बौद्ध धर्म की लोकप्रियता और सफलता के कारण

Bauddh Dharm Ki Lokpriyata Aur Safalata Ke Karan

भारत में बौद्ध धर्म की लोकप्रियता और सफलता के कारण, Bauddh Dharm Ki Lokpriyata Aur Safalata Ke Karan (Reasons for the popularity and success of Buddhism) : बौद्ध धर्म के प्रवर्तक गौतम बुद्ध थें, जिनका जन्म छठी शताब्दी ईसा पूर्व के मध्य कपिलवस्तु (आधुनिक पिपरहवा, बस्ती, उत्तर प्रदेश) के निकट नेपाल की तराई में अवस्थित लुम्बिनी (आधुनिक रुमिन्देई) में हुआ था | इनके बचपन का नाम सिद्धार्थ था | ज्ञान प्राप्ति के बाद ये बुद्ध कहलाये | बुद्ध का अर्थ होता है जागृत या प्रकाशमान | बुद्ध का पद इस बोध का सूचक है जिसे प्राप्त करके उन्हें तत्त्व-दृष्टि प्राप्त हुई | गौतम या गोतम गोत्र में जन्म लेने के कारण ये गौतम भी कहलाते है | बुद्ध वस्तुओं के वास्तविक स्वरुप को जानते थें इसलिए इन्हे तथागत भी कहा गया |

गौतम बुद्ध मानव-जाति के सच्चे प्रेमी थे, इसीलिए ज्ञान प्राप्त के पश्चात् अपना शेष जीवन एकांत ध्यानमग्न होकर वन में नही व्यतीत किया बल्कि लोगों के बीच जाकर उनकी भलाई व दुःखों की समाप्ति के लिए अपने तत्त्व-ज्ञान का प्रचार-प्रसार किया |

बुद्ध के उपदेशों के फलस्वरूप बौद्ध धर्म और बौद्ध दर्शन का विकास हुआ | कालान्तर में गौतम बुद्ध के उपदेशों का खूब प्रचार-प्रसार हुआ और और बौद्ध धर्म भारत ही नही विश्व के अन्य देशों में भी लोकप्रिय होकर एक विश्व-धर्म बन गया |

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भारत में बौद्ध धर्म की लोकप्रियता और सफलता के कारण

गौतम बुद्ध के जीवनकाल में ही बौद्ध धर्म भारत का एक लोकप्रिय धर्म बन गया था और उनके महापरिनिर्वाण के बाद लोग बड़ी संख्या में इस धर्म के अनुयायी बनते गये | अशोक और कनिष्क जैसे सम्राटों के प्रयत्नों से बौद्ध धर्म का भारत के अलावा विदेशों में भी प्रचार-प्रसार हुआ | बारहवी शताब्दी तक बौद्ध धर्म चीन, मध्य-एशिया, दक्षिणी-पूर्वी एशिया, तिब्बत, कोरिया, जापान, श्रीलंका इत्यादि स्थानों में पहुँच चुका था |

तत्कालीन सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक जीवन में बौद्ध धर्म की कई सन्दर्भों में बहुत उपादेयता थी |

भारत में बौद्ध धर्म की लोकप्रियता और सफलता के कारण निम्नलिखित थें –

  1. ब्राह्मण धर्म से मोहभंग
  2. बुद्ध का आकर्षक और प्रभावशाली व्यक्तित्व
  3. पालि भाषा में प्रचार-प्रसार
  4. वैदिक क्षेत्र के बाहर लोकप्रिय
  5. बौद्ध संघ का योगदान
  6. राजकीय संरक्षण
  7. अशोक का योगदान
  8. नये धर्म की सरलता
  9. व्यापारियों और साहूकारों का समर्थन

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बौद्ध धर्म की लोकप्रियता और सफलता के कारण

अब हम विस्तार सेभारत में बौद्ध धर्म की लोकप्रियता और सफलता के लिए मुख्य कारणों पर चर्चा करेंगें | बौद्ध धर्म की लोकप्रियता और सफलता के लिए निम्नलिखित कारण उत्तरदायी थें –

ब्राह्मण धर्म से मोहभंग

बौद्ध धर्म का भारत में लोकप्रिय होने का मूल कारण तत्कालीन ब्राह्मण धर्म के प्रति लोगो का असंतोष था | ब्राह्मण धर्म में आडम्बरपूर्ण कर्मकाण्डों का बोलबाला था | पुरोहितो और ब्राह्मणों के हर कार्य को देवता की आज्ञा बताया जाता था और उनकी सत्ता को प्रभावशाली ढंग से चुनौती देने वाला कोई न था | धर्म में यज्ञ और बलिप्रथा की प्रधानता थी | पशु-बलि यहाँ तक की मानव-बलि देने में संकोच नही होता था | हिंसा के इस भयानक वातवरण में नये बौद्ध धर्म ने अहिंसा का उपदेश देकर लोगों को अपनी ओर आकर्षित किया |

ब्राह्मण धर्म ऊँच-नीच पर आधारित था | महिलाओं और निम्न जाति के लोगों को बहुत सारे अधिकारों से वंचित रखा गया था | जाति-व्यवस्था को कठोरता से पालन करना पड़ता था और निम्न जातियों की स्थिति पशुओं से भी बदतर हो गयी थी |

बौद्ध धर्म को विशेष रूप से निम्न जातियों का समर्थन प्राप्त हुआ क्योकि नये धर्म में जाति-व्यवस्था की निंदा की गयी थी और यह समानता पर आधारित था | बौद्ध धर्म और संघ के द्वार प्रत्येक व्यक्ति के लिए खुले थें |

बौद्ध धर्म ने स्त्रियों को भी पुरुषों के बराबर का दर्जा देकर उन्हें संघ में प्रवेश की अनुमति दी | नये धर्म ने ब्राह्मण धर्म की भांति ऊंच-नीच, स्त्री-पुरुष इत्यादि में भेदभाव नही किया | इस प्रकार बौद्ध धर्म तत्कालीन ब्राह्मण धर्म की तुलना में कही अधिक उदार व जनतांत्रिक था |

बुद्ध का आकर्षक और प्रभावशाली व्यक्तित्व

बौद्ध धर्म की लोकप्रियता और सफलता के लिए स्वयं गौतम बुद्ध का आकर्षक और प्रभावशाली व्यक्तित्व बहुत कुछ अंशों तक उत्तरदायी रहा था | ज्ञान प्राप्ति के बाद गौतम बुद्ध एकांतवास में नही रहें बल्कि उन्होंने लोक-कल्याण की भावना से प्रेरित होकर अपने संदेशों को जनसाधारण तक पहुँचाने का संकल्प किया | इसके लिए वें विभिन्न स्थानों में घूम-घूमकर आम लोगों को उपदेश देना आरम्भ किया |

बुद्ध ने दुःख के कारणों और उन कारणों को दूर करने के उपायों पर प्रकाश डालते हुए दुःखों से त्रस्त जनसाधारण को दुःखों से छुटकारा पाने का मार्ग दिखाया |

राजसी और उच्च कुल में जन्म लेने के बावजूद सांसारिक सुखों को छोड़कर संन्यासी का कठिन जीवन अपनाकर गौतम बुद्ध ने जनसाधारण के समक्ष एक उज्ज्वल आदर्श रखा | बुद्ध ने जाति-धर्म, रंग-रूप इत्यादी के भेदभाव को नकारते हुए सभी को अपना अनुयायी बनाया | वास्तव में बुद्ध एक समाज-सुधारक थें | वें निस्वार्थ भाव से जनकल्याण में लगे रहें, जिससे लोग उनसे अत्यधिक प्रभावित हुए और उन्हें अपन पूर्ण समर्थन दिया |

बुद्ध स्वयं उन आदर्शों का पालन करते जिनका उपदेश वे लोगो को देते थें | वें भलाई के द्वारा बुराई को और प्रेम द्वारा घृणा को खत्म करने का प्रयास करते थें | निंदा और अपशब्द से भी उन्हें क्रोध नही आता था |

ऐसा वर्णन है कि एक बार एक अज्ञानी विरोधी ने उन्हें गालियाँ दी, जिसे वें शांत भाव से सुनते रहें | जब उस अज्ञानी ने गालियाँ देना बंद किया तो बुद्ध ने उससे पूछा “वत्स अगर कोई दान को अस्वीकार करें तो क्या होगा ?” अज्ञानी ने उत्तर दिया कि “वह देने वाले के पास ही रह जायेगा |” तब उन्होंने कहा कि “वत्स मैं तुम्हारे द्वारा दी गयी गालियों को स्वीकार नही करता हूँ |” वें अपने विरोधियों पर भी तर्क और प्रेम द्वारा विजय प्राप्त करते थें |

उनके करुणामयी प्रेमपूर्ण व्यवहार के कारण ही क्रूर अंगुलिमाल और आम्रपाली जैसी अधम गणिका भी उनके अनुयायी बन गये | बुद्ध के ओजपूर्ण उपदेशों को सुनकर और उनके व्यक्तित्व से प्रभावित होकर लोग उनके धर्म की ओर आकर्षित होते थें |

पालि भाषा में प्रचार-प्रसार

तत्कालीन ब्राह्मण धर्म की क्लिष्ट संस्कृत भाषा के विपरीत बौद्ध धर्म ने जनसाधारण की भाषा पालि को अपनाकर लोकप्रियता को हासिल किया | गौतम बुद्ध ने ज्यादा से ज्यादा लोगों को अपनी बात समझाने के लिए सरल और सर्वग्राह भाषा पालि को चुना |

बौद्ध धर्म का प्रचार-प्रसार पालि भाषा में होने से आम जनता इस नये धर्म को सुगमता से समझ पाई | इस प्रकार भाषा की सुगमता और बोधगम्यता ने भी बौद्ध धर्म की सफलता व लोकप्रियता में अत्यधिक योगदान दिया |

वैदिक क्षेत्र के बाहर लोकप्रिय

बौद्ध धर्म वैदिक क्षेत्र के बाहर के लोगों में अधिक लोकप्रिय हुआ | वहां के लोगों को यह नया धर्म, जोकि तत्कालीन ब्राह्मण धर्म के बिल्कुल विपरीत था, बहुत अधिक भाया और वें आसानी से बौद्ध धर्म में दीक्षित हुए | मगध आर्यों की पवित्र भूमि आर्यावर्त्त (आधुनिक उतर प्रदेश) की सीमा के बाहर पड़ता था |

मगध का समाज रुढ़िविरोधी था और कट्टर ब्राह्मण मगध के निवासियों को नीच मानते थें | इसीलिए मगध के लोग बौद्ध धर्म की तुरंत उन्मुख हुए | मगध के कुछ शासकों ने भी बौद्ध धर्म को राजकीय संरक्षण प्रदान किया, जिससे इसका तेजी से प्रचार-प्रसार हुआ |

बौद्ध संघ का योगदान

बौद्ध धर्म की लोकप्रियता और सफलता के लिए बौद्ध संघ का अत्यधिक योगदान रहा | गौतम बुद्ध ने बौद्ध धर्म के प्रचार-प्रसार के लिए संघ की स्थापना की थी, जिसमे कोई भी व्यक्ति जाति या लिंग के भेदभाव के बिना प्रवेश कर सकता था |

संघ में प्रवेश की एक ही शर्त थी कि व्यक्ति को संघ के नियमों का निष्ठापूर्वक पालन करना होता था | देश के विभिन्न भागों में बौद्ध संघों की स्थापना की गयी | संघ के भिक्षु पूर्ण उत्साह के साथ जगह-जगह घूम-घूम कर बौध धर्म के संदेशों का प्रचार करते थें |

बौद्ध धर्म की संघ की देख-रेख में सुसंगठित प्रचार की व्यवस्था होने से गौतम बुद्ध के जीवनकाल में ही बौद्ध धर्म का तेजी से प्रचार-प्रसार हुआ |

राजकीय संरक्षण

बौद्ध के प्रचार-प्रसार में राजकीय संरक्षण का उल्लेखनीय योगदान रहा | चूँकि बुद्ध स्वयं ही राजकुल में उत्पन्न हुए थें इसलिए तत्कालीन क्षत्रिय राजाओं ने जोकि स्वयं को ब्राह्मणों-पुरोहितों के आधिपत्य से स्वतंत्र करके अपनी सर्वोच्चता बनाये रखना चाहते थें, बौद्ध धर्म को प्रतिक्रियास्वरुप अपनाया |

गौतम बुद्ध के जीवनकाल में ही मगध,कोसल और कौशांबी के शासकों और अनेक गणराज्यों ने बौद्ध धर्म को स्वीकार किया |

अशोक का योगदान

गौतम बुद्ध के महापरिनिर्वाण के दो सौ वर्ष पश्चात् विख्यात मौर्य सम्राट अशोक का बौद्ध धर्म स्वीकार करना एक युग-प्रवर्त्तक घटना सिद्ध हुई | अशोक ने बौद्ध धर्म अपनाकर बौद्धों को अपार दान दिया और बौद्ध धर्म-स्थानों की यात्रा की | उसने बौद्ध धर्म के प्रचार-प्रसार हेतु धम्ममहामात्रों की नियुक्ति की |

पारंपरिक अनुश्रुति के अनुसार सम्राट अशोक ने मोग्गालिपुत्त तिस्स की अध्यक्षता में पाटलिपुत्र में तीसरी बौद्ध संगीति का आयोजन किया था | तीसरी बौद्ध संगीति में संघ-भेद को रोकने हेतु अत्यंत कड़े नियम बनाये गये और बौद्ध धर्म का साहित्य निश्चित और प्रामाणिक बनाया |

अशोक ने अपने धर्मदूतों के माध्यम से बौद्ध धर्म का मध्य एशिया, पश्चिमी एशिया और श्रीलंका में प्रचार-प्रसार करके इसे विश्व धर्म का रूप दिया | अशोक के प्रयत्नों के कारण ही आज बौद्ध धर्म दक्षिण एशिया, दक्षिण-पूर्व एशिया और पूर्वी एशिया के देशों में फैला हुआ है |   

नये धर्म की सरलता

तत्कालीन ब्राह्मण धर्म की आडम्बरपूर्ण कर्मकाण्डीय व्यवस्था से लोग ऊब चुके थें | नया बौद्ध धर्म ब्राह्मण धर्म की तुलना में अत्यंत सरल और आडंबरविहीन था |

बौद्ध धर्म में न तो पुरोहितों की आवश्यकता थी और न ही यज्ञ व बलि जैसे कर्मकाण्डों की | इस धर्म में पूजा-पाठ के लिए लिंग या जाति का भेदभाव भी नही था |

कोई भी व्यक्ति बौद्ध धर्म के सिद्धांतों का पालन करते हुए सांसारिक जीवन जीते हुए मध्यम मार्ग अपनाकर निर्वाण की प्राप्ति कर सकता था | यही कारण है कि समाज के निम्न और उपेक्षित वर्गों ने उत्साहपूर्वक बौद्ध धर्म को स्वीकार किया |

व्यापारियों और साहूकारों का समर्थन

बौद्ध धर्म व्यापारियों और साहूकारों के अनुकूल था | तत्कालीन ब्राह्मण ग्रन्थों में समुद्री व्यापार, सूद और ब्याज प्रथा को निंदनीय माना गया था | जबकि बौद्ध धर्म में इनका किसी भी रूप में निषेध नही किया गया था | स्वाभाविक ही था कि व्यापारी और साहूकार बौद्ध धर्म की ओर आकर्षित हुए |

वैदिक परम्परा के धार्मिक ग्रन्थों में समुद्री व्यापार की निंदा को गयी है | जबकि बौद्ध ग्रन्थों का दृष्टिकोण समुद्री व्यापार के प्रति अनुकूल था | इसलिए बौद्ध धर्म ने स्वाभाविक रूप से वैश्य वर्ग को अपने ओर आकर्षित किया |

साम्राज्यवादी युद्धों से व्यापारी वर्ग को अत्यधिक आर्थिक नुकसान उठाना पड़ता था | युद्ध की स्थिति में व्यापार की अवनति होती थी | अहिंसावादी बौद्ध धर्म साम्राज्यवादी युद्धों का विरोधी था और व्यापार में उन्नति के लिए उपयुक्त था | यही कारण है कि व्यापारी वर्ग ने बौद्ध धर्म के प्रचार-प्रसार में प्रचुर धन खर्च किये |

तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व में निर्मित गया और साँची के स्तूपों में दर्शाये गये चित्रों से यह स्पष्ट होता है कि वैश्यों ने बौद्ध धर्म को स्वीकार करके और दान इत्यादि देकर विशेष रूप से प्रोत्साहित किया |

बौद्ध संघ में ऋणी व्यक्ति के प्रवेश का वर्जित होना भी वैश्य वर्ग के हितों के अनुकूल था | तत्कालीन ब्राह्मण विधि निर्माताओं ने सूद और ब्याज प्रथा निंदनीय बताया है | परन्तु सूद और ब्याज व्यापार की उन्नति के उपयोगी है | बौद्ध धर्म ने सूद और ब्याज की मनाही नही की, जिससे इस धर्म ने व्यापार की उन्नति में योगदान दिया | बौद्ध धर्म की उदार मान्यताएं नगरीकरण की प्रक्रिया में सहायक थी |

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