हड़प्पा सभ्यता का सामाजिक जीवन

Social Life of Harappan Civilization

हड़प्पा सभ्यता का सामाजिक जीवन (Social Life of Harappan Civilization) : हड़प्पा सभ्यता के लोगों का सामाजिक जीवन सुखी और सुविधापूर्ण था | उत्खनन से प्राप्त बहुसंख्यक स्त्री-मृण्मूर्तियों विशेषकर मातृदेवी-मृण्मूर्तियों से कुछ विद्वान मानते है कि हड़प्पाई समाज मातृ-सत्तात्मक था | लोग धर्म में रूचि रखते थे तथा बड़े-बड़े धर्मानुष्ठान करते थे (उदाहरणार्थ विशाल-स्नानागार आदि) | बड़ी संख्या में ताबीजो के मिलने से पता चलता है कि पुजारियों के साथ-साथ समाज में तांत्रिकों का भी प्रभाव था | भूत-प्रेत, आत्मा आदि में विश्वास था |

हड़प्पा में मिले अनाज कूटने के चबूतरे व श्रमिक-आवास से अनुमान लगाया जा सकता है कि दास-प्रथा मौजूद थी | व्हीलर स्पष्ट रूप से कहते है कि इनमे रहने वाले लोग दास ही थें |

हड़प्पाई लोग सर्वाहारी (Omnivorous) थे, वे शाक-सब्जियों के साथ-साथ भेड़, बकरी, सूअर, मुर्गा, मछली, कछुआ आदि का मांस भी खाते थे | मांस के लिए वें बैल-गाय, भैंस, भेड़, बकरी व सुअर पालते थें | गेंहू, जौ, मटर. चावल, तिल, दाल आदि इनके प्रमुख खाद्यान थें | कुत्ता और बिल्ली पालतू जानवरों में थें | इन दोनों के ही पैरों के निशान प्राप्त हुए है |

हड़प्पावासी गधे व ऊंट भी पालते थें | सम्भवतः इनका प्रयोग बोझा ढोने में किया जाता था | घोड़े के अस्तित्व के बारे में विवाद है | सुरकोटड़ा (गुजरात) में प्राप्त घोड़े के अवशेष 2000 ई.पूर्व. के आसपास के माने जा रहे है, लेकिन पहचान संदेहास्पद है | ये हाथी और गैंडे से भी परिचित थें |

हड़प्पाई लोग कैसे दिखते थे ? इसका बहुत कुछ पता हमे इनकी मूर्तियों, शिल्प कला और कंकालों के अध्ययन से हो जाता है |

हड़प्पा सभ्यता से प्राप्त कंकालों के अध्ययन से यह पता चलता है कि यहाँ के निवासी वर्तमान उत्तर-भारत के निवासियों की तरह दिखते थे | इनके रंग-रूप, कद, शक्ल आदि वर्तमान उत्तर-भारतीय निवासियों से अत्यधिक समानता रखते थे |

हड़प्पा-सभ्यता की स्त्री-मूर्तियों को देखकर अनुमान लगाया जा सकता है कि स्त्रियाँ आजकल की भांति आभूषण-प्रेमी थी तथा तरह-तरह के आभूषण पहनती थी | वे सिर, कान, गले, भुजा, कटि और पैर में आभूषण पहनती थी |

कुछ स्त्री-मूर्तियाँ पंखे की भांति शिरोवस्त्र पहने हुए है | स्त्री-मूर्तियों में कमर के ऊपर कोई वस्त्र नही पहनाया गया है | कुछ मृण्मूर्तियों में में स्त्रियाँ घुटनों तक या घुटनों से थोड़ा ऊपर तक कमर पर एक वस्त्र लपेटे हुए है |

उत्खनन से प्राप्त सुइयों से अनुमान लगाया जा सकता है कि वस्त्र सिल कर पहने जाते होंगे | लोथल से तांबे की सुई मिली है जिसकी नोक की और एक छेद है | मोहनजोदड़ो से हड्डी की बनी सुइयाँ मिली है | कुछ हाथी-दांत की बनी सुइयाँ भी मिली है |

स्त्रियाँ खुद को आकर्षण तरीके से सजाती थी | मोहनजोदड़ो से प्राप्त नर्तकी की कांस्य मूर्ति में बाल पीछे की ओर एक गुँथी हुई चोटी में आकर्षण तरीके से संवार कर दाहिने कंधे पर लटकती छोड़ दी गयी है |

तांबे के दर्पण, हाथी-दांत के बने कंघे, हाथी-दांत की बनी बालो पर लगाने की पिनें, चूड़िया, अंगुठियां, कर्णफूल (ear-top), फीते (ribbon), काजल रखने के पात्र आदि प्रसाधन सम्बन्धी वस्तुएं मिली है |

चन्हुदड़ो से लिपिस्टिक के साक्ष्य मिले है | पुरुष भी स्त्रियों की भांति आभूषण पहनना पसन्द करते थे | आधुनिक भारतीय पुरुष की अपेक्षा वे कही अधिक गहनों का उपयोग करते थे | वे गले और हाथों में काफी गहनें पहनते थे |

स्त्रियों की भांति वे भी लम्बे बाल रखते थे | मोहनजोदड़ो से प्राप्त एक पुरुष-मृण्मूर्ति को आभूषण पहने दिखाया गया है |

मोहनजोदड़ो से प्राप्त पुजारी की मूर्ति जिस तरह से शाल ओढ़े है वो तरीका आज भी प्रचलित है | शाल पर तिपतिया अलंकरण दिखाया गया है | पुजारी की दाढ़ी अच्छी-तरह से कटी है और मूंछे मुडी है | बाल अच्छी तरह से पीछे की ओर काढ़ कर माथे पर एक फीते से बांधे गये है |

इसप्रकार इस मूर्ति से पुरुषों के फैशन (fashion) की पर्याप्त जानकारी मिलती है | हजामत बनाने के लिए प्रयोग किये जाने वाले तांबे और कांसे के बने उस्तरे (razor) भी मिले है |

हड़प्पावासियों के आमोद-प्रमोद की भी कुछ जानकारी मिलती है | वे पांसे के खेल से परिचित थे | पांसे मिट्टी, पत्थर आदि के बने होते थे | सम्भवतः शतरंज जैसा खेल भी प्रचलित था |

बैल, मेढ़ा, कुत्ता आदि के सिर वाली गोटियाँ मिली हैं | मिट्टी के बने कुछ मुखौटे (mask) भी मिले है, जिससे कल्पना की जा सकती है कि नाटक का भी मंचन होता होगा | नृत्य करती हुए आकृतियाँ भी मिली है |

मोहनजोदड़ो से प्राप्त एक मुहर पर एक ढोल (?) बजाते व्यक्ति की आकृति मिली है | मनोरंजन के लिए मुर्गों को लड़ाया भी जाता था | एक मुहर पर मुर्गों की लड़ाई का चित्रण मिलता है |

बच्चों के मिट्टी के खिलोनें मिले है | कुछ मृण्मूर्तियों को देखकर लगता है कि इन्हे बच्चों ने ही अपने खेलने हेतु बनाया होंगा | मिट्टी के झुनझुने भी प्राप्त हुए है | मुंह से फूंककर सीटी बजाने वाले खिलोनें भी मिले है |

मिट्टी के खिलौनों के रूप में बैलगाड़ियों के अनेक मॉडल मिले है वो आधुनिक बैलगाड़ियों के समान ही है | आधुनिक इक्का की भांति छोटी गाड़ियों के खिलौनों के रूप मॉडल भी मिले है |

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  1. हड़प्पा सभ्यता की उदभव, क्षेत्रफल और सीमाएं
  2. हड़प्पा सभ्यता का कालक्रम
  3. हड़प्पा सभ्यता का नामकरण
  4. हड़प्पा सभ्यता में कृषि व पशुपालन
  5. सिन्धु सभ्यता की नगर योजना प्रणाली
  6. सिन्धु सभ्यता का धार्मिक जीवन
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