भारत के विकास में प्रमुख बाधाएं

Bharat Ke Vikas Mein Pramukh Badhaen

भारत के विकास में प्रमुख बाधाएं (Bharat Ke Vikas Mein Pramukh Badhaen) : भारत, जोकि एक अल्पविकसित देश है, की मुख्य समस्या विकास की प्रक्रिया को आगे बढ़ाना एवं उसकी गति को तीव्र करना है, लेकिन इस हेतु आवश्यक दशाओं का अभाव विकास को बाधित कर देता है | इस समस्या के लिए न केवल आर्थिक कारण बल्कि सामाजिक, राजनैतिक व ऐतिहासिक कारण भी उत्तरदायी है | (Obstacles of Economic Development in India in Hindi)

इसीलिए अगर भारत के विकास की गति को तीव्र करना है, तो इसके लिए समस्या के लक्षणों पर नही बल्कि उसके आधारभूत कारणों को खत्म करना होगा | (भारत में आर्थिक विकास की बाधाएं)

भारत के विकास में प्रमुख बाधाएं

भारत के विकास में प्रमुख बाधाएं निम्नलिखित है –

  1. जनसंख्या की समस्या
  2. पिछड़ी तकनीक
  3. कृषि सम्बन्धी बाधाएं
  4. श्रम शक्ति की अकुशलता
  5. औद्योगिक क्षेत्र में पूंजीपति वर्ग का प्रदर्शन प्रभाव और श्रमिक वर्ग की बचत की न्यून क्षमता
  6. सामाजिक व सांस्कृतिक बाधाएं
  7. राजनैतिक अस्थिरता

अब हम भारत के विकास में उपर्युक्त बाधाओं को विस्तार से जानेंगें –

जनसंख्या की समस्या

जनसंख्या की तीव्र वृद्धि अल्प विकसित देशों के विकास में एक प्रमुख अवरोध है | भारत की विशाल जनसंख्या इसके आर्थिक विकास में सम्भवतः सबसे बड़ी बाधा है | एक अध्ययन के अनुसार वर्ष 2048 में भारत की जनसंख्या विश्व में सर्वाधिक होगी | कम आयु में विवाह, निम्न साक्षरता, परिवार नियोजन की सही जानकारी न होना, गरीबी आदि भारत में जनसंख्या वृद्धि के प्रमुख कारण है | बढ़ती हुई जनसंख्या के कारण भोजन व खाद्यानों के उपलब्ध स्टॉक पर दबाव बनता है | बेरोजगारी की समस्या में वृद्धि होती है | बेरोजगारी के कारण व्यक्तियों के जीवन में गिरावट आती है | शिक्षा, चिकित्सा व आवास जैसी बुनियादी सुविधाओं पर और अधिक बोझ बढ़ता है | भारत की बढ़ती जनसंख्या के लिए भोजन, अन्य आवश्यक वस्तुएं और सुविधाएँ उपलब्ध कराने में ही भारत की अधिकांश सम्पत्ति के खत्म होने की आशंका है | इस प्रकार जो साधन विनियोग में लगाये जाने चाहिए उन्हें भारत की विशाल और वृद्धिमान जनसंख्या के भरन-पोषण पर व्यय करना पड़ रहा है | 

पिछड़ी तकनीक

भारत आज भी तकनीकी के मामले मे पिछड़ा हुआ है | हमारे उद्योगों व कृषि में प्रयोग की जाने वाली तकनीक अत्यधिक पिछड़ी हुई है | आज भी कृषि क्षेत्र में सामान्य भारतीय किसान परम्परागत तरीके से ही कृषि करता है | साथ ही कृषि में उच्च विकसित किस्म के बीज व उर्वरकों का उपयोग भी अपर्याप्त मात्रा में ही होता है | भारत में कुछ सम्पन्न किसान ही कृषि कार्य में मशीनों का प्रयोग कर रहे है |

यही स्थिति औद्योगिक क्षेत्र की भी बनी हुई है | आज भी भारत में अधिकांश उद्योग पुरानी हो चुकी तकनीक व मशीनों पर ही निर्भर है | इसका परिणाम एक तरफ उत्पादन की न्यूनता है तथा दूसरी तरफ इसी के कारण अनेक औद्योगिक इकाइयां रुग्ण हो चुकी है और वें किसी भी समय बंद हो जाने की कगार में है |

इसीलिए आज भारत की अत्यंत महत्वपूर्ण आवश्यकता आधुनिकीकरण है | यद्यपि वर्तमान समय में भारत उद्योगों व कृषि में आधुनिक तकनीक बढ़ाने में लगातार प्रयासरत है | हमे यह भी ध्यान रखना है कि हमारे देश में ऐसी तकनीक ही अपनानी उचित होगी जो देश में बेरोजगारी को कम करने में सहायक हो |

कृषि सम्बन्धी बाधाएं

भारत के कृषि उत्पादन में वृद्धि के लिए पूर्ण संस्थागत सुधार बेहद जरूरी है | यहाँ किसान कृषि के नवीन और अपरम्परागत ढंग अपनाने का विरोध करता है | भारत में कृषि-क्षेत्र में आधुनिक और नवीनतम प्रौद्योगिकी को अपनाने में उत्साह नही दिखाई देता है | भारत में आजादी से पूर्व जमीदारी, रैयतवाड़ी व महालवाड़ी प्रणाली के अंतर्गत भूमि की लगान अदा की जाती थी | आजादी के पश्चात् भारत सरकार ने इस प्रकार की व्यवस्थाओं को खत्म करने के लिए अनेक कानूनों का निर्माण किया, लेकिन दुर्भाग्य से आज भी हमारे गांवों में अनेक बिचौलियों का अस्तित्व बना हुआ है |

ये बिचौलिये काश्तकार को भूमि बंटाई पर देते है तथा उनसे आधी अथवा अधिक उपज वसूल करते है | इस व्यवस्था में किसान भूमि में उत्पादन बढ़ाने के उद्देश्य से अधिक निवेश करने का इच्छुक नही होता, परिणामस्वरूप उत्पादन कम होता है |

यही कारण है कि किसान की आय कम होती है और फलस्वरूप बचत भी कम होती है, जिसका परिणाम यह निकलता है कि कृषि क्षेत्र में पूंजी निर्माण नही हो पाता | इसलिए देश के कृषि उत्पादन में वृद्धि के लिए पूर्ण संस्थागत सुधार परमआवश्यक है |

श्रमशक्ति की अकुशलता

भारत के विकास में एक बड़ी समस्या श्रम शक्ति की अकुशलता है | भारत में बड़ी संख्या में युवक रोजगार की तलाश में है, लेकिन उनमे से अधिकांश अदक्ष श्रमिक है | यद्यपि कुशल इंजीनियर, प्रबन्धक, तकनीशियन और मजदूरों की संख्या बहुत अधिक है, लेकिन भारत की कुल श्रमशक्ति की तुलना में बेहत कम है | इसके साथ ही लोगों की शारीरिक क्षमता और स्वास्थ्य की दशा भी बहुत अच्छी नही है | परिणामस्वरूप उनके कार्य करने की क्षमता पर बुरा प्रभाव पड़ता है |

औद्योगिक क्षेत्र में पूंजीपति वर्ग का प्रदर्शन प्रभाव और श्रमिक वर्ग की बचत की न्यून क्षमता

वर्तमान भारत में औद्योगिक क्षेत्र अत्यधिक विकसित हो चुका है | औद्योगिक क्षेत्र में पूंजीपतियों में बचत करके पूंजी निर्माण की पर्याप्त क्षमता मौजूद है, लेकिन दुर्भाग्य से पूंजीपति अपनी आय का बड़ा हिस्सा पूंजी निर्माण की जगह विलासपूर्ण और अनुत्पादक मदों पर खर्च कर देते है | इसके विपरीत मजदूर वर्ग इतना अधिक नही कमा पाता कि वह भारत की समग्र बचत में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकें | इसके अलावा सरकार उनके उपभोग के स्तर को सीमित रखने के उद्देश्य से उन पर भारी अप्रत्यक्ष कर लगाती है, परिणामस्वरूप उनकी बचत क्षमता और भी प्रभावित होती है | इसीलिए भारत में पूंजी निर्माण की दर को और ऊपर ले जाने हेतु आवश्यक है कि नगरीय और ग्रामीण दोनों ही क्षेत्रों के सम्पन्न वर्ग को विलासपूर्ण और अनुत्पादक मदों पर खर्च रोकना चाहिए और उन पर अधिक से अधिक बचत करने हेतु सरकार द्वारा दबाव बनाया जाना चाहिए | साथ ही इस हेतु इनमे स्वैच्छिक प्रेरणा भी जागृत की जाये |

सामाजिक व सांस्कृतिक बाधाएं

सामाजिक-सांस्कृतिक कठोरताएं भारत के आर्थिक विकास में बाधा उत्पन्न करती है | यह विकास के प्रति लोगों में रूचि का आभाव पैदा करती है | भारतीय संस्कृति विश्व की अत्यधिक प्राचीन संस्कृति है | भारत में सामाजिक रीतिरिवाज और धार्मिक मान्यताएं भी प्राचीनतम है | इसका भारत के आर्थिक विकास और आधुनिकीकरण पर विपरीत प्रभाव पड़ा है | लोगो अपने परम्परागत रीतिरिवाजों से अत्यधिक लगाव रखते है और आधुनिकीकरण से दूर रहना चाहता है | भारतीय समाज में परिवर्तन के प्रति लोगों में उत्साह नही देखा जाता | लोग कार्य को बुराई मानते है और फुर्सत, संतोष, विभिन्न प्रकार के त्योहारों और धार्मिक उत्सवों की सहभागिता को ज्यादा महत्व देते है | ऐसे लोगों में जातिवाद, प्रांतवाद, भाषावाद आदि अलगाववादी भावनाएँ हावी हो चुकी है | शिक्षित लोग केवल अपने विशेष प्रकार के कार्यों में व्यस्त रहना चाहते है और ऐसे कार्यों से दूर रहना चाहते है जो कम शिक्षित या अशिक्षित लोग करते है | इन सब कारणों से श्रम की गतिशीलता, नवीन तकनीक को अपनाने और आपसी सम्बन्धों में वैज्ञानिकता इत्यादी का विकास अवरुद्ध रहा है | इन सबका भारत के विकास में विपरीत प्रभाव पड़ा है |

राजनैतिक अस्थिरता

भारत के विकास में बाधा के लिए राजनैतिक अस्थिरता भी उत्तरदायी है | सरकार में बार बार परिवर्तन और सत्ता पक्ष और विपक्ष में सही तालमेल न होना और विभिन्न राजनीतिक दलों का विकास के मत पर एकजुटता न होना राजनैतिक अस्थायीत्व की स्थिति उत्पन्न करते है | राजनैतिक अस्थिरता के कारण सरकार विकास कार्यक्रमों व योजनाओं के सम्बन्ध में कठोरतापूर्वक दीर्घकालीन निर्णय में समर्थ नही होती है | इन सबसे निवेश सम्बन्धी आर्थिक निर्णयों पर विपरीत प्रभाव पड़ता है | जो समय भारत के विकास में सरकार को लगाना चाहिए वो समय राजनैतिक तनावों में व्यर्थ हो जाता है |

अन्य कारण

भारत के विकास में अन्य बाधाएं भी है, जो विकास के मार्ग में अवरोध उत्पन्न करती है | ये बाधाएं है कृषि पर अधिक निर्भरता, प्राकृतिक साधनों का उपयोग, व्यापक निरक्षरता, प्रौद्योगिकी पिछड़ापन श्रम में निपुणता की कमी, उद्यमीय योग्यता का अभाव आदि | ये सभी बाधाएं भारत के विकास में समग्र रूप से अवरोध पैदा करती है |

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