बुद्ध की कहानी 13 : पटाचारा को सद्बुद्धि

बुद्ध की कहानी : पटाचारा को सद्बुद्धि | पटाचारा श्रावस्ती के एक बहुत अमीर व्यापारी की सुंदर व गुणवती पुत्री थी | उसका ऐसा बुरा समय आया कि पति, पुत्र, परिवार सब उसका नष्ट हो गया | इस हृदयविदारक घटना के कारण वह पागल हुई यहाँ-वहां फिरती थी | कपड़े तक पहनने का होश तक उसमे न रहा | नग्न अवस्था में घूमा करती थी |

एक बार घूमते-घूमते वह जेतवन विहार के अंदर चली गयी, जहाँ उस समय भगवान् ठहरे हए थे | सीधी विहार की ओर आती हुई उस नग्न विक्षिप्त स्त्री को देख भिक्षु चिल्लाये, ‘यह पागल है, इसे इधर मत आने दो, यहाँ तथागत आराम कर रहे है |’ कोमल हृदय वाले भगवान् ने जब यह बात सुनी तो बोले, ‘इसे मत रोको, आने दो |’ जैसे ही वह दुखियारी स्त्री पास आई, भगवान्‌ ने कहा, ‘भगिनि ! स्मृति लाभ कर |’ भगवान् की ऐसी वाणी सुन उसे कुछ होश आया, उसे अपने निर्वस्त्र होने का ज्ञान हुआ तो लज्जा-बोध के कारण उकडूं होकर बैठ गयी | भिक्षुओं ने उसके ऊपर एक चीवर डाल दिया | उस चीवर से अपने शरीर को ढक कर उसने भूमि पर माथा टेककर भगवान् को प्रणाम किया |

तथागत ने कहा, ‘पटाचारे ! चिन्ता मत कर | शरण देने में समर्थ व्यक्ति के पास ही तू आ गई है |’ भगवान् ने कहा कि मृत्यु जब आती है तब जिस माता-पिता, भाई-बहन, पुत्र-पुत्री को रक्षक समझते हैं, वे रक्षा नही कर पाते | बुद्धिमान लोग इसे जानने का प्रयत्न करते है | जो मानव प्रज्ञावान, शीलवान होकर स्वयं अपने निर्वाण-पथ की ओर गमन करते है, वही जीवन में सुखी रहते है |

पटाचारा | तुम्हे अपनी मदद स्वयं करनी होगी, अपना रास्ता स्वयं चुनना होगा | व्यर्थ शोक करने से कोई लाभ नही | व्यर्थ शोक करने वाला दुःख को ही आमंत्रित करता है, वह स्वयं शारीरिक एवं मानसिक कष्ट झेलता है | शोक के वशीभूत होकर अपने अनमोल जीवन को भी नष्ट करता है | शीलवान विद्वान मानव को चाहिए कि निर्वाण की ओर ले जाने वाले मार्ग पर शीघ्र अनुगमन करे |  

इस प्रकार भगवान् ने अपने उपदेशामृत से उसके शोक को दूर किया | पटाचारा की चेतना लौट आई, उसने भगवान् की मधुर वाणी, दया, करुणा और अमूल्य उपदेश से प्रभावित होकर प्रव्रज्या ग्रहण करने की इच्छा जाहिर की | भगवान् ने उसे भिक्षुणी संघ के पास भेजा, जहाँ उसने प्रव्रज्या ग्रहण की |

मानवों के प्रति करुणा, विशेषकर स्त्रियों के प्रति करुणा, भगवान् के स्वभाव की एक सर्वप्रमुख विशेषता थी |