भारत में बौद्ध धर्म के पतन के कारण

Bharat Me Bauddh Dharm Ke Patan Ke Karan

भारत में बौद्ध धर्म के पतन के कारण Bharat Me Bauddh Dharm Ke Patan Ke Karan (Reasons for the decline of Buddhism in India) : ईसा की बारहवीं शताब्दी तक भारत में बौद्ध धर्म का लगभग पतन हो चुका था | सातवीं शताब्दी तक भारत में बौद्ध धर्म की लगातार फलता फूलता रहा | लेकिन इसके बाद इस धर्म का क्रमिक हास आरम्भ हो गया और अंततः बारहवीं शताब्दी तक बौद्ध धर्म का अपनी जन्मभूमि से पतन हो गया |

बंगाल और बिहार के पूर्व-मध्यकालीन पाल राजा बौद्ध धर्म के अंतिम महान संरक्षक थें | यद्यपि बौद्ध धर्म परिवर्तित रूप में बंगाल और बिहार में ग्यारहवीं शताब्दी तक रहा, लेकिन उसके पश्चात् भारत से यह धर्म पूर्णतया विलुप्त हो गया |

बौद्ध धर्म, जिसने एक विश्व धर्म का रूप ले लिया था, का अपनी जन्मभूमि से लुप्त होना एक विचारणीय बात है |

हालाँकि करीब एक हजार वर्ष पूर्व विभिन्न कारणों से अपनी जन्मभूमि में बौद्ध धर्म का ह्रास हो गया, परन्तु यह धर्म दक्षिण-पूर्व एशिया के लगभग सभी भागों में आज भी एक जीवन्त धर्म है |

ये भी देखें – बौद्ध धर्म, शिक्षा और दर्शन पर सभी लेख

भारत में बौद्ध धर्म के पतन के कारण

वास्तव में भारत में बौद्ध धर्म के पतन के लिए कोई एक मुख्य कारण उत्तरदायी नही था बल्कि यह कई कारणों का परिणाम था |

भारत में बौद्ध धर्म के पतन के निम्नलिखित कारण है –

  1. बौद्ध धर्म में प्रविष्टि बुराइयाँ
  2. ब्राह्मण धर्म में सुधार
  3. विरोधी धर्मों द्वारा बौद्धों का उत्पीड़न
  4. तुर्की आक्रमण
  5. संस्कृत को अपनाना
  6. बौद्ध धर्म का विभाजन
  7. वज्रयान सम्प्रदाय का उदय

ये भी देखे – कुषाण वंश और साम्राज्य के पतन के कारण | मौर्य साम्राज्य के पतन के कारण | मुगल साम्राज्य के पतन के कारण | हड़प्पा सभ्यता के पतन के कारण

भारत में बौद्ध धर्म के पतन के कारण

अब हम विस्तार से भारत में बौद्ध धर्म के पतन के कारणों को जानेंगे –

बौद्ध धर्म में प्रविष्ट बुराइयाँ

हम देखते है कि अपने प्रारम्भिक दौर में प्रत्येक धर्म सुधार की भावना से प्रेरित होता है, लेकिन कालक्रमेण वह धर्म उन्ही कर्मकाण्डों तथा अनुष्ठानों के मायाजाल में फंस जाता है जिसकी वह आरम्भ में विरोध और निंदा करता है |

बौद्ध धर्म में भी यही बात देखने को मिली | जहाँ गौतम बुद्ध ने मूर्ति पूजा का विरोध किया वही महायानियों ने बुद्ध को देवता के रूप में प्रतिष्ठित करके उनकी मूर्ति पूजा शुरू कर दी साथ ही बौद्ध धर्म में अनेकों प्रकार के कर्मकाण्ड और आडम्बर भी जुड़ गये |

इन सब कारणों से लोगों का बौद्ध धर्म से मोह भंग होने लगा |

ब्राह्मण धर्म में सुधार

ब्राह्मण धर्म की जिन बुराइयों का विरोध करके बौद्ध धर्म लोकप्रिय हुआ था कालान्तर में इस धर्म में वही बुराइयाँ घुस गयी | वही बौद्ध धर्म की चुनौतियों का सामना करने के लिए ब्राह्मणों ने अपने धर्म में सुधार किया |

ब्राह्मण धर्म ने अपने अस्तित्व को बचाने के लिए बौद्ध धर्म की अच्छाइयों को आत्मसात करना शुरू कर दिया | यहाँ तक कि गौतम बुद्ध को भी विष्णु का अवतार मानकर उन्हें ब्राह्मण धर्म में स्थान दे दिया |

नव-ब्राह्मणधर्म ने गोधन की रक्षा पर जोर दिया और शूद्रों व स्त्रियों के लिए भी धर्म का मार्ग प्रशस्त किया | इसके विपरीत बौद्ध धर्म में विकृतियाँ बढ़ती गयी | इन सब कारणों से लोगो का आकर्षण बौद्ध धर्म से हटकर नव-ब्राह्मणधर्म की तरफ बढ़ने लगा |

ये भी देखें – बौद्ध धर्म की लोकप्रियता और सफलता के कारण

विरोधी धर्मों द्वारा बौद्धों का उत्पीड़न

गौतम बुद्ध के निर्वाण 200 वर्ष बाद महान मौर्य सम्राट अशोक द्वारा बौद्ध धर्म अपनाना एक युग-प्रवर्त्तक घटना थी | अशोक के प्रयासों से बौद्ध धर्म ने एक विश्व धर्म का रूप लिया और भारत की सीमाओं के बाहर इस धर्म का प्रसार हुआ |

लेकिन मौर्य वंश की समाप्त के बाद ब्राह्मण शासक पुष्यमित्र शुंग ने बौद्ध धर्म को बहुत क्षति पंहुचाई | पुष्यमित्र ब्राह्मण कर्मकाण्ड का पक्का समर्थक था | बौद्ध ग्रन्थ इसे बौद्धों का घोर शत्रु और विहारों व स्तूपों का विनाशक बताते है |

ऐसा वर्णन मिलता है कि पुष्यमित्र ने घोषणा कि कि “जो मुझे एक भिक्षु का सिर देगा उसे मैं सौ दीनार दूंगा |”

शैव संप्रदाय के हूण शासक मिहिरकुल ने सैकड़ों बौद्ध भिक्षुओं की हत्या करवाई | गौड़ देश के शैव राजा शशांक ने बोधगया में उस बोधिवृक्ष को कटवा दिया था जिसके नीचे गौतम बुद्ध को ज्ञानप्राप्ति हुई थी |

मध्यकाल के प्रारम्भ में दक्षिण भारत में शैव और वैष्णव सम्प्रदाय के अनुयायियों ने बौद्धों का कड़ा विरोध किया, जिससे बौद्ध धर्म का पतन हो गया |

ये भी देखें – बौद्ध धर्म का इतिहास

तुर्की आक्रमण

तुर्की आक्रमण ने बौद्ध धर्म के पतन में योगदान दिया | ईसा की पहली सदी से बौद्ध अनुयायी बड़ी मात्रा में मूर्ति-पूजा करने लगे साथ खूब चढ़ावा भी चढ़ने लगा | इस चढ़ावें के अलावा राजाओं से भी बौद्ध विहारों को खूब सम्पत्ति के दान मिलने लगे |

बौद्ध विहारों की अपार सम्पत्ति ने तुर्की आक्रमणकारियों को अपनी ओर आकर्षित किया | बौद्ध विहार इन लालची आक्रमणकारियों के विशेष लक्ष्य बन गये | तुर्की हमलावरों ने विहारों को लूटा और असंख्य भिक्षुओं का संहार किया, कुछ भिक्षु बचकर नेपाल व तिब्बत भाग गये |

बौद्ध धर्म तक बारहवीं सदी तक अपनी जन्मभूमि से लगभग लुप्त हो चुका था |

संस्कृत को अपनाना

पालि भाषा, जोकि जनसामान्य की भाषा थी, ने बौद्ध धर्म की प्रारम्भिक अवस्था में इसकी अपार सफलता में मुख्य रूप से योगदान दिया था | लेकिन कालान्तर में महायान सम्प्रदाय के उदय के बाद बौद्धों ने पालि को छोड़कर संस्कृत को अपना लिया जो केवक विद्वानों की भाषा थी |

बौद्ध ग्रन्थों की भी रचना संस्कृत में की जाने लगी | जिससे जनसाधारण के बीच बौद्ध धर्म की लोकप्रियता कम होने लगी | बौद्ध ग्रन्थ संस्कृत में होने के कारण जनसाधारण इसकी गूढ़ अर्थों को समझने में असफल रहा और इस धर्म से दूर होने लगा |  

बौद्ध धर्म का विभाजन

बौद्ध धर्म के पतन के लिए इसका विभाजन भी उत्तरदायी था | द्वितीय बौद्ध संगीति में ही बौद्ध धर्म का विभाजन स्थविरवादियों और महासंघियों में हो गया | लेकिन बौद्ध धर्म का स्पष्ट विभाजन कनिष्क के काल में हुई चौथी बौद्ध सभा में हुआ | यहाँ बौद्ध धर्म हीनयान और महायान सम्प्रदायों में विभाजित हो गया |

कनिष्क ने महायान सम्प्रदाय को राज्याश्रय प्रदान किया | धीरे-धीरे हीनयान सम्प्रदाय का प्रभाव कम होने लगा और यह अपनी जन्मभूमि से लुप्त हो गया |

महायान सम्प्रदाय के अनुयाईयों ने ब्राह्मण धर्म की पूजा पद्धति और संस्कारों को अपनाकर गौतम बुद्ध को देवता का स्थान देकर उनकी आडम्बरपूर्ण पूजा शुरू कर दी | इसके अलावा महायानियों ने अनेक बोधिसत्वों की उपासना भी आरम्भ कर दी |

साथ ही कई अन्य कई देवी-देवताओं का भी महायान में प्रवेश हो गया जिन्हें गौतम बुद्ध के विभिन्न प्रतीकों के साथ सम्बन्धित करके उपासना की जाने लगी | इस प्रकार बौद्ध धर्म ब्राह्मण धर्म के अत्यधिक करीब आ गया और लोगों का इससे मोह भंग होने लगा |

वज्रयान सम्प्रदाय का उदय

ईसा की पांचवी या छठी शताब्दी में बौद्ध धर्म तन्त्र-मन्त्र के प्रभाव में आया, जिससे परिणामस्वरूप बौद्ध धर्म में वज्रयान नामक तांत्रिक सम्प्रदाय का उदय हुआ | वज्रयान सम्प्रदाय में मंत्रों और तांत्रिक क्रियाओं को अत्यधिक महत्व दिया गया और इसके माध्यम से मोक्ष प्राप्ति का विधान प्रस्तुत किया गया | वज्रयान सम्प्रदाय के अनुयायी मैथुन, मांस आदि के सेवन पर जोर देते थें |

वज्रयान सम्प्रदाय के तांत्रिक भिक्षु तारा देवी की उपासना करते थें और साधना में सुरा-सुंदरी को प्राथमिकता देते थें | वज्रयान ने भारत में बौद्ध धर्म के पतन में उल्लेखनीय भूमिका अदा की थी |

ये भी देखें – दर्शनशास्त्र के सभी लेख | इतिहास के सभी लेख | शिक्षाशास्त्र के सभी लेख | अर्थशास्त्र के सभी लेख | समाजशास्त्र के सभी लेख | संविधान के सभी लेख | भूगोल के सभी लेख

इन स्पेशल केटेगरी को भी देखें – MODEL PAPERS | UPSSSC SPECIAL | PGT/TGT SPECIAL | UGC NET SPECIAL | RO/ARO SPECIAL | UPSC SPECIAL | UPTET/CTET SPECIAL | UPHESC SPECIAL | PREVIOUS SOLVED PAPERS | PREVIOUS PAPERS | SYLLABUS | ALL ABOUT INDIA | MCQ