आर्यों का आदि देश या मूल निवास स्थान

The original abode of the Aryans

आर्यों का आदि देश (Aaryon Ka Aadi Desh) या आर्यों का मूल निवास स्थान (The original abode of the Aryans in Hindi) : आर्यों के मूल निवास स्थान (आदि देश) का पता लगा पाना उतना ही कठिन कार्य है जितना कि हड़प्पा सभ्यता के पतन के कारण को बता पाना | ये दोनों ही प्रश्न अत्यन्त विवादग्रस्त है | सर्वाधिक प्रमाणित मत के अनुसार आर्यों का मूल निवास स्थान आल्प्स पर्वत के पूर्वी भाग (जिसे यूरेशिया कहा जाता है) में किसी क्षेत्र में था | यहाँ पर हम आर्यों के मूल स्थान से सम्बन्धित कुछ विद्वानों के विचार पर अत्यंत संक्षेप में चर्चा करेंगे |

आर्यों के आदि देश की तरह इस जाति के नाम पर भी विद्वानों में बहुत मतभेद है | यही कारण है कि विभिन्न विद्वानों ने अपने लेखों में इन्हें आर्यन, इण्डो-ईरानियन, इण्डो-जर्मन, इण्डो-यूरोपियन, आदि नामों से पुकारा है | सर्वाधिक प्रचलित शब्द आर्यन या आर्य है | भारत में बसे आर्य अपने लिए आर्य शब्द का ही प्रयोग करते थें | ईरान में बसे आर्य भी इसी शब्द का प्रयोग करते थें | वास्तव में ईरान शब्द स्वयं आर्य का अपभ्रंश है, और आयरलैण्ड के आयर शब्द में भी हमे आर्य शब्द स्मृति मिलती है |

आर्यों के आदि देश (मूल निवास स्थान) के निर्धारण के लिए विद्वानों ने पुरातत्व, भाषाविज्ञान, खगोलशास्त्र, मानवविज्ञान, इतिहास आदि स्रोतों का सहारा लिया है | अगर हम उत्तरी ध्रुव के आदि देश होने के तिलक के मत को छोड़ दे तो शेष विद्वान एशिया या यूरोप को ही आर्यों के आदि देश मानने के पक्ष में है |

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आर्यों के आदि देश (मूल निवास स्थान) के सम्बन्ध में हमारे पास तीन सम्भवनायें है –

  1. आर्य भारत और ईरान के मूलनिवासी थें और वें भारत व ईरान से एशिया तथा यूरोप के विभिन्न स्थानों में बसे |
  2. आर्य यूरोप के मूलनिवासी थे और वें वहाँ से पश्चिम एशिया होते हुए भारत आकर बसे |
  3. आर्यों के समूह किसी मध्यवर्ती क्षेत्र से एक ओर ईरान व भारत आये और दूसरी ओर यूरोप पहुंचे |

इटली के फ्लोरेन्स शहर का एक व्यापारी फिलिप्पो सस्सेत्ती सोलहवीं शताब्दी के आठवे दशक में गोवा आया था | उसने यहाँ पर संस्कृत का अध्ययन किया और इस बात को स्पष्ट किया कि संस्कृत और यूरोप की भाषाओं में अत्याधिक समानता है |

फ्रेंच विद्वान केअरदू ने भी 1767 में यह स्पष्ट किया कि ग्रीक और लैटिन भाषाओं के साथ संस्कृत की अत्यधिक समानता है | कालान्तर में 1786 में सर विलियम जोन्स ने इस बात को और आगे प्रतिपादित किया | उसने स्पष्ट किया कि भारोपीय (भारतीय और यूरोपीय) परिवार की भिन्न-भिन्न भाषाओँ में पाई जाने वाली समानताओं से यह पता चलता है कि भारतीयों और यूरोपवासीयों के पूर्वज कभी एक ही स्थान में साथ-साथ रहते थे, और एक ही भाषा बोलते थे |

भारत

कुछ भारतीय विद्वानों ने आर्यों को विदेशी नही माना है | अविनाश चन्द्र दास अनुसार आर्यों का मूल निवास सप्त-सैन्धव प्रदेश था | गंगानाथ झा ने इसे ब्रह्मर्षि प्रदेश, लक्ष्मीधर कल्ला ने इसे कश्मीर, और डी. एस. त्रिवेद ने इसे मुल्तान स्थित देविका में माना है | राजबली पाण्डेय ने मध्यप्रदेश को आर्यों का मूल निवास माना है |

अविनाश चन्द्र दास ने सप्त-सैन्धव प्रदेश को आर्यों का आदि देश माना | वें बताते है कि बाद में सप्त-सैन्धव प्रदेश में निवास करने वाले आर्य दो वर्गों में विभाजित हो गये – एक देवों का उपासक तथा दूसरा असुरों का उपासक | इन दोनों आर्य वर्गों में संघर्ष चलता रहा और परिणामस्वरूप देवासुर संग्राम हुआ, जिसमे देवों की विजय हुई और पराजित असुर सप्त-सैन्धव प्रदेश से ईरान चले गये | ईरान में रहने वाले यही असुर अहुरमज्दा के उपासक हुए |

भारत को आर्यों का आदि देश मानने वाले विद्वानों का कहना है कि ऋग्वेद में भारत से बाहर के किसी क्षेत्र का वर्णन नही है, जिसे आर्यों का मूल निवास स्थान माना जाये | जबकि ऋग्वेद में सप्तसैन्धव प्रदेश के सर्वाधिक उल्लेख मिलते है साथ ही इस क्षेत्र को देवयोनि और देवनिर्मित की संज्ञा प्रदान की गयी है |

लेकिन आर्यों का मूल निवास स्थान (आदि देश) भारत को सिद्ध करना बहुत मुश्किल है | भारत में आर्यों की सभ्यता से भी प्राचीन सभ्यता हड़प्पावासियों की थी, जोकि आर्यों सभ्यता से पूर्णतः भिन्न थी | जहाँ हड़प्पा सभ्यता के काल में सिंध व पंजाब क्षेत्र में बाघ और हाथी होने के प्रमाण प्राप्त होते है वही ऋग्वेद में बाघ का उल्लेख नही मिलता तथा हाथी के लिए मृगहस्तिन् शब्द का वर्णन हुआ है, जो इस बात का द्योतक है कि हाथी उस समय के आर्यों के लिए कुतूहल के विषय थें |

कुछ विद्वान तर्क देते है कि भारोपीय भाषाओँ के तुलनात्मक अध्ययन से जिस प्रकार की वनस्पति की जानकारी प्राप्त होती है वह भारत में नही दिखाई देती है |

अगर आर्य भारत के मूल निवासी थें तो वे सर्वप्रथम अपने सम्पूर्ण देश का आर्यीकरण करते | लेकिन हम देखते है कि समस्त दक्षिणी भारत आज-तक आर्यभाषा-भाषी नही है |

बलूचिस्तान के एक क्षेत्र में ब्राहुई भाषा का प्रायोग मिलता है जोकि द्रविड़ भाषा है और यह बात दर्शाती है कि यहाँ पर आर्यों के आगमन से पहले ही अनार्य भाषा प्रचलित थी | यह भी तर्क दिया जाता है कि सामान्यतः लोग अनुपजाऊ प्रदेश से उपजाऊ प्रदेश में प्रव्रजन करते है | भारत की भूमि हमेशा से उपजाऊ रही है इसलिए आर्यों द्वारा यहाँ की उपजाऊ भूमि को छोड़कर पश्चिम की ओर जाने की संभावना कम लगती है |

यूरोप

कुछ विद्वानों ने आर्यों का आदि देश यूरोप को माना है | पेनका, हर्ट आदि विद्वानों के अनुसार आर्यों का मूल निवास स्थान जर्मनी था | जबकि गार्डन चाइल्ड ने इसे दक्षिणी रूस माना है | पी. गाइल्स इसे हंगरी मानते है | 

जर्मनी को आर्यों का आदि देश बताने वाले विद्वान तर्क देते है कि आर्यों की शारीरिक विशेषताएं उन्हें जर्मनी का निवासी होना बताती है | आर्यों के भूरे बाल उनकी प्रमुख विशेषता थी | आज भी जर्मनी के निवासियों के बाल भूरे होते है | लेकिन यह तर्क उचित नही है क्योकि भूरे बालों की विशेषता एकमात्र जर्मनी के निवासियों की ही नही है |

पी. गाइल्स ने आर्यों का आदि देश हंगरी अथवा डेन्यूब नदी घाटी को माना है | विभिन्न भारोपीय भाषाओँ का तुलनात्मक अध्ययन के पश्चात पी. गाइल्स बताते है कि आर्य मुख्य रूप से एक ऐसे स्थान में रहते थे जहाँ नदियाँ, झील, पर्वत आदि थे और गेहूँ, जौ की मुख्य रूप से खेती की जाती थी साथ ही गाय, बैल, भेड़, कुत्ता आदि पशु पाले जाते थें | उनके अनुसार आर्यों को जिन पशुओं, वनस्पतियों और वृक्षों का परिचय था, उनकी उत्पत्ति हेतु सर्वाधिक अनुकूल स्थान डेन्यूब नदी की घाटी ही हो सकती थी | कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी द्वारा प्रकशित ‘भारत का प्राचीन इतिहास’ (भाग एक) में इसी मत को स्वीकार किया गया है |

कैस्पियन सागर के पूर्व में रूस के दक्षिणी भाग में आर्यों का आदि-देश होने के मत का प्रतिपादन सर्वप्रथम प्रोफेसर मायर्स ने किया था | प्रोफेसर मायर्स के मत का आधार तुलनात्मक भाषा विज्ञान था | लेकिन बाद में पुरातत्व सम्बन्धी अवशेषों के आधार पर गार्डन चाइल्ड ने इस मत का समर्थन किया | वर्तमान में यूरोपियन विद्वानों का झुकाव मुख्य रूप से इसी मत को स्वीकार करने की ओर है |

गार्डन चाइल्ड और अन्य विद्वानों का मानना है कि कैस्पियन सागर के पूर्व के दक्षिणी रूस के प्रदेश में अनेक स्थानों पर जो छोटी-बड़ी समाधियाँ दिखती है, वें आर्यों की ही है | यही आर्यों का आदि देश था और यही से आर्यों की शाखाएं अन्य क्षेत्रों में फैली |

उत्तरी ध्रुव

बाल गंगाधर तिलक के अनुसार आर्यों का आदि देश उत्तरी ध्रुव था | जलवायु की स्थिति में परिवर्तन होने की वजह से वें वहां से अन्य क्षेत्रों में जाने को विवश हुए थें | तिलक के अनुसार ऋग्वेद की रचना के समय आर्य सप्तसिंधव (पंजाब व समीपवर्ती प्रदेश) प्रदेश में आ चुके थें | लेकिन उत्तरी ध्रुव की स्मृति अभी भी उनमे मौजूद थी |

तिलक ने अपनी बात सिद्ध करने के लिए ऋग्वेद के कुछ सूक्तों का सहारा लिया जिसमे छह-छह महीने तक चलने वाले रात और दिन तथा दीर्घकाल तक रहने वाली उषा का उल्लेख है | दीर्घकालीन उषा उत्तरी ध्रुव में ही देखती है |

महाभारत में हमे सुमेरुपर्वत का वर्णन मिलता है जहाँ 6 महीने का दिन और 6 महीने की रात होती है | यह भी उत्तरी ध्रुव की ओर संकेत करता है | यद्यपि आर्य उत्तरी ध्रुव से चले गये थे, लेकिन अपने पूर्वजों के निवास-स्थान को वें आदर की दृष्टि से देखते थें और ऐसी कल्पना करते थें कि देव लोग अभी भी वही निवास करते हैं | इसलिए यह माना जा सकता है कि आर्य उत्तरी ध्रुव से भारत आये थें |

लेकिन विद्वान, तिलक के इस मत को कि आर्य उत्तरी ध्रुव के निवासी थें, गलत मानते है | तिलक का यह मत केवल कोरे साहित्य पर ही आधारित था | अपने मत को वें स्पष्ट रूप से सिद्ध नही कर पायें | जहाँ आर्य सप्त सैन्धव प्रदेश को “देवकृत योनि” अर्थात् “देवताओं द्वारा निर्मित” कहते है वही वें उत्तरी ध्रुव का कही भी स्पष्ट उल्लेख नही करते है | अतः आर्यों का आदि देश उत्तरी ध्रुव को मानना उचित नही है |

एशिया

कुछ विद्वानों ने आर्यों का मूल निवास एशिया में माना है | मैक्समूलर ने इसे मध्य-एशिया, एडवर्ड मेयर ने इसे पामीर का पठार, जे. पी. रोड़ ने इसे बैक्ट्रिया माना है | स्वामी दयानन्द सरस्वती ने इसे तिब्बत माना है |

वर्ष 1859 में मैक्समूलर ने आर्यों के आदि देश मध्य-एशिया के होने के मत को प्रबलता के साथ रखा | उनके अनुसार आर्यों का मूल निवास स्थान मध्य-एशिया में था, जिसकी एक शाखा दक्षिण-पूर्व की तरफ चली गयी | यही शाखा आगे चलकर भारतीय और ईरानी आर्यों के रूप में दो उपशाखाओं में विभाजित हो गयी | चूँकि भारतीय और ईरानी आर्य लम्बे समय तक एक साथ रहे थे इसीलिए उनमे अत्यधिक समानता पाई जाती है | आर्यों की अन्य शाखाएं पश्चिम और दक्षिण-पश्चिम की तरफ बढ़ती गयी और धीरे-धीरे पूरे यूरोप में फ़ैल गयी |

वर्ष 1874 में प्रोफेसर सेअस ने तुलनात्मक भाषा-विज्ञान के आधार पर मध्य-एशिया को आर्यों का आदि देश सिद्ध करने का प्रयास किया | उन्होंने ऋग्वेद और जेंद अवेस्ता के तुलनात्मक अध्ययन से निष्कर्ष निकाला कि आर्य पहले एक ऐसे स्थान पर निवास करते थें जहाँ शीत की अधिकता थी | ऋग्वेद में वर्ष के लिए हिम शब्द का प्रयोग किया गया है | ऋग्वेद के एक मंत्र में सौ हिमों (वर्षों) तक जीवित रहने की प्रार्थना का वर्णन मिलता है | भारत में अधिक हिमपात देखने को नही मिलता है और सप्त-सैन्धव देश में तो हिमपात का प्रायः अभाव ही रहा है | ऐसी स्थिति मध्य-एशिया में ही देखने को मिलती है |

प्रोफेसर सेअस बताते है कि ऋग्वेद में एक मंत्र में हमें आर्यों द्वारा घोड़े का मांस खाने, नाव का प्रयोग करने का संकेत मिलता है साथ ही अन्नों में यव और वृक्षों में पीपल का उल्लेख मिलता है | इसलिए आर्यों का आदि देश ऐसा क्षेत्र होना चाहिए जहाँ अत्यधिक ठण्ड पडती हो, घोड़ों की अधिकता हो, नाव चलाने की सुविधा हो, पीपल का वृक्ष उपलब्ध है | ये सभी सुविधाएं मध्य-एशिया में उपलब्ध है | ऋग्वेद में वर्णित वनस्पतियाँ और जीव-जन्तु यहाँ पायें जाते है | कैस्पियन सागर के पास होने के कारण यहाँ नाव चलाने की सुविधा भी है | इसप्रकार प्रोफेसर सेअस ने अपने इन तर्कों के द्वारा मध्य-एशिया को आर्यों का आदि देश सिद्ध करने का प्रयास किया है |

एडवर्ड मेयर का कहना है कि पामीर के पठार से ही इंडो-ईरानी जाति पूर्व में पंजाब और पश्चिम में मेसोपोटामिया की ओर गयी | मेयर के इस मत का ओल्डेनवर्ग और कीथ आदि विद्वानों ने समर्थन किया |

एशिया को आर्यों का आदि देश मानने का विरोध करने वाले विद्वानों का कहना है कि भारोपीय भाषा-भाषी परिवार के मुहावरों का प्रसार यह प्रमाणित करता है कि आर्यों का आदि देश एशिया की अपेक्षा यूरोप में खोजना अधिक तर्कसंगत होगा |

उपरोक्त विचारों से स्पष्ट है कि आर्यों के मूल निवास स्थान के बारे में विद्वानों में गंभीर मतभेद है | यद्यपि इन सभी विद्वानों ने अपनी बात को सिद्ध करने हेतु कई तथ्य दिए है, जिनकी विवेचना यहाँ करना मै आवश्यक नही समझता, फिर भी कोई तथ्य सर्वमान्य नही है |

निसंदेह आर्यों के मूल निवास की पहेली तक नही सुलझी है | अभी हमे और समय चाहिए | लेखक इस विषय पर अपना कोई विचार व्यक्त न करना उचित समझता है | लेकिन इस बात की तो निसंदेह सम्भवना लगती है कि भारत आर्यों का मूल निवास स्थान नही था |

आर्यों का मूल निवास स्थान/आदि देश (The original abode of the Aryans in Hindi) महत्वपूर्ण तथ्य

आर्यों का मूल निवास स्थान (Aaryon Ka Mool Nivas Sthan) या आर्यों के आदि देश (Aaryon Ka Aadi Desh) से सम्बन्धित परीक्षोपयोगी महत्वपूर्ण तथ्य निम्नलिखित है –

  1. अविनाश चन्द्र दास ने अपनी पुस्तक ‘ऋग्वेदिक इंडिया’ (Rigvedic India) में आर्यों का मूल निवास स्थान (आदि देश) सप्त सैन्धव प्रदेश को माना है |
  2. राजबली पाण्डेय ने भारत में मध्य-देश को आर्यों का आदि देश माना है |
  3. मैक्समूलर ने मध्य एशिया को आर्यों का आदि देश माना है |
  4. गंगानाथ झा ने भारत में ब्रह्मर्षि देश को आर्यों का मूल निवास स्थान (आदि देश) माना है |
  5. एल.डी. कल्ला ने भारत में कश्मीर या हिमाचल प्रदेश को आर्यों का आदि देश माना है |
  6. दयानन्द सरस्वती ने अपनी पुस्तक ‘सत्यार्थ प्रकाश’ और ‘इंडियन हिस्टोरिकल ट्रेडिशन’ में तिब्बत को आर्यों का मूल निवास स्थान बताया है |
  7. डी. एस. त्रिवेदी ने मुल्तान प्रदेश में देविका नदी के आसपास के क्षेत्र को आर्यों का आदि देश माना है |
  8. पेनका और हर्ट ने आर्यों का मूल निवास स्थान जर्मनी को बताया है |
  9. बाल गंगाधर तिलक ने अपनी पुस्तक ‘The Arctic Home of the Aryans’ में आर्यों का आदि देश उत्तरी ध्रुव को बताया है |
  10. गार्डन चाइल्ड ने आर्यों का मूल निवास स्थान दक्षिणी रूस माना है |
  11. पी. गाइल्स आर्यों का मूल निवास स्थान यूरोप में डेन्यूब नदी की घाटी और हंगरी को मानते है | 
  12. एडवर्ड मेयर, कीथ, ओल्डेनवर्ग ने मध्य एशिया के पामीर का पठार को आर्यों का आदि देश माना है |
  13. जे. पी. रोड़ ने आर्यों का मूल निवास स्थान बैक्ट्रिया माना है |
  14. गार्डन चाइल्ड और नेहरिंग ने आर्यों का मूल निवास स्थान दक्षिणी रूस को माना है |

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