Prachin Bharatiya Itihas Ka Sahityik Srot | साहित्यिक स्रोत

Prachin Baratiya Itihas Ka Sahityik Srot

प्राचीन भारतीय इतिहास का साहित्यिक स्रोत (Prachin Bharatiya Itihas Ka Sahityik Srot) : विद्यादूत के इस लेख में हम प्राचीन भारत के साहित्यिक स्रोत पर चर्चा करेंगे | साहित्यिक स्रोत (साहित्यिक साक्ष्य) प्राचीन भारतीय इतिहास जानने के तीन साधनों में से एक है | प्राचीन भारतीय इतिहास को जानने के अन्य दो साधन ‘विदेशी यात्रियों के विवरण’ और ‘पुरातत्व सम्बन्धी साक्ष्य’ है |

इस लेख में हम केवल साहित्यिक स्रोत का ही वर्णन करेंगें और अन्य दोनों साधनों की व्याख्या हम अगले लेखों में करेंगे | साहित्यिक स्रोत (साहित्यिक साक्ष्य) के अंतर्गत हम साहित्यिक ग्रन्थों से प्राप्त ऐतिहासिक सामग्रियों का अध्ययन करते है |

साहित्यिक स्रोत (साहित्यिक साक्ष्य) को दो भागों में बांटा गया है – धार्मिक साहित्य और लौकिक साहित्य | धार्मिक साहित्य में ब्राह्मण और ब्राह्मणेतर साहित्य आते है |

ब्राह्मण साहित्यों में वेद, उपनिषद्, पुराण, रामायण, महाभारत और स्मृति ग्रन्थ आते है जबकि ब्राह्मणेतर साहित्यों में बौद्ध और जैन साहित्यों को रखा गया है | लौकिक साहित्य में ऐतिहासिक ग्रंथ, जीवनी, कल्पना-प्रधान व गल्प साहित्य आते है |

Prachin Bharatiya Itihas Ka Sahityik Srot | साहित्यिक स्रोत

प्राचीन भारत के साहित्यिक स्रोत (Prachin Bharatiya Itihas Ka Sahityik Srot) के अंतर्गत निम्नलिखित पर प्रकाश डाला गया है –

  • वेद
  • ब्राह्मण ग्रंथ
  • आरण्यक
  • उपनिषद्
  • वेदांग
  • महाकाव्य
  • धर्मशास्त्र
  • पुराण
  • जैन साहित्य
  • बौद्ध साहित्य
  • लौकिक साहित्य

यद्यपि प्राचीन भारत के लोगों को लिपि का ज्ञान 2500 ई.पू. में हो चुका था, लेकिन हमे जो प्राचीनतम पांडुलिपियाँ प्राप्त हुई है वों ईसा की चौथी सदी के पूर्व की नही है, और वें भी मध्य-एशिया से मिली है |

भारत में पांडुलिपियाँ भोजपत्रों व तालपत्रों पर लिखी मिली है, लेकिन मध्य एशिया में यें पांडुलिपियाँ मेषचर्म व काष्ठफलकों पर भी प्राप्त हुई है | यद्यपि इन्हें अभिलेख कहा जा सकता है लेकिन यें एक प्रकार की पांडुलिपियाँ ही हैं |

ये भी देखें – UPSESSB PGT History Study Material in Hindi

जहाँ तक प्राचीनतम पांडुलिपियों का प्रश्न है तो आपको बता दे कि वैसे तो सम्पूर्ण भारत में संस्कृत की प्राचीन पांडुलिपियाँ प्राप्त हुई है, लेकिन इनमे से ज्यादातर दक्षिण भारत, कश्मीर और नेपाल से मिली है |

Prachin Bharatiya Itihas Ka Sahityik Strot

जैसा कि हमने ऊपर बताया था कि साहित्यिक स्रोत (साहित्यिक साक्ष्य) को दो भागों ने विभाजित किया गया है – धार्मिक साहित्य और लौकिक साहित्य | सबसे पहले हम धार्मिक साहित्य पर चर्चा करेंगें |

प्राचीन भारतीय इतिहास का धार्मिक साहित्य

प्राचीन भारतीय इतिहास के धार्मिक साहित्य को दो भागों में विभाजित किया गया है – ब्राह्मण साहित्य और ब्राह्मणेतर साहित्य |

प्राचीन भारत का ब्राह्मण साहित्य

ब्राह्मण साहित्य में हम वेद, उपनिषद्, महाकाव्य, पुराण और धर्मशास्त्र की चर्चा करेंगे |

वेद (Ved)

वेद का अर्थ ‘ज्ञान’ होता है | वेदों के संकलनकर्ता कृष्णद्वैपायन वेदव्यास को माना जाता है | वेद चार है – ऋग्वेद, सामवेद, यजुर्वेद अथर्ववेद | इन चारो वेदों को संहिता कहा जाता है | ऋग्वेद, सामवेद, और यजुर्वेद को एक साथ वेदत्रयी भी कहा जाता है |

ऋग्वेद (Rigved)

ऋग्वेद भारतीय आर्यों की प्राचीनतम रचना है | इसकी रचना काल 1500 ई.पू. से 1000 ई.पू. मानी जाती है | ऋग्वेद आर्यों की प्रथम रचना है | सम्भवता आर्यों ने इसकी रचना पंजाब में की थी | यज्ञ के अवसर पर ऋग्वेद के मन्त्रो का उच्चारण करने वाला पुरोहित ‘होता’ कहलाता था |

ऋग्वेद में कुल 10 मंडल (सर्ग) है | मण्डल अनुवाक, अनुवाक सूक्त और सूक्त मंत्र या ऋचाओं में विभाजित है | ऋग्वेद के दसों मण्डलों में 85 अनुवाक और 1017 मूल सूक्त है | इनमें 11 बालखिल्य सूक्तों को मिला देनें पर ऋग्वेद के सूक्तों की कुल संख्या 1028 हो जाती है |

ये भी देखें – UPPSC RO ARO Syllabus PDF in Hindi – PDF FREE DOWNLOAD

आपको बता दे कि ऋग्वेद के आठवे मंडल में मिली हस्तलिखित प्रतियों के परिशिष्ट को ‘खिल’ कहा जाता है | ऋग्वेद के सभी सूक्तों के ऋचाओं (मंत्रों) की संख्या 10,552 (लगभग 10,600) है |

ऋग्वेद की हर ऋचा के साथ उससे सम्बन्धित ऋषि व देवता का भी उल्लेख भी क्या गया है | ऋग्वेद के सूक्तों की रचना में स्त्रियों का भी योगदान है | ऋग्वेद की मुख्य महिला रचयिता थी – घोषा, लोपामुद्रा, अपाला, विश्ववारा प्रमुख है | इनमे लोपामुद्रा सर्वप्रमुख थी, जोकि क्षत्रिय वर्ण की थी और उनका विवाह अगस्त्य ऋषि से हुआ था | ऋग्वेद के पुरुष रचयिताओं में गृत्समद, विश्वामित्र, अत्रि, वामदेव, भारद्वाज, वसिष्ठ प्रमुख है |

ऋग्वेद के दूसरे और सातवे मंडल सबसे प्राचीन है | दूसरे से सातवे तक मंडल को ऋषिमंडल अथवा गोत्रमंडल अथवा वंशमंडल कहा जाता है | ऋग्वेद का पहला और दसवां मंडल सबसे बाद में जोड़ा गया था |

ये भी देखें – History All Post

गायत्री (सावित्री) मन्त्र का उल्लेख ऋग्वेद के तीसरे मंडल में है, जिसके रचयिता ऋषि विश्वामित्र थे | सातवाँ मंडल वरुण देवता को समर्पित है, जिसकी रचना ऋषि वशिष्ठ ने की थी |

सर्वप्रथम चार वर्णों का उल्लेख ऋग्वेद के दसवे मंडल के ‘पुरुष सूक्त’ में मिलता है, जिसमे सर्वप्रथम शुद्र वर्ण का उल्लेख है | ऋग्वेद के दसवें मण्डल के पुरुषसूक्त में कहा गया है कि विराट पुरुष के मुख से ब्राह्मण, बाहू से राजन्य (क्षत्रिय) जांघ से वैश्य और पैरों से शूद्रों की उत्पत्ति हुई |

ऋग्वेद में गंगा शब्द का उल्लेख केवल एक बार तथा यमुना शब्द का उल्लेख तीन बार हुआ है | ऋग्वेद और ईरानी ग्रन्थ जेंद अवेस्ता में समानता पायी गयी है |

ऋग्वेद में भरत जन (कबीले) के राजा सुदास और पुरु जन (कबीले) बीच रावी (परुष्णी) नदी के तट पर हुए दाशराज्ञ युद्ध का उल्लेख है ,जिसमे सुदास की जीत हुई थी | भरत जन के नेता सुदास के मुख्य पुरोहित वशिष्ठ और विरोधी दस जनों (आर्य और अनार्य) के संघ के पुरोहित विश्वामित्र थे |

सुदास ऋग्वैदिक भारत का पहला चक्रवर्ती राजा बना था | दाशराज्ञ युद्ध ऋग्वैदिक काल की एकमात्र महत्वपूर्ण ऐतिहासिक घटना है | दस जनों में पंच-जनों के अलावा अलिन, पक्थ, भलानसु, शिव और विषाणिन जन शामिल थें | पंचजन है -अनु, द्रुह्यु, यदु, पुरु, तुर्वश |

सामवेद (Samved)

सामवेद को भारतीय संगीत का मूल माना जाता है | ‘साम’ का अर्थ होता है – गान | इसमे यज्ञों के अवसर पर गाये जाने वाले मंत्रो का संग्रह है | सामवेद में 75 ऋचाओ के अतिरिक्त शेष सभी ऋचाएं ऋग्वेद से ली गयी है |

ये भी देखें – UGC NET Paper 1 Study Notes

गाने के लिए ऋग्वैदिक सूक्तों (मन्त्रों) को चुनकर सामवेद का संकलन किया गया | यज्ञ के अवसर पर इन ऋचाओ का गान करने वाला पुरोहित ‘उद्गाता’ कहलाता था |

यजुर्वेद (Yajurved)

यजुर्वेद में यज्ञों के नियमो और विधि-विधानों का संकलन मिलता है | ‘यजुष’ शब्द का अर्थ होता है ‘यज्ञ’ | यजुर्वेद में ऋचाओं के साथ-साथ, उन्हें गाते समय किये जाने वाले अनुष्ठानों का भी वर्णन है | यजुर्वेद गद्य और पद्य दोनों में लिखा गया था (जबकि अन्य तीन वेद पद्य में है) |

यजुर्वेद के दो भाग है- शुक्ल यजुर्वेद और कृष्ण यजुर्वेद | यज्ञ के अवसर पर यजुर्वेद के मन्त्रो का उच्चारण करने वाला पुरोहित ‘अध्वर्यु’ कहलाता था |

अथर्ववेद (Atharved)

अथर्ववेद में आर्य-अनार्य विचारधारा का समन्वय मिलता है | इसमे मुख्य रूप से संकट और व्याधियों के निवारण हेतु तन्त्र-मन्त्र का संग्रह मिलता है | इसमे आलावा इसमे वास्तुशास्त्र, आयुर्विज्ञान, औषधि-प्रयोग, रोग-उपचार, जादू-टोना, आदि मिलता है | अथर्ववेद उस काल की लोक परम्पराओं का संकलन है |

ऐतिहासिक दृष्टि से अथर्ववेद का अत्यधिक महत्व है क्योकि इसमे जनसाधारण के विचारों व अंधविश्वासों से सम्बन्धित जानकारी प्राप्त होती है | यह धारणा व्यक्त की जाती है कि अथर्ववेद के कुछ भाग ऋग्वेद से भी प्राचीन है | अथर्ववेद में कुरुओ के राजा परीक्षित का उल्लेख है |

प्रत्येक वेद के उपवेद भी है | ऋग्वेद का उपवेद आयुर्वेद, सामवेद का गन्धर्ववेद, यजुर्वेद का धनुर्वेद, और अथर्ववेद का शिल्पवेद है |

ब्राह्मण ग्रंथ (Brahman Granth)

यज्ञों और कर्मकाण्डों के विधानों को भलीभांति समझने हेतु ब्राह्मण ग्रंथो की रचना की गयी थी | इन्हे ब्राह्मण इसलिए कहा गया है क्योकि इनमे ब्रह्म या यज्ञ का विस्तार से विवेचन है |

प्रत्येक वेद के अपने ब्राह्मण ग्रन्थ है | ब्राह्मण गद्य रूप में आर्यों के प्राचीनतम ग्रन्थ हैं, इनमे विभिन्न प्रकार के वैदिक यज्ञों और अनुष्ठानों और उनके उदभव का वर्णन दिया गया है |

ब्राह्मण ग्रंथो में प्रमुख है – ऋग्वेद के ऐतरेय और कोषितकी ब्राह्मण, सामवेद का पंचविश, शुक्ल-यजुर्वेद का शतपथ, कृष्ण-यजुर्वेद का तेत्तिरीय, अथर्ववेद का गोपथ | ऐतरेय ब्राह्मण में राज्याभिषेक के नियम का उल्लेख है | शतपथ ब्राह्मण में यज्ञों को जीवन का सबसे महत्वपूर्ण कार्य बताया गया है |

गोपथ ब्राह्मण अथर्ववेद का एकमात्र ब्राह्मण ग्रन्थ है | इसकी रचना गोपथ ऋषि ने की थी | इसमे अश्वमेध, अग्निष्टोम आदि यज्ञों के विधि विधान दिए गये है |

आरण्यक (Aaranyak)

ब्राह्मण ग्रन्थ के अलावा आरण्यक और उपनिषद ग्रन्थ भी महत्वपूर्ण है | आरण्यक ब्राह्मण गर्न्थों के अन्तिम भाग है | ‘अरण्य’ शब्द का अर्थ होता है वन | ये ग्रन्थ वनों के एकांत और शांत वातावरण में रहने वाले ऋषियों के मार्गदर्शन हेतु लिखे गये थे |

आरण्यक मुख्यतया वानप्रस्थों के लिए थे, जो ब्रह्मचर्याश्रम और गृहस्थाश्रम के कर्तव्यों से मुक्त होकर आध्यात्मिक चिन्तन के लिए वनों को प्रस्थान कर गये थे | वैदिक साहित्य का अन्तिम चरण उपनिषद् है | जहाँ ब्रह्मण ग्रन्थों में कर्मकांडीय पक्ष का विवेचन है वही उपनिषदों में दार्शनिक पक्ष का |

उपनिषद् (Upnishad)

उपनिषद् में आत्मज्ञान, मोक्षज्ञान और ब्रह्मज्ञान की प्रधानता है | सामान्य शब्दों में उपनिषद् का अर्थ है – समीप बैठना | उपनिषद् शब्द ‘उप’, ‘नि’ और ‘सद्’ के मिलने से बना है | यहाँ ‘उप’ का अर्थ है ‘निकट’, ‘नि’ का अर्थ है निष्ठापूर्वक, और ‘सद्’ का अर्थ है ‘बैठना’ |

इसप्रकार उपनिषद् का अर्थ हुआ ‘गुरु के निकट ज्ञानप्राप्ति के लिए निष्ठापूर्वक शिष्य का बैठना’ | उपनिषद् को वेदान्त भी कहा जाता है, क्योकि ये वेद के अंतिम अंग है |

उपनिषदो की कुल संख्या 108 है (कुछ विद्वान इनकी कुल संख्या 200 बताते है), जिनमे केवल 11 उपनिषदों को ही प्रमाणित माना गया है |

ये प्रमाणित उपनिषद् निम्न है –

  1. ईश उपनिषद्
  2. कठ उपनिषद्
  3. केन उपनिषद्
  4. प्रश्न उपनिषद्
  5. मुण्डक उपनिषद्
  6. मांडूक्य उपनिषद्
  7. तैत्तिरीय उपनिषद्
  8. ऐतरेय उपनिषद्
  9. छान्दोग्य उपनिषद्
  10. बृहदारण्यक उपनिषद्
  11. श्वेताश्वतर उपनिषद्

इनमे प्राचीनतम उपनिषद् बृहदारण्यक उपनिषद् और छान्दोग्य उपनिषद् |

लेखक यहाँ यह भी उल्लेख कर देना आवश्यक मानता है कि वेद और उपनिषद् में मुख्य अंतर क्या है ?

वेद और उपनिषद् में मुख्य अंतर निम्न है –

  1. वेद का आधार कर्म है जबकि उपनिषद् का आधार ज्ञान है |
  2. जहाँ वेदों में यज्ञ और कर्मकाण्डों की प्रधानता है वही उपनिषदों में ज्ञानकाण्ड की प्रधानता है |
  3. जहाँ वेदों में भौतिक-सुख की कामना मिलती है वही उपनिषद् में भौतिक-सुख के प्रति उदासीनता पायी जाती है |
  4. वेदों में यज्ञों को अत्यधिक महत्व दिया गया है जबकि उपनिषद पूर्व में प्रचलित यज्ञों द्वारा सुख-समृद्धि प्राप्त करने की विचारधारा को नकारते है | उपनिषदों में आत्मा, परमात्मा, मुक्ति, विश्व आदि के सन्दर्भ में दार्शनिक विचारधारा मिलती है |
  5. उपनिषद् में ‘ब्रह्म’ को परम तत्व (Ultimate Reality) माना गया है | ‘ब्रह्म’ शब्द संस्कृत के ‘बृह्’ धातु से बना है, जिसका अर्थ है ‘बढ़ना’ अथवा ‘विकसित होना’ | ब्रह्म से ही जगत् की उत्पत्ति मानी गयी है और जगत् को अंत में ब्रह्म में ही विलीन हो जाना है |    

अथर्ववेद का कोई आरण्यक ग्रन्थ नही है | यजुर्वेद के उपनिषद कठोपनिषद् में यक्ष और नचिकेता के बीच वार्तालाप है |

अथर्ववेद के उपनिषद मुण्डकोपनिषद् में भारतीय राष्ट्रीय आदर्श वाक्य “सत्यमेव जयते” मिलता है | इसमे यज्ञ की तुलना टूटी नाव से की गयी है |

वेदांग (Vedang)

वेदों को भलीभांति समझने हेतु वेदांगो की रचना हुई | ये वेदांग गद्य में सूत्र रूप में लिखे गये है | इसीलिए संक्षिप्त होने के कारण ये सूत्र कहलाते है | वेदांग वेदों के शुद्ध उच्चारण व यज्ञ आदि करने में सहायक थें |

वेदांगो की संख्या 6 है –

  1. शिक्षा (उच्चारण विधि)
  2. कल्प (कर्मकाण्ड)
  3. व्याकरण
  4. निरुक्त (भाषाविज्ञान)
  5. छंद
  6. ज्योतिष

शिक्षा (Shiksha)

वैदिक वाक्यों के सुस्पष्ट उच्चारण के लिए शिक्षा का निर्माण हुआ | “प्रातिशाख्य” वैदिक शिक्षा सम्बन्धी प्राचीनतम साहित्य है |

कल्प (Kalp)

‘कल्पसूत्र’ में वैदिक कर्मकाण्डों को सम्पन्न करवाने के लिए निश्चित किये गये विधि और नियमो का प्रतिपादन किया गया है |

कल्पसूत्रों के चार भाग है –

  1. श्रौतसूत्र
  2. गृह्यसूत्र
  3. धर्मसूत्र
  4. शुल्वसूत्र

श्रौतसूत्रो में यज्ञो के विधि-विधान दिए गए है, इन्ही में राज्याभिषेक के कई आडम्बरपूर्ण अनुष्ठान भी दिए गए है |

गृह्यसूत्रो में जन्मानुष्ठान, नामकरण, उपनयन, विवाह, श्राद्ध आदि पारिवारिक अनुष्ठानों के विधि-विधान दिए गये है |

धर्मसूत्रों में धार्मिक, सामाजिक और राजनितिक कर्तव्यों का वर्णन है |

शुल्वसूत्र में यज्ञवेदी के निर्माण के लिए विविध प्रकार के मापों का विधान है | शुल्वसूत्र से ही ज्यामिति और गणित का अध्ययन आरम्भ होता है |

व्याकरण (Vyakaran)

व्याकरण में विभिन्न समासों व संधियों के नियम, उपसर्ग व प्रत्यय के प्रयोग, नामों व धातुओं की रचना इत्यादि के नियम दिए गये है | पाणिनि की रचना अष्टाध्यायी विख्यात व्याकरण ग्रंथ है |

निरुक्त (Nirukt)

निरुक्त में शब्दों की व्युत्पत्ति व निर्वचन बताये गये है | निरुक्त की रचना यास्क ने क्लिष्ट वैदिक शब्दों के संकलन “निघण्टु” की व्याख्या करने के लिए की थी |

छंद (Chhand)

वैदिक साहित्य में मुख्यतः गायत्री, वृहती, त्रिष्टुप, जगती इत्यादि छंदों का प्रयोग किया गया है | पिंगल द्वारा रचित छंदशास्त्र प्रसिद्ध है |

ज्योतिष (Jyotish)

ज्योतिष के प्राचीनतम आचार्य लगध ऋषि थें | इसमे ज्योतिष शास्त्र के विकास को दर्शाया गया है |

महाकाव्य (Mahakavya)

रामायण और महाभारत भारतीय साहित्य के दो सर्वाधिक प्राचीन महाकाव्य है | इन दोनों महाकाव्यों की रचना मूलतः संस्कृत में हुई थी | विद्वानों के अनुसार रामायण और महाभारत दोनों का सम्बन्ध उत्तर-वैदिक काल में 1000 ई.पू. से 700 ई.पू. के मध्य घटी घटनाओं से है |

लेकिन रामायण, महाभारत और प्रमुख पुराणों का संकलन अन्तिम रूप से 400 ई. के आस-पास हुआ माना जाता है | 

रामायण (Ramayan)

रामायण भारत का आदि-काव्य है, जिसकी रचना महर्षि बाल्मीकि ने संस्कृत भाषा में की थी | इसमे अयोध्या के राजा राम के जीवन सम्बन्धी कहानी का वर्णन है | इसमे हमे हिन्दूओं, यवनों और शको के संघर्ष का भी उल्लेख मिलता है |

रामायण में मूलतः 6000 श्लोक थे, जो बाद में बढ़कर 12000 श्लोक हो गये और सबसे अंत में अर्थात् वर्तमान में इसमे 24000 श्लोक हो गये | रामायण को “चतुविंशति साहस्त्री संहिता” भी कहा जाता है |

पाठकों को यह जानकर शायद आश्चर्य होगा कि ऐतिहासिक दृष्टि से रामायण की रचना महाभारत के बाद हुई मानी जाती है | रामायण महाकाव्य में महाभारत महाकाव्य की अपेक्षा विषय की अधिक एकरूपता मिलती है |

रामायण की रचना सम्भवतः ई.पू. पांचवी सदी में आरम्भ हुई तब से यह 5 अवस्थाओं से गुजर चुकी है | रामायण की पांचवी अवस्था 12 वीं सदी तक मानी गयी है |

रामायण महाकाव्य निम्न 7 काण्डों में विभाजित है –

  1. बालकाण्ड
  2. अयोध्याकाण्ड
  3. अरण्यकाण्ड
  4. किष्किन्धाकाण्ड
  5. सुन्दरकाण्ड
  6. युद्धकाण्ड
  7. उत्तरकाण्ड

महाभारत (Mahabharat)

महाभारत, जो वर्तमान में विश्व का सबसे लम्बा महाकाव्य है, की रचना वेदव्यास ने की थी | महाभारत महाकव्य की मुख्य घटना कुरुक्षेत्र में हुए कौरवों और पाण्डवों के बीच हुआ युद्ध है |

दोनों के मध्य कुरुक्षेत्र में हुआ युद्ध कुल अठारह दिनों तक चला, जिसमे पाण्डवों की विजय हुई | इस युद्ध का समय उत्तरवैदिक काल में लगभग 1000 ई.पू. माना जाता है |

महाभारत में जिन प्राचीनतम सामाजिक प्रथाओं का उल्लेख है, उनका उपयोग उत्तरवैदिक काल के सन्दर्भ में किया जा सकता है | लेकिन इसके उपदेशात्मक अंश का उपयोग मौर्योत्तर काल व गुप्तकाल के सन्दर्भ में किया जा सकता है |

महाभारत में मूलतः 8800 श्लोक थे और इसका वास्तविक नाम ‘जय-संहिता’ था जिसका अर्थ होता है ‘विजय सम्बन्धी संग्रह ग्रन्थ’ | बाद में इसके श्लोक 24000 हो गये और यह ग्रन्थ ‘भारत’ कहलाया क्योकि इसमे प्राचीनतम वैदिकजन ‘भरत’ के वंशजो की कथा है |

गुप्तकाल तक आते-आते अंततः इस ग्रन्थ में एक लाख श्लोक हो गये और इसका नाम ‘महाभारत’ या ‘शतसाहस्री संहिता’ पड़ा | महाभारत का प्रारम्भिक उल्लेख हमे “आश्वलायन गृहसूत्र” में मिलता है |

वर्तमान में महाभारत में 18 पर्व है, जो निम्न है –

  1. आदिपर्व
  2. सभापर्व
  3. वनपर्व
  4. विराटपर्व
  5. उद्योगपर्व
  6. भीष्मपर्व
  7. द्रोणपर्व
  8. कर्णपर्व
  9. शल्यपर्व
  10. सौप्तिकपर्व
  11. स्त्रीपर्व
  12. शांतिपर्व
  13. अनुशासनपर्व
  14. अश्वमेघपर्व
  15. आश्रमवासीपर्व
  16. मौसलपर्व
  17. महाप्रास्थानिकपर्व
  18. स्वर्गारोहणपर्व

सुप्रसिद्ध ‘गीता’ महाभारत के भीष्मपर्व का अंग है | शांतिपर्व में हमें राजतन्त्र सम्बन्धी शिक्षाएं मिलती है | इसमे करापरोण के जो सिद्धांत दिए गये है वें आर्थिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है |

आपको बता दें कि महाभारत के शांतिपर्व में बहुत से ऐसे श्लोक हमे मिलते हैं, जो अक्षरशः मनुस्मृति में पाए जाते है |

महाभारत में हरिवंश नामक परिशिष्ट है | हरिवंशपर्व को महाभारत का खिल भाग भी कहा जाता है | इसमे विशेषकर श्रीकृष्ण के बारे में वर्णन दिया गया है |

धर्मशास्त्र (Dharmshastra)

धर्मसूत्र, स्मृति, भाष्य आदि को सम्मिलित रूप से ‘धर्मशास्त्र’ कहा जाता है | धर्मसूत्रों में ही सर्वप्रथम वर्णव्यवस्था का स्पष्ट उल्लेख मिलता है | इसमे चारो वर्णों के अलग अलग कर्तव्य बताये गये है |

स्मृतियो में ‘मनुस्मृति’ सबसे प्राचीन है | यह शुंग काल का ग्रन्थ है | मनुस्मृति के प्रमुख टीकाकार मेघातिथि, भारुची, गोविन्दराज, कुल्लूक भट्ट है |

मनुस्मृति की भांति याज्ञवल्क्य स्मृति भी अत्यधिक प्राचीन है | इसके प्रमुख टीकाकार विज्ञानेश्वर, अपरार्क, तथा विश्वरूप है | 

पुराण (Puran)

पुराणों की रचना लोमहर्ष अथवा उनके पुत्र उग्रश्रवा ने की थी | इनकी कुल संख्या 18 है | इन सब में सर्वाधिक प्राचीन और प्रमाणित मत्स्य पुराण है | इसमे सातवाहन वंश की विशेष जानकारी मिलती है |

मार्कण्डेय पुराण देवी दुर्गा से सम्बधित है | इसमे ‘दुर्गा शप्तशती’ नामक अंश मिलता है | शिव के पुत्र गणेश की पूजा का सर्वप्रथम वर्णन ‘अग्निपुराण’ में मिलता है |

18 पुराण निम्न है –

  1. मत्स्य पुराण
  2. मार्कण्डेय पुराण
  3. भविष्य पुराण
  4. भागवत पुराण
  5. ब्रह्माण्ड पुराण
  6. ब्रह्मवैवर्त पुराण
  7. ब्रह्मा पुराण
  8. वामन पुराण
  9. वाराह पुराण
  10. विष्णु पुराण
  11. वायु पुराण
  12. अग्नि पुराण
  13. नारद पुराण
  14. पद्म पुराण
  15. लिंग पुराण
  16. गरुण पुराण
  17. कूर्म पुराण
  18. स्कन्द पुराण

आपको बता दे कि पुराणों का ऐतिहासिक महत्व सर्वप्रथम ‘पार्जिटर’ नामक विद्वान ने बताया था |

Prachin Bharatiya Itihas Ka Sahityik Strot

प्राचीन भारत का ब्राह्मणेतर साहित्य

ब्राह्मणेतर साहित्यों में बौद्ध और जैन साहित्यों को रखा गया है |

जैन साहित्य (Jain Sahitya)

आगम – जैन धर्म के साहित्य को ‘आगम’ (सिद्धांत) कहा जाता है | आगम (अंग) की संख्या 12 है |

कल्पसूत्र – जैन धर्म का प्रारम्भिक इतिहास ‘कल्पसूत्र’ में मिलता है, जिसकी रचना ‘भद्रबाहु’ ने की थी |

भगवतीसूत्र – भगवतीसूत्र में महावीर स्वामी के जीवन-चरित्र की जानकारी मिलती है |

आचारांगसूत्र – जैन भिक्षुओं के आचार-नियम आचारांगसूत्र में मिलते है |

चरित – जैन साहित्य में पुराणों का महत्वपूर्ण स्थान है, इन्हे ‘चरित’ भी कहा गया है | ये प्राकृत, संस्कृत तथा अपभ्रंश भाषा में मिलते है | इनमे हरिवंशपुराण, आदिपुराण आदि महत्वपूर्ण है |

बौद्ध साहित्य (Bauddha Sahitya)

प्राचीनतम बौद्ध ग्रन्थ पालि भाषा में है | पालि भाषा मगध (दक्षिण बिहार) में बोली जाती थी |

त्रिपिटक – बौद्ध ग्रंथो मे ‘त्रिपिटक’ सर्वाधिक महत्वपूर्ण है | महात्मा बुद्ध की मृत्यु के बाद त्रिपिटक के अंतर्गत उनकी शिक्षाओ को संकलित करके तीन भागो में बाँटा गया |

त्रिपिटक निम्न है –

  1. सुत्तपिटक
  2. विनयपिटक
  3. अभिधम्मपिटक

सुत्तपिटक – सुत्त का शाब्दिक अर्थ होता है – धर्मोपदेश | सुत्तपिटक में बुद्ध के धार्मिक विचारो और उनके द्वारा दिए गये उपदेशो का संग्रह है | सुत्तपिटक को बौद्ध धर्म का ‘इनसाइक्लोपीडिया’ कहा जाता है | 

सुत्तपिटक निम्न पांच निकायों में विभाजित है –

  1. दीर्घ निकाय
  2. मज्झिम निकाय
  3. संयुक्त निकाय
  4. अंगुत्तर निकाय
  5. खुद्दक निकाय

जातक – ‘जातक’, जिनमे बुद्ध के पूर्व जन्मो की कहानियों का संग्रह है, खुद्दक निकाय का एक ग्रन्थ है | ऐसा विश्वास किया जाता था कि गौतम के रूप में जन्म लेने से पहले महात्मा बुद्ध ने 550 से भी ज्यादा पूर्व जन्म लिए थे और इनमे से कई जन्मो में बुद्ध ने पशु के रूप में जन्म लिया था |

प्रत्येक जातक कथा एक प्रकार की लोक-कथा है | अंगुत्तर निकाय में छठी शताब्दी ई.पू. के सोलह महाजनपदो का वर्णन मिलता है |

विनयपिटक – विनयपिटक में बौद्ध संघ सम्बन्धी नियम, आचार-विचार है | इसमे बौद्ध मठों में रहने वाले भिक्षु-भिक्षुणियो के अनुशासन सम्बन्धी नियम तथा संघ की कार्य-प्रणाली की व्यवस्था का उल्लेख है |

अभिधम्मपिटक – अभिधम्मपिटक में महात्मा बुद्ध के उपदेशो और सिद्धांतों की दार्शनिक व्याख्या मिलती है | यह प्रश्नोत्तर रूप में है | अभिधम्मपिटक का एक महत्वपूर्ण ग्रन्थ ‘कथावत्थु’ है | जिसकी रचना अशोक के काल में सम्पन्न तीसरी बौद्ध संगीति में मोग्गलिपुत्त तिस्स ने की थी |

अभिधम्मपिटक ही पहला बौद्ध ग्रन्थ है जिसमे संस्कृत भाषा का प्रयोग किया गया |

पालि भाषा में लिखे गये दो बौद्ध ग्रन्थ दीपवंश और महावंश में मौर्यकालीन इतिहास की जानकारी मिलती है |

दीपवंश और महावंश – दीपवंश लगभग चौथी शताब्दी ई. में लिखा गया सिंहल द्वीप के इतिहास पर प्रकाश डालने वाला पहला ग्रन्थ माना जाता है | महावंश में मगध के राजाओ की क्रमबद्ध सूची मिलती है |

मिलिन्दपन्हो – पालि भाषा का एक अन्य महत्वपूर्ण ग्रन्ध ‘मिलिन्दपन्हो’ (मिलिन्द-प्रश्न) है | इसकी रचना बौद्ध भिक्षु नागसेन ने की थी | इस ग्रन्थ मे हिन्द-यवन शासक मेनान्डर (मिलिन्द) और नागसेन के बीच बौद्ध धर्म पर वार्तालाप है |

कथावस्तु – ‘कथावस्तु’, बौद्ध धर्म के हीनयान सम्प्रदाय का एक प्रमुख ग्रन्थ है, जिसमे महात्मा बुद्ध का जीवन चरित को अनेक कथानकों के साथ वर्णित किया गया है |

ललितविस्तर – ‘ललितविस्तर’ महायान सम्प्रदाय का एक ग्रन्थ है, जिसमे बुद्ध को देवता मानकर उनके जीवन-चरित का चमत्कारिक वर्णन प्रस्तुत किया गया है |

दिव्यावदान – महायान सम्प्रदाय के एक दूसरे ग्रन्थ ‘दिव्यावदान’ में अशोक के उत्तराधिकारियों से लेकर पुष्यमित्र शुंग तक के राजाओ की जानकारी मिलती है |

बुद्धचरित, सौन्दरनंद, सारिपुत्र-प्रकरण – अश्वघोष कुषाण राजा कनिष्क की राजसभा में थे | उनकी तीन संस्कृत रचनाये अत्यंत प्रसिद्ध है – बुद्धचरित, सौन्दरनंद, सारिपुत्र-प्रकरण | बुद्धचरित और सौन्दरनंद महाकाव्य है जबकि सारिपुत्र-प्रकरण नाटक है | (Prachin Bhartiya Itihas Ka Sahityik Srot/Strot Ko Jaane)

Prachin Bharatiya Itihas Ka Sahityik Srot PDF Download

ये भी देखें –

UGC NET Previous Years Exam Paper PDF Free Download – Download Here

प्राचीन भारतीय इतिहास का लौकिक साहित्य

लौकिक साहित्य को धर्मेत्तर साहित्य भी कहते है |

अर्थशास्त्र – ऐतिहासिक रचनाओ में सर्वप्रथम ‘अर्थशास्त्र’ का उल्लेख किया जा सकता है | यह पन्द्रह खंडो में विभक्त है, जिनमे दूसरा और तीसरा अधिक प्राचीन है |

अर्थशास्त्र को भारत का पहला राजनीति का ग्रन्थ माना जाता है | इसकी रचना चंदगुप्त मौर्य के प्रधानमंत्री कौटिल्य (विष्णुगुप्त, चाणक्य) ने की थी | अर्थशास्त्र से हमे मौर्यकालीन राजनितिक, सामाजिक, आर्थिक और धार्मिक स्थिति की स्पष्ट जानकारी प्राप्त होती है |

अर्थशास्त्र के अनेक सिद्धांतों को सातवी-आठवी शताब्दी ईस्वी में कामन्दक ने अपने ग्रन्थ ‘नीतिसार’ में संकलित कर लिया था |

मुद्राराक्षस – मुद्राराक्षस की रचना विशाखदत्त ने की थी | इसमे चंदगुप्त मौर्य और चाणक्य के साथ साथ नन्द वंश के पतन और मौर्य वंश की स्थापना के विषय के महत्वपूर्ण जानकारी प्राप्त होती है |

राजतरंगिणी – प्राचीन भारतीय साहित्य में शुद्ध ऐतिहासिक ग्रन्थ केवल ‘राजतरंगिणी’ को माना जाता है, जिसकी रचना कश्मीरी कवि कल्हण ने बारहवी शताब्दी में की थी | इसमे आदिकाल से लेकर 1151 ई. के आरम्भ तक के कश्मीर के प्रत्येक शासक के शासनकाल की घटनाओ का क्रमानुसार विवरण मिलता है | राजतरंगिणी संस्कृत साहित्य में ऐतिहासिक घटनाओ के क्रमबद्ध इतिहास लिखने का प्रथम प्रयास है |

नवसाहसांकचरित – संस्कृत साहित्य का प्रथम ऐतिहासिक महाकाव्य ‘नवसाहसांकचरित’ को माना जाता है | इस ग्रन्थ की रचना ग्यारहवी शती ई. में पदमगुप्त परिमल ने की थी | इस ग्रन्थ से हमे परमार वंश, सिन्धुराज नवसाहसांक से सम्बन्धित इतिहास की जानकारी मिलती है |

कीर्तिकौमुद्री, प्रबन्धकोश, प्रबन्धचिंतामणि – सोमेश्वर द्वारा रचित कीर्तिकौमुद्री, राजशेखर द्वारा रचित प्रबन्धकोश, मेरुतुंग द्वारा रचित प्रबन्धचिंतामणि से हमे गुजरात के चौलुक्य वंश का इतिहास की जानकारी मिलती है |

चचनामा – चचनामा नामक ग्रन्थ से हमे अरबो द्वारा सिन्ध-विजय की महत्वपूर्ण जानकारी मिलती है | चचनामा मूलतः अरबी भाषा में लिखा गया था जिसका कालान्तर के खुफी ने फारसी भाषा में अनुवाद किया था |

गार्गीसंहिता – प्रथम शताब्दी के लगभग लिखी गयी गार्गीसंहिता, जो मूलतः एक ज्योतिष ग्रन्थ है, में भारत पर हुए यवन(यूनानी)-आक्रमण का विवरण प्राप्त होता है |

गौड़वाहो – ‘गौड़वाहो’ की रचना वाक्पतिराज ने प्राकृत भाषा में की थी | इस ग्रन्थ में कन्नौज शासक यशोवर्मन के गौड़राजा के ऊपर किये गये आक्रमण का वर्णन है |

मृच्छकटिकम् – शूद्रक द्वारा रचित ‘मृच्छकटिकम्’ नामक नाटक से हमे गुप्तकालीन सांस्कृतिक इतिहास की जानकारी प्राप्त होती है |

महाभाष्य – महाभाष्य की रचना पुष्यमित्र शुंग के पुरोहित पतंजलि ने की थी | महाभाष्य से शुंगो के इतिहास पर महत्वपूर्ण जानकारी प्राप्त होती है |

मालविकाग्निमित्र – शुंगकालीन राजनितिक परिस्थितियों की जानकारी कालिदास द्वारा रचित नाटक ‘मालविकाग्निमित्र’ में मिलती है |

रामचरित – रामचरित की रचना संध्याकर नंदी ने की थी | इस ग्रन्थ में बताया गया है कि कैवर्त्त जाति के किसानो और पाल वंश के राजा रामपाल के मध्य किस प्रकार लड़ाई हुई और कैसे रामपाल विजयी हुआ | 

बुद्धचरित – अश्वघोष कृत बुद्धचरित में महात्मा बुद्ध के जीवन-चरित्र का विस्तृत वर्णन प्राप्त होता है |

हर्षचरित – हर्षचरित की रचना हर्षवर्धन के राजकवि बाणभट्ट ने की थी | हर्षचरित से सम्राट हर्षवर्धन के जीवन तथा तत्कालीन समाज एवं धर्म सम्बन्धी अनेक महत्वपूर्ण जानकारी प्राप्त होती है |

अर्थशास्त्र – बृहस्पति ने भी कौटिल्य के अर्थशास्त्र के समान ही ‘अर्थशास्त्र’ नामक ग्रन्थ लिखा था | इस ग्रन्थ में राजकीय कर्तव्यो का वर्णन मिलता है |

अवन्तिसुन्दरी कथा – ‘अवन्तिसुन्दरी कथा’ की रचना महाकवि दण्डी ने की थी | इस ग्रन्थ से पल्लव वंश के इतिहास की जानकारी प्राप्त होती है |

कीर्तिकौमुदी – ‘कीर्तिकौमुदी’ की रचना सोमेश्वर ने की थी | इस ग्रन्थ से चालुक्य वंश के इतिहास की जानकारी प्राप्त होती है |

कुमारपालचरित – ‘कुमारपालचरित’ की रचना हेमचन्द्र के की थी | इस ग्रन्थ से हमे गुजरात के चालुक्य वंश के शासको के विस्तृत इतिहास की जानकारी मिलती है |

विक्रमांकदेवचरित -‘विक्रमांकदेवचरित’ की रचना कश्मीरी कवि ‘विल्हण’ ने की थी | इस ग्रन्थ में कल्याण के चालुक्य राजा विक्रमादित्य पंचम (1076-1127 ई.) के पराक्रमो का वृत्तान्त है |

बसन्तविलास – ‘बसन्तविलास’ की रचना वालचन्द्र ने की थी | इस ग्रन्थ से चालुक्य वंश के विषय में जानकारी प्राप्त होती है |

पृथ्वीराजविजय – पृथ्वीराजविजय की रचना कश्मीरी पण्डित जयानक ने की थी | इस ग्रन्थ से पृथ्वीराज तृतीय (चौहान) के विषय में जानकारी प्राप्त होती है |

प्रबन्धचिन्तामणि – ‘प्रबन्धचिन्तामणि’ की रचना मेरुतुंग ने की थी |

मत्तविलास प्रहसन – ‘मत्तविलास प्रहसन’ की रचना पल्लव वंश के राजा महेन्द्र वर्मा ने की थी | इस ग्रन्थ से तत्कालीन सामाजिक और धार्मिक जीवन के सम्बन्ध में महत्वपूर्ण जानकारी प्राप्त होती है | Prachin Bharatiya Itihas Ka Sahityik Srot Kya Hai

संगम साहित्य (Sangam Sahitya)

दक्षिण भारत का प्रारम्भिक इतिहास ‘संगम साहित्य’ में मिलता है | इन प्राचीनतम तमिल ग्रंथों की रचना लगभग 300 ई.पू. से 600 ईस्वी के बीच हुई थी | राजाओ द्वारा संरक्षित विद्या-केन्द्रों में कवियों और भाटो ने तीन-चार सदियों में इस साहित्य की रचना की थी | ऐसी साहित्यिक सभा को ‘संगम’ कहा जाता था , इसलिए सम्पूर्ण साहित्य ‘संगम साहित्य’ के नाम से प्रसिद्ध हो गया | (Prachin Bharatiya Itihas Ka Sahityik Srot)

संगम साहित्य में कई छोटी और बड़ी कविताये शामिल है, जो अनेक कवियों द्वारा अपने संरक्षक राजाओ की प्रशंसा में लिखी गयी थी |

संगम साहित्य में दक्षिण भारत के तीन प्रमुख राजवंशों चोल, चेर और पाण्ड्य के आरम्भिक इतिहास का उल्लेख मिलता है | Prachin Bharatiya Itihas Ka Sahityik Srot

संगम साहित्य में राजनितिक इतिहास के अतिरिक्त तत्कालीन सामाजिक व्यवस्था और आर्थिक जीवन आदि की महत्वपूर्ण जानकारी प्राप्त होती है |

डॉ. के. के. भारती के अन्य लेख भी देखें – इतिहास पर लेख | दर्शनशास्त्र पर लेख | शिक्षाशास्त्र पर लेख | समाजशास्त्र पर लेख | अर्थशास्त्र पर लेख

नोट : विद्यादूत वेबसाइट (vidyadoot.com) के सभी लेखों का सर्वाधिकार सुरक्षित है | किसी भी रूप में कॉपीराइट के उल्लंघन का प्रयास न करें |

सम्बन्धित प्रश्न – प्राचीन भारत के इतिहास के स्रोत/प्राचीन भारतीय इतिहास के स्रोत | Prachin Bharatiya Itihas Ke Sahityik Strot

  1. प्राचीन भारतीय इतिहास का साहित्यिक स्रोत और महत्व बताएं |
  2. प्राचीन भारत के इतिहास के अध्ययन के लिए कौन-कौन से स्रोत हमारी सहायता कर सकते है ?
  3. प्राचीन इतिहास जानने के साहित्यिक स्रोत और पुरातात्विक स्रोत का वर्णन करें |
  4. भारत के इतिहास के प्राचीन साहित्यिक स्रोतों का वर्णन करें |
  5. प्राचीन भारतीय इतिहास के पुनर्निर्माण के मुख्य स्रोत क्या है ?
  6. प्राचीन भारतीय इतिहास के मुख्य स्रोत कौन से है ?
  7. प्राचीन भारतीय इतिहास के साहित्यिक और पुरातात्विक स्रोत का वर्णन करें |
  8. प्राचीन भारतीय इतिहास के विभिन्न स्रोतों का वर्णन कीजिये |
  9. प्राचीन भारतीय इतिहास जानने के स्रोत क्या है ?
  10. साहित्यिक स्रोत क्या है ?

अगर यह लेख आपको पसंद आया है तो हमारे एक्सपर्ट को प्रोत्साहित करने के लिए इसे अपने फ्रेंड्स में शेयर जरुर करें साथ ही हमारे YouTube Channel को सब्सक्राइब जरुर करें | आप हमे पर Facebook भी फॉलो कर सकते है | हम आपके अच्छे भविष्य की कामना करते है | Prachin Bharatiya Itihas Ka Sahityik Srot