बुद्ध की कहानी 15 : बहुजनहितवादी स्वभाव

बुद्ध की कहानी 15 : बहुजनहितवादी स्वभाव | भगवान् बुद्ध कभी भी मानवों में अमीर-गरीब के आधार पर भेदभाव नही करते थे | भगवान् के हजारों अनुयायी थें, कुछ राजा थें, कुछ अत्यंत धनी थें, तो कुछ अत्यंत निर्धन |

लेकिन भगवान् के लिए सभी अनुयायी एक-समान थें | धनी लोग हमेशा चाहते थे कि भगवान् उनके पास रहें जिससे उन्हें उनकी सेवा का सुख व पुण्य प्राप्त हो, लेकिन भगवान् बहुजनहितवादी थे |

वे अपने जीवन को बहुतों के हित के लिए मानते थे और इसीलिए अमीर हो या गरीब सबके द्वार पर भिक्षा मांगने जाते थे, कभी-कभी तो उन्हें दिनभर अन्न के कुछ दानें ही मिल पाते थे, लेकिन वे उसे भी खाकर प्रसन्न रहते थें |

एक बार भगवान् कुशीनगर में विहार कर रहे थे | वहां के एक मल्ल सरदार ने भगवान्‌ को भिक्षुओं संग अपने घर भोजन के लिए आमंत्रित किया | जब भगवान् उसके घर गये तो उसने प्रार्थना की, ‘भन्ते ! अच्छा हो कि जब तक आप इस नगर में रहें, आप व अन्य भिक्षु मेरे घर ही भोजन, वस्त्र, आसन इत्यादि ग्रहण करें, दूसरों के घर नहीं |’

भगवान् ने उसे उत्तर दिया, ‘तेरी तरह जिन लोगों ने धम्म को अपूर्ण ज्ञान व अपूर्ण दर्शन से देखा है, उन्हें ही यह होता है कि भगवान्‌ हमारे घर ही भोजन, वस्त्र, आसन इत्यादि ग्रहण करें, दूसरों के यहाँ नहीं | हम तेरा भी ग्रहण करेंगे, दूसरों का भी |’

इस प्रकार भगवान्‌ अपने समय में सभी वर्गों के प्रिय थे, वे सभी मानव पर अनुकंपा करते हुए सबसे भिक्षा मांगते थे और सभी को अपना आशीर्वाद देते थें |

भगवान् ने अपना ऐश्वर्यपूर्ण जीवन लोगो को दुःखों से मुक्ति दिलाने के लिए त्यागा था | इसलिए उनका ध्यान सदैव निर्धनों व दुःखियों पर टिका रहता था | वे उन्हें उपदेश देकर उनके कष्टों को कम करने का प्रयास करते थे और निर्वाण का मार्ग बताते थे |

एक दिन प्रातःकाल भगवान् कुछ भिक्षुओं के साथ कही जा रहे थे तब उनकी करुणामयी दृष्टि एक एक निर्धन किसान पर पड़ी, जो अपने घर जा रहा था | भगवान् भी भिक्षुओं संग उसके गाँव की ओर चल दिए | करुणावतार को अपने गाँव आया देख वह गरीब बहुत खुश हुआ और सोचने लगा कि भगवान् के उपदेश सुन दुःखों से मुक्ति पायेगा |

लेकिन तभी उसे सूचना मिली कि उसका एक बैल जंगल में खो गया है | अब वह दुविधा में पड़ गया कि जंगल में जाकर बैल खोजू या भगवान् का उपदेश सुनु | सोचा कि अभी अगर बैल नही खोजा तो उसे जंगली जानवर खा जायेंगे | अतः वह तुरंत जंगल की ओर चला गया |

इधर गाँव वालों ने भगवान् और भिक्षु-संघ का आदर-सत्कार कर भोजन कराया और उनकी पवित्र वाणी सुनने के लिए उनके समीप बैठ गये | अब भगवान् सोचने लगे कि जिसके लिए मैं आया, वही नही है, अतः जब तक वह निर्धन नही आता तब तक उपदेश आरम्भ नही करूंगा |

उधर वह किसान को खोजते-खोजते उसका बैल दोपहर में मिला | बैल को घर में बांध कर दौड़ा-दौड़ा भगवान् के पास आया, यह सोचकर कि उपदेश तो अब खत्म हो ही चुका होगा, परन्तु कम-से-कम भगवान् का आशीर्वाद तो मिल ही जायेगा |

बेचारा सुबह से ही भूखा-प्यासा दौड़ रहा था, भूख-प्यास के मारे चेहरा मुरझा गया था | भगवान् ने जब उसकी मुखाकृति देखी तो समझ गये |

बोले “भिक्षु संघ के कुछ भोजन बचा है ?”

“हाँ भन्ते !”

“तो इस भूखे को भोजन दो |”

जब उसने भोजन कर लिया, उसका चेहरा प्रसन्न हो गया, तब करुणानिधान ने उपदेश आरम्भ किया | उसी उपदेश को सुन अर्हत् हो गया | फिर भगवान् ने भिक्षुओं को उपदेश दिया कि “भूख सबसे बड़ा रोग है |”