सोलह महाजनपदों का उदय, विकास और इतिहास

16 mahajanapadas with capital in hindi

सोलह महाजनपदों का उदय, विकास और इतिहास (16 mahajanapadas with capital in hindi) Origin, development and history of sixteen Mahajanapadas : विद्यादूत की इतिहास केटेगरी में आज हम ‘सोलह महाजनपदों का उदय, विकास और इतिहास’ पर चर्चा करेंगे | लगभग ईसा-पूर्व छठी सदी तक उत्तर भारत में प्रजातंत्रों व राजतंत्रों की स्थापना के साथ हमें प्राचीन भारत के विवरण अधिक प्रमाणिकता के साथ प्राप्त होने लगते है |

उत्तर वैदिक काल में हमें विभिन्न जनपदों का अस्तित्व दिखाई देता है । ऐसा माना जाता है कि उत्तर वैदिक काल में ही अनेक जनपद एवं महाजनपद स्थापित हो चुके थें | लगभग ईसा-पूर्व छठी सदी से पूर्वी उत्तर प्रदेश व पश्चिमी बिहार में लोहे का प्रचुर प्रयोग होने लगा था | व्यापार की प्रगति, नगरों का विकास, सिक्कों का प्रचलन ईसा-पूर्व छठी सदी की आर्थिक दशा के महत्वपूर्ण पहलू है | नये कृषि औजारों व उपकरणों की सहायता कृषक अपनी जरूरत से ज्यादा अनाज पैदा करने लगे | अब राजा अपने सैनिकों व प्रशासनिक प्रयोजनों हेतु इस अतिरिक्त उपज को एकत्र कर सकता था | किसानों द्वारा उत्पादित अतिरिक्त अनाज उन नगरों को भी प्राप्त हो सकता था जो ईसा-पूर्व छठी-पांचवी सदियों में विकसित हुए थें |

लोहे के व्यापक प्रयोग ने लोगों के भौतिक जीवन में बड़े बदलाव को जन्म दिया और इससे लोगों में स्थायित्व की भावना प्रबल होती गयी |

लौह तकनीक ने जहाँ कृषि, उद्योग, व्यापार-वाणिज्य आदि के विकास में व्यापक योगदान दिया वही इसने प्राचीन जनजातीय व्यवस्था जर्जर बनाने का भी कम किया | छोटे-छोटे जन अब जनपदों में परिवर्तित होने लगे | ईसा-पूर्व छठी सदी तक आते-आते जनपदों ने महाजनपदों का रूप ले लिया |

ये भी देखें – दर्शनशास्त्र के सभी लेख | इतिहास के सभी लेख | शिक्षाशास्त्र के सभी लेख | अर्थशास्त्र के सभी लेख | समाजशास्त्र के सभी लेख | संविधान के सभी लेख | भूगोल के सभी लेख

अधिकतर जनपदों के विकास में तीन रूप दिखाई देते है –

1. कुछ जनों ने अकेले ही जनपद की अवस्था को प्राप्त कर लिया | जैसे मत्स्य, काशी, चेदि, कोशल आदि |

2. कुछ जनों में पहले संयोग हुआ तत्पश्चात् उनका जनपद के रूप में विकास हुआ | जैसे पांचाल जनपद, जिसमे पांच जनों का संयोग था |

3. बहुत से जन अधिक शक्तिशाली जनों के द्वारा विजित होने के पश्चात् उन्ही में शामिल कर लिए गये | जैसे अज जन इत्यादि |

वैदिक साहित्य में हमें कम-से-कम नौ जनपदों के नाम मिलते है | हालाँकि 450 ईसा-पूर्व के लगभग पाणिनि ने 40 भिन्न-भिन्न जनपदों का उल्लेख किया है, जिनमे से तीन अर्थात् मगध, कोसल और वत्स अधिक महत्वपूर्ण माने जाते है | ये जनपद उत्तर भारत में थें तथा अफगानिस्तान व उसके पड़ोस में मध्य-एशिया में भी थें |

पालि ग्रन्थों से हमें स्पष्ट होता है कि जनपद विकसित होकर महाजनपद में परिवर्तित हो गये थें | 

सोलह महाजनपदों का उदय, विकास और इतिहास (16 mahajanapadas with capital in hindi)

बौद्ध ग्रन्थ अंगुत्तरनिकाय से हमें पता चलता है कि गौतम बुद्ध के समय 16 बड़े-बड़े राज्य मौजूद थें जो महाजनपद कहलाते थें |

बौद्ध ग्रन्थ अंगुत्तरनिकाय में उल्लेखित सोलह महाजनपद के नाम इस प्रकार है –

1- काशी, 2- कोशल, 3- अंग, 4- मगध, 5- वज्जि, 6- मल्ल, 7- चेदि, 8- वत्स, 9- कुरु, 10- पंचाल, 11- मत्स्य, 12- शूरसेन, 13- अश्मक, 14- अवन्ति, 15- गन्धार, 16- कम्बोज

सोलह महाजनपदों की उपरोक्त सूची में भारत का उतना ही क्षेत्र सम्मिलित है, जो पूर्व में बिहार से पश्चिम में अफगानिस्तान तक एवं उत्तर में हिन्दुकुश से दक्षिण से गोदावरी नदी तक विस्तृत है | इस सूची में बंगाल व पूर्वी भारत के विस्तृत क्षेत्र तथा व्यावहारिक रूप में पूरा दक्षिण भारत सम्मिलित नही है |

इन जनपदों में मगध, वत्स, कोसल व अवंति अधिक शक्तिशाली थें, जिन्होंने अपने पड़ोसी राज्यों को हराकर विस्तार एवं शक्ति-वृद्धि की नीति का अनुसरण किया था | इन राज्यों के अनेक राजाओं में आपसी वैवाहिक सम्बन्ध हो चुके थें, परन्तु इसका मतलब यह नही कि इनमे परस्पर लड़ाईयां नही होती थी |

बौद्ध ग्रन्थ अंगुत्तरनिकाय में जिन सोलह महाजनपदों का वर्णन मिलता है वें गौतम बुद्ध के पूर्व विद्यमान थे, क्योंकि बुद्धकाल में काशी का राज्य कोशल मे और अंग का राज्य मगध में मिला लिया गया था । संभवतः इस समय अश्मक (अस्सक) भी अवन्ति द्वारा विजित कर लिया गया था |

जैन ग्रन्थ भगवतीसूत्र में भी हमे सोलह महाजनपद के नाम मिलते है, लेकिन यहाँ जनपदों के नाम कुछ भिन्न मिलते है –

1- अंग, 2- बंग, 3- मगह (मगध), 4- मलय, 5- मालव, 6- अच्छ, 7- वच्छ (वत्स), 8- कोच्छ, 9- पाढ्य, 10- लाढ्, 11- वज्जि, 12- मोलि (मल्ल), 13- काशी, 14- कोशल, 15- अवध, 16- सम्भुत्तर

भिन्न-भिन्न ग्रन्थों में सोलह महाजनपदों के नामों में थोड़ी भिन्नता पाई जाती है | सम्भवता इसका कारण यह है कि भिन्न-भिन्न समय पर राजनीतिक परिस्थितियाँ परिवर्तित होती रही है |

अंगुत्तरनिकाय में वर्णित सोलह महाजनपद दो भागों में विभाजित थें – राजतन्त्र और गणतन्त्र |

1. राजतन्त्र – राजतन्त्र में राज्य का प्रमुख राजा होता था । इन जनपदों में राजाओं का एक अपना स्वतंत्र राजवंश होता था | मगध (दक्षिणी बिहार), अंग (पूर्वी बिहार), चेदि (यमुना व नर्मदा के मध्य), काशी (बनारस), कोशल (अवध), शूरसेन (मथुरा), वत्स (इलाहाबाद का क्षेत्र), पंचाल (बरेली, बदायूँ व फर्रूखाबाद के जिले), कम्बोज (दक्षिण-पश्चिम काश्मीर व काफ़िरिस्तान के भाग), कुरु (थानेश्वर, दिल्ली व मेरठ के जिले), अवन्ति (मालवा में), मत्स्य (जयपुर), अश्मक (गोदावरी पर), और गंधार (पेशावर व रावलपिंडी के जिले) महाजनपद राजतन्त्र थें |

2. गणतन्त्र – गणतन्त्र राज्य गण या संघ द्वारा शासित होते थें । वज्जि (उत्तरी बिहार) और मल्ल (गोरखपुर व देवरिया के जिले) गणराज्य थें |

सोलह महाजनपदों की इस सूची के साथ-साथ हमें गौतम बुद्ध के समय के कई प्रसिद्ध नगरों के नाम भी मिलते है | उदाहरणार्थ काशी, राजगृह, चम्पा, साकेत, श्रावस्ती व कौशाम्बी | ये नगर अधिकांश महाजनपदों की राजधानियाँ थें |

सोलह महाजनपदों का उदय, विकास और इतिहास 16 mahajanapadas with capital in hindi

अब हम विस्तार से सोलह महाजनपदों का उदय, विकास और इतिहास (16 mahajanapadas with capital) पर चर्चा करेंगें –

अंग

पूरब से आरम्भ करने पर पहले अंग जनपद मिलता है जिसमे आधुनिक उत्तरी बिहार के वर्तमान भागलपुर और मुंगेर के जिले पड़ते हैं | अंग महाजनपद की राजधानी चंपा (भागलपुर के निकट) थी, जहाँ ईसा-पूर्व छठी सदी से हमें जनजीवन के साक्ष्य प्राप्त होते है ।

अंग का प्राचीनतम उल्लेख हमें अथर्ववेद में प्राप्त होता है | महाभारत व पुराणों में चंपा का प्राचीन नाम ‘मालिनी’ मिलता है | दीघनिकाय, जोकि बौद्ध ग्रंथ त्रिपिटक के सुत्तपिटक का प्रथम निकाय है, बताता है कि इस नगर के निर्माण की योजना विख्यात वास्तुकार महागोविन्द ने प्रस्तुत की थी ।

प्राचीन काल में चंपा नगरी अपने वैभव व व्यापार वाणिज्य हेतु प्रसिद्ध थी । अंग एक शक्तिशाली राज्य था, जिसकी सीमा मगध राज्य से सटी हुई थी | गौतम बुद्ध के समय में अंग एवं मगध में संप्रभुता के लिए सदा संघर्ष होता रहता था |

अंग के राजा ब्रह्मदत्त ने मगध नरेश भट्टिय को पहले हराकर मगध के कुछ भाग पर अधिकार कर लिया था लेकिन शीघ्र ही मगध-साम्राज्यवाद के समक्ष अंग को घुटने टेकने पड़े और मगध के शक्तिशाली राजा बिम्बिसार ने अंग के राजा ब्रह्मदत्त को पराजित करके मार डाला परिणामस्वरूप अंग शक्तिशाली मगध में मिला लिया गया |

बिम्बिसार के प्रतिनिधि के रूप में अजातशत्रु वहां शासन करने लगा |

मगध

ईसा-पूर्व छठी सदी के 16 महाजनपदों में सबसे प्रसिद्ध व शक्तिशाली महाजनपद मगध महाजनपद था | मगध जनपद दक्षिणी बिहार में स्थित था | इस महाजनपद में आधुनिक पटना व गया जिला तथा शाहाबाद का कुछ भाग शामिल थें |

मगध की प्राचीन राजधानी गिरिव्रज (राजगृह अथवा राजगीर) थी । राजगृह गौतम बुद्ध की गतिविधियों का भी एक प्रमुख केंद्र था | कालान्तर में पाटलिपुत्र (कुसुमपुर, पुष्पपुर, पाटलिग्राम, पटना) मगध की राजधानी बनी |

मगध व अंग एक दूसरे के पड़ोसी जनपद थे और चंपा नदी इन दोनों की सीमाएं अलग करती थी | उत्तर-भारत के सर्वाधिक शक्तिशाली मगध महाजनपद की सीमा उत्तर में गंगा से दक्षिण में विन्ध्यपर्वत तक और पूर्व में चंपा से पश्चिम में सोन नदी तक फैली हुई थी ।

अंगुत्तरनिकाय में वर्णित सोलह महाजनपदों में अंततः मगध ही राजनीतिक सर्वोच्चता को प्राप्त करके साम्राज्य की स्थिति में पहुँच सका |

वज्जि

वज्जि संघ मगध के उत्तर की ओर स्थित था | वज्जि आठ राज्यों का एक संघ था, जिसमे वज्जि के आलावा वैशाली के लिच्छवि, मिथिला के विदेह और कुण्डग्राम के ज्ञातृक प्रमुख रूप से उल्लेखनीय है | वज्जि संघ की राजधानी विदेह और मिथिला थी |

बुद्धकाल में वज्जि एक शक्तिशाली संघ था | बौद्ध साहित्य लिच्छिवियों के सामाजिक और राजनीतिक जीवन की जानकारी देते है | वज्जि संघ में सबसे प्रबल लिच्छवि थें | लिच्छवियों की राजधानी वैशाली थी |

महावस्तु से पता चलता है कि महात्मा बुद्ध लिच्छवियों के निमंत्रण पर वैशाली गये थें | गौतम बुद्ध ने वैशाली की विख्यात नर्तकी आम्रपाली को बौद्ध-धर्म में दीक्षित किया था | वैशाली की पहचान उत्तरी बिहार के मुजफ्फरपुर जिले में स्थित वर्तमान बसाढ़ गाँव से की जाती है |

यद्यपि पुराणों के अनुसार वैशाली एक अत्यधिक प्राचीन नगरी है, लेकिन पुरातत्व के अनुसार बसाढ़ की स्थापना ई.पू. छठी सदी से पूर्व नही हुई थी | मिथिला की पहचान नेपाल की सीमा में स्थित जनकपुर नामक नगर से की गयी है | कुंडग्राम वैशाली के निकट ही था | अन्य राज्यों के बारे हमे निश्चित जानकारी नही मिलती है |

काशी

आधुनिक वाराणसी और उसका समीपवर्ती क्षेत्र ही प्राचीन काल में काशी महाजनपद था । इसकी राजधानी वाराणसी थी, जो उत्तर में वरुणा और दक्षिण में असी नदियों से घिरी हुई थी |

ऐसा वर्णन मिलता है कि आरम्भ में काशी सर्वाधिक शक्तिशाली राज्य था | सोननंद जातक से पता चलता है कि कि मगध, कोशल और अंग पर काशी का अधिकार था । महात्मा बुद्ध के समय में काशी का राजनैतिक पतन हो गया था | समय समय पर काशी नरेशों का कोसल महाजनपद के साथ कई युद्ध हुए | इसमे कभी काशी की विजय हुई तो कभी कोसल की |

काशी का सबसे शक्तिशाली राजा ब्रह्मदत्त था | इसने कोसल के ऊपर विजय प्राप्त की थी । लेकिन अन्त में कोशल नरेश कंस ने काशी पर विजय प्राप्त करके उसे अपने राज्य में मिला लिया था ।

अंततोगत्वा काशी को मगध के साम्राज्यवाद का शिकार बनना पड़ा था | अजातशत्रु के शासनकाल में काशी मगध का अंग बना लिया गया था |

कोशल

कोशल जनपद में पूर्वी उत्तर प्रदेश आता था | आधुनिक अवध का क्षेत्र (फैजाबाद मण्डल) से प्राचीन काल के कोशल महाजनपद निर्मित था | कोशल उत्तर में नेपाल, दक्षिण में सई नदी, पश्चिम में पाञ्चाल और पूर्व में गण्डक नदी तक विस्तृत था | इस महाजनपद की राजधानी श्रावस्ती थी |

अयोध्या एवं साकेत इस महाजनपद के अन्य महत्वपूर्ण नगर थें | रामायणकालीन कोशल की राजधानी अयोध्या थी | गौतम बुद्ध के समय कोशल महाजनपद दो भागों में विभाजित हो गया ।  इसके उत्तरी भाग की राजधानी साकेत और दक्षिणी भाग की राजधानी श्रावस्ती थी |

बुद्ध काल में छह नगरों में कोशल भी था | साकेत का ही अन्य नाम अयोध्या था । कोशल महाजनपद में शाक्यों का कपिलवस्तु गणराज्य भी शामिल था | कपिलवस्तु राजधानी की पहचान बस्ती जिले के पिपरहवा स्थान से की जाती है |

शाक्यों की दूसरी राजधानी नेपाल में लुम्बिनी नामक स्थान पर थी | अशोक ने अपने एक अभिलेख में लुम्बिनी को गौतम बुद्ध का जन्मस्थान बताया है | कोसल महाजनपद का महत्वपूर्ण राजा प्रसेनजित था, जो गौतम बुद्ध का समकालीन था |

मल्ल

कोशल महाजनपद के पड़ोस में मल्लों का गणराज्य था, जिसकी सीमा वज्जि की उत्तरी सीमा से जुड़ी थी | मल्ल महाजनपद आधुनिक देवरिया और गोरखपुर जिले में स्थित था । यह दो भागों में विभाजित था जिसमे एक भाग की राजधानी कुसावती या कुसीनारा (कसया) और दूसरे भाग की राजधानी पावा (पडरौना) थी |

कुसीनारा में गौतम बुद्ध का महापरिनिर्वाण हुआ था और पावा में महावीर स्वामी का निर्वाण हुआ था | कुसीनारा की पहचान देवरिया जिले के कसिया नामक स्थान से की जाती है |

प्राचीन साहित्यिक स्रोतों में हमे मल्लों की वीरता की प्रशंसा मिलती है | मल्ल राज्य पहले राजा द्वारा शासित था, लेकिन कालान्तर में यहाँ गणराज्य स्थापित हो गया | यहाँ जैन और बौद्ध धर्मों का व्यापक प्रचार-प्रसार हुआ था |

आपसी संघर्षों ने मल्लों की स्थिति कमजोर कर दी और गौतम बुद्ध के महापरिनिर्वाण के पश्चात् ही मल्ल राज्य ने अपनी स्वतंत्रता गवां दी | शक्तिशाली मगध ने इस पर विजय प्राप्त करके इसे अपने साम्राज्य में मिला लिया |

वत्स

पश्चिम की ओर यमुना नदी के तट पर वत्स महाजनपद था | वत्स महाजनपद में वर्तमान इलाहाबाद और बाँदा के जिले के क्षेत्र आते थे | इसकी राजधानी इलाहाबाद के निकट कौशांबी थी | वत्स लोग वही कुरु लोग थें, जो हस्तिनापुर को छोड़कर कोशांबी में आकर बस गये थें | इन्होने कौशांबी को इसलिए पसंद किया था क्योकि यह गंगा-यमुना के संगम के निकट था |

हमें विष्णु पुराण से पता चलता है कि हस्तिनापुर के गंगा के प्रवाह में बह जाने के कारण हस्तिनापुर नरेश निचक्षु ने कौशांबी को अपनी राजधानी बनाई थी | गौतम बुद्ध का समकालीन और संस्कृत साहित्य में प्रसीद्ध उदयन वत्य महाजनपद से ही सम्बन्धित था |

कथासरित्सागर के आधार पर यह माना जाता है कि उदयन का सम्बन्ध पाण्डव परिवार से था | श्रेष्ठि घोषित द्वारा निर्मित विहार और उदयन के राजप्रसाद के अवशेष हमें कौशांबी से मिलते है |

चेदि या चेति

चेदि महाजनपद वर्तमान बुन्देलखण्ड के पूर्वी और इसके समीपवर्ती भागों में अवस्थित था | यह महाजनपद यमुना नदी के निकट स्थित था और इसकी सीमा कुरु महाजनपद के साथ लगी हुई थी | चेदि महाजनपद की राजधानी सोत्थिवती थी |

सोत्थिवती की पहचान महाभारत के शुक्तिमती से की जाती है । महाभारत काल में चेदि राज्य का प्रसिद्ध राजा शिशुपाल था, जो कृष्ण के हाथों मारा गया था |

कलिंग (आधुनिक उड़ीसा) के जिस चेदि वंश के शासक खारवेल का उल्लेख मिलता है, वह शायद इसी चेदि प्रदेश की शाखा ने ही स्थापित किया होगा | चेतिय जातक में चेदि राज्य के एक शासक ‘उपचर’ का उल्लेख प्राप्त होता है |

कुरु

कुरु उत्तर वैदिक साहित्य में एक ख्यातिप्राप्त राज्य था | पहले कुरु राज्य राजतंत्रात्मक था लेकिन बाद में यहाँ गणतन्त्र स्थापित हो गया था | यह महाजनपद वर्तमान मेरठ, दिल्ली और थानेश्वर के भू-भागों में अवस्थित था । जातकों के अनुसार कुरु महाजनपद की राजधानी इन्द्रप्रस्थ थी | 

महाभारत काल का हस्तिनापुर नगर भी कुरु राज्य में अवस्थित था । ब्राह्मण ग्रंथों में कुरु-पंचाल के शक्तिशाली जोड़े का उल्लेख मिलता है, जिहोने कई अश्वमेध यज्ञों का अनुष्ठान करवाया था |

प्राचीन काल से ही कुरु राज्य के लोग अपने तेज दिमाग और शक्ति के लिए प्रसिद्ध थे । कुरु शासकों ने पंचालों, यादवों व भोजों के साथ वैवाहिक सम्बन्ध स्थापित किये | बुद्धकाल में कुरु राज्य का शासक कोरव्य था ।

पंचाल

कुरु की भांति पंचाल राज्य भी उत्तर वैदिक काल से ही प्रसिद्ध था | छठी शताब्दी ई.पू. कुरु व पंचाल का एक संघ राज्य था । महाभारत काल में पंचाल राज्य के कई उल्लेख है, यहाँ तक कि द्रोपदी भी पांचाली कहलाती थी |

पंचाल राज्य पहले एक राजतन्त्र था लेकिन सम्भवतः कौटिल्य के काल तक यह एक गणराज्य बन गया था | पंचाल महाजनपद वर्तमान रुहेलखंड के बरेली, बदायूँ और फर्रुखाबाद के जिलों में अवस्थित था | इसके दो भाग थे – उत्तर पंचाल और दक्षिण पंचाल |

उत्तर पंचाल की राजधानी अहिच्छत्र (वर्तमान रामनगर, बरेली) थी और दक्षिण पंचाल की राजधानी काम्पिल्य (वर्तमान कम्पिल, फर्रुखाबाद) थी | कान्यकुब्ज का प्रसिद्ध नगर पंचाल महाजनपद राज्य में ही था |

मत्स्य (मच्छ)

मत्स्य महाजनपद राजस्थान के जयपुर क्षेत्र के आसपास था | इसके अन्तर्गत आधुनिक अलवर का सम्पूर्ण भाग और भरतपुर का एक भाग भी शामिल था ।

मत्स्य महाजनपद की राजधानी विराटनगर थी, जिसकी स्थापना विराट नामक शासक ने की थी । साहित्यिक स्रोतों में ‘अपर मत्स्य’, वीर मत्स्य’ इत्यादि जो उल्लेख मिलते है, वें सम्भवतः मूल मत्स्य राज्य की शाखाएं रही हो |

बुद्धकाल में इस राज्य का कोई राजनैतिक महत्व नही था | मत्स्य राज्य कभी चेदि राज्य के अधीन था |

शूरसेन

शूरसेन महाजनपद वर्तमान ब्रजमण्डल क्षेत्र में अवस्थित था । शूरसेन की राजधानी मथुरा थी | प्राचीन यूनानी लेखकों ने शूरसेन को शूरसेनोई और इसकी राजधानी मथुरा को मेथोरा कहा है ।

महाभारत व पुराणों के अनुसार यहाँ यदु (यादव) वंश का शासन था । यहाँ के राजा कृष्ण थें | बुद्धकाल में शूरसेन का शासक अवन्तिपुत्र गौतम बुद्ध का अनुयायी था, जिसने अपने राज्य में बौद्ध धर्म का प्रचार-प्रसार किया था ।

अवन्तिपुत्र नाम से ऐसा लगता है कि मथुरा व अवन्ति के मध्य वैवाहिक सम्बन्ध थें | मज्झिम निकाय से स्पष्ट होता है कि अवन्तिपुत्र का जन्म अवन्ति राज्य के शासक प्रद्योत की पुत्री से हुआ था ।

अश्मक (अस्सक या अश्वक)

सोलह महाजनपदों में केवल अश्मक ही दक्षिण भारत में अवस्थित था | यह महाजनपद गोदावरी नदी (आन्ध प्रदेश) के तट पर स्थित था | अश्मक महाजनपद की राजधानी पोतन या पोटिल थी ।

पुराणों के अनुसार अश्मक के राजतन्त्र की स्थापना इक्ष्वाकु वंश के क्षत्रिय राजाओं की थी | गौतम बुद्ध के पूर्व अश्मक और अवन्ति में लगातार टकराव बना हुआ था | गौतम बुद्ध के समय अवन्ति ने अश्मक पर विजय प्राप्त करके अपने राज्य में मिला लिया था |

अवन्ति

पश्चिमी भारत में अवन्ति एक प्रमुख महाजनपद था | अवन्ति महाजनपद वर्तमान मालवा और मध्य-प्रदेश के कुछ भागों से मिलकर बना था | प्राचीन काल में अवन्ति दो भागो में विभाजित था – उत्तरी अवन्ति और दक्षिणी अवन्ति |

उत्तरी अवन्ति की राजधानी उज्जयिनी (उज्जैन) थी और दक्षिणी अवन्ति की राजधानी माहिष्मती थी । उत्तरी और दक्षिणी अवन्ति परस्पर वेत्रवती नदी के द्वारा विभाजित थें |

महावीर स्वामी और गौतम बुद्ध के समय चंड प्रद्योत अवन्ति का शक्तिशाली राजा था | चंड प्रद्योत के समय में अवन्ति का वत्स, कोसल और मगध के साथ युद्ध हुआ था |

प्राचीन भारत में उज्जयिनी राजनैतिक और आर्थिक दोनों ही दृष्टियों से एक अत्यन्त महत्वपूर्ण नगर था । यहाँ लोहे की खाने होने की वजह से यह नगर सैनिक दृष्टि से अतिमहत्वपूर्ण था |

प्राचीन भारत में अवन्ति महाजनपद बौद्ध धर्म का एक प्रमुख केंद्र था और यहाँ कुछ प्रसिद्ध विद्वान बौद्ध भिक्षु निवास करते थें | अवन्ति का पर्याप्त आर्थिक महत्व भी था, अनेक व्यापार मार्ग यहाँ से होकर निकलते थें | मगध के राजा शिशुनाग ने अवन्ति को विजित करके मगध में मिला लिया था |

गांधार

गांधार महाजनपद प्राचीन भारत के उत्तरी भाग, जिसे उत्तरापथ कहा जाता था, में अवस्थित था | यह महाजनपद वर्तमान पाकिस्तान के पेशावर और रावलपिण्डी के इलाकों में अवस्थित था |

गांधार की राजधानी तक्षशिला प्राचीन भारत में शिक्षा और व्यापार का विख्यात केंद्र थी | रामायण के अनुसार तक्षशिला नगर की स्थापना भरत के पुत्र तक्ष द्वारा की गयी थी । पुष्कलावती गांधार राज्य का दूसरा प्रमुख नगर था ।

छठी शताब्दी ई.पू. में गांधार में पुष्कर सारिन या पुक्कुसाति नामक राजा शासन करता था | इसने अवन्ति पर आक्रमण करके चंड प्रद्योत को पराजित किया था | इसके सम्बन्ध शक्तिशाली मगध के साथ मधुर थें | इसने मगध राजदरबार में अपना एक दूतमण्डल और बिम्बिसार के नाम एक पत्र भेजा था |

कम्बोज

गन्धार का पड़ोसी कम्बोज महाजनपद भी उत्तरापथ में अवस्थित था | कम्बोज दक्षिणी-पश्चिमी कश्मीर और काफिरिस्तान के इलाकों में स्थित था | प्राचीन भारत में कम्बोज राज्य अपने श्रेष्ठ घोड़ों हेतु विख्यात था | कम्बोज की राजधानी राजपुर या हाटक थी ।

कम्बोज में पहले राजतन्त्र था लेकिन कौटिल्य के समय यहाँ संघराज्य स्थापित हो गया था | कौटिल्य ने कम्बोज को ‘वार्ताशस्त्रोपजीवी संघ’ अर्थात् ‘वार्ता (कृषि, पशुपालन, वाणिज्य) और शस्त्र द्वारा जीविकापार्जन करने वाला’ कहा है |

चार शक्तिशाली महाजनपद

इस प्रकार छठी शताब्दी ई.पू. के आरम्भ में उत्तर भारत में राजनैतिक एकता और सार्वभौम सत्ता का अभाव था | उपर्युक्त वर्णित सोलह महाजनपदों में पारस्परिक टकराव व युद्ध विद्यमान था | सभी अपने राज्य की सीमा का विस्तार करना चाहते थें |

छठी शताब्दी ई.पू. के उत्तरार्द्ध तक आते-आते सोलह महाजनपदों में से चार महाजनपदों की विस्तारवादी नीति ने अन्य महाजनपदों के अस्तित्व को खत्म कर दिया | ये चार शक्तिशाली राज्य थें – मगध, कोशल, अवन्ति और वत्स |

यद्यपि इन शक्तिशाली राज्यों में परस्पर वैवाहिक सम्बन्ध थें फिर भी ये सभी एक-दूसरे पर अपनी प्रभुसत्ता को स्थापित करने को तत्पर रहते थें | इस संघर्ष में अंततः मगध की जीत हुई |

मगध की विस्तारवादी नीति ने सभी महाजनपदों पर अपना प्रभुत्व स्थापित किया और एक प्रकार से मगध साम्राज्य का इतिहास सम्पूर्ण भारत का इतिहास बन गया |