बुद्ध की कहानी 12 : अनावश्यक युद्ध को रुकवाना

बुद्ध की कहानी 12 : अनावश्यक युद्ध को रुकवाना | भगवान् शांतिप्रिय और युद्ध-विरोधी थें | वे सदैव मानव-जीवन में सुख-शांति स्थापित करना चाहते थें | शाक्य और कोलिय राज्यों के बीच रोहिणी नदी बहती थी और दोनों ही राज्यों के लोग सिचाई हेतु इसी नदी के जल पर निर्भर थें | शाक्य बुद्ध के अपने कुल के थे जबकि कोलियों में उनका ननिहाल था |

जेठ महीने में खेती को सूखते देख दोनों नगरों के लोग इकट्ठा हुए | कोलियों ने कहा, “इस पानी को दोनों तरफ ले जाने पर न तुम्हारा ही पूरा पड़ेगा और न हमारा ही | हमारी खेती एक पानी से ही पूरी हो जाएगी, इसे हमें लेने दो |”

शाक्यों ने भी वही बात कही | दोनों ओर के लोग “हम नहीं जाने देंगे, हम नहीं जाने देंगे” कहते-कहते झगड़ने लगे | दोनों राज्य युद्ध की तैयार कर निकल लिए |

युद्ध की बात जब भगवान् के कानों तक पहुंची तो वे तुरंत दोनों सेनाओं के बीच में जाकर बोलें, ‘किस बात हेतु कलह हैं, महाराजों ?’

दोनों और से आवाज आई ‘पानी के लिए |’

भगवान् ने पूछा, ‘महाराजो, पानी का क्‍या मोल है ?’

दोनों ओर के लोगों ने कहा ‘कुछ नहीं |’

‘क्षत्रियों का क्या मोल है ?’

‘भन्ते, अनमोल |’

भगवान ने कहा, ‘मुफ्त पानी हेतु अनमोल क्षत्रियों का नाश करना कहा तक उचित है |’

दोनो ओर की तलवारें म्यान में चली गई, सैकड़ों लोगों की जानें बच गयी, दोनों राज्यों में शान्ति स्थापित हो गई |