हड़प्पा सभ्यता में समरूपता और विभिन्नता

Hadappa Sabhyata Mein Samaroopata Aur Vibhinnata

हड़प्पा सभ्यता में समरूपता और विभिन्नता (Hadappa Sabhyata Mein Samaroopata Aur Vibhinnata or Similarities and Variations in the Harappan Civilization in Hindi) : भारतीय इतिहास में नगरों का प्रादुर्भाव सबसे पहले हड़प्पा सभ्यता में हुआ | अभी तक ऐसा माना जाता था कि हड़प्पा सभ्यता में असाधारण समरूपता पाई जाती है । यह विचारधारा, जो मुख्यतः हड़प्पा सभ्यता के दो प्रमुख नगर हड़प्पा व मोहनजोदड़ो से प्राप्त जानकारी पर आधारित थी, अब अन्य समकालीन उत्खनित स्थलों से प्राप्त सामग्री के विश्लेषण के आधार पर गलत साबित गई है ।

मार्सिया फेंट्रेस ने हड़प्पा व मोहनजोदड़ो से प्राप्त विभिन्न पुरावशेषों एवं कलाकृतियों का तुलनात्मक अध्ययन करके हड़प्पा सभ्यता की समरूपता विषयक परम्परागत विचारधारा को भ्रामक सिद्ध कर दिया |

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हड़प्पा सभ्यता की प्रमुख विशेषता इसकी नगर-योजना प्रणाली थी | पहले ऐसा माना जाता था कि हड़प्पा सभ्यता के प्रमुख नगर समान रूप से दो भागों में विभाजित थें, जिसमे पश्चिम की तरह ऊँचा दुर्ग जबकि पूर्व की तरह निचला नगर था | इससे यह समझा जाता था कि इन नगरों में शासकों हेतु अलग ऊँचा दुर्ग था और जनसाधारण अर्थात् शिल्पियों, श्रमिकों इत्यादि हेतु निचला नगर होता था | परन्तु अब यह धारणाएं गलत साबित हो चुकी है क्योकि बड़े-बड़े सार्वजनिक भवन, रिहायशी मकान, शिल्प-शालाएं, बाजार आदि लगभग सभी इलाकों से प्राप्त हुए है |

राजस्थान के गंगानगर जिले में घग्घर नदी के तट पर स्थित कालीबंगन में हड़प्पा और मोहनजोदड़ो के पक्की ईंटों से निर्मित भवनों के विपरीत कच्ची ईंटों से निर्मित भवन मिलते है | यहाँ से सार्वजनिक नाली के अवशेष भी नही प्राप्त होते है |

कालीबंगन में दुर्ग को मध्य से एक लम्बी दीवार द्वारा, जोकि पूर्व-पश्चिम में जाती थी, दो हिस्सों में बांटा गया था | इस प्रकार का द्विभागीकरण किसी अन्य हड़प्पाई नगर में देखने को नही मिलता है | कालीबंगन का ‘निचला नगर’ भी सुरक्षा प्राचीर से घिरा था |

सडकों को पक्की बनाने का प्रयास केवल कालीबंगन में ही मिलता है अन्य किसी हड़प्पाई नगर में नही |

कालीबंगन के दुर्ग टीले के दक्षिणी अर्धभाग में पांच या छह कच्ची ईंटों के चबूतरें मिले है | इनमे से कुछ चबूतरों पर अग्निकुण्ड या वेदिकाओं की पंक्तियाँ, कुएँ, बलिकुंड आदि जैसे धार्मिक अनुष्ठान संबंधी निर्माण प्राप्त हुए है, जो हड़प्पा और मोहनजोदड़ो में नहीं प्राप्त हुए हैं ।

जहाँ हड़प्पा सभ्यता के अन्य नगर केवल दो भागों (दुर्ग व निचला नगर) विभाजित थें वही गुजरात के कच्छ जिले के भचाऊ तालुक में स्थित धौलावीरा का विभाजन तीन भागों अर्थात् दुर्ग, मध्यम नगर और निचला नगर में प्राप्त होता है |

इस कांस्ययुगीन नगरीय सभ्यता के निवासियों के जीवन का मुख्य उद्यम कृषि कर्म था | यहाँ के प्रमुख खाद्यान्न गेहूं और जौ थें | लेकिन हड़प्पाई बस्तियों में उत्पादित खाद्यान्न की फसलों में एक विभिन्नता परिलक्षित होती है – हड़प्पा में गेहूं,जौ, मटर व तिल, मोहनजोदड़ो में गेहूँ और जौ, कालीबंगन में जौ जबकि लोथल, रंगपुर व सुरकोटडा में चावल व ज्वार-बाजरा ।

पर्यावरण संबंधी कारकों ने भी हड़प्पा सभ्यता के प्रसार एवं सांस्कृतिक अनुकूलन में एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई |

हड़प्पा सभ्यता के नगरों के उत्खनन से हमें किसी भी मन्दिर, समाधि आदि के अवशेष नही प्राप्त होते है | यहाँ से प्राप्त मुहरों, छोटी-छोटी मूर्तियों और पाषाण-प्रतिमाओं से इनके धर्म और धार्मिक विश्वासों पर कुछ कुछ प्रकाश पड़ता है | हड़प्पाई लोगों के धार्मिक विश्वास एवं अनुष्ठान भी विभिन्न भागों में एकसमान नहीं मिलते है |

हड़प्पाई लोगों की शवाधान पद्धतियों में भी विभिन्नता देखने को मिलती है । हड़प्पा की समाधियों में शवों के सिर अधिकतर उत्तर दिशा की ओर रखे गये प्राप्त होते है | यही सामान्य प्रथा लगती है | लेकिन कालीबंगन में दक्षिण-उत्तर, लोथल में पूर्व-पश्चिम और रोपड़ में पश्चिम-पूर्व दिशा में लिटाये गये शव मिले है | सुरकोतड़ा के उत्खनन में कलश शवाधान का साक्ष्य प्राप्त हुआ है |

सामान्यतः एक कब्र में एक ही शव को दफनाया जाता था | लेकिन कालीबंगन और लोथल से क्रमशः एक या तीन युग्म शवाधान के साक्ष्य मिले है |

यहाँ तक कि हड़प्पा सभ्यता का पतन भी असंगत रूप से अलग-अलग स्थलों में अलग-अलग कारणों से हुआ । इस प्रकार हड़प्पा सभ्यता की समरूपता के संबंध में प्रचलित अखंड विचारधारा अब खंडित हो चुकी है |

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