बुद्ध की कहानी 11 : ब्राह्मण कुटदन्त को ज्ञान

बुद्ध की कहानी 11 : ब्राह्मण कुटदन्त को ज्ञान | एक बार भगवान्‌ पाँच सौ भिक्षुओ के महा-भिक्षु-संघ के साथ मगध मे गये थे, जहाँ खाणुमत नामक एक ब्राह्मण-ग्राम में आम्रवाटिका में विहार कर रहे थे | खाणुमत गाँव में एक अत्यंत धनी और विद्वान ब्राह्मण कुटदन्त रहता था, जो मगध नरेश बिम्बिसार का सम्मानित तथा उसकी ओर से दान में पाए ग्रामों के कारण अत्यंत सुखी जीवन जी रहा था |

उस समय वह एक विशाल यज्ञ की तैयारी कर रहा था, जिसके लिये सात सौ बैल, सात सौ बछड़े, सात सौ बछियाँ, सात सौ बकरियाँ, सात सौ भेंडे यज्ञ में बलि देने के लिए खंबे में बांध रखे गये थे |

उसी समय उसने खाणुमत के ब्राह्मण गृहस्थों को झुण्ड-के-झुण्ड आम्रवाटिका की ओर जाते देखा तो उनसे पूछा कि सब ब्राह्मण गृहस्थ झुण्ड-के-झुण्ड कहाँ जा रहे है |

उन्होंने बताया कि ‘शाक्य कुल से प्रब्रजित श्रमण गौतम आम्रवाटिका में विहार कर रहे है | उन गौतम की कीर्ति संसार भर में फैली हुई है | हम सब उन्ही गौतम के दर्शन करने जा रहे है |

तब कुटदन्त ब्राह्मण ने सोचा, कि श्रमण गौतम सोलह परिष्कार वाली त्रिविध यज्ञ-सम्पदा (यज्ञविधि) को जानता है | मैं महायज्ञ करना चाहता हूँ | क्यों न श्रमण गौतम के पास जाकर चलवर, सोलह परिष्कार वाली त्रिविध यज्ञ-सम्पदा के विषय में जानकारी ले लू |

फिर कुटदन्त ब्राह्मण उन गृहस्थ ब्राह्मणों के साथ भगवान् से मिलने आम्रवाटिका पहुंच गया | उसने भगवान् को प्रणाम कर कहा, “हे गौतम ! मैंने सुना है कि श्रमण गौतम सोलह परिष्कार सहित त्रिविध यज्ञ-सम्पदा को जानते है | मैं नही जनता | मैं महायज्ञ करना चाहता हूँ | अच्छा हो यदि आप गौतम, सोलह परिष्कार वाली त्रिविध यज्ञ-सम्पदा का मुझे उपदेश दे |” 

जब भगवान् को यह पता चला कि कूटदन्त ब्राह्मण ने अनेक पशुओं की बलि का प्रबंध कर रखा है तो बोधिसत्त्व ने महाविजित नामक एक पौराणिक राजा व उसके पुरोहित की कथा सुनाई | 

भगवान् ने कहा कि पूर्वकाल में महाविजित नामक एक बहुत ही वैभवशाली था | एक बार उसे ख्याल आया कि ‘मुझे मनुष्यो के विपुल भोग भ्राप्त है, मैं महान्‌ पृथ्वीमण्डल को जीतकर शासन कर रहा हूँ | क्यो न मैं महायज्ञ करूँ, जो कि चिरकाल तक मेरे हित-सुख के लिए हो |’ तब महाविजित ने अपने पुरोहित ब्राह्मण को बुलाकर अपने मन की बात कही और उसकी राय मांगी |

पुरोहित ने राजा महाविजित से कहा कि आपके राज्य में बहुत लूटमार होती है | सर्वप्रथम आपको इसे शांत करना चाहिए | हे कि राजन्‌ ! जो कोई  आपके राज्य मे कृषि गोपालन करनेका उत्साह रखते है, उनको आप बीज व भोजन प्रदान करे | वाणिज्य करने का उत्साह रखते है, उन्हे आप पूँजी दें | जो राजा की नौकरी करनेका उत्साह रखते हैं, उन्हें आप वेतन-भत्ता दें |

इस प्रकार ये सभी लोग अपने-अपने कार्य में रहेंगे और राज्य में उत्पात नही मचाएंगे | आपको भी विपुल राशि प्राप्त होगी और राज्य भी पीड़ा-रहित, कंटक-रहित क्षेम-युक्त हो जायेगा | राजा ने पुरोहित के कहे अनुसार सब किया और कालान्तर में पुरोहित को बुलाकर कहा कि मेरा राज्य पीड़ा-रहित, कंटक-रहित क्षेम-युक्त हो गया है |

फिर राजा महाविजित ने किसी को भी बिना कोई कष्ट दिए यज्ञ किया | उस यज्ञ में गायें नहीं मारी गई | मेड़ें-बकरें नहीं मारे गये | मुर्गे-सूअर नहीं मारे गये | न नाना प्रकार के प्राणी मारे गये | न यूप (स्तंभ) हेतु पेड़ काटे गये | न परहिंसा के लिये दर्भ काटे गये |

जो भी उसके दास, नौकर, कर्मचारी थे, उन्होंने भी बिना किसी दण्ड के, बिना किसी भय के, बिना रोते हुए सेवा-कार्य किया |

जो चाहा उसे किया, जो नहीं चाहा उसे नहीं किया | जिन्होंने काम करना चाहा, उन्होंने किया, जिन्होंने नहीं चाह, उन्होंने नहीं किया | बिना किसी जीव-हत्या के घी, तेल, मक्खन, दही, मधु, गुड़ से ही वह यज्ञ समाप्ति को प्राप्त हुआ |

भगवान् द्वारा सुनाई गयी कथा सुनकर ब्राह्मण कुटदन्त की आँखे खुल गयी और उसने बहुत सन्तुष्ट होकर कहा, “आप गौतम, आज से मुझे अंजलिबद्ध उपासक मानें | हे गौतम, यह मैं सात सौ बैल, सात सौ बछड़े, सात सौ बछियाँ, सात सौ बकरियाँ, सात सौ भेंडे को आजाद कर देता हूँ | मैं उन सभी निर्दोष जीवों को जीवनदान देता हूँ | वह हरी घास खाएं, ठण्डा पानी पिए, ठण्डी हवा में साँस ले |”

इस प्रकार करुणामय भगवान् ने अंधविश्वास और आडंबरपूर्ण कर्मकाण्डों के नाम पर मारे जाने वाले अनेक निर्दोष जीवों की जान बचाई और धनी ब्राह्मण कुटदन्त को उसके कर्तव्यों का ज्ञान कराया |