कुषाण वंश और साम्राज्य के पतन के कारण

kushan vansh aur samrajya ke patan ke karan

कुषाण वंश और साम्राज्य के पतन के कारण kushan vansh aur samrajya ke patan ke karan (Reasons for the decline of the Kushan dynasty and empire in Hindi) इस लेख में हम चर्चा करेंगे कि कुषाण वंश या साम्राज्य के पतन के क्या कारण थें | कुछ विद्वानों के अनुसार कुषाण वंश और साम्राज्य का पतन गुप्तों के उदय के कारण हुआ, कुछ के अनुसार कुषाणों का पतन भारशिव नागों के उदय के कारण हुआ तो कुछ का मानना है कि इनका पतन यौधेयों के द्वारा हुआ | कुछ विद्वान मानते है कि कुषाण साम्राज्य के पतन के लिए अयोग्य उत्तराधिकारी जिम्मेदार थें जबकि कुछ का कहना है कि कुषाणों के पतन के लिए इनकी प्रशासनिक व्यवस्था उत्तरदायी थी |

मौर्योत्तरकालीन विदेशी आक्रमणों की श्रृंखला में कुषाण, जोकि यूची और तोख़ारी भी कहलाते है, अतिमहत्वपूर्ण है | यूची कबीला पांच कुलों में विभाजित हो गया था | कुषाण उन्ही में एक कुल के थें, जोकि उत्तरी मध्य एशिया के हरित मैदानों के खानाबदोश थें तथा चीन के पड़ोस में निवास करते थें |

कुषाणों ने पहले बैक्ट्रिया व उत्तरी अफगानिस्तान को विजित किया तथा वहां से शकों को खदेड़ा | धीरे-धीरे कुषाणों ने निचली सिन्धुघाटी पर और गंगा के मैदान के अधिकांश भागों पर भी कब्जा कर लिया |

भारत में हम कुषाणों के दो राजवंश पाते है, पहला कैडफाइसिस राजवंश और दूसरा कनिष्क राजवंश | ये एक के पश्चात् एक आये थें | कैडफाइसिस राजवंश की स्थापना कैडफाइसिस नामक सरदारों के घराने ने की थी, जिसके दो राजा हुए | पहला राजा कैडफाइसिस प्रथम था | इसने हिन्दुकुश के दक्षिण में सिक्कें चलाये | कैडफाइसिस प्रथम ने रोमन सिक्कों की नकल करके तांबे की सिक्कें ढलवाए | इसके सिक्कों पर धर्मथिदस और धर्मथित (धर्म में स्थित) उत्कीर्ण है |

इस राजवंश का दूसरा राजा विम कैडफाइसिस या कैडफाइसिस द्वितीय था | इसने बड़ी मात्रा में स्वर्णमुद्राएँ चलाई तथा अपना राज्य सिन्धु नदी के पूरब में फैलाया | इसके बाद कनिष्क राजवंश आया |

कनिष्क राजवंश के शासकों ने ऊपरी भारत व निचली सिन्धुघाटी में अपना प्रभुत्व फैलाया | कनिष्क निश्चित रूप से भारत के कुषाण शासकों में सर्वाधिक विख्यात और महान था | इतिहास में कनिष्क दो कारणों से विख्यात है |

पहला, कनिष्क ने 78 ईस्वी में एक संवत् चलाया, जिसे ‘शक संवत्’ कहा जाता है | और दूसरा, कनिष्क ने बौद्ध धर्म का खूब प्रचार-प्रसार किया |

कनिष्क ने कश्मीर में बौद्ध धर्म की चतुर्थ संगीति का आयोजन किया | उसने बौद्ध धर्म की महायान शाखा को राज्याश्रय प्रदान किया था और देश-विदेश में उसका खूब प्रचार-प्रसार करवाया | वह कला व संस्कृत साहित्य का भी महान संरक्षक था | कनिष्क की मृत्यु 101 ई. के लगभग हुई | कनिष्क के उत्तराधिकारी पश्चिमोत्तर भारत पर लगभग 230 ई. तक शासन करते रहें |

कुषाण वंश और साम्राज्य के पतन के कारण

कनिष्क के अधीन कुषाण राजवंश अपने चरमोत्कर्ष अवस्था में था | इसने मध्य एशिया से भारत तक के विस्तृत साम्राज्य पर शासन किया | कनिष्क की मृत्यु के पश्चात् कुषाण साम्राज्य कमजोर हो गया | परस्पर प्रतिद्वंद्विता, साम्राज्य के विभाजन और नई राजनीतिक शक्तियों के उदय ने कुषाणों के भारत में पतन में भूमिका निभाई यद्यपि पश्चिमोत्तर सीमा पर कुषाणों के वंशज किदार कुषाण के रूप में राज्य करते रहे |

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कुषाण साम्राज्य के पतन के लिए मुख्य रूप से कोई एक कारण उत्तरदायी नही था बल्कि कई कारणों ने कुषाणों के पतन में भूमिका निभाई | वास्तव में कुषाण साम्राज्य का पतन किसी विशेष कारण का परिणाम नहीं था |

विद्वानों के अनुसार कुषाणों के पतन के लिए निम्न कारण थें –

  1. गुप्त वंश का उदय
  2. भारशिव नागों का उदय
  3. यौधेयों के कारण
  4. अयोग्य उत्तराधिकारी
  5. प्रशासनिक व्यवस्था

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कुषाण वंश और साम्राज्य के पतन के कारण

कुषाणों वंश या साम्राज्य के पतन के कारणों के लिए विभिन्न विद्वानों ने अपने-अपने विचार व्यक्त किये है, जिनमे पर्याप्त मतभेद दिखते है | अब हम विस्तार से कुषाण वंश के पतन के कारणों पर चर्चा करेंगें –

गुप्त वंश का उदय

राखाल दास बनर्जी का विचार है कि कुषाण साम्राज्य के पतन का कारण गुप्त वंश का उदय है | लेकिन उनका यह मत सर्वमान्य नही है |

हमें गुप्त सम्राट समुद्रगुप्त के इलाहाबाद स्तम्भलेख या प्रयाग प्रशस्ति लेख, जिसकी रचना उसके सन्धिविग्रहिक सचिव हरिषेण ने की थी, से पता चलता है कि उत्तरी भारत में गुप्त साम्राज्य की स्थापना के पूर्व ही कुषाण शासन का पतन हो चुका था |

भारशिव नागों का उदय

काशीप्रसाद जायसवाल का कहना है कि पंजाब और मध्यप्रदेश में कुषाण सत्ता का विनाश भारशिव नागों के उदय के कारण हुआ | भारशिव नागों के कार्य को सम्राट प्रवरसेन प्रथम के नेतृत्व में वाकाटकों ने पूर्ण किया |

लेकिन अल्तेकर जायसवाल के इस विचार का खंडन करते हुए कहते है कि भारशिवों या वाकाटकों का कुषाणों के साथ कोई सम्बन्ध नहीं था |

यौधेयों के कारण

अल्लेकर ने यौधेयों के सिक्कों के आधार पर यह मत दिया है कि यौधेयों ने कुणिन्द, अर्जुनायन इत्यादि गणराज्यों की सहायता से कुषाणों को पराजित करके सतलज नदी के पार भागने पर मजबूर कर दिया |

चूँकि यौधेयों के सिक्कों पर ‘जयमन्त्रधर’ और ‘यौधेयानाम् जय’ मुद्रालेख उत्कीर्ण प्राप्त होता है जिससे उनकी विजयों की जानकारी मिलती है लेकिन इससे यह नही कहा जा सकता कि यौधेयों ने ये विजयें कुषाणों पर ही प्राप्त की होंगी |

अयोग्य उत्तराधिकारी

कुषाण साम्राज्य के पतन के लिए अयोग्य उत्तराधिकारियों का भी उत्तरदायित्व था | कनिष्क कुशनों का अंतिम महान शासक था | कनिष्क की मृत्यु के कुछ वर्षों के उपरांत ही कुषाणों के साम्राज्य का विभाजन हो गया, जिससे कुषाणों की शक्ति व प्रतिष्ठा को धक्का लगा |

कनिष्क के पश्चात् हुविष्क ही कुषाणों का सबसे शक्तिशाली शासक हुआ | हुविष्क के बाद जितने भी कुषाण शासक हुए उनमे साम्राज्य की एकता को बनाये रखने का समर्थ न था |

प्रशासनिक व्यवस्था

कुषाण साम्राज्य के पतन के लिए कुषाणों की प्रशासनिक व्यवस्था भी उत्तरदायी थी | कुषाणों द्वारा विकसित शासनतन्त्र में विकेंद्रीयकरण के तत्व प्रबल थें |

उन्होंने क्षत्रपीय व्यवस्था लागू करके अपने साम्राज्य को विभिन्न भागों में विभाजित करके उन पर क्षत्रपों, महाक्षत्रपों का शासन स्थापित किया | कालान्तर में अयोग्य शासकों के समय में इन प्रांतीय शासक शक्तिशाली हो गये और छोटे-छोटे स्वतंत्र राज्यों की स्थापना कर ली | इससे कुषाणों की शक्ति कमजोर हुए और धीरे-धीरे इनका पतन हो गया |

इस प्रकार हम देखते है कि कुषाण वंश या साम्राज्य के पतन के लिए कोई एक मुख्य कारण विद्यमान नही था बल्कि कई कारणों के संयोग ने कुषाण साम्राज्य के पतन में भूमिका निभाई |

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