बुद्ध की कहानी 9 : दूसरे मतों के प्रति उदारता

बुद्ध की कहानी 9 : दूसरे मतों के प्रति उदारता | भगवान् दूसरे मतों-धर्मों-संप्रदायों को कभी अपना विरोधी नही मानते थें, यही कारण है कि सभी धर्मो-संप्रदायों के लोग उनके अनुयायी बने |

वैशाली का प्रधान-सेनापति सिंह अपनी वीरता के लिए बहुत प्रसिद्ध था | यह प्रसिद्धि बिल्कुल ठीक थी, क्योंकि सेनापति सिंह के नेतृत्व में वैशाली के लिच्छवियों की सेना तत्कालीन भारत के सर्वाधिक शक्तिशाली मगधनरेश अजातशत्रु के दांत खट्टे करती रहती थी |

सिंह पहले निगंठनातपुत्त (महावीर स्वामी) का अनुयायी था | कालांतर में तथागत से प्रभावित होकर उनका अनुयायी बन गया | भगवान् ने सोचा कि कही यह अब जैन साधुओं का सेवा-सत्कार करना और भोजन देना बंद न कर दे |

अतः उन्होंने उससे कहा, “सिंह, तुम्हारा कुल दीर्घकाल से निगंठों (जैन साधुओं) की सेवा करते आ रहा है | लेकिन अब भी तुम उनके आने पर दान-दक्षिणा को मत रोकना |”