आर्यों का संघर्ष

Aaryon Ka Sangharsh

आर्यों का संघर्ष (Aaryon Ka Sangharsh) : भारत में आर्यों को दो प्रकार के संघर्षों का सामना करना पड़ा था | पहला, आर्य कबीलों का प्रभुसत्ता के लिए आपस में और दूसरा यहाँ के मूलनिवासियों से | ऋग्वैदिक आर्य कई जनों (कबीलों) में विभाजित थे | इनमे ‘पंचजन’ अर्थात अनु, द्रुह्यु, यदु, पुरु, तुर्वस सर्वप्रमुख थे | ये जन आपस में लड़ते रहते थे और कभी-कभी अपने स्वार्थ के लिए शत्रु आर्य जन के विरुद्ध अनार्य जनों की भी मदद लेते थे |

ऋग्वेद में एक स्थान पर ‘दाशराज्ञ’ युद्ध का वर्णन है | जिसकी कहानी इस प्रकार है | सुदास, जिसका राजवंश ‘त्रित्सु’ था, जो सरस्वती और यमुना के मध्य के प्रदेश पर बसे भरत जन (कबीले) का राजा था | विश्वामित्र उसके मुख्य पुरोहित थे | विश्वामित्र के मार्गदर्शन में भरत ने कई युद्धों में सफलता पाई थी |

लेकिन कालान्तर में सुदास ने विश्वामित्र को मुख्य पुरोहित के पद से हटाकर वशिष्ठ को बना दिया जिससे विश्वामित्र अत्यधिक क्रुद्ध हुए और उन्होंने सुदास के विरुद्ध युद्ध हेतु दस जनों का एक संघ बनाया, जिनमें पाँच आर्य-जन (अनु, द्रुह्यु, यदु, पुरु, तुर्वस) थे और पाँच आर्येतर जन (अनिल, शिबि, पख्त, भालन, विशानिन) थे |

दाशराज्ञ युद्ध परुष्णी (रावी) नदी के तट पर हुआ, जो दाशराज्ञ युद्ध (दस राजाओं के साथ युद्ध) कहलाया | इस युद्ध में सुदास की विजय हुई और सुदास ऋग्वैदिक भारत का पहला चक्रवर्ती राजा बना |

भरत जन के नाम पर ही हमारे देश का नाम ‘भारतवर्ष’ (भरतों का देश) पड़ा और यहाँ के निवासियों को ‘भारतसन्तति’ कहा गया |

यहाँ पाठकों को यह भी बता दे कि हमारे देश का नाम इण्डिया कैसे पड़ा | जब यूनानी लोग भारत आये तब वे सर्वप्रथम सिन्धु नदी के तट पर निवास करने वाले लोगो के सम्पर्क में आये | उन्होंने सम्पूर्ण देश को अपनी सुविधानुसार सिन्धु या ‘इंडस’ कहा | और इसी इंडस शब्द से हमारा देश कालान्तर में ‘इंडिया’ के नाम से विदेशियों में प्रसिद्ध हो गया | हिन्दू शब्द भी सिन्धु से निकला है | इसके आलावा हमारे देश को अरबी और फारसी भाषाओँ में ‘हिन्द’ कहा गया | हमारे देश को संविधान में ‘इंडिया अर्थात् भारत’ कहा गया है | हिन्दुस्तान शब्द सर्वप्रथम तीसरी सदी में फारस (ईरान) के सासानी राजाओं के अभिलेखों में मिलता है | चक्रवर्तिन् शब्द का अर्थ भी जान ले | चक्रवर्तिन् राजा वह होता था जो हिमालय से कन्याकुमारी तक, पूर्व में ब्रह्मपुत्र की घाटी से पश्चिम में सिन्धु नदी के पार तक अपना शासन स्थापित कर ले | वास्तव में प्राचीन काल में कम से कम दो राजा चक्रवर्तिन् राजा माने जा सकते है पहला मौर्यवंशीय अशोक महान और दूसरा गुप्तवंशीय समुद्रगुप्त |

दाशराज्ञ युद्ध में पराजित जनों में सबसे प्रमुख पुरु जन, जो सरस्वती नदी के निचले भाग में निवास करता था | इनका राजा ‘पुरुकुत्स’ इस युद्ध में मारा गया था | कालान्तर में भरत जन और पुरु जन में मित्रता हो गयी और दोनों के मिलने से एक नया जन बना जो ‘कुरु’ कहलाया |

इसके बाद के काल में एक और परिवर्तन हमे देखने को मिलता है कि कुरु जन पंचाल जन के साथ मिल जाते है और दोनों अपना संयुक्त राज्य स्थापित करते है | पंचाल राज्य अपने दार्शनिक राजाओं के लिए अत्यधिक प्रसिद्ध था |

आर्यों का संघर्ष दासों और दस्युओं से भी हुआ | ऋग्वेद में दास और दस्यु शब्द का उल्लेख कई स्थानों पर आया है | कुछ उदहारण द्वारा यह सिद्ध किया जा सकता है कि दास आर्य ही थे |

ऋग्वेद में भरत वंश के एक राजा दिवोदास का वर्णन मिलता है | दिवोदास के नाम में दास शब्द आया है जबकि वह आर्य था, जिससे पता चलता है कि दास सम्भवता आर्यों की ही किसी शाखा से सम्बन्धित थे |

इसके आलावा प्राचीन ईरानी साहित्य में हमे दास जनों का उल्लेख मिलता है, जिससे यह अनुमान लगाया जाता है कि दास पूर्ववर्ती आर्यों की ही एक शाखा थे |

कुछ भी हो पर आर्यों और दासों से लम्बा संघर्ष चला, जिसमे आर्य विजयी हुए |

आर्यों का निर्णायक रूप से विजयी होना इस बात से अधिक स्पष्ट हो जाता है कि कालान्तर में दास शब्द का प्रयोग गुलाम (सेवक) के रूप में होने लगा |

ऋग्वेद में पुरोहितों को दक्षिणा में दास-दासियाँ दिए जाने का उल्लेख कई स्थानों पर हुआ है | लेकिन इस बात को जान लेना आवश्यक है कि ऋग्वैदिक काल में दास-दसियों से खेती का या अन्य कोई उत्पादन सम्बन्धी कार्य नही कराए जाते थे, जैसा कि बाद के कालों में होने लगा था | दास-दसियों से घरेलू कार्य करवाया जाता था |

जहाँ तक दस्यु शब्द का प्रश्न है, ऐसा माना जाता है कि वे भारत के मूलनिवासी (अनार्य) थे | इनका वर्णन काले रंग के लिंगपूजक (शिश्न देवाः) कह कर किया गया है | आर्य इन्हे कटुवादी कहते थे |

ऋग्वेद में दस्युहत्या शब्द कई बार आया है | ऋग्वेद में एक आर्य राजा त्रसदस्यु का वर्णन है, जिसने दस्युओं को हराया था | वह दस्युओं का तो परम शत्रु था लेकिन दासों के प्रति उदार रवैया अपनाता था |

दस्यु पुर नामक सुरक्षित स्थानों में रहते है, और पशुओं से सम्पन्न थे | ऋग्वेद के अनुसार इन्द्र ने ऐसे कई पुरों को नष्ट किया था |

आर्यों का संघर्ष पणि नामक अनार्यों से भी हुआ | ऐसा माना जाता है कि व्यापारी थे | आर्य पणियों से बहुत परेशान थे क्योकि वे उनके पशुओं, जोकि आर्यों की मुख्य सम्पत्ति थे, को चुरा ले जाते थे | लेकिन ये भी (दासों की तरह) दस्युओं की भांति घृणित नही माने जाते थे |