आरामशाह का इतिहास

History of Aramshah in Hindi

आरामशाह का इतिहास (1210) History of Aramshah in Hindi : विद्यादूत की इतिहास केटेगरी के अंतर्गत आज हम आरामशाह का इतिहास को जानेंगें | कुतुबुद्दीन ऐबक की अचानक मृत्यु हो जाने के कारण लाहौर के तुर्की अमीरों ने आरामशाह (आरामबक्श) नामक एक व्यक्ति को सिंहासन पर बैठा दिया |

कुतुबुद्दीन ऐबक का अरामशाह के साथ क्या संबंध था, इस बात पर इतिहासकारों में अत्यधिक मतभेद है | तबकात-ए-नासिरी में मिनहाज-उस-सिराज अरामशाह को ऐबक का पुत्र बताता है | लेकिन आगे वह बताता है कि ऐबक की केवल तीन पुत्रियां थी, जिनमें प्रथम दो का विवाह कुबाचा से और तीसरा का विवाह इल्तुतमिश से हुआ था | इस प्रकार समकालीन इतिहासकार होते हुए भी वह आरामशाह के संबंध में स्पष्ट जानकारी नहीं देता है |

अबुल फजल आश्चर्यजनक रूप से उसे ऐबक का भाई बताता है | हसन निजामी ने अपनी रचना का ताज-उल-मासिर में ऐबक के बारे में विस्तृत वर्णन किया है किंतु आरामशाह के संबंध में वह पूरी तरह से मौन है |

आधुनिक इतिहासकार हबीबउल्ला ने आरामशाह को ऐबक का पुत्र बताया है | इस प्रकार आरामशाह की वस्तु-स्थिति की जानकारी दे पाना एक कठिन कार्य है |

वास्तव में तुर्कों के पास सिंहासन के उत्तराधिकारी के चयन के लिए कोई निश्चित नियम कानून ना थे, यह अधिकांशतः तत्कालीन समय की आवश्यकताओं, परिस्थितियों और सरदारों व अमीरों के प्रभाव के द्वारा निश्चित होता था |

आरामशाह योग्य शासक न था, उसे दिल्ली की जनता का समर्थन प्राप्त न था | परिस्थितियों की मांग थी कि दिल्ली सल्तनत के सिंहासन पर एक योग्य और कर्मठ व्यक्ति बैठे हैं |

आरामशाह के सिंहासन पर बैठने के पश्चात विभिन्न भागों में तुर्क अमीरों ने विद्रोह कर दिया |

कुबाचा,जो ऐबक के समय उच का शासक था, ने मुल्तान पर अधिकार कर लिया |

बंगाल में अलीमर्दान ने भी दिल्ली के प्रभुत्व को मानने से इंकार कर दिया तथा व स्वतंत्र शासक की तरह व्यवहार करने लगा |

दिल्ली के नागरिकों तथा तुर्की अमीरों ने अपने सेनानायक अली इस्माइल के माध्यम से ऐबक के सर्वाधिक योग्य दास अधिकारी मलिक शम्सुद्दीन इल्तुतमिश (जो कुतुबुद्दीन ऐबक का दामाद भी था) को दिल्ली का सिंहासन ग्रहण करने के लिए आमंत्रित किया |

इल्तुतमिश उस समय बदायूं का शासक था | इल्तुतमिश दिल्ली पहुंचकर बिना किसी का कठिनाई के सिंहासन पर आसीन हो गया |

इस प्रकार हम देखते हैं कि आरामशाह के शासनकाल में दिल्ली का नव-स्थापित तुर्की राज चार स्वतंत्र राज्यों में विभाजित हो गया था |

लाहौर आरामशाह के नियंत्रण में, दिल्ली इल्तुतमिश के नियंत्रण में, बंगाल अलीमर्दान के नियंत्रण में तथा मुल्तान व उच कुबाचा के नियंत्रण में थे |

दिल्ली को हाथ से जाता देख आरामशाह ने लाहौर के नागरिकों के समर्थन से इल्तुतमिश विरुद्ध दिल्ली की ओर कूच किया | लेकिन दिल्ली के निकट जूद नामक स्थान पर इल्तुतमिश ने उसे पराजित कर दिया और सम्भवतः आरामशाह मार डाला गया |

आरामशाह का शासन केवल आठ माह चला और उसके शासनकाल के दौरान कोई महत्वपूर्ण घटना नहीं घटी | आरामशाह की पराजय व मृत्यु से इल्तुतमिश के विरोधी सरदारों के दल का भी लगभग सफाया हो गया |