्य” पर महत्वपूर्ण लेख प्रस्तुत किया था | विदेशी यात्रियों के विवरण टॉपिक प्राचीन भारतीय इतिहास के स्रोत के अंतर्गत इतिहास जानने के साधन के अंतर्गत आता है | यह लेख UPSC (Pre & Mains) की तैयारी कर रहें अभ्यर्थियों के लिए विशेष उपयोगी है |

प्राचीन भारत के इतिहास का पुनर्निर्माण करने के लिए हमारे पास अनेक प्रकार के स्रोत है | हम मुख्य रूप से प्राचीन भारत के इतिहास के स्रोतों को दो स्रोतों में वर्गीकृत कर सकते है – एक साहित्यिक स्रोत और दूसरा पुरातात्विक स्रोत |

जहाँ साहित्यिक स्रोतों में वैदिक, संस्कृत, पालि, प्राकृत आदि साहित्यों के अलावा विदेशियों के द्वारा लिखे गये वृत्तांतों (विदेशी यात्रियों के विवरण) को शामिल किया जाता है | वही पुरातात्विक स्रोतों में हम अभिलेखों, मुद्राओं और स्मारकों का अध्ययन करते है |

भारत के प्राचीन इतिहास की बहुत सारी महत्वपूर्ण जानकारियों के लिए हम विदेशी यात्रियों और लेखकों के ऋणी है |

विदेशी लेखक व यात्री धर्मेतर घटनाओं में विशेष रूचि लेते थें | इसीलिए उनके विवरणों से भारत की राजनीतिक व सामाजिक दशा पर अधिक प्रकाश पड़ता है |

उल्लेखनीय है कि इन विदेशी लेखकों का समय भी प्रायः निश्चित है, अतः इनके विवरण भारतीय लेखकों के विवरण की अपेक्षा अधिक महत्वपूर्ण व उपयोगी माने गये है |

लेकिन हमे यह ध्यान रखना है कि विदेशी लेखक व यात्री भारतीय परिस्थितियों और भाषा से अनभिज्ञ थें, इसलिए उनके सभी विवरण पूर्णतया सही नही है |

अनेक यूनानी, रोमन, अरबी और चीनी यात्री पर्यटक बनकर अथवा भारतीय धर्म को अपनाकर भारत आये और उन्होंने तत्कालीन भारत के स्वयं के अनुभव पर आधारित विवरण लिख छोड़ें |

विदेशी यात्रियों के विवरण भारत के इतिहास के लिए कितने महत्वपूर्ण है, इसकी जानकारी हमें ‘सिकंदर के भारत आक्रमण’ के विदेशी विवरण से हो जाती है |

शायद आपको जानकर आश्चर्य होगा कि भारतीय स्रोतों से हमें भारत पर सिकन्दर आक्रमण की कोई भी जानकारी प्राप्त नही होती है |

इसका तात्पर्य यह है कि सिकंदर के भारत पर हमले और इससे सम्बन्धित अन्य जानकारियों के लिए हमें पूर्णतया विदेश स्रोतों (यूनानी स्रोतों) पर निर्भर रहना पड़ता है |

326 ईसा पूर्व में भारत पर आक्रमण करने वाले सिकंदर के समकालीन के रूप में सैंड्रोकोटस में नाम का वर्णन यूनानी लेखकों ने किया है | आधुनिक इतिहासकारों ने यह सिद्ध किया है कि यूनानी लेखकों का यह सैंड्रोकोटस और मौर्य राजा चन्द्रगुप्त एक ही व्यक्ति थें |

सैंड्रोकोटस और चन्द्रगुप्त की यह पहचान प्राचीन भारत के तिथिक्रम के लिए मुख्य आधारशिला सिद्ध हुई | आपकों बता दें कि विद्वानों ने चन्द्रगुप्त मोर्य के सिंहासनारोहण की तिथि 322 ईसा पूर्व निर्धारित की है |

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यूनानी-रोमन (क्लासिकल) लेखक | विदेशी यात्रियों के विवरण

यूनानी लेखकों को हम निम्नलिखित तीन वर्गों में रख सकते है –

  1. सिकंदर के पूर्व के यूनानी लेखक
  2. सिकंदर के समकालीन यूनानी लेखक
  3. सिकंदर के बाद के यूनानी लेखक

सिकंदर के पूर्व के यूनानी लेखक

यूनान के प्राचीनतम लेखको में टेसियस और हेरोडोटस महत्वपूर्ण है | इन दोनों ने भारत के विषय में अपनी जानकारी ईरान से प्राप्त की थी | टेसियस ईरान का राजवैद्य था | इसने भारत के विषय में ईरानी अधिकारियों से प्राप्त जानकारी के आधार पर अपना विवरण लिखा था | इसका विवरण आश्चर्यजनक कहानियों से परिपूर्ण होने की वजह से विश्वासयोग्य नही माना जाता है |

हेरोडोटस को इतिहास का पिता कहा जाता है | उसने हिस्टोरिका (Historica) नामक ग्रन्थ की रचना की, जिससे पाँचवी शताब्दी ई.पू. के भारत-फारस के सम्बन्ध की जानकारी प्राप्त होती है | लेकिन इसका विवरण भी अनुश्रुतियों और अफवाहों पर आधारित होने के कारण विश्वासपूर्ण नही माना जाता है |

सिकंदर के समकालीन यूनानी लेखक

सिकंदर के समकालीन लेखकों में नियार्कस, अरिस्टोवुलस और आनेसिक्रिटस का नाम प्रमुख है | इनका विवरण अपेक्षाकृत अधिक प्रामाणित और विश्वसनीय माना जाता है |

चूँकि ये लेखक सिकंदर के साथ भारत आये थें और इनके लेखन का उद्देश्य अपने देशवासियों को भारत सम्बन्धी विश्वसनीय जानकारी देना था | इसलिए इनका विवरण यथार्थ है |

सिकंदर के बाद के यूनानी लेखक

सिकन्दर के बाद के लेखकों में तीन राजदूतों, जोकि मेगस्थनीज, डाइमकस और डायोनिसियस हैं, नाम सर्वप्रमुख है | यें यूनानी राजाओं द्वारा पाटलिपुत्र के मौर्य राजदरबार में भेजें गये थें | इन तीनों में मेगस्थनीज का नाम सर्वाधिक प्रसिद्ध है |

मेगस्थनीज चन्द्रगुप्त मौर्य के दरबार में सेल्यूकस ‘निकेटर’ के राजदूत के रूप में आया था | मेगस्थनीज ने इंडिका की रचना की थी | उसने इंडिका में मौर्यकालीन समाज और संस्कृति के विषय में लिखा है |

‘इंडिका’ पुस्तक अब हमे अपने मूल रूप में उपलब्ध नही है, लेकिन इसके कुछ अंश एरियन, स्ट्रेबो, जस्टिन आदि लेखको ने ग्रंथो में दिए है | इन अंशों को एक साथ मिलाकर पढ़ने पर हमें न केवल मौर्य राजव्यवस्था के विषय में ही बल्कि मौर्य काल की सामाजिक व आर्थिक क्रियाकलापों के विषय में भी महत्वपूर्ण जानकारी प्राप्त होती है |

यद्यपि इंडिका अतिरंजित बातों से मुक्त नही है, लेकिन यूनानियों द्वारा भारत के विषय में प्राप्त ज्ञानराशी में इंडिका सबसे अमूल्य रत्न है |

‘डायोनीसियस’ को मिस्र के टोलेमी फिलाडेलफस ने मौर्य राजा बिन्दुसार के दरबार में अपना राजदूत बनाकर भेजा था | सीरिया के राजा अन्तियोकस ने भी बिन्दुसार के दरबार में अपना राजदूत ‘डाइमेकस, को भेजा था | इनके विवरण से भी महत्वपूर्ण जानकारी प्राप्त होती है |

ईसा की प्रथम व द्वितीय सदियों के यूनानी व रोमन विवरणों में हमें भारत के बंदरगाहों के उल्लेख प्राप्त होते है, साथ ही भारत व रोमन साम्राज्य के मध्य होने वाले व्यापार की वस्तुओं का भी वर्णन मिलता है |

यूनानी भाषा में लिखी गयी पेरिप्लस ऑफ दि एरिथ्रियन सी नामक पुस्तक की रचना एक अज्ञात यूनानी लेखक, जो मिस्र में जा बसा था, ने लगभग 80 ई. में भारतीय तट की अपनी यात्रा के आधार पर की थी |

उसने भारतीय समुद्री तटो के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी दी है | उसने लाल सागर, फारस की खाड़ी और हिन्द महासागर में होने वाले रोमन व्यापार का विवरण दिया है |

ज्योग्राफी नामक ग्रन्थ की रचना दूसरी शताब्दी ईस्वी में टोलेमी ने यूनानी भाषा में की थी | यह भारत के बारे में एक भौगोलिक निबंध (ज्योग्राफी) था, जो भारत से सम्बधित है |

‘पेरिप्लस ऑफ दि एरिथ्रियन सी’ और ‘ज्योग्राफी’ में हमे प्राचीन भूगोल व वाणिज्य के अध्ययन के लिए भरपूर महत्वपूर्ण सामग्री प्राप्त होती है |

नेचुरलिस हिस्टोरिका की रचना प्लिनी ने प्रथम शताब्दी ईस्वी में की थी | यह ग्रन्थ लैटिन भाषा में है और इससे हमें भारत व इटली के मध्य होने वाले व्यापार की जानकारी प्राप्त होती है | भारतीय पेड़-पौधों, पशुओ, और खनिज पदार्थो आदि के बारे में भी उसने महत्वपूर्ण जानकारी दी है |

चीनी लेखक | विदेशी यात्रियों के विवरण

प्राचीन भारतीय इतिहास के पुनर्निर्माण में चीनी यात्रियों द्वारा दिए गये विवरण भी विशेष महत्वपूर्ण है | वें हमारे देश में बौद्ध तीर्थों का दर्शन करने अथवा बौद्ध धर्म के विषय में जानकारी प्राप्त करने आये थें | यही कारण है कि चीनी यात्रियों के विवरणों का झुकाव कुछ हद तक बौद्ध धर्म की तरफ है |

चीनी यात्री भारत को यिन-तु (Yin-tu) कहते थे | चीनी यात्रियों में फाहियान और हुएनसांग प्रमुख है | दोनों बौद्ध थे और बौद्ध तीर्थो का दर्शन और बौद्ध धर्म का अध्ययन करने भारत आये थे |

फाहियान गुप्त राजा चंदगुप्त द्वितीय ‘विक्रमादित्य’ के दरबार में आया था | वह मध्यदेश के समाज और संस्कृति बारे जानकारी देता है | अपने विवरण में फाहियान मध्यदेश की प्रजा को सुखी और समृद्ध बताता है |

फाहियान 14 वर्ष भारत में रहा | उसने विशेष रूप से भारत में बौद्ध धर्म की स्थिति की जानकारी दी है | उसने गुप्तकालीन भारत की सामाजिक, धार्मिक और आर्थिक स्थिति का वर्णन किया है, लेकिन उसे तत्कालीन भारतीय राजनितिक स्थिति से कोई सरोकार नही था |

फाहियान के यात्रा विवरण को फ़ो-क्यो-की के नाम से जाना जाता है |

हुएनसांग अथवा युवानच्वांग पुष्यभूति वंश के राजा हर्षवर्धन (606-647 ई.) के शासनकाल में भारत आया था | हुएनसांग (ह्वेनसांग) ने हर्षवर्धन का उल्लेख बौद्ध धर्म के अनुयायी के रूप में किया है |

हुएनसांग (ह्वेनसांग) ने हर्षवर्धन के शासनकाल में कन्नौज और प्रयाग में आयोजित हुई दो विशाल धार्मिक सभाओं का उल्लेख किया है | कन्नौज की सभा का आयोजन हुएनसांग (ह्वेनसांग) के सम्मान में किया गया था |

वह भारत में 16 वर्ष रहा तथा नालन्दा विश्वविद्यालय में 6 वर्षो तक रहकर शिक्षा प्राप्त की थी | उसने तत्कालीन समाज, धर्म और राजनीति का विवरण दिया है |

हुएनसांग (युवानच्वांग) का यात्रा विवरण सि-यु-की नाम से जाना जाता है, जिसमे सौ से अधिक देशो का विवरण मिलता है | हुएनसांग (ह्वेनसांग) को प्रिंस ऑफ पिलग्रिम्स (यात्रियों का राजकुमार), नीति का पण्डित और वर्तमान शाक्यमुनि कहा जाता है |

ह्वेनसांग के मित्र ह्वीली ने हुएनसांग की जीवनी (Life of Hiuen T’sang) लिखी, जो हर्षवर्धन कालीन भारत की दशा की जानकारी के लिए एक महत्वपूर्ण स्रोत है |

इत्सिंग नामक चीनी यात्री सातवी शताब्दी के अंत में भारत आया था | उसने अपने विवरण में नालन्दा व विक्रमशीला विश्वविद्यालय के बारे में तथा भारतीयों के पहनावे, खानपान आदि के विषय में जानकारी दी है |

अरब के लेखक | विदेशी यात्रियों के विवरण

पूर्व मध्यकालीन भारत के समाज एवं संस्कृति के विषय में हमें जानकारी सर्वप्रथम अरब लेखकों व व्यापारियों द्वारा दिए गये विवरणों से प्राप्त होती है | इन अरबी लेखको व व्यापारियों में अलबरुनी, सुलेमान और अलमसूदी प्रमुख है |

आपको बता दें कि भारतीय इतिहास लेखन का दूसरा महत्वपूर्ण चरण अलबरुनी से आरम्भ होता है |

अरब लेखको में सबसे महत्वपूर्ण ‘अलबरुनी’ था | इसका पूरा नाम ‘अबूरेहान मुहम्मद इब्न अहमद अलबरुनी’ था | अलबरुनी (अबूरेहान) का जन्म 973 ई. में ख्वारिज्म (खीवा) में हुआ था और इसकी मृत्यु 1048 ई. में गजनी (वर्तमान अफगानिस्तान) में हुई थी |

अलबरुनी महमूद गजनी का राजज्योतिषी था तथा महमूद के भारत-आक्रमण के समय उसके साथ भारत आया था |

अलबरुनी गणित, विज्ञान, ज्योतिष के साथ-साथ अरबी, फारसी और संस्कृत भाषाओं का विद्वान था | उसने अपने ग्रन्थ तहकीक-ए-हिन्द (किताब-उल-हिन्द) में भारत का अत्यंत तर्कसंगत वर्णन लिखा है |

उसके द्वारा लिखी गयी बातें भारतीय समाज और संस्कृति के बारे में उसके अध्ययन पर आधारित था, जो उसने उस समय उपलब्ध भारतीय साहित्य के माध्यम से अर्जित किया था |

भारतीय संस्कृति के अध्ययन में उसे विशेष रूचि थी और वह भारत के लोगों के दर्शन, ज्योतिष व विज्ञान सम्बन्धी ज्ञान की प्रशंसा करता है |

अलबरुनी (अबू रिहन/अबूरेहान) भारतीय विद्वानों के इतिहास विषय सम्बन्धी अल्प ज्ञान की आलोचना करते हुए कहता है कि हिन्दू लोग घटनाओं के ऐतिहासिक क्रम की तरफ बहुत ज्यादा ध्यान नही देतें | वें घटनाओं के तिथिक्रमानुसार वर्णन करने में बहुत लापरवाही करते है |

अलबरुनी व्यंग्यपूर्वक कहता है कि ‘हिन्दू यह सोचते है कि उनके देश जैसा कोई अन्य देश नही है, उनके राष्ट्र जैसा अन्य कोई राष्ट्र नही है, उनके राजा जैसा कोई राजा नही है, उनके धर्म जैसा कोई धर्म नही है, उनके विज्ञान जैसे कोई विज्ञान नही है |”

वह यह भी कहता है कि हिन्दुओं के पूर्वज इतने संकीर्ण विचारों के नही थें जितने कि इस काल (ग्यारहवीं शताब्दी) के हिन्दू है |

अलबरुनी दुःख प्रकट करते हुए भारतीयों पर आरोप लगाता है कि हिन्दू यह नही मानते है कि जो वस्तु एक बार अपवित्र हो चुकी है, उसे दुबारा शुद्ध करके अपना लिया जाये |

अलबरुनी ने अपने व्यक्तिगत अनुभव के आधार पर कुछ नही लिखा था और न ही उसने अपने समय की राजनितिक परिस्थिति के विषय में कोई जानकारी दी थी |

अरब यात्री सुलेमान नवी शताब्दी में भारत आया था | उसने पाल वंश और प्रतिहार वंश के राजाओ के विषय में जानकारी दी है |

बगदाद का यात्री अलमसूदी 915-16 ई. में भारत आया था | उसने राष्ट्रकूट और प्रतिहार राजाओं के विषय में जानकारी दी है |

कमिल-उत-तवारीख की रचना शेख अब्दुल हसन ने की थी | इससे मुहम्मद गौरी के भारत-आक्रमण का विवरण प्राप्त होता है |

यूरोपीय यात्रियों में मार्कोपोलो प्रमुख है | मार्कोपोलो वेनिस (इटली) से आया था | इसने दक्षिण के पाण्ड्य राज्य के विषय में जानकारी दी है | मार्कोपोलो का वृत्तान्त पाण्ड्य राज्य के इतिहास की जानकारी के लिए महत्वपूर्ण है |

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