बुद्ध की कहानी 8 : बीमार भिक्षु की सेवा

बुद्ध की कहानी 8 : बीमार भिक्षु की सेवा | एक बार भगवान्‌ श्रावस्ती के जेतवन में विहार कर रहे थें | मठ में आनंद के साथ भ्रमण करते समय वे एक कोठरी के पास गये तो देखा कि एक बीमार भिक्षु अपने मल-मूत्र में पड़ा हुआ है |

उन्होंने आनन्द से कहा, ‘पानी ले कर आओ, इस बीमार भिक्षु को नहलायेंगे |’ आनंद पानी ले आये तो भगवान् ने अपने हाथों से उस भिक्षु को नहलाया-धुलाया | फिर उसे आनंद की मदद से उठाकर चारपाई पर लिटाया |

उसी समय भगवान् ने वहां उपस्थित सभी भिक्षुओं से कहा, “यहाँ तुम्हारी माता नहीं, पिता नहीं, जो कि तुम्हारी सेवा करेंगे | अगर तुम एक दूसरे की सेवा नहीं करोगे, तो कौन सेवा करेगा ? जो रोगी की सेवा करता है, वह मेरी सेवा करता है |” 

इसके बाद भगवान् ने रोगी भिक्षु की सेवा के साथ अनेकों दवाईयों के उपयोग की बात भी भिक्षुओं को बतायी | तत्कालीन समय में भारतीय चिकित्साशास्त्र ने जितनी उन्नति की थी, उसका उन्हें बहुत ज्ञान था | इसी कारण तथागत को भैषज्य-गुरु (दवाओं के गुरु) भी कहा जाने लगा | आज भी तिब्बत, चीन, जापान में भगवान बुद्ध की भैषज्य-गुरु के नाम से विशेष मूर्तियां देखी जा सकती है, जिनके एक हाथ में चिकित्सा का प्रतीक हर्रा रहता है |