बुद्ध की कहानी 14 : शिष्टाचार

बुद्ध की कहानी 14 : शिष्टाचार | भगवान् बुद्ध कठिन परिस्थितियों में भी धीर व शांत बने रहते थें | निंदा व गाली से भी वे क्रोधित नही होते थे | तथागत सदैव भलाई करके बुराई को भगाने व प्रेम के द्वारा नफरत को खत्म करने का प्रयत्न करते थे |

एक बार एक विरोधी ने भगवान् को गलियाँ दी | वे धैर्यपूर्वक चुपचाप सब सुनते रहे | जब उस अज्ञानी व्यक्ति ने गाली देना बंद किया तब भगवान् ने पूछा, “वत्स ! अगर कोई किसी का दान स्वीकार न करे तो उस दान का क्या होगा ?” अज्ञानी ने उत्तर दिया, “वह देने वाले के पास ही रह जायेगा |”

तब भगवान् ने कहा, “वत्स ! मैं तुम्हारी गालियाँ लेना स्वीकार नही करता हूँ |” यह सुन विरोधी बहुत लज्जित हुआ और उसने भगवान् से क्षमा-याचना की |

भगवान् शिष्टाचार का पालन आवश्यक समझते थे | वे गलती करने वालों के प्रति भी करुणा व अनुकंपा का भाव रखते थें |

एक बार वेरंजा (मथुरा के निकट) के धनी एक ब्राह्मण ने भगवान्‌ को वेरंजा में वर्षावास करने हेतु आमंत्रित किया | जब भगवान्‌ वहां गये, तो उस ब्राह्मण ने उनका कुछ भी हालचाल नही लिया |

भगवान्‌ को बहुत कष्ट हुआ | उस समय वहां दुर्भिक्ष पड़ा हुआ था | लोगों को खाने को कुछ भी नही था | भिक्षा किससे मांगे |

सौभाग्य से वही उत्तरापथ के घोड़े के पांच सौ व्यापारी भी वर्षावास कर रहे थें | तीन माह तक भगवान् व उनके शिष्यों को उन व्यापारियों से पसर-पसर भर चावल ही मिला | कूट कर बनाई गयी पतली लेई में ही भगवान् ने शिष्यों सहित भोजन किया |

इतना होने पर भी वर्षावास के बीतने पर भगवान्‌ वहां से जाने से पूर्व ब्राह्मण के घर गये और उससे कहा, “ब्राह्मण, तुमने हमे आमंत्रित किया था, वर्षावास करके जाने से पूर्व मिलने आये हैं | हम अब चारिका हेतु जाना चाहते हैं |” 

ब्राह्मण को अपनी भूल का अहसास हुआ | भगवान् के विनम्र शिष्टाचार से वह उनके प्रति किये गये अपने व्यवहार से बहुत लज्जित हुआ और उनसे क्षमा मांगी | भगवान् उसे आशीर्वाद देकर विदाई ली | ऐसा शिष्टाचार शायद ही कही देखने को मिला हो |