बुद्ध की कहानी 10 : जन्म से बड़ा गुण

बुद्ध की कहानी 10 : जन्म से बड़ा गुण | भगवान् बुद्ध अपने समय के महान समाज सुधारक थें | उनके लिए सभी मानव एक समान थें, चाहे वो किसी भी जाति के हो | उन्होंने बिना किसी भेदभाव के, जाति या लिंग के भेद के बिना, सभी को उपदेश दिया | उनके उपदेशों में वर्ण-भेद व वर्ण-व्यवस्था का विरोध जगह जगह मिलता है | उन्होंने समाज में व्याप्त विषमता का अंत करके समता को स्थापित करने का प्रयास किया था |

एक बार भगवान् भिक्षु-संघ के साथ अंग महाजनपद, जिसपर मगध का अधिकार हो गया था, की प्राचीन राजधानी चम्पा में गर्गरा (घाघरा) पुष्करिणी के तीर किसी बगीचे में वर्षावास कर रहे थें | चम्पा को मगधनरेश बिम्बिसार ने अपने पूज्य ब्राह्मण सोणदण्ड (स्वर्णदण्ड) को प्रदान किया था | भगवान् बुद्ध की ख्याति सारे उत्तरी भारत में फैली हुईं थी, अतः वह जहां भी जाते, लोग उनके दर्शन व उपदेश सुनने हेतु आया करते थे |

जब चम्पा के निवासी ब्राह्मण गृहस्थों को मालूम हुआ की तथागत चम्पा में गर्गरा पुष्करिणी के तीर विहार कर रहे है तो झुण्ड-के-झुण्ड उधर जाने लगे | ब्राह्मण सोणदण्ड को जब पता लगा, तो वह भी बहुत से ब्राह्मणों के साथ भगवान् के पास चला |

वहां पहुंचने पर सोणदण्ड के चित्त में तर्क-वितर्क उत्पन्न हुआ, “यदि मैं ही श्रमण गौतस से प्रश्न करू, पूछे, तब यदि श्रमण गौतम मुझे ऐसा कहे – ‘ब्राह्मण ! यह प्रश्न इस तरह नही पूछना चाहिये, ब्राह्मण ! इस प्रकार से, यह प्रश्न पूछा जाना चाहियें |’ तब यह परिषद्‌ मेरा तिरस्कार करेगी | जिसका यह परिषद्‌ तिरस्कार करेगी, उसका यश भी क्षीण होगा | जिसका यश क्षीण होगा, उसके भोग भी क्षीण होगे | यश से ही भोग मिलते है | और यदि मुझसे श्रमण गौतम प्रश्न पूछें, और मैं प्रश्न के उत्तर द्वारा उनका चित्त सन्तुष्ट न कर सकूं | तब मुझे, यदि श्रमण गौतम ऐसा कहे ‘ब्राह्मण ! इस प्रश्न का ऐसे उत्तर नही देना चाहिये, ब्राह्मण | इस प्रश्न का उत्तर इस प्रकार देना चाहिये |’ तो यह परिषद्‌ मेरा तिरस्कार करेगी | मैं यदि इतना करीब आकर भी भ्रमण गौतम को देखे बिना ही लौट जाऊँ, तो इससे भी यह परिषद् मेरा तिरस्कार करेगी, कि सोणदण्ड ब्राह्मण, भयभीत है, श्रमण गौतम के दर्शनार्थ जाने मे समर्थ नहीं हुआ |”

यही सब सोचते सोणदण्ड भगवान्‌ के पास पहुंचा और उन्हें नमन कर एक ओर बैठ गया | वह सोच रहा था कि अच्छा होता, श्रमण गौतम मेरी जानी हुई बातों में से किसी के सम्बन्ध में चर्चा करते करते | तब भगवान् ने सोणदण्ड के चित्त के वितर्क को अपने चित्त से जानकर सोचा कि यह सोणदण्ड ब्राह्मण अपने चित्त से परेशान हुआ जा रहा है | क्यों न मैं ही इससे प्रश्न पूंछू |

तब भगवान् ने सोणदण्ड से पूंछा, “ब्राह्मण, किन-किन गुणों से युक्त पुरुष को ब्राह्मण कहते हैं, और वह “मैं ब्राह्मण हूँ’ कहते हुए सच कहता हैं, झूठ बोलने वाला नहीं होता ?”

यह सुन सोणदण्ड अत्यंत खुश हुआ कि यही प्रश्न तो मैं श्रमण गौतम से पूछना चाहता था | मैं अवश्य अपने उत्तर से इनके चित्त को संतुष्ट करूंगा |

सोणदण्ड ने कहा, “इन पांच बातों से युक्त को ब्राह्मण कहते है – (1) माता-पिता दोनों ओर से वह सुजात हो, (2) वेदाध्यायी, मंत्रधर व तीनों वेदों में पारंगत हो, (3) सुन्दर, दर्शनीय, अच्छे (गोरा रंग) रंग वाला हो, (4) शीलवान हो और (5) पण्डित, मेधावी, यज्ञ-दक्षिणा पाने वालों में उच्च स्थान रखता हो |”

भगवान् ने पूछा, “क्या इन पांच बातों में एक के छोड़ देने पर भी ब्राह्मण कहा जा सकता है ?”

सोणदण्ड ने उत्तर दिया, “हां, वर्ण (गोरे रंग) को छोड़ा जा सकता है, अगर शेष चार बातें उसमें हैं, तो वह ब्राह्मण है |”

फिर भगवान् ने पूंछा, “क्या शेष चार बातों में किसी एक को छोड़ने पर ब्राह्मण कहा जा सकता है ?

“हां, मंत्र (वेद) के अध्ययन-अध्यापन की बात छोड़ी जा सकती हैं | अगर वह सुजात, शीलवान व पण्डित-मेधावी है, तो उसे ब्राह्मण कहा जा सकता है |”

“क्या इन तीनों में से भी किसी एक को छोड़ने पर शेष दो से ब्राह्मण हो सकता है |”

“हां, सुजात (उत्तम कुल में उत्पन्न जन्मा) के नियम को छोड़ सकते हैं | शीलवान व पण्डित होने से उसे ब्राह्मण कहा जा सकता है |”

सोणदण्ड की ऐसी बातें सुनकर वहां उपस्थित ब्राह्मण-मण्डली में हल्ला मच गया | वह कहने लगे “आप सोणदण्ड ! ऐसा मत कहें, ऐसा मत कहें | आप सोणदण्ड | आप सोणदण्ड वर्ण (रंग) का प्रत्याख्यान (अपवाद/खण्डन) करते है, मंत्र (वेद) का प्रत्याख्यान करते है, जाति (जन्म) का प्रत्याख्यान करते है, इस तरह से तो आप श्रमण गौतम के ही वाद (विचारों) को स्वीकार कर रहे है |”

ऐसा सुन सोणदण्ड बेचारा दुविधा में पड़ गया | तब भगवान् ने उन ब्राह्मणों से कहा, “यदि ब्राह्मणों तुमको लगता है सोणदण्ड कम पढ़ा, अ-सुवक्ता एवं दुष्प्रज्ञ है | सोणदण्ड ब्राह्मण इस बात में श्रमण गौतम के साथ वाद नही कर सकता | तो सोणदण्ड ब्राह्मण ठहरे, तुम्ही मेरे साथ वाद करो | यदि ब्राह्मणों ! तूमको ऐसा लगता है कि सोणदण्ड ब्राह्मण पढ़ा-लिखा है, सुवक्‍ता है, पंडित है, सोणदण्ड ब्राह्मण इस बात मे श्रमण गौतम के साथ वाद कर सकता है, तो तुम ठहरो, सोणदण्ड ब्राह्मण को मेरे साथ वाद करने दो |”

यह सुन कर सोणदण्ड की हिम्मत बढ़ी, उसने भगवान से कहा, “आप जरा ठहरें, मैं ही इनका उत्तर देता हूँ |”

यह कह कर सोणदण्ड ने ब्राह्मणों से अपने भांजे अंगक को दिखला कर कहा, “आप सब मेरे भांजे अंगद को देख रहे हैं न |”

हाँ जी,

यह अंगक वर्ण-संपन्न है | इस सारी परिषद् में श्रमण गौतम को छोड़कर अन्य कोई उसके समान सुन्दर वर्ण (रंग) वाला नहीं है | अंगक वेदाध्यायी, वेदपाठी, मंत्रधर, निघंटु-कल्पव्याकरण-सहित तीनों वेदों में भी पारंगत है | वह कवि है | वह माता-पिता दोनों तरफ से सुजात है | इन सब गुणों के बावजूद भी यही अंगक हिंसा करे, चोरी करे, परस्त्री-गमन करे, झूठ बोले, मद्य पीये, तो बतलाओं उसके वर्ण (रंग) से क्‍या बनेगा, पढ़े वेद से क्या होगा, सुजात होने का मोल क्‍या ?” सोणदण्ड के इस प्रश्न का ब्राह्मणों के पास कोई उत्तर नहीं था |

फिर भगवान् में बात आगे बढ़ाई और पूंछा, “क्या इन दोनों में से भी किसी एक को छोड़ने पर ब्राह्मण हो सकता है |”

सोणदण्ड ने उत्तर दिया, “नहीं, हे गौतम ! शील से प्रक्षालित है प्रज्ञा (ज्ञान) | प्रज्ञा से प्रक्षालित है शील (सदाचार) | जहाँ शील है, वहाँ प्रज्ञा है, जहाँ प्रज्ञा है, वहाँ शील है | शीलवान के पास प्रज्ञा होती है और प्रज्ञावान के पास शील | तो भी संसार में शील को प्रज्ञा का अगुवा माना जाता |

इस प्रकार भगवान् बुद्ध ने प्रज्ञा व शील को एक व्यक्ति की श्रेष्ठता के लिये मुख्य कसौटी रखा | ज्ञानी एवं सदाचारी व्यक्ति, भले ही उसने किसी भी जाति में जन्म लिया हो, भले ही वह काला हो या गोरा हो, सुंदर हो या कुरूप हो, को तथागत श्रेष्ठ मानते थे |

भगवान् ने अपने शिष्यों को भी सभी मानवों को एक-समान मानने का उपदेश दिया | भगवान् के सबसे प्रिय शिष्य आनन्द से सम्बन्धित एक प्रसंग का वर्णन हम यहाँ कर रहे है |

एक बार आयुष्मान् आनन्द एक गाँव से गुजर रहे थे | दोपहर का समय था | उन्हें जोर की प्यास लगी थी | उन्होंने देखा कि कुछ दूर पर कुछ स्त्रियाँ कुँए से पानी निकाल कर मिट्टी के घड़ों में भर रही है | आयुष्मान् आनन्द वहां गये और एक स्त्री से पीने के लिए पानी माँगा | वह अछूतों का गाँव था | जो स्त्रियाँ पानी भर रही थी वो सभी अछूत मानी जाती थी |

उस स्त्री ने आयुष्मान् आनन्द से कहा कि “मैं आपको जल पिलाने योग्य नही हूँ | मैं निम्न जाति की स्त्री हूँ |” तब आयुष्मान् ने कहा “मुझे तो तेरे घड़े का पानी चाहिए, मुझे तेरी जाति नही चाहिए | तेरा जल मेरी प्यास उसी तरह बुझायेगा, जिस प्रकार ब्राह्मण स्त्री के घड़े का जल |”

आयुष्मान् आनन्द के इन वचनों को सुनकर उस अछूत स्त्री ने उन्हें पानी पिलाया | उनकी की प्यास बुझी और वे उसे आशीर्वाद देकर आगे बढ़ गये |

आयुष्मान् आनन्द का इस प्रकार उच्च कोटि का आचरण भगवान् की शिक्षा का ही परिणाम था | भगवान् की लोकप्रियता का एक मुख्य कारण यह भी था कि वे जन्म के आधार पर किसी को छोटा या बड़ा नही मानते थे |