बौद्ध दर्शन में अनित्यवाद और क्षणिकवाद | The Doctrine of Momentariness in Hindi

The Doctrine of Momentariness in Hindi

बौद्ध दर्शन में अनित्यवाद और क्षणिकवाद (The Doctrine of Momentariness in Hindi) : आज हम दर्शनशास्त्र केटेगरी में बौद्ध दर्शन के अंतर्गत अनित्यवाद और क्षणिकवाद (The Doctrine of Momentariness) विषय पर चर्चा करेंगें | महात्मा बुद्ध ने अनित्यवाद के सिद्धान्त का प्रतिपादन किया था | अनित्यवाद का तार्किक विकास क्षणिकवाद है जिसका उदय बुद्धोत्तर बौद्ध दर्शन में हुआ | गौतम बुद्ध के अनित्यवाद के अनुसार संसार की प्रत्येक वस्तु, चाहे वह चेतन हो या जड़, अनित्य है |

प्रतीत्यसमुत्पाद से अनित्यवाद या क्षणिकवाद का उदय होता है | प्रतीत्यसमुत्पाद के सिद्धान्त से संसार की प्रत्येक वस्तु की अनित्यता प्रामाणित होती है | प्रतीत्यसमुत्पाद के अनुसार प्रत्येक वस्तु की उत्पत्ति किसी कारण से ही होती है तथा उस कारण का अन्त होने पर वस्तु भी नष्ट हो जाती है | अतः जिसका आदि है उसका अन्त भी है | परिवर्तन प्रकृति का आवश्यक नियम है | संसार की कोई भी वस्तु नित्य नही है |

महात्मा बुद्ध कहते है कि “जितनी वस्तुयें है सभी की उत्पत्ति कारणानुसार हुई है | ये सभी वस्तुयें सभी तरह से अनित्य हैं |” धम्मपद में कहा गया है कि “जो नित्य और स्थायी मालूम पड़ता है वह भी विनाशी है | जो महान मालूम पड़ता है, उसका भी पतन है | जहाँ संयोग है वहाँ वियोग भी है | जहाँ जन्म है वहाँ मरण भी है |”

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अनित्यवाद का सिद्धांत ‘मध्यम मार्ग’ (मध्यमा प्रतिपद) है | यह शाश्वतवाद (eternalism) और उच्छेदवाद (nihilism) का मध्य मार्ग है | शाश्वतवाद के अनुसार ‘प्रत्येक वस्तु सत् है’ जबकि उच्छेदवाद के अनुसार ‘प्रत्येक वस्तु असत् है’ | ये दोनों ही सिद्धांत एकांगी और अपूर्ण है | गौतम बुद्ध ने इन दोनों ही सिद्धांतों को छोड़कर ‘मध्यम मार्ग’ का उपदेश दिया | ‘मध्यम मार्ग’ (मध्यमा प्रतिपद) का सिद्धांत बताता है कि जीवन परिवर्तनशील है | जीवन को परिवर्तनशील कहकर गौतम बुद्ध ने सत् (being) और असत् (non-being) के मध्य-मार्ग को अपनाया |

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महात्मा बुद्ध के अनित्यवाद के सिद्धान्त को उनके अनुयायियों ने क्षणिकवाद में परिवर्तित कर दिया | क्षणिकवाद का अर्थ केवल इतना ही नही कि सभी वस्तुएं अनित्य है बल्कि इसका अर्थ यह भी है कि किसी वस्तु का अस्तित्व कुछ समय के लिए ही रहता है अर्थात् प्रत्येक वस्तु क्षणभंगुर है |

क्षणिकवाद के अनुसार सबकुछ क्षणिक है (सर्वं क्षणिकम्), संसार की प्रत्येक वस्तु का अस्तित्व क्षणमात्र के लिए ही रहता है | कोई भी वस्तु किन्ही दो क्षणों में एक-सी नही रहती है | प्रत्येक वस्तु का उसकी उत्पत्ति के तुरन्त बाद अन्त हो जाता है | वह वस्तु जिसका अपनी उत्पत्ति के ठीक पश्चात विनाश हो जाता है, क्षणिक कहलाती है | इस प्रकार क्षणिकवाद का अर्थ है “किसी वस्तु का उसकी उत्पत्ति के तुरंत बाद विनाश” |

क्षणिकवाद के सिद्धान्त को समझाने के लिए बौद्धमत नदी की जलधारा और दीपक की लौ के उदाहरण देता है | कोई भी व्यक्ति एक नदी के उसी जल में दो बार स्नान नही कर सकता है, क्योकि जिस जल में उसने प्रथम बार डुबकी लगाई थी वह आगे बह गया और दूसरी डुबकी दूसरी जल में ही लगेगी |

इसीप्रकार दीपक की लौ हर क्षण बदलती रहती है | एक क्षणिक लौ के जाते ही उसका स्थान दूसरी क्षणिक लौ ले लेती है और यह क्रम दीपक के जलने तक निरन्तर चलता रहता है | जिसप्रकार नदी में हर क्षण जल बहता रहता है उसीप्रकार दीपक में हर क्षण नई लौ उठती रहती है |

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इस प्रकार प्रत्येक वस्तु क्षण-क्षण बदलती रहती है | अतः संसार की प्रत्येक वस्तु न केवल अनित्य ही है, बल्कि क्षणिक (क्षण भर स्थिर रहने वाला) भी है | यदि वस्तुयें अनित्य व क्षणिक नही है तो उन्हें शाश्वत (सदा रहने वाली) मानना पड़ेगा, जोकि किसी भी हाल में सम्भव नही है |

क्षणिकवाद का समर्थन

क्षणिकवाद का समर्थन ‘अर्थ-क्रिया-कारित्व’ नामक तर्क के आधार पर किया जाता है | ‘अर्थ-क्रिया-कारित्व’ का अर्थ है “किसी कार्य को उत्पन्न करने की शक्ति” |

किसी वस्तु की सत्ता को तब तक माना जा सकता है जब तक उस वस्तु में कार्य करने की शक्ति मौजूद हो | जो वस्तु कार्य उत्पन्न करने में असमर्थ हो, उसकी सत्ता नही मानी जा सकती है | अर्थात् अगर कोई वस्तु कार्य उत्पन्न कर सकती है तब उसकी सत्ता है और अगर वह कार्य उत्पन्न नही कर सकती है तब उसकी सत्ता नही है | इसप्रकार एक वस्तु एक समय एक ही कार्य उत्पन्न कर सकती है |

अगर एक समय एक वस्तु से एक कार्य उत्पन्न होता है और दूसरे समय उससे दूसरे कार्य की उत्पत्ति होती है तो इससे प्रमाणित होता है कि पहली वस्तु का अस्तित्व क्षणभर के लिए ही रहता है क्योकि दूसरी वस्तु के अस्तित्व के साथ ही पहली वस्तु का अस्तित्व खत्म हो जाता है |

इस बात को बीज के उदाहरण से भलीभांति समझा जा सकता है | बीज जब बोरे में रखा रहता है तब वह पौधे को उत्पन्न नही कर पता है | बीज मिट्टी में बोने पर पौधे के रूप में विकसित होता है | साथ ही पौधे का हर क्षण विकास होता जाता है | विकास का हर क्षण दूसरे क्षण से अलग होता है | इसी प्रकार विश्व की हर वस्तु का हर क्षण परिवर्तन होता रहता है | अर्थात् बीज की भांति विश्व की सभी वस्तुओं का अस्तित्व भी क्षणमात्र ही रहता है |

अतः क्षणिकवाद के अनुसार विश्व की समस्त वस्तुएं क्षणिक और परिवर्तनशील है |

बौद्ध दर्शन के क्षणिकवाद सिद्धांत ग्रीक दर्शन में हेराक्लाइट्स के विचारों से और समकालीन दर्शन में हेनरी बर्गसॉ एवं व्हाइटहेड के विचारों से मेल खाता है | हेराक्लाइट्स के अनुसार परिवर्तन इतनी शीघ्रता से हो रहा है कि नदी की एक ही धारा में हम दो बार स्नान नही कर सकते है | फ्रेंच दार्शनिक हेनरी बर्गसॉ कहते है कि विश्व की समस्त वस्तुएं प्रत्येक क्षण परिवर्तित होती है | व्हाइटहेड लिखते है कि हम जिस वस्तु को जिस समय देखते है वह उसी समय बदल जाती है |

क्षणिकवाद की आलोचना

बौद्ध दर्शन के क्षणिकवाद सिद्धांत की आलोचना भी प्राप्त होती है | क्षणिकवाद सिद्धांत के विरुद्ध निम्नलिखित आक्षेप किये जाते है –

1- क्षणिकवाद का सिद्धांत ‘कार्य-कारण संबंध’ की व्याख्या करने में असमर्थ है | अगर कारण केवल क्षणभर ही रहता है तो फिर क्षणमात्र में ही उससे कार्य की उत्पत्ति कैसे हो सकती है ? क्योकि कार्य की उत्पत्ति हेतु कारण की सत्ता को एक क्षण से अधिक रहना होगा | यदि कारण क्षणमात्र में ही नष्ट हो जाता है तो उसके द्वारा उत्पन्न कार्य को शून्य से उत्पन्न मन जायेगा, जोकि विरोधपूर्ण है | इसप्रकार क्षणिकवाद का सिद्धांत कार्य-कारण सिद्धांत का खंडन करता है |

2- क्षणिकवाद का सिद्धांत कर्म-सिद्धांत का भी विरोधी है | कर्म-सिद्धांत के अनुसार कर्म अपना फल अवश्य देते है | क्षणिकवाद के अनुसार कर्ता एक कर्म करने के पश्चात ही बदल जाता है | अर्थात् अगर एक व्यक्ति ने कर्म किया तथा क्षणिक होने के कारण नष्ट होकर दूसरा व्यक्ति हो गया | फिर दूसरे व्यक्ति को पहले व्यक्ति के कर्मों का फल कैसे प्राप्त हो सकता है ? यह निश्चय ही कर्म-सिद्धांत का उल्लंघन करता है |

3- क्षणिकवाद का सिद्धांत निर्वाण को भी निरर्थक सिद्ध करता है | यदि मानव-जीवन क्षणिक है तो दुःख भी क्षणभंगुर ही है | अतः दुःख से छुटकारा पाने का प्रयास करना निरर्थक है, क्योकि निर्वाण का फल दूसरे ही व्यक्ति को मिलेगा |

4- क्षणिकवाद का सिद्धांत मनोवैज्ञानिक तथ्यों की भी अवहेलना करता है | मनोविज्ञान स्मरण (memory) और प्रत्यभिज्ञा (recognition) को तथ्य के रूप में स्वीकार करता है | क्षणिकवाद के सिद्धांत का समर्थन करने पर स्मृति और प्रत्यभिज्ञा की व्याख्या करना सम्भव नही है | क्षणिकवाद के अनुसार व्यक्ति का अस्तित्व क्षणमात्र के लिए है | लेकिन स्मरण तभी सम्भव है जब स्मरणकर्ता क्षणिक न होकर कुछ समय तक स्थायी हो | साथ ही पहचानी जाने वाली वस्तु में भी स्थिरता होना आवश्यक है | क्षणिकवाद का सिद्धांत व्यक्ति व वस्तु को क्षणभंगुर मानकर स्मृति व प्रत्यभिज्ञा का आधार ही समाप्त कर देता है |

5- क्षणिकवाद का सिद्धांत मानव-जीवन में निराशा को जन्म देता है | जब मानव-जीवन ही क्षणिक है तो व्यक्ति सुखद भविष्य के निर्माण का प्रयास क्यों करें | जब सब क्षणभंगुर है तो व्यक्ति धन, विद्या आदि की प्राप्ति का प्रयास क्यों करें |

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