आरंभिक हड़प्पा काल

Early Harappan Period

आरंभिक हड़प्पा काल (Early Harappan Period) हड़प्पा सभ्यता के कुछ स्थलों से कुछ नवीन तथ्य प्रकाश में आये थें, जिसे हड़प्पा सभ्यता का आरंभिक काल कहा जा सकता है | ‘आरंभिक हड़प्पा काल’ हड़प्पा-सभ्यता का निर्माण-कल था जिसमें सांस्कृतिक एकता की कुछ प्रवृत्तियों के साक्ष्य भी प्राप्त हुए है | हड़प्पा सभ्यता की यह आरंभिक संस्कृति सम्पूर्ण सिंधु घाटी में विस्तृत थी और ईरान की सीमा तक इस संस्कृति के पुरास्थल उपलब्ध होते है |

आरंभिक हड़प्पा काल का समय 3500 ईसा पूर्व से 2600 ईसा पूर्व तक रहा | इस काल में पहाड़ों व मैदानों में अनेकों बस्तियां बसी | इस काल में गाँव सबसे अधिक संख्या में आबाद हुए | इस काल में लोग तांबा, चाक व हल का उपयोग करके कई तरह के मिट्टी के अद्भुत बर्तन बनाते थें, जिससे अनेक क्षेत्रीय परंपराओं की शुरुआत हुई |

आरंभिक हड़प्पा काल में अन्न-भंडार, ऊँची-ऊँची दीवारों के साक्ष्य मिले है | इस काल के लोग सुदूर व्यापार में भी संलग्न थें | सम्पूर्ण सिंधु घाटी में मिट्टी के बर्तनों की एकरूपता के प्रमाण प्राप्त होते है | इसके अलावा कूबड़ वाले बैल, सींग वाले देवता, पीपल, शेषनाग इत्यादि के रूपांकनों के प्रयोग के साक्ष्य प्राप्त हुए है |

इस काल के लोग पत्थर और तांबे के उपकरण का इस्तेमाल करते थें | तांबे के प्राप्त उपकरणों में कुल्हाड़ियाँ, छुरी, मुद्रकाएं, चूड़ियाँ प्रमुख है | पाषाण फलक बहुतायत में मिलते है | विभिन्न प्रकार के मृद्भाण्ड मिलते है, जोकि हाथ और कुम्हार के चाक दोनों से निर्मित थें | मृद्भाण्ड प्रमुख रूप से लाल व पाण्डु (हल्के गुलाबी) रंग के मिलते है | लेकिन कुछ पर काले रंग की चित्रकारी भी मिलती है |

लोग पशुपालन और कृषि दोनों कर्मों में संलग्न थें | गाय, बैल, भैंस, बकरी, भेड़, सूअर आदि का पालन होता था और गेंहू, धान, जौ, मटर मसूर, उड़द, आदि फसल उगाई जाती थी | शवाधान में दाहकर्म और समाधीकरणदोनों विधियाँ अपनाई गयी थी | अस्थि कलशों में प्राप्त आभूषण, औजार, उपकरण आदि से पता चलता है कि लोग परलोक में विश्वास करते थें |

आरंभिक हड़प्पा काल के स्थलों में मुंडीगक, दंब सादात, राना घुंदई, पेरीआनों घुंदाई, अंजीरा तोगाऊ, निंदोवाड़ी, बालाकोट, आमरी, कोटदीजी, मेहरगढ, रहमान ढेरी, तरकाई किला, हड़प्पा, कालीबंगन आदि प्रमुख है |

दक्षिणी अफगानिस्तान

दक्षिणी अफगानिस्तान में मुंडीगक नामक स्थान से हमें आरंभिक हड़प्पा सभ्यता के समाज की जानकारी प्राप्त होती है | ऐसा मालूम होता है कि मुंडीगक व्यापारिक मार्ग पर अवस्थित था | हड़प्पा सभ्यता के आरंभिक काल में यहाँ के लोग शिल्पकृतियों का इस्तेमाल करते थें, जिनसे एक ओर ईरान के कुछ नगरों तथा दूसरी ओर बलूचिस्तान के कुछ नगरों के साथ संबंधों का पता चलता है |

आरम्भ में कुछ खानाबदोश समूहों ने यहाँ पड़ाव डालना शुरू किया और धीमे-धीमे मुंडीगक एक घनी आबादी वाले नगर में बदल गया | इस बात के प्रमाण मिलते है कि इस नगर में ऊँची दीवारे थी जिसमे धूप में सुखाई गयी ईंटों के वर्गाकार बुर्ज थें |

मुंडीगक के निवासी प्राकृतिक सजावट के रूप में बैल, चिड़ियों, लंबे सींग वाले जंगली बकरें, पीपल के वृक्षों को चित्रित करते थें | पक्की मिट्टी की बनी हुई स्त्रियों की छोटी-छोटी मूर्तियाँ भी प्राप्त हुई है | ये मूर्तियाँ बलूचिस्तान की बस्तियों में प्राप्त हुई मूर्तियों से मिलती-जुलती है |

मुंडीगक में एक विशाल भवन मिला है जिसमे खंभों की कतारें थी, जिसे महल माना जा रहा है | एक और विशाल भवन मिला है जिसे मन्दिर के रूप में पहचाना गया है | यही पर मिट्टी के बर्तनों की कई किस्में भी प्राप्त हुई है |

क्वेटा घाटी

मुंडीगक के दक्षिण पूर्व की तरफ क्वेटा घाटी है | क्वेटा संस्कृति की विशिष्टता पांडुरंगी (गुलाबी सफेद) मृद्भांड है, जिन पर काले रंग से अलंकरण अभिप्राय चित्रित किये गये है | अलंकरण अभिप्राय मुख्य रूप ज्यामितीय है, जिनमे सीढ़ीदार अलंकरण विशिष्ट हैं |

दंब सादात में बड़े-बड़े ईंटों के घर प्राप्त हुए है, जिनका संबंध तृतीय सहस्त्राब्दी ईसा पूर्व के प्रारम्भ से है | यहाँ पर कई प्रकार के चित्रकारी किए गये मिट्टी के बर्तन भी मिले है, जो मुंडीगक से प्राप्त मिट्टी के बर्तनों जैसे ही है | यहाँ के निवासी पक्की मिट्टी की मोहरों व तांबे की वस्तुओं का भी इस्तेमाल करते थें | इसी तरह आस-पास के क्षेत्रों से भी विशिष्ट कला व मिट्टी के बर्तनों की परम्परा के विषय में जानकारी प्राप्त हुई है |

राना घुंदई के निवासी बारीकी से बने हुए और चित्रकारी किए हुए मिट्टी के बर्तन इस्तेमाल करते थें | इन पर काले कूबड़ वाले बैलों के चित्र बने मिले है | पेरीआनों घुंदाई में भी एक विशिष्ट प्रकार की स्त्रियों की छोटी-छोटी मूर्तियाँ प्राप्त हुई है |

सिंधु क्षेत्र

सिंधु क्षेत्र के प्रमुख स्थल है – कोटदीजी, आमरी, मेहरगढ़ | इनमे कोटदीजी और आमरी ज्यादा ध्यान देने योग्य है | ये दोनों स्थल अपने सिंधु-पूर्व सभ्यता निक्षेपों हेतु प्रसिद्ध है | कोटदीजी और आमरी दोनों जगह विशिष्ट चित्रित मृद्भाण्ड शैलियां देखने को मिलती हैं जो सिंध और उससे लगे हुए क्षेत्र में कई स्थानों पर प्राप्त हुई है |

कोटदीजी – कोटदीजी पुरास्थल सिंधु नदी पर अवस्थित है | इसकी खोज वर्ष 1955 में फजल अहमद ने की थी और वर्ष 1955-58 के बीच यहाँ पर उत्खनन किया गया, जिसके परिणामस्वरूप यहाँ से दो सांस्कृतिक स्तर आरंभिक हड़प्पा काल और हड़प्पा काल के प्राप्त हुए |

कोटदीजी में आरंभिक हड़प्पा काल की एक किलेबंद बस्ती देखने को मिलती है जिसमे जीवनयापन के कई निक्षेप मौजूद है | ये सम्भवतः ईसा पूर्व तीसरी सहस्त्राब्दी के प्रथम अंश जितने प्राचीन है | कोटदीजी के आरंभिक हड़प्पाई लोगों में नियोजन व संगठन के साथ-साथ कलात्मक कौशल भी विद्यमान था | कोटदीजी के निवासियों की सबसे अच्छी खोज मिट्टी के बर्तन हैं | कोटदीजी के मृद्भाण्ड की कुछ विशेषताएं हड़प्पा सभ्यता तक चली गयी है | यहाँ के निवासी चाक पर बने मृद्भाण्डों का इस्तेमाल करते थें, जिन पर गहरे भूरे रंग की साधारण धारियों की सजावट होती थी |

यहाँ से प्राप्त सबसे महत्वपूर्ण पुरा सामग्री डीलयुक्त सांड की मूर्ति व पाषाण मनके है | अन्य सामग्री में चर्ट ब्लेड, मृत्पिण्ड, सिल-लोढ़े, शंख व मिट्टी द्वारा निर्मित चूड़ियाँ इत्यादि है | कोटदीजी की आरंभिक हड़प्पा सभ्यता का अंत दो अग्निकाण्डों के परिणामस्वरूप हुआ |

आमरी – आमरी की खोज वर्ष 1929 में एन.जी. मजूमदार ने की थी तथा बाद में जे.एम. कैसल (1959-60) ने इसका उत्खनन करवाया | यहाँ से प्राप्त घरों के अवशेषों से मालूम होता है कि लोग पत्थर व मिट्टी की ईटों के मकानों में निवास करते थें | यहाँ के निवासियों ने अनाज को रखने के लिए अन्नागार भी बनाये थें | ये चाक पर निर्मित मृद्भाण्डों का भी प्रयोग करते थें |

मृद्भाण्डों पर ये लोग भारतीय कुबड़े बैलों जैसे जानवरों के चित्र (चिन्ह) बनाते थें | उल्लेखनीय है कि कूबड़ वाले बैलों का चित्र (चिन्ह) हड़प्पा सभ्यता में अत्यधिक लोकप्रिय था | आमरी में हड़प्पा की सभ्यता के आरंभ होने से पूर्व ही लोगों ने अपनी बस्तियों की किलेबंदी कर ली थी |

मेहरगढ़ – मेहरगढ़ पाकिस्तान के बलूचिस्तान प्रान्त में बोलन दर्रे के पास अवस्थित है | पाठकों को मालूम होना चाहिए कि कृषक समुदायों के उद्भव का सबसे प्राचीन प्रमाण मेहरगढ़ से प्राप्त हुआ है | आरंभिक हड़प्पा काल में मेहरगढ़ के निवासियों ने एक सम्पन्न उपनगर बसाया था |

यहाँ के लोग लाजवर्द मणि (एक कीमती पत्थर) का इस्तेमाल करते थें जोकि केवल बदख्शां क्षेत्र (मध्य एशिया) में प्राप्त होता है | मृद्भाण्डों के अलंकरण, मृण्मूर्तियों, तांबे व पत्थर की वस्तुओं से मालूम होता है कि यहाँ के निवासियों का ईरान के समीपवर्ती नगरों के साथ घनिष्ठ संबंध था |

मेहरगढ़ के निवासियों द्वारा इस्तेमाल किये गये अधिकांश मृद्भाण्ड क्वेटा घाटी और दम्ब सादात की बस्तियों में प्रयोग किये जाने वाले मृद्भाण्डों से मिलते है | साथ ही यहाँ से अनेक स्त्री मृण्मूर्तियां भी प्राप्त हुई है, जोकि जोब घाटी से प्राप्त मूर्तियों से ज्यादातर मिलती-जुलती हैं | इन समानताओं से उस क्षेत्र में निवास करने वाले समुदायों में मध्य निकट आपसी संबंधों की जानकारी प्राप्त होती है |

पंजाब और बहावलपुर

पंजाब में हड़प्पा सुप्रसिद्ध है | व्हीलर को हड़प्पा की रक्षा प्राचीर का उत्खनन करते समय निचले स्तरों से लाल रंग वाले बैगनी लेपयुक्त मिट्टी के बर्तनों के टुकड़े मिले जिनपर काली धारियों से अलंकरण था | यहाँ से प्राप्त मिट्टी के बर्तन कोटदीजी के बर्तनों की भांति है | सम्भवतः ये आरंभिक हड़प्पा काल से संबंधित है | बहावलपुर क्षेत्र में हाकरा नदी की सूखी तलहटी में आरंभिक हड़प्पा काल के करीब चालीस स्थानों की जानकारी प्राप्त हुई है |

कालीबंगन

राजस्थान के गंगानगर जिले में घग्घर नदी के बाएं किनारे पर अवस्थित कालीबंगन नामक स्थान से हमें आरंभिक हड़प्पा काल के प्रमाण प्राप्त हुए है | ए. घोष के सर्वेक्षण फलस्वरूप वर्ष 1950-53 के मध्य कालीबंगन की खोज हुई थी | कालान्तर में यहाँ बी.बी. लाल और बी.के. थापड़ के निर्देशन में व्यापक पैमाने पर खुदाई की गयी, जिसके परिणामस्वरूप आरंभिक हड़प्पा काल के अवशेष प्रकाश में आयें |

आरंभिक हड़प्पा काल के मुख्य अवशेषों में लाल या गुलाबी रंग के चाक निर्मित मृद्भाण्ड, साधारण तश्तरियां, विभिन्न आकार के मटके, पेंदीदार व संकरे मुंह वाले घड़े इत्यादि | कुछ बर्तनों पर काले रंग में ज्यामितीय अभिप्राय चित्रित है | इनके द्वारा प्रयोग किये जाने वाले मृद्भाण्डों का आकार व बनावट दूसरे क्षेत्रों में प्रयुक्त मृद्भाण्डों के आकार व बनावट से अलग था | फिर भी कुछ मृद्भाण्ड कोटदीजी से प्राप्त मृद्भाण्डों से मिलते थें |

यहाँ के निवासी कच्ची ईंटों के घरों में रहते थें | इन कच्ची ईंटों का मानक आकार होता था | सामान्य मकान में चार-पांच कमरें, बरामदा, आंगन व चूल्हे होते थें | मकानों में तंदूर के साक्ष्य प्राप्त हुए है जो आधुनिक तंदूरों जैसे ही है | ये लोग बस्ती के चारो ओर चार दिवारी भी बनाते थें |

आरंभिक हड़प्पाकालीन कालीबंगन की सबसे महत्वपूर्ण उपलब्धि एक जुते हुए खेत की प्राप्ति है, यह सिद्ध करता है कि उस काल में भी किसान हल से परिचित थें | हल की खोज से पूर्व किसान केवल बीज छितराकर बोते थें अथवा फावड़े, कुदाली आदि से खेतों की खुदाई करते थें लेकिन हल के प्रयोग ने किसानों की मेहनत और समय की बचत की | अब किसान बहुत कम मेहनत से अधिक गहरी खुदाई कर सकते थें |

इस जुते हुए खेत में आड़ी-तिरछी जुताई की गयी थी | एक तरफ हल के खांचे (Furrows) पूर्व-पश्चिम में और दूसरी तरफ उत्तर-दक्षिण दिशा में मिलते है | एक हल-खांचे में चना और दूसरे में सरसों बोई जाती थी |

आरंभिक हड़प्पाकालीन कालीबंगन से एक ही खेत में दो फसलें (चना और सरसों) उगाने के साक्ष्य मिलना अत्यधिक महत्वपूर्ण बात है | सम्भवतः यह विधि विकसित हड़प्पा काल में भी जारी रही होगी क्योकि वर्तमान में जुताई की यह विधि हरियाणा, उत्तरी-पूर्वी राजस्थान, पंजाब और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में देखने को मिलती है | कृषि कर्म के साथ ही ये लोग पशुपालन व शिकार से भी जीवनयापन करते थें |

कालीबंगन के आरंभिक हड़प्पा काल के स्तर कुछ अस्त-व्यस्त प्राप्त हुए है और उनमे कुछ दरारें भी मिली है | अनुमानतः इस काल की कालीबंगन बस्ती का भूकंप जैसी किसी प्राकृतिक आपदा के कारण 2700-2600 ईसा पूर्व के करीब अंत हो गया था |

मध्य और दक्षिणी बलूचिस्तान

मध्य व दक्षिणी बलूचिस्तान में बालाकोट, अंजीरा तोगाऊ, निंदोवाड़ी जैसी बस्तियों से हमें आरंभिक हड़प्पा कालीन समाजों की जानकारी प्राप्त होती है | उल्लेखनीय है कि सम्पूर्ण बलूचिस्तान प्रान्त के निवासी एक ही प्रकार के मिट्टी के बर्तनों का इस्तेमाल करते है, जोकि महत्वपूर्ण बात है | इस तरह उन पर एक तरफ पारस की खाड़ी के नगरों का और दूसरी तरफ सिन्धु घाटी के नगरों के प्रभाव का पता चलता है | बालाकोट की महत्ता इस बात में है कि इस स्थल पर कराँची के उत्तर में लास बेला मैदान पर सिंधु सभ्यता के निक्षेप के नीचे सिंधु-पूर्व सभ्यता का प्रचुर निक्षेप प्राप्त हुआ है | बालाकोट में विशाल इमारतों के अवशेष प्राप्त हुए है |