बुद्ध की कहानी 3 : आम्रपाली गणिका का उद्धार

बुद्ध की कहानी 3 : आम्रपाली गणिका का उद्धार | एक बार बोधिसत्त्व वैशाली की नगर-वधु आम्रपाली में उद्यान में रुके हुए थें | जब आम्रपाली गणिका ने सुना कि भगवान वैशाली आये है एवं उसके आम्रवन में रुके हुए है तो बहुत खुश हुई और तथागत के दर्शन के लिए वह अलक्तक, अंजन, अंगराग व आभूषण से रहित होकर अत्यंत विनम्र भाव से देव-पूजन-समय की एक कुलीन स्त्री की भांति स्वच्छ श्वेत वस्त्र पहन कर तैयार हुई |

आम्रपाली रूपवती वन-देवी के समान अपने आम्रवन में पहुंची और बोधिसत्त्व के सम्मान में रथ से उतरकर पैदल ही उधर चल दी जिधर भगवान् अपनी शिष्य मंडली के साथ विश्राम कर रहे थें |

सौंदर्य व यौवन से संपन्न आम्रपाली गणिका को जब इंद्रियों को अपने बस में कर चुके तथागत ने अपनी ओर आते देखा तो अपने शिष्यों को सावधान करते हुए कहा कि “देखो आम्रपाली समीप आ रही है, जो दुर्बलों का मानसिक ताप है, बोध की औषधि से अपने आपको संयमित रखते हुए तुम लोग ज्ञान में स्थिर हो जाओ | तुम प्रज्ञारूपी तीर लेकर, हाथों में शक्तिरुपी धनुष धारण कर तथा स्मृतिरुपी कवच पहनकर अपनी रक्षा करों |”

जब बोधिसत्त्व अपने शिष्यों को इस प्रकार उपदेश दे रहे थें तभी आम्रपाली हाथ जोड़े उनके समीप आ गयी | अपने आम्रवन में शांतचित्त भगवान् को एक वृक्ष के नीचे नेत्र बंद किये बैठे देखकर अपने को अनुगृहीत माना | उसने अपनी चंचल आँखों को झुका कर, श्रद्धा व शांत भाव से सिर झुकाकर भगवान् को प्रणाम किया | जब बोधिसत्त्व के आदेशानुसार उनके सामने बैठ गयी, तब भगवान् ने उसके समझने योग्य शब्दों में उपदेश दिया |

भगवान् के उपदेश सुन आम्रपाली गणिका के मन की समस्त वासनाओं का अंत हो गया और उसे अपनी वृत्ति से घृणा होने लगी | वह बोधिसत्त्व के चरणों में गिर गयी और घर्म की भावना से परिपूर्ण हो उनसे आग्रह किया कि “भगवान् भिक्षु संघ के साथ मेरा कल का भोजन स्वीकार करें |” भगवान् ने उसका आग्रह मौन से स्वीकार किया | तब आम्रपाली भगवान्‌ की स्वीकृति जान, उनके चरणों से उठ उनकों अभिवादन कर प्रदक्षिणा कर चली गई |

इसी समय लिच्छवि सामतों को जब मालूम हुआ कि तथागत आम्रपाली के आम्रवन में विश्राम कर रहे है तो वें सब भगवान् के दर्शन हेतु अपने-अपने सुसज्जित हाथी-घोड़ों व रथों पर सवार हो चल पड़े | रास्ते में उनका सामना बोधिसत्त्व से मिलकर लौट रही आम्रपाली से हो गया | आम्रपाली के मुखमण्डल पर अतिप्रसन्नता देखकर उससे पूछा कि इतने अभिमान के साथ कहाँ से आ रही हो ?

तब आम्रपाली ने उत्तर दिया कि “आर्यपुत्रों ! क्योकि मैंने भिक्षु संघ के साथ कल के भोजन के लिये भगवान् को निमंत्रित किया है |”

लिच्छवियों ने उससे आग्रह किया, “हे आम्रपाली ! सौ हजार (कार्षापण) ले लो और कल तथागत को भोजन हमें कराने दो |

आम्रपाली ने आग्रह ठुकराते हुए कहा, “आर्यपुत्रों ! यदि वैशाली जनपद भी दे दो, तो भी इस महान निमंत्रण को तुम्हे नही दूंगी |”

यह सुन लिच्छवि बहुत निराश हुए आपस में कहा “अरे ! हमे आम्रपाली ने जीत लिया, अरे हमे आम्रपाली ने वंचित कर दिया |”

लिच्छवि सामंत जब आम्रवन पहुंचे तब अपने वाहनों से उतर कर पैदल भगवान् के निकट जाकर श्रद्धापूर्वक नमन कर धरती पर बैठ गये | बोधिसत्त्व का उपदेश सुनने के बाद सभी लिच्छवि सामंतो ने उनसे निवेदन किया कि कल का भोजन भगवान् उनके पास करें | बोधिसत्त्व ने उन्हें बताया कि कल के भोजन के लिए वें पहले ही आम्रपाली का निमंत्रण स्वीकार कर उसे वचन दे चुके है | ऐसा सुन लिच्छवि सामंतों को बुरा लगा लेकिन तथागत के उपदेशों के कारण वे शांत हो गये और अपने आसन से उठ बोधिसत्त्व को अभिवादन व प्रदक्षिणा कर चले गये |

अगले दिन बोधिसत्त्व ने आम्रपाली के घर भिक्षु संघ के साथ भोजन किया और आम्रपाली भी बोधिसत्त्व की शिष्या बनी | उसने भिक्षु-संघ के निवास के लिए अपनी आम्रवाटिका भेंट कर दी |

आम्रपाली से भिक्षा लेकर तथागत चतुर्मास वास हेतु वेणुमती नगर चले गये, जहाँ वर्षाकाल के चार मास व्यतीत किये | तत्पश्चात भगवान् पुनः वैशाली आ गये एवं मर्कट नामक सरोवर के तट पर निवास करने लगे |