जैन धर्म और बौद्ध धर्म के उदय के कारण

Jain Dharm Aur Bauddh Dharm Ke Uday Ke Kaaran

जैन धर्म और बौद्ध धर्म के उदय के कारण (Jain Dharm Aur Bauddh Dharm Ke Uday Ke Kaaran) : छठी शताब्दी ईसा पूर्व का काल भारत की संस्कृति हेतु अत्यधिक महत्वपूर्ण काल था | इस काल में मध्य गंगा के मैदानों में अनेक धार्मिक सम्प्रदायों का जन्म हुआ | इस काल में लगभग 62 धार्मिक सम्प्रदायों की जानकारी प्राप्त होती है | इन सभी सम्प्रदायों में से जिन दो सम्प्रदायों ने भारतीय समाज और संस्कृति पर सबसे अधिक प्रभाव डाला वे थे जैन धर्म (सम्प्रदाय) और बौद्ध धर्म (सम्प्रदाय) | जैन और बौद्ध का उदय व विकास प्रभावशाली धार्मिक सुधारवादी आंदोलनों के रूप में हुआ |

जैन धर्म और बौद्ध धर्म में समानताएं – तत्कालीन सामाजिक व धार्मिक बुराइयों का विरोध करने वाले इन दोनों जैन और बौद्ध धर्म (सम्प्रदाय) में मुख्य रूप से कुछ समानताएं थी |

1 – जैन और बौद्ध दोनों सम्प्रदायों (धर्मों) ने ब्राह्मणों के धर्म विषयक प्रभुत्व को चुनौती थी |

2 – जैन व बौद्ध दोनों सम्प्रदायों (धर्मों) के संस्थापक क्षत्रिय थे |

3- दोनों धर्मों ने जन्म पर आधारित जाति-व्यवस्था का विरोध किया |

4- इन दोनों सम्प्रदायों ने धर्म की आड़ में समाज में अनेकों प्रकार के अनावश्यक विशेषाधिकारों का दावा करने वालें ब्राह्मणों के खिलाफ एक प्रकार का सुधारवादी आन्दोलन छेड़ा |

5- दोनों धर्मों ने अहिंसा व सदाचार पर जोर दिया |

6- दोनों धर्म शुद्ध, सरल व संयमित जीवन के पक्षधर थें |

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जैन धर्म और बौद्ध धर्म के उदय के कारण (Reasons for the rise of Jainism and Buddhism)

जैन धर्म और बौद्ध धर्म (सम्प्रदाय) के उदय के कारण (Jain Dharm Aur Bauddh Dharm Ke Uday Ke Kaaran) मुख्यतः निम्नलिखित थें –

1 – जैन और बौद्ध (सम्प्रदाय) सरल, शुद्ध और संयमित जीवन के समर्थक थे, जिससे सर्वसाधारण इनके प्रति ज्यादा आकर्षित हुए |

2 – जैन और बौद्ध दोनों धर्मों (सम्प्रदायों) के उदय का यथार्थ कारण पूर्वोत्तर भारत में नवीन कृषिमूलक अर्थव्यवस्था का विस्तार था | लोहे के आविष्कार के बाद बड़ी संख्या में लोहे के औजारों का इस्तेमाल होने लगा था | जिससे जंगलों की कटाई, कृषि और बड़ी-बड़ी बस्तियों के बसने में आसानी हुई |

लोहे के फाल वाले हलों पर आधारित कृषिमूलक अर्थव्यवस्था में बैलों का होना अनिवार्य था | लेकिन पुरातन वैदिक-ब्राह्मण धर्म पर आधारित यज्ञों के कारण बैल व अन्य पशु अंधाधुंध मारे जा रहे थें | इससे पशुपालन और कृषि की प्रगति बाधित हो रही थी | अब यह आवश्यक हो गया था कि नवीन कृषिमूलक अर्थव्यवस्था की प्रगति के लिए पशु-वध रोका जाएँ | जैन और बौद्ध दोनों धर्म (सम्प्रदाय) नई कृषिमूलक अर्थव्यवस्था के लिए उपयोगी थे, क्योकि ये दोनों पशुबलि के विरुद्ध थे |

पशुबलि विशेषकर बैलों की बलि से कृषि को अत्यधिक नुकसान पहुंचता था और वैदिक धर्म के यज्ञों में अंधाधुंध पशुबलि दी जा रही थी | इसलिए नई कृषिमूलक अर्थव्यवस्था, जो लोगों को सम्पन्न बना रही थी, के विकास हेतु ये दोनों सम्प्रदाय सर्वाधिक उपयुक्त थे |

3 – जैन और बौद्ध दोनों धर्मों ने तात्कालिक समाज में बुरी तरह से फैली वर्ण-व्यवस्था को महत्व नही दिया, वैदिक ग्रन्थ पूर्णतया भेदभाव पर आधारित था | वैदिक काल में समाज स्पष्ट रूप से चार वर्णों (ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य व शूद्र) में विभाजित हो चुका था | वर्ण-व्यवस्था को जाति-व्यवस्था में परिवर्तित करके ब्राह्मण व क्षत्रिय वर्णों ने कुछ विशेषाधिकार प्राप्त कर लिए |

वर्णव्यवस्था के अंतर्गत ब्राह्मणों ने समाज में अपना स्थान सर्वोच्च घोषित किया, साथ ही दान लेना, करों से मुक्ति, दंडों से छुटकारा आदि विशेषाधिकारों पर दावा किया |

क्षत्रिय वर्ण को समाज में दूसरा स्थान प्राप्त हुआ और उन्हें शासन और युद्ध के उतरदायित्व प्राप्त हुए | वैश्य वर्ण का तीसरा स्थान था, जो खेती, पशुपालन और व्यापार पर निर्भर थें | वैश्य वर्ण ही मुख्य करदाता थें | वैश्य वर्ण को ब्राह्मण व क्षत्रिय वर्णों के साथ द्विज नामक समूह में स्थान प्राप्त था | द्विज को वेद पढ़ने और जनेऊ धारण करने का विशेषाधिकार प्राप्त था |

समाज में शुद्र वर्ण को चौथा व अंतिम स्थान प्राप्त था | इस काल में शुद्र वर्ण के साथ अत्यधिक भेदभाव किया जाता था | कुछ को तो अस्पृश्य माना जाता था | इन्हे शेष तीनों वर्णों का सेवक, उनकी दया पर जीने वाला और जब चाहे पीटा जाने योग्य समझा जाता था |

जबकि जैन और बौद्ध धर्म (सम्प्रदाय) इस प्रकार की संकीर्ण मानसिकता नही रखते थे | इन दोनों धर्मों (सम्प्रदाय) ने पुरातन वैदिक-ब्राह्मण धर्म के वर्णव्यवस्था के दोषों पर प्रहार करते हुए शुद्र वर्ण के साथ सहानुभूति दिखाई | इन दोनों धर्मों ने जन्म पर आधारित वर्ण-व्यवस्था को अस्वीकार करके मोक्ष के द्वार शुद्र वर्ण के लिए खोल दिए | जिससे निम्न वर्ण के लोगों में ये दोनों साम्प्रदाय अत्यधिक लोकप्रिय हुए |

4 – जैन और बौद्ध दोनों सम्प्रदाय वैश्य वर्ण के लिए उपयुक्त थे | वैश्य वर्ण ने व्यापार व वणिज्य के द्वारा समाज में अपना महत्वपूर्ण बना लिया था बावजूद इसके ब्राह्मण धर्म इन्हे समाज में तीसरे स्थान (प्रथम ब्राह्मण, द्वितीय क्षत्रिय) पर रखता था, जिससे इनके सम्मान हो ठेस पहुँचती होगी जबकि ये अपनी सामाजिक प्रतिष्ठा बढ़ाने हेतु उत्सुक थे |

चूकिं इन दोनों सम्प्रदायों ने ब्राह्मणों द्वारा अपनाई गयी वर्ण व्यवस्था को महत्व नही दिया इसलिए से वैश्य वर्ण में तेजी से फैले |

हम देखते है कि वैश्य वर्ण के लोगों ने महत्मा बुद्ध और महावीर स्वामी की अत्यधिक उदार मन से सेवा की | इसके आलावा वैदिक ग्रन्थ वैश्य वर्ण के खिलाफ लगातार जहर उगल रहे थे, उदाहरणार्थ ऐतरेय ब्राह्मण के अनुसार वैश्य को राजस्व देना अनिवार्य है और ऐसा न करने पर राजा उसका दमन कर सकता है |

धर्मसूत्र सूद पर धन लगाने के व्यापार की आलोचना करते है जबकि कई वैश्य महाजनी में संलग्न थे |

व्यापार और वाणिज्य में संलग्न लोग शांति पसंद करते है क्योकि युद्ध और झगड़ों से व्यापार को नुकसान पहुचता है | हम जानते है कि हड़प्पा सभ्यता, जो प्रधानतः व्यापार और वाणिज्य में संलग्न थी, शांतिमूलक थी | चूँकि जैन व बौद्ध दोनों धर्म (सम्प्रदाय) अहिंसा को सर्वोच्च महत्व देते थे, अतः ये वैश्यों को जल्द लुभाने लगे | 

5 – अन्य कारणों में ब्राह्मण धर्म के खिलाफ जनमानस का विद्रोह था | पुरातन वैदिक-ब्राह्मण धर्म भेदभाव पर आधारित था | मानव के साथ जाति आधारित भेदभाव चरम पर था | आडम्बरपूर्ण व खर्चीले वैदिक अनुष्ठानों से मानव जीवन जटिल होता जा रहा था | जनमानस शांति का जीवन जीना चाह रहा था | ऐसे में जैन और बौद्ध धर्म, जो शुद्ध सरल व संयमित जीवन के पक्षधर थें और अहिंसा और सदाचार पर जोर दे रहे थें, ने लोगों को आसानी से अपनी ओर आकर्षित किया |