भारतीय दर्शन के आस्तिक और नास्तिक सम्प्रदाय

Bharatiya Darshan Ke Aastika Aur Nastika Sampradaya

भारतीय दर्शन के आस्तिक और नास्तिक सम्प्रदाय (Orthodox and Heterodox Schools of Indian Philosophy) Bharatiya Darshan Ke Aastika Aur Nastika Sampradaya : भारत के दार्शनिक सम्प्रदायों को स्वरुप व पद्धति की दृष्टि से दो वर्गों में विभाजित किया गया है | ये दो वर्ग है आस्तिक दर्शन और नास्तिक दर्शन । भारतीय दर्शन को आस्तिक और नास्तिक सम्प्रदाय में विभाजित करने के कई आधार बताये गये है जैसे वेद-समर्थक और वेद-विरोधी के आधार पर, इहलोक और परलोक के आधार पर, ईश्वरवादी और अनीश्वरवादी के आधार पर |

लेकिन प्राचीन भारतीय दार्शनिक साहित्य में आस्तिक और नास्तिक दर्शनों का स्पष्ट विभाजन वेद-समर्थक और वेद-विरोधी के आधार पर ही प्रचलित है |

वेद-समर्थक और वेद-विरोधी के आधार पर भारतीय दर्शन का विभाजन

भारतीय विचारधारा में आस्तिक व नास्तिक पदों को परिभाषित का आधार वेद-प्रामाण्य की स्वीकृति और अस्वीकृति से है | अर्थात् भारतीय दर्शन में उस विचारधारा को आस्तिक (Orthodox) कहा जाता है जो वेदों की प्रामाणिकता में विश्वास करती है और इसके विपरीत नास्तिक (Heterodox) उसे कहा जाता है जो वेदों की प्रमाणिकता में विश्वास नही करती है |

इस प्रकार आस्तिक का अर्थ है ‘वेद-पथगामी’ और नास्तिक का अर्थ है ‘वेद-विरोधी’ । इस दृष्टि से भारतीय दर्शनों में छः दर्शन आस्तिक दर्शन कहलाते है और तीन दर्शन नास्तिक दर्शन कहलाते है ।

ये भी देखें – भारतीय दर्शन और पश्चात्य दर्शन में अंतर

आस्तिक दर्शन ये है कपिल का सांख्य दर्शन, पतंजलि का योग दर्शन, गौतम का न्याय दर्शन, कणाद का वैशेषिक दर्शन, जैमिनी का पूर्वमीमांसा या मीमांसा दर्शन और बादरायण व उनके अनुयाईयों का उत्तरमीमांसा या वेदांत दर्शन | ये छह दर्शन ‘षड्दर्शन’ कहलाते है । ये दर्शन किसी न किसी रूप में वेदों पर आधारित हैं |

ये भी देखें – दर्शनशास्त्र के सभी लेख | इतिहास के सभी लेख | शिक्षाशास्त्र के सभी लेख | अर्थशास्त्र के सभी लेख | समाजशास्त्र के सभी लेख | संविधान के सभी लेख | भूगोल के सभी लेख

इसके विपरीत नास्तिक दर्शन के अन्दर वृहस्पति का चार्वाक दर्शन, महावीर स्वामी व उनके उनके पूर्ववर्ती तीर्थंकरों का जैन दर्शन और महात्मा बुद्ध का बौद्ध दर्शन आते है ।

इन दर्शनों के नास्तिक कहलाने का मूल कारण यह है कि ये वेदों की प्रमाणिकता को नही मानते हैं । कहा भी गया है ‘नास्तिको वेदनिन्दकः’ अर्थात् ‘वेदों की निंदा करने वाला नास्तिक है’ | प्राचीन भारतीय दार्शनिक साहित्य में आस्तिक व नास्तिक पदों का अर्थ इसी रूप में हुआ है |

इहलोक और परलोक के आधार पर भारतीय दर्शन का विभाजन

प्राचीन भारतीय दार्शनिक साहित्य में आस्तिक व नास्तिक पदों का एक दूसरा अर्थ भी प्राप्त होता है | इसके अनुसार आस्तिक दर्शन वह है जो परलोक अर्थात् स्वर्ग व नरक की सत्ता में आस्था रखता है ।

जबकि नास्तिक दर्शन वह है जो परलोक अर्थात् स्वर्ग व नरक का खंडन करता है । दूसरे शब्दों में आस्तिक वह विचारधारा है जो इहलोक के साथ परलोक की सत्ता को भी स्वीकार करती है और नास्तिक वह विचारधारा है जो केवल इहलोक की सत्ता में विश्वास करती है और परलोक के अस्तित्व को नकारती है | केवल इहलोक अथवा दृश्यजगत् की सत्ता को स्वीकार करने की वजह से नास्तिक दर्शन को लोकायत दर्शन भी कहा जाता है |

लेकिन आस्तिक व नास्तिक पदों का अर्थ इस आधार पर स्वीकार करने पर मात्र चार्वाक ही नास्तिक दर्शन माना जायेगा क्योकि यह परलोक की सत्ता को अस्वीकार करते हुए केवल इहलोक की सत्ता में विश्वास करता है |

जबकि इसके अतिरिक्त अन्य सभी दर्शनों (सांख्य दर्शन, योग दर्शन, न्याय दर्शन, वैशेषिक दर्शन, मीमांसा दर्शन, वेदांत दर्शन) आस्तिक दर्शनों के वर्ग में रखा जाता, क्योंकि वे परलोक की सत्ता में विश्वास करते हैं ।

ईश्वरवादी और अनीश्वरवादी के आधार पर भारतीय दर्शन का विभाजन

आधुनिक भारतीय साहित्य में आस्तिक व नास्तिक पदों का प्रयोग एक अन्य अर्थ में भी होता है | इसमे आस्तिक उसे कहा जाता है जो ईश्वर की सत्ता में विश्वास रखता है जबकि नास्तिक उसे कहा जाता है जो ईश्वर की सत्ता का निषेध करता है | इस प्रकार आस्तिक का अर्थ ईश्वरवादी और नास्तिक का अर्थ अनीश्वरवादी है ।

यद्यपि व्यावहारिक जीवन में आस्तिक एवं नास्तिक पदों का प्रयोग इसी अर्थ में होता है । लेकिन दार्शनिक विचारधारा में आस्तिक व नास्तिक पदों का प्रयोग इस अर्थ में नहीं हुआ है ।

क्योकि अगर भारतीय दर्शन में आस्तिक व नास्तिक पदों का प्रयोग इस अर्थ में होता तो चार्वाक, जैन, बौद्ध के साथ सांख्य व मीमांसा दर्शन को भी नास्तिक दर्शनों की कोटि में आ जाते, क्योकि सांख्य व मीमांसा अनीश्वरवादी दर्शन हैं । इसके अतिरिक्त अन्य दर्शन (योग, न्याय, वैशेषिक, वेदांत) ईश्वरवादी होने के कारण आस्तिक दर्शनों की कोटि में आ जाते | परन्तु ऐसा नही है |

नास्तिक शिरोमणि चार्वाक दर्शन

उल्लेखनीय है कि चार्वाक ही एकमात्र ऐसा दर्शन है जो उपर्युक्त तीनों अर्थों में नास्तिक होने का दर्जा प्राप्त करता है | कट्टर वेदविरोधी होने के कारण यह नास्तिक है । अनीश्वरवादी होने के कारण भी यह नास्तिक है और परलोक को अस्वीकार करने के कारण भी यह नास्तिक है ।

इस प्रकार हम देखते है कि प्रत्येक दृष्टिकोण चार्वाक दर्शन कट्टर नास्तिक है | यही कारण है कि चार्वाक दर्शन को ‘नास्तिक शिरोमणि’ की व्यंग्य उपाधि से विभूषित किया गया है |

भारतीय दर्शन के आस्तिक और नास्तिक सम्प्रदाय

इस प्रकार हम देखते है कि आस्तिक व नास्तिक पदों का कई अर्थ है, लेकिन इनमे से प्रथम अर्थ ही भारतीय दार्शनिक साहित्य में प्रचलित है | वेद ही वह कसौटी है जिसके आधार पर भारतीय दर्शन के आस्तिक और नास्तिक सम्प्रदायों का वर्गीकरण हुआ है ।

यह वर्गीकरण भारतीय दार्शनिक विचारधारा में वेद की महत्ता को दर्शाता है । सांख्य दर्शन, योग दर्शन, न्याय दर्शन, वैशेषिक दर्शन, मीमांसा दर्शन एवं वेदान्त दर्शन वेदों की प्रामाणिकता में विश्वास करने के कारण आस्तिक कहलाते है |

जबकि चार्वाक दर्शन, जैन दर्शन एवं बौद्ध दर्शन को वेदविरोधी होने के कारण नास्तिक कहा जाता है |

चूँकि इन वेद-पथगामी या वेद-समर्थक आस्तिक दर्शनों की संख्या छह है, इसलिए भारतीय दर्शन में इन्हे षड्दर्शन भी कहा गया है |

भारतीय आस्तिक दर्शन के प्रकार

अब हम यह समझ चुके है कि वेदों में विश्वास करने वाले दर्शन आस्तिक दर्शन कहलाते है | लेकिन वैचारिक दृष्टि से हम आस्तिक दर्शनों को दो कोटि में विभाजित कर सकते है |

प्रथम कोटि में वें आस्तिक दर्शन आते है जो पूर्णतः वेदों पर आधारित है | इस कोटि में मीमांसा दर्शन और वेदांत दर्शन आते है | जहाँ मीमांसा दर्शन वेद के प्रथम अंग कर्मकाण्ड पर आधारित है वही वेदांत दर्शन वेद के द्वितीय अंग ज्ञानकाण्ड पर आधारित है |

द्वितीय कोटि में वें आस्तिक दर्शन आते है जो वेदों की प्रमाणिकता को स्वीकार करते हुए स्वतंत्र रूप से ऐसे विषयों को भी प्रस्तुत करते है जो वेदों में नही है | इस कोटि में सांख्य दर्शन, योग दर्शन, न्याय दर्शन और वैशेषिक दर्शन आते है |

भारतीय आस्तिक दर्शनों के संयुक्त सम्प्रदाय

अगर हम आस्तिक दर्शनों के आपसी सम्बन्धों पर दृष्टि डालते है तो देखते है कि सांख्य दर्शन व योग दर्शन, न्याय दर्शन व वैशेषिक दर्शन, मीमांसा दर्शन व वेदान्त दर्शन संयुक्त सम्प्रदाय के रूप में है |

सांख्य-योग और न्याय-वैशेषिक दर्शनों का विकास स्वतंत्र रूप से हुआ है । इन दर्शनों पर वेदों का परोक्ष प्रभाव पड़ा है ।

सांख्य दर्शन एवं योग दर्शन दोनों प्रकृति व पुरुष के समान सिद्धान्त को प्रस्तुत करते हैं । अतः इन दोनों दर्शनों का संयुक्त सम्प्रदाय ‘सांख्य-योग’ कहलाता है |

न्याय दर्शन एवं वैशेषिक दर्शन परस्पर मिलकर एक सम्पूर्ण दर्शन का निर्माण करते हैं । वैसे तो ये दोनों दर्शनों में न्यूनाधिक सैद्धान्तिक भेद है, लेकिन इसके बावजूद ये दोनों विश्वात्मा व परमात्मा (ईश्वर) के सम्बन्ध में एक-समान विचार प्रस्तुत करते हैं | इसीलिए दोनों का संकलन ‘न्याय-वैशेषिक’ के रूप में हुआ है |

मीमांसा दर्शन और वेदान्त दर्शन प्रत्यक्ष रूप से वेदों पर आधारित है | मीमांसा दर्शन वेदों की कर्मकाण्डमूलक व्याख्या करता है और वेदांत दर्शन वेदों की ज्ञानमूलक व्याख्या करता है |

चूँकि मीमांसा और वेदांत दोनों में वेदों के विचारों की प्रस्तुति हुई है । इसीलिए इन दोनों दर्शनों का सम्बोधन कभी-कभी एक ही नाम मीमांसा दर्शन से किया जाता है ।

इन दोनों के नामों में भिन्नता दिखाने के लिए मीमांसा दर्शन को ‘पूर्व मीमांसा’ या ‘कर्म मीमांसा’ जबकि वेदान्त दर्शन को ‘उत्तर मीमांसा’ या ‘ज्ञान मीमांसा’ से सम्बोधित किया जाता है | अपने नामों के अनुरूप ‘ज्ञान मीमांसा’ ज्ञान का विचार प्रस्तुत करती है और ‘कर्म मीमांसा’ कर्म का विचार प्रस्तुत करती है |

निष्कर्ष

उपरोक्त विवेचना से हमे पता चलता है कि प्राचीन व आधुनिक भारतीय दार्शनिक साहित्य में आस्तिक और नास्तिक पदों का वर्गीकरण का आधार कभी वेद-प्रमाण्य में विश्वास व अविश्वास रहा है तो कभी परलोक की मान्यता व अमान्यता रहा है | तो कभी ईश्वर की सत्ता में आस्था व अनास्था इस वर्गीकरण का आधार रही है |

लेकिन इस वर्गीकरण का सर्वसम्मत आधार ‘वेद-प्रमाण्य में विश्वास और अविश्वास’ ही है | वें सभी भारतीय दर्शन जो वेदों की प्रमाणिकता को स्वीकार किया है वें आस्तिक दर्शन कहलाते है | इनमे मीमांसा दर्शन और वेदांत दर्शन का आविर्भाव प्रत्यक्ष रूप से वेदों से हुआ |

जबकि सांख्य दर्शन, योग दर्शन, न्याय दर्शन, वैशेषिक दर्शन का आविर्भाव लौकिक विचारों से हुआ साथ ही इन दर्शनों ने वेदों की प्रमाणिकता को भी स्वीकार किया |

नास्तिक दर्शनों का आविर्भाव वैदिक विचारधारा के विरोध में हुआ | इनमे चार्वाक दर्शन प्रबल रूप से वेदों का खण्डन करता है | इसने वेदों को अप्रामाणिक ग्रन्थ कहकर इनके विरुद्ध जोरदार युक्तियाँ दी हैं |

इसके आलावा जैन और बौद्ध दर्शन भी वेद-विरोधी दर्शन है | इन दोनों ने वेदों के विरुद्ध आवाज उठाते हुए वेदों की प्रामाणिकता का खंडन किया |