चालीसा का शासन (1236-66)

Chaaleesa Ka Shaasan

चालीसा का शासन (1236-66) Chaaleesa Ka Shaasan (Rule of Chalisa) : विद्यादूत के इतिहास केटेगरी में आज हम चालीसा का शासन (1236-66) Chaaleesa Ka Shaasan (Rule of Chalisa) लेख पर चर्चा करेंगें | इसके पूर्व हमने गुलाम वंश के इतिहास के अंतर्गत कई लेख प्रस्तुत किये थे |

आप प्रारम्भिक तुर्क सुल्तानों का इतिहास यहाँ से देख सकते है – गुलाम वंश का सम्पूर्ण इतिहास

चालीसा के सदस्य इल्तुतमिश के संपूर्ण जीवन काल में उसके तथा राज्य के प्रति पूर्ण रूप से वफादार रहे हैं | लेकिन इल्तुतमिश का यह विश्वास, कि चालीसा के सदस्य उसके उच्चाधिकारियों के प्रति भी निष्ठावान रहेंगे, एक बड़ी भूल थी |

सुल्तान इल्तुतमिश की मृत्यु के बाद इन्होंने मृत सुल्तान के उत्तराधिकारियों के प्रति स्वामीभक्ति त्याग दी | जिससे इल्तुतमिश के वंशानुगत उच्चाधिकारियों और चालीसा के मध्य घृणित राजनीतिक संघर्ष शुरू हो गया |

शक्तिशाली चालीसा के समक्ष इल्तुतमिश के कमजोर उत्तराधिकारी टिक ना सके | लगभग 30 वर्षों के दौरान इल्तुतमिश के उत्तराधिकारी के रूप में चार शासकों ने दिल्ली सल्तनत पर शासन किया और उनकी हत्या कर दी गई |

इन वर्षों के दौरान चालीसा ने “राजा-निर्माता” की भूमिका अदा की तथा 1236 से 1266 तक की काल-अवधि दिल्ली सल्तनत के इतिहास में “चालीसा का शासन” के काल के रूप में जानी जाती है |

इस काल-अवधि में सल्तनत के अस्तित्व पर ही प्रश्नचिन्ह लग गया | राजनीतिक अस्थिरता यहां तक पहुंच गयी कि छोटे-छोटे राजपूत सरदारों और स्थानीय सरदारों ने भी केंद्र की अवहेलना करना शुरू कर दिया |

यदि चालीसा ने एक संगठित समूह की भांति व्यवहार किया होता तो शायद स्थिति इसके विपरीत होती | लेकिन इनके बीच सामंजस्य नहीं था | वें एक दूसरे को नीचा दिखाने को तत्पर रहते थे तथा आपसी संघर्षों के कारण इन्होंने सल्तनत की प्रतिष्ठा धूमिल कर दी |

बरनी इनकी आलोचना करते हुए कहता है कि “शम्सुद्दीन (इल्तुतमिश) की मृत्यु के पश्चात तुर्की की चालीसी (चालीसा) शक्तिशाली बन गई | स्वर्गीय सुल्तान के पुत्रों का व्यवहार शहजादों जैसा नहीं था | शाही पद बड़ा ऊंचा था | पैगंबर के बाद बादशाह का पद ही संसार में सर्वोच्च और महत्वपूर्ण है | इन तुर्की (चालीसा) के कारण सारे बड़े-बड़े लोग और मलिक व वजीरों के पुत्र किसी ना किसी बहाने से पदों से हटा दिए गए | तत्पश्चात शम्सी दास (चालीसा) राज्य में सर्वाधिक अग्रणी बन गए और उनको खान के बराबर प्रतिष्ठित माने जाने लगा | शम्सी दास (चालीसा) पहले साथ-साथ काम करते थे | जहां वे सारे ही उच्च और शक्तिशाली बन गए तो उनमें कोई भी एक दूसरे को बड़ा नहीं मानता था और ना कोई अपने को छोटा समझता था | संपत्ति, प्रतिष्ठा और प्रदर्शन में वे एक दूसरे से आगे बढ़ना चाहते थे और उनके दम्भ और शेखी बहुत बढ़ गई थी | एक बार दूसरे से कहा करता था, ‘तुम क्या हो और मैं क्या नहीं हूं | तुम क्या हो जाओगे और मैं क्या नहीं बनूंगा |’ शम्सुद्दीन के पुत्रों की अयोग्यता और शम्सी दासों के दम्भ के कारण लोगों की दृष्टि में राजसिंहासन का कोई आदर नहीं रहा, जो पहले संसार में सर्वोच्च और प्रतिष्ठित माना जाता था |”

इस प्रकार जिस चालीसा का गठन इल्तुतमिश ने अपने उत्तराधिकारियों और राजसिंहासन की सुरक्षा के लिए किया था, उसी समूह ने उसके वंश को नष्ट कर दिया |

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