बुद्ध की कहानी 2 : भद्रवर्गीय मित्रों की दीक्षा

buddha ki kahani 2

बुद्ध की कहानी 2 : भद्रवर्गीय मित्रों की दीक्षा | जब वाराणसी में भगवान् अपने साठ भिक्षुओं को भिन्न भिन्न दिशाओं में भेजकर उरुबेला की ओर जा रहे थे | मार्ग में उन्हें एक वन दिखा तो वे वहां के वृक्ष के नीचे ध्यानमग्न हो गये | उसी वन में भद्रवर्गीय नामक तीस मित्र, अपनी पत्नियों संग सहित क्रीडा-विनोद करने आये थे | उन मित्रों में से एक का विवाह नही हुआ था इसलिए उसके लिये एक वेश्या लाई गईं थी | जब सभी लोग रंगरेलियां में मग्न होकर सुध-बुध भूल गये तब वह वेश्या उनके आभूषण आदि लेकर भाग गयी | जब उन मित्रों को इस बात का पता लगा तो उस वेश्या को खोजने लगे |

पूरे वन में खोजते-खोजते वे वहां पहुच गये जहाँ भगवान् वृक्ष के नीचे ध्यानमग्न थे | वे भगवान् से बोले –

“भन्ते ! क्या आपने किसी तरुणी स्त्री कों यहाँ से जाते देखा ?”

“कुमारो ! तुम्हें उस स्त्री से क्या काम है ?”

“भन्ते ! हम भद्रवर्गीय तीस मित्र अपनी-अपनी पत्नियों संग इस वन-खण्ड में क्रीडा कर रहे थे | एक की पत्नी न थी, अतः उसके लिये वेश्या लाई गई थी | भन्ते ! वह वेश्या हम लोगों के नशा में हो घूमते वक्‍त आभूषण आदि लेकर भाग गईं है | इसीलिए भन्ते ! हम लोग उस वेश्या को पूरे वन खोजते भटक रहे है |”

तब भगवान् ने कहा “तो कुमारो ! क्‍या समझते हो, तुम्हारे लिये क्या उत्तम होगा, स्त्री को ढूँढना या अपने (आत्मा) को ढूँढना |”

“भन्ते ! हमारे लिये यही उत्तम है, कि हम अपने को ढूँढें |”

“तो कुमारो ! बैठो, मैं तुम्हें निर्वाण का मार्ग बताता हूँ |”

“अच्छा, भन्‍्ते !”

फिर वह भद्रवर्गीय मित्र भगवान्‌ को वन्दना कर, एक ओर बैठ गये | उनसे भगवान् ने आनुपूर्वी कथा, जैसे – दान-कथा, शील-कथा, स्वर्ग-कथा, कामवासनाओं का दुष्परिणाम अपकार दोष, निष्कामता का माहात्म्य, कही | भगवान्‌ के धर्म में विशारद हो, उन्होंने भगवान् से विनती की कि भगवान् के हाथ से हमें प्रब्रज्या मिले | वही उन आयुष्मानों की उपसम्पदा हुई |